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सूफी आंदोलन –
सूफी आंदोलन चौदहवीं से सोलहवीं शताब्दी का सामाजिक-धार्मिक आंदोलन था। सूफी आंदोलन के प्रतिपादक अपरंपरागत मुस्लिम संत थे जिन्होंने भारत के वेदांत दर्शन और बौद्ध धर्म का गहरा अध्ययन किया था। वे भारत के विभिन्न धार्मिक पाठों से गुजरे थे और भारत के महान संतों और द्रष्टाओं के संपर्क में आए थे। वे भारतीय धर्म को बहुत पास से देख सकते थे और इसके आंतरिक मूल्यों को महसूस कर सकते थे। तदनुसार उन्होंने इस्लामिक दर्शन का विकास किया जिसने अंतिम बार सूफी आंदोलन को जन्म दिया।
भक्ति आंदोलन –
भक्ति आंदोलन इतिहास में एक और गौरवशाली धार्मिक आंदोलन था। यह विशुद्ध रूप से प्रभु की भक्ति पर आधारित था। भक्ति का अर्थ है भक्ति जिसके माध्यम से व्यक्ति ईश्वर का अहसास कर सकता है। इस पंथ के प्रमुख प्रतिपादक रामानुज, निम्बार्क, रामानंद, वल्लभाचार्य, कबीर, नानक और श्री चैत्य थे। उन्होंने ईश्वर के अहसास के लिए प्रेम और भक्ति के सिद्धांत का प्रचार किया। इसलिए इस आंदोलन को भक्ति आंदोलन के रूप में जाना जाने लगा।
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सूफी एवं भक्ति आंदोलन के कारण
मध्यकालीन जड़ हो चुके समाज में धार्मिक आडम्बरों एवं कुरीतियों ने हिन्दु, मुस्लिम एवं बौद्ध सभी धर्मों में अपनी जड़ें जमा ली थी।
लोगों में आपसी सद्भावना की कमी एवं सामाजिक भेदभाव का प्रभाव।
वर्ण एवं जाति व्यवस्था अत्यधिक कठोर हो गयी थी एवं अनेक सामाजिक बुराइयों ने समाज को दूषित कर दिया था।
शासक वर्ग के अनाचारों से आम जन में गहरी निराशा उत्पन्न हो चुकी थी।
प्रभाव/परिणाम
भक्ति के प्रति आस्था का विकास हुआ।
लोक भाषाओं में साहित्य रचना का आरंभ हुआ।
सहिष्णुता की भावना का विकास हुआ।
जाति व्यवस्था के बंधनों में शिथिलता आई।
विचार एवं कर्म दोनों स्तरों पर समाज का उन्नयन हुआ।
प्रमुख सिलसिले
1. चिश्ती सिलसिला
इसकी स्थापना खुरासान में अबू इशाक ने किया। भारत में चिश्तिया सम्प्रदाय के प्रथम संत शेख उस्मान के शिष्य शेख मुईनुद्दीन चिश्ती थे उनकी कब्र अजमेर में है और जनसाधारण इनको ख्वाजा के नाम से जानता था। ख्वाजा वेदान्त दर्शन व संगीत से काफी प्रभावित थे। हिन्दुओं के प्रति उदार दृष्टिकोण रखते थे ।
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2. सुहरावर्दी सिलसिला
यह सम्प्रदाय भारत के उत्तर-पश्चिमी सीमा क्षेत्र में अधिक प्रचलित था। शेख शिहाबुद्दीन सुहरावर्दी इस सम्प्रदाय के प्रणेता थे। उनके शिष्यों में शेख हमीदुद्दीन नागौरी और मुल्लान के शेख बहाउद्दीन जकारिया विशेष प्रसिद्ध थे। भारत में इस सिलसिला को संगठित करने का श्रेय बहाउद्दीन जकारिया को है ।
कादिरी सम्प्रदाय की स्थापना बगदाद के शेख अब्दुल कादिर जिलानी ने 12वीं सदी में की थी । भारत में इस सम्प्रदाय के पहले संत शाह नियामत उल्ला और नासिरुद्दीन महमूद जिलानी थे। शेख अब्दुल जाकिर फतेहपुर सीकरी के दीवान-ए-आम में नमाज पढ़ते थे जिस पर अकबर ने विरोध किया तो शेख ने उत्तर दिया- ”मेरे बादशाह, यह आपका साम्राज्य नहीं है कि आप आदेश दें। ” शाहजहाँ का ज्येष्ठ पुत्र दाराशिकोह कादिरी सूफी सम्प्रदाय का अनुयायी बन गया था और ‘मियां मीर’ से लाहौर में मुलाकात की थी । बाद में दाराशिकोह मुल्लाशाह बदख्शी का शिष्य बन गया ।
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4. नक्सबंदी सम्प्रदाय
इस सिलसिला की स्थापना 14वीं सदी में ख्वाजा वहाउद्दीन नक्शबंद ने की थी किन्तु भारत में इसका प्रचार ख्वाजा बकी बिल्लाह (1563-1603 ई.) ने किया था। यह लोग सनातन इस्लाम में आस्था रखते थे और पैगम्बर द्वारा प्रतिपादित नियमों का ही पालन करते थे।
प्रचार-प्रसार शेख़ अहमद सरहिन्दी ‘मुजाहिद’ अर्थात् ‘इस्लाम के नवजीवनदाता‘ या सुधारक के रूप में प्रसिद्ध थे। ख़्वाजा मीर दर्द नक्शबंदी सम्प्रदाय के अन्तिम विख्यात सन्त थे।
