औरंगजेब की मृत्यु के बाद जिन 11 बादशाहों ने भारत पर शासन किया उन्हें उत्तरकालीन मुगल बादशाह कहा जाता है। औरंगजेब ने अपनी मृत्यु से पूर्व अपने पूरे साम्राज्य को अपने जीवित तीन पुत्रों में वसीयत के अनुसार विभाजित कर दिया।
औरंगजेंब के 3 पुत्र –
मुगल सल्तनत का अन्तिम बादशाह बहादुर शाह-II या बहादुर शाह जफर था।
बहादुर शाह प्रथम का जन्म 14 अक्तूबर, सन् 1643 ई. में बुरहानपुर, भारत में हुआ था। बहादुर शाह प्रथम दिल्ली का सातवाँ मुग़ल बादशाह (1707-1712 ई.) था। ‘शहज़ादा मुअज्ज़म‘ कहलाने वाले बहादुरशाह, बादशाह औरंगज़ेब का दूसरा पुत्र था। अपने पिता के भाई और प्रतिद्वंद्वी शाहशुजा के साथ बड़े भाई के मिल जाने के बाद शहज़ादा मुअज्ज़म ही औरंगज़ेब के संभावी उत्तराधिकारी बना। बहादुर शाह प्रथम को ‘शाहआलम प्रथम‘ या ‘आलमशाह प्रथम‘ के नाम से भी जाना जाता है।
बहादुर शाह प्रथम ने आगरा के समीप जाजऊ नामक स्थान पर अपने भाई आलम को 18-20 जून 1707 को पराजित कर मार डाला। जाजऊ के युद्ध के पश्चात बहादुर शाह प्रथम जनवरी 1709 ई. में हैदराबाद पहुंच अपने छोटे भाई कामबक्श व उनके पुत्रों को मार डाला। बहादुर शाह प्रथम ने अपने पिता औरंगजेब की संकीर्णतावादी नीतियों को छोड़कर समन्वयवादी नीतियों का पालन करते हुए राजपूतों व जाटो से अच्छे सम्बन्ध बनाये परन्तु सिखों से मधुर सम्बन्ध नहीं हुए किन्तु किसी प्रकार का विद्रोह भी नहीं हुआ। 1712 ई. में बहादुर शाह प्रथम की मृत्यु हो गयी जिसके बाद उसका पुत्र जहांदार शाह शासक बना।
जहांदार शाह के समय सारी शक्तियां उसके वजीर जुल्फिकार खां (ईरान का रहने वाला) के हाथों में थी। जहांदार शाह लाल कुमारी नामक वेश्या पर आसक्त रहता था तथा उसे हस्तक्षेप करने का आदेश दे रखा था। इसलिए जहांदार शाह को लम्पट मूर्ख भी कहा जाता है। सैयद बंधु अब्दुल खां तथा हुसैन अली ने अजीम-उस-शान के पुत्र फर्रूखसियर के द्वारा 1713 ई. में जहांदार शाह की हत्या करवा दी।
सैयद बन्धुओं ने फर्रूखसियर को बादशाह बनाया था। फर्रूखसियर ने अब्दुल खां को अपना वजीर तथा हुसैन अली को मीरबख्श का पद प्रदान किया था। बादशाह बनने के पश्चात फर्रूखसियर ने जजिया कर पर प्रतिबंध लगा दिया लेकिन 1717 ई. में पुनः जजिया कर को लागू भी कर दिया। फर्रूखसियर असाध्य रोग (फोड़ा) से पीड़ित था जिसका उपचार सर्जन डा. विलियम हैमिल्टन ने किया था।
1717 ई. में उसने ईस्ट इंण्डिया कम्पनी को पश्चिम बंगाल में व्यापार करने का फरमान जारी कर दिया इस व्यापार के बदले में कम्पनी फर्रूखसियर को 3000 रू/वर्ष कर देने का वादा किया। फर्रूखसियर को घृणित कायर भी कहा जाता है। 1719 ई. में सैयद बन्धुओं ने गला दबाकर बादशाह की हत्या कर दी। फर्रूखसियर की मृत्यु के बाद क्रमश फर्रूखसियर की मृत्यु के बाद क्रमश व रफी उद दौला बादशाह बने परन्तु दोनों भाइयों की बीमारी के कारण मृत्यु हो गयी।
