शाह आलम द्वितीय (1759-1806 ई.)

  • पूरा नाम – अब्दुल्लाह जलाल उद-दीन अब्दुल मुज़फ़्फ़र हम उद-दीन मुहम्मद अली गौहर शाह-ए-आलम द्वितीय
  • जन्म – 25 जून, 1728 (शाहजहाँनाबाद)
  • शासनकाल – 1759-1806
  • मृत्यु – 19 नवम्बर, 1806

आलमशाह द्वितीय या शाहआलम द्वितीय 17वाँ मुग़ल बादशाह था। इसका वास्तविक नाम शाहज़ादा अली गौहर था। यह आलमगीर द्वितीय के उत्तराधिकारी के रूप में 1759 ई. में गद्दी पर बैठा। बादशाह शाहआलम द्वितीय ने ईस्ट इंडिया कम्पनी से इलाहाबाद की सन्धि कर ली थी और वह ईस्ट इंडिया कम्पनी की पेंशन पर जीवन-यापन कर रहा था।

ईस्ट इंडिया कम्पनी से सन्धि

शाहआलम द्वितीय ने अपने तख़्त के लिए अब्दाली को सबसे ज़्यादा ख़तरनाक समझा। इसलिए उसने अब्दाली के पंजे से बचने के लिए मराठों को अपना संरक्षक बना लिया। लेकिन 1761 ई. में पानीपत की तीसरी लड़ाई में अब्दाली ने मराठों को हरा दिया। उसने शाहआलम द्वितीय को दिल्ली के तख़्त पर बने रहने दिया। यद्यपि बाद में उसकी इच्छा हुई कि वह उसे हटाकर स्वयं दिल्ली का तख़्त हस्तगत कर ले, तथापि उसकी यह योजना पूरी नहीं हुई। किन्तु, अब्दाली की इस विफलता से बादशाह शाहआलम द्वितीय को कोई लाभ प्राप्त नहीं हुआ।

1764 ई. में उसने अपनी शक्ति बढ़ाने का दूसरा प्रयास किया और बंगाल से अंग्रेज़ों को निकाल बाहर करने के लिए अवध के नवाब शुजाउद्दौला और बंगाल के भगोड़े नवाब मीर क़ासिम से सन्धि कर ली, परन्तु अंग्रेज़ों ने बक्सर की लड़ाई (1764 ई.) में शाही सेना को हरा दिया और बादशाह शाहआलम द्वितीय ने ईस्ट इंडिया कम्पनी से इलाहाबाद की सन्धि कर ली।

इस सन्धि के द्वारा बादशाह को कोड़ा और इलाहाबाद के ज़िले अवध से मिल गये और बादशाह ने बंगाल, बिहार और उड़ीसा की दीवानी (राजस्व वसूलने का अधिकार) कम्पनी को इस शर्त पर सौंप दी, वह उसे 26 लाख रुपये सालाना ख़िराज देगी। लेकिन शाहआलम को यह लाभ थोड़े समय तक ही मिला।

कम्पनी की पेंशन पर जीवन-यापन

पानीपत की तीसरी लड़ाई में मराठों की शक्ति को क्षति अवश्य पहुँची थी, किन्तु शीघ्र ही उन्होंने फिर से अपनी शक्ति अर्जित कर ली। बादशाह शाहआलम द्वितीय अपने वज़ीर नजीबुद्दौला (गाज़ीउद्दीन) की साज़िशों से दिल्ली नहीं लौट पा रहा था। उसने मराठों की मदद लेने के लिए कोड़ा और इलाहाबाद के ज़िले मराठा सरदार महादजी शिन्दे को सौंप दिये। इस प्रकार मराठों की सहायता से 1771 ई. में शाहआलम द्वितीय पुन: दिल्ली लौटा, लेकिन अब उसकी हैसियत मराठों के हाथ की कठपुतली के समान थी।

अतएव ईस्ट इंडिया कम्पनी ने इलाहाबाद की सन्धि तोड़ दी और शाहआलम द्वितीय से कोड़ा और इलाहाबाद के ज़िले वापस ले लिये और उसे सालाना 26 लाख रुपये की ख़िराज देना भी बंद कर दिया, जिसे अंग्रेज़ों ने 1764 ई. में बंगाल की दीवानी के बदले में देने का वायदा किया था। इससे बादशाह शाहआलम द्वितीय की हालत और भी पतली हो गई और वह दूसरे आंग्ल-मराठा युद्ध (1803-1805 ई.) तक मराठों की शरण में रहा।

शाह आलम द्वितीय की मृत्यु

दूसरे मराठा युद्ध में ईस्ट इंडिया कम्पनी की फ़ौजों ने जनरल सेक के नेतृत्व में महादजी शिन्दे की सेना को दिल्ली के निकट पराजित किया। इसके बाद शाहआलम द्वितीय और उसकी राजधानी दिल्ली दोनों पर ईस्ट इंडिया कम्पनी का नियंत्रण स्थापित हो गया। बादशाह अब बूढ़ा हो चला था और अन्धा भी हो गया था। वह पूर्णतया नि:सहाय था। वह ईस्ट इंडिया कम्पनी की पेंशन पर जीवन-यापन कर रहा था। अन्त में 1806 ई. में उसकी मृत्यु हो गई।

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