सिन्ध भी नव-सूफीवाद का महान केन्द्र था । यहाँ बहुत से सूफी सत पैदा हुये । रहस्यवाद की शुरुआत शाह करीम ने लगभग 1600 ई. में की जिन्हें धार्मिक प्रेरणा अहमदाबाद के पास एक वैष्णव सन्त से मिली जिसने ‘ॐ‘ के रहस्यों से उनका परिचय कराया ।
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सूफी शब्द को अलग-अलग विद्वानों ने भिन्न भिन्न अर्थों में परिभाषित किया है जैसे – ‘सफ’ शब्द का अर्थ है ऊनी वस्त्र धारण करने वाला। ‘सफा’ शब्द का अर्थ आचार-विचार से पवित्र व्यक्ति से है। एक मत यह भी है कि – मदीना में मुहम्मद साहब द्वारा बनवायी मस्जिद के बाहर ‘सफा’ नामक पहाड़ी पर जिन व्यक्तियों ने शरण ली तथा खुदा की आराधना में लीन रहे वे सुफी कहलाए। सूफीवाद का उद्भव ईरान में हुआ।
प्रारंभिक सूफियों में राबिया प्रसिद्ध है। सूफीवाद इस्लाम के भीतर सुधारवादी आन्दोलन था राबिया एवं मंसूर बिन हल्लाज ने क्रमशः 8वीं एवं 10वीं शताब्दी में ईश्वर एवं व्यक्ति के बीच प्रेम संबंध पर बल दिया। अल गज्जाली ने एवं इस्लामी परंपरावाद को मिलाने का प्रयत्न किया। इब्न उल अरबी ने सूफी जगत में वहदत-उल-वजूद का सिद्धांत प्रतिपादित किया जो एकेश्वरवाद से संबंधित था।
भारत में सूफीवाद का उदय
भारत में सूफियों का आगमन महमूद गजनवी के आगमन के साथ हुआ था। भारत आने वाले प्रथम संत शेख इस्माइल थे जो लाहौर आए। इनके उत्तराधिकारी शेख अली बिन उस्मान अल हुजवीरी थे जो दातागंज बख्श नाम से विख्यात थे।
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शेख अली बिन उस्मान अल हुजवीरी ने सूफी मत से संबंधित प्रसिद्ध रचना कश्फुल महजुव का लेखन किया। ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती , 1192 ई. में शिहाबुद्दीन मुहम्मद गोरी के साथ भारत आए थे इन्होंने भारत में चिश्ती सम्प्रदाय की नींव रखी थी।
सूफीवाद के समूह
मोटे तौर पर सूफीवाद को 2 समूहों में विभाजित किया जाता है –
बासरा समूह – ये इस्लामिक कानूनों में विश्वास रखते थे।
बेसरा समूह – ये इस्लामिक कानूनों में विश्वास नहीं रखते। ये घुमक्कड़ संत थे।
सूफीवाद का दर्शन
सूफीवाद ने इस्लामिक कट्टरपन को त्याग धार्मिक रहस्यवाद अपनाया।
सूफीवाद में इस्लाम धर्म एवं कुरान के महत्व को स्वीकारा है परन्तु इस्लाम धर्म के कर्मकाण्डों व कट्टरपंथी विचारों का विरोध किया।
सूफी संतों ने ऐकेश्वरवाद में विश्वास किया है। इसके अनुसार, ईश्वर एक है, सब कुछ ईश्वर में है। त्याग एवं प्रेम के द्वारा ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है।
सूफी संतों ने ईश्वर को प्रेमी माना है एवं इसी प्रेम में भक्ति, त्याग, प्रेम, अहिंसा, उपासना एवं संगीत को साधन बनाया है।
सूफी उपासना पद्वति
सूफी संतों की उपासना को जियारत कहा गया है। जियारत में सूफी संत दरगाहों पर नाच एवं संगीत के माध्यम से अपनी प्रेम व भक्ति को प्रस्तुत करते थे। विशेष रूप से कव्वाली , जिक्र एवं समा के द्वारा उपासना करते थे। कौल (कव्वाली से पहले व अंत की कहावत) की शुरूआत अमीर खुसरो ने की।
सूफी सिलसिले/सम्प्रदाय
चिश्ती सिलसिला
भारत में चिश्ती सम्प्रदाय की स्थापना ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती ने की। चिश्ती सम्प्रदाय भारत में ही चला अफगानिस्तान की शाखा समाप्त हो गयी थी।
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प्रमुख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती
ये 1192 ई. में शिहाबुद्दीन गोरी की सेना के साथ भारत आए। कुछ दिन लाहौर में ठहरे बाद में अजमेर जाकर बस गए।
यात्रा क्रम : लाहौर – दिल्ली – अजमेर।
जन्म : अफगानिस्तान के सिस्तान में
मृत्यु : अजमेर (राजस्थान)
खानकाह (दरगाह): अजमेर (राजस्थान)
शिष्य : योगी रामदेव, जयपाल, शेख हमीदउद्दीन नागौरी एवं कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी।
इनके समय अजमेर पर पृथ्वीराज चौहान का शासन था।
मुगल सम्राट अकबर ने इनकी दरगाह की 2 बार पैदल यात्रा की।
इन्होंने धर्मांतरण को गलत माना था। ये धर्म की स्वतंत्रता में विश्वास रखते थे।