यह युद्ध पूर्वी पंजाब में (अब हरियाणा) करनाल नामक स्थान पर नादिर शाह व मुहम्मद शाह के बीच लड़ा गया। इस युद्ध में मुहम्मद शाह की पराजय हुई तथा नादिरशाह ने इसे कैद कर लिया और दिल्ली पहुंच विश्व प्रसिद्ध सिंहासन तख्त-ए-ताउस (मयूर सिंहासन ) पर अधिकार करके 15 दिनों तक शासन करने के पश्चात दिल्ली को बरबाद कर तख्त-ए-ताऊ सिंहासन, कोहिनूर हीरा तथा लगभग 70 करोड़ रू लेकर फारस चला गया तथा मुहमदशाह को आजाद कर दिया। मुहम्मद शाह ने पुनः जीवन पर्यंत 1748 तक शासन किया।
तख्त-ए-ताऊस (मयूर सिंहासन) पर बैठने वाला अन्तिम मुगल शासक मुहम्मदशाह था।
मुहम्मद शाह के बाद अहमदशाह शासक बना।अहमदशाह के शासन काल में 1748 ई. में ईरान के शाहअहमदशाह अब्दाली का भातर पर प्रथम आक्रमण हुआ था। इसके शासन काल में प्रशासन का काम काज हिजड़ों और औरतों के एक गिरोह के हाथों में आ गया, जिसकी मुखिया राजमाता उधमबाई (उपाधि-किबला-ए-आलम) थी।
उसने हिजड़ों के सरदार जाबेद खाँ को ‘नवाब बहादुर’ की उपाधि प्रदान की।
उसे बुरहान-उल-मुल्क के दामाद एवं अवध के सूबेदार ‘सफदरजंग’ को अपना बजीर तथा कमरुद्दीन के लड़के मुइन-उल-मुल्क को पंजाब का सूबेदार बनाया।
इसके समय की प्रमुख दो घटनाएं –
यह मुग़ल बादशाह था इसका वास्तविक नाम शाहज़ादा अली गौहर था। यह आलमगीर द्वितीय के उत्तराधिकारी के रूप में 1759 ई. में गद्दी पर बैठा। बादशाह शाहआलम द्वितीय ने ईस्ट इंडिया कम्पनी से इलाहाबाद की सन्धि कर ली थी और वह ईस्ट इंडिया कम्पनी की पेंशन पर जीवन-यापन कर रहा था।
यह युद्ध 14 जनवरी, 1761 ई. में अहमद शाह अब्दाली व मराठों के बीच लड़ा गया। जिसमें अहमदशाह अब्दाली की विजय हुई। पानीपत के तृतीय युद्ध में मराठों की सेना को वजीर इमाद उल मुल्क का समर्थन मिला तथा इब्राहीम खां गार्दी ने मराठों की ओर से तोपखाने का नेतृत्व करते हुए भाग लिया। अहमदशाह अब्दाली का वास्तविक नाम अहमद खां था। इसने आठ बार भारत पर आक्रमण किया।
यह युद्ध अक्टूबर 1764 ई. को शाह आलम द्वितीय, बंगाल के नवाब मीर कासिम तयह अवध के नवाब सुजाउदौला की संयुद्ध सैना (त्रिगुट) और ईस्ट इंडिया कंपनी के सेनापति हेक्टर मुनरो के बीच हुआ। इसमें त्रिगुट की हार हुई और मुगल शासक शाह आलम को पेंशन भोगी बनाकर इलाहाबाद में रखा गया। 1765 ई. में अंग्रेजों ने शाह आलम से बिहार, बंगाल व उड़ीसा की दीवानी 26 लाख रू/वर्ष के कर पर प्राप्त कर ली। मराठों के सहयोग से शाह आलम-II 1772 ई. में इलाहाबाद से दिल्ली गया। गुलाम कादिर खां ने 1806 ई. में शाह आलम-II की हत्या करवा दी।
यह अन्तिम मुगल बादशाह था 1857 ई. के विद्रोह का नेतृत्व इसने दिल्ली से किया था जिसके कारण 1858 ई. में अंग्रेजों द्वारा इसे कैद करके रंगून भेज दिया गया। 1862 ई. में रंगून में ही बहादुर शाह जफर की मृत्यु हो गयी उसका मकबरा रंगून में ही है। बहादुर शाह-II ‘ जफ़र ’ के नाम से शेरो शायरी करता था।
दिल्ली में अंग्रेजों द्वारा जब इसे कैद किया गया तो उस समय उसने लिखा कि –
‘न तो मै किसी की आंख का नूर हूं
न तो किसी के दिल का करार हूं
मैं किसी के काम आ न सका
वो बुझता हुआ चिराग हूं।’