- स्थापना – अबू इशाक शमी (1940–41), खुरासान में
- चिश्तिया संप्रदाय के प्रथम संत – शेख उस्मान के शिष्य शेख मुईनुद्दीन चिश्ती
भारत में चिश्तिया संप्रदाय के प्रथम संत शेख उस्मान के शिष्य शेख मुईनुद्दीन चिश्ती थे तथा उनकी कब्र अजमेर में है। और जनसाधारण इनको ख्वाजा के नाम से जानता था। ख्वाजा वेदान्त दर्शन व संगीत से काफी प्रभावित थे। हिन्दुओं के प्रति उदार दृष्टिकोण रखते थे।
ख्वाजा का कहना था कि जब हम बाह्म बंधनों को पार कर जाते हैं और चारों ओर देखते हैं तो हमें प्रेमी-प्रेमिका और स्वयं प्रेम एक ही लगते हैं। अर्थात् एकेश्वर के समक्ष वे सभी एक है।
इनके शिष्यों में शेख हमीउद्दीन और शेख बख्तियार काकी काफी लोकप्रिय थे। शेख हमीउद्दीन को ख्वाजा ने सुल्तान तारीकिन की उपाधि प्रदान की थी।
शेख हमीउद्दीन गैर मुसलमानों के अध्यात्मिक गुणों को भी पहचान लेते थे और उनकी कद्र करते थे। कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी का जन्म भारत में हुआ। वे पहले मुल्तान में बसे, फिर इल्तुतमिश के समय दिल्ली आ गये। उन्होंने शेख-उल-इस्लाम का पद ठुकरा दिया। बाद में माजमुद्दीन सुगरा (शेख-उल-इस्लाम) से संबंध बिगङ जाने पर अजमेर जाने का फैसला किया।
शेख कुतुबुद्दीन रहस्यवादी गीतों के बङे प्रेमी थे। इनके शिष्यों में शेख फरीदुद्दीन मसूद गज-ए-शिकार अधिक प्रसिद्ध है। इन्हीं के प्रयासों से चिश्चिया सिलसिला एक अखिल रूप धारण किया। इनको जनसाधारण में शेख फरीद या बाबा फरीद के नाम से जाना गया। ये गुरुनानक से काफी प्रभावित थे।
सूफी मत
शेख निजामुद्दीन औलिया शेख फरीद के सर्वाधिक शिष्य थे। अजोधान में औलिया शेख फरीद के शिष्य बने थे। शेख निजामुद्दीन औलिया ने अपने द्वार शिष्यों के लिये खोल दिये और उन्होंने अमीरों तथा सामान्य व्यक्तियों, धनी तथा निर्धनों, निरक्षरों, शहरियों और देहातियों, सैनिकों तथा योद्धाओं, स्वतंत्र व्यक्तियों तथा गुलामों को अंगीकार कर लिया था। निजामुद्दीन औलिया ने दिल्ली के सात सुल्तानों के राज्यकाल देखे।
गयासुद्दीन तुगलक से इनकी नहीं पटती थी। इस शासक ने 53 उलेमाओं के अदालत में मुकदमा चलाया था, कि वे वर्जित संगीत गोष्ठियों में भाग लेते थे परंतु शेख बरी हो गये। सुल्तान गयासुद्दीन ने बंगाल अभियान के समय शेख को एक पत्र लिखा था, जिसके प्रत्युत्तर में शेख निजामुद्दीन ने कहा कि हनोज दिल्ली दूर अस्त । संयोगवश एक घटना में सुल्तान दिल्ली के बाहर ही मर गया। शेख निजामुद्दीन को महबूबे इलाही के नाम से भी जाना गया। शेख निजामुद्दीन एकमात्र अविवाहित चिश्ती सूफी संत थे।
निजामुद्दीन औलिया के बाद शेख नासिरुद्दीन चिराग और सलीम चिश्ती ही प्रसिद्ध चिश्ती संत हुए। इनमें भी शेख चिराग को ही अखिल भारतीय प्रसिद्धि मिली। शेख चिराग को कुतुबुद्दीन मुबारक शाह तथा मुहम्मद बिन तुगलक के कारण कुछ समस्याओं का सामना भी करना पङा। शेख सलीम चिश्ती को अकबर शेखू बाबा कहता था। चिश्ती सम्प्रदाय के गेसूदराज ने गुलबर्गा को केन्द्र बनाकर दक्कन में प्रचार किया।
चिश्ती सम्प्रदाय के संत सादगी और निर्धनता में आस्था रखते थे। वे व्यक्तिगत सम्पत्ति को अपने आध्यात्मिक जीवन के विकास में बाधक मानते थे। वे फुतूह तथा नजुर (बिना माँगे हुए प्राप्त धन और भेंट) पर अपना निर्वाह करते थे।
कहा जाता है, कि शेख फरीद गज-ए-शिकार भूखों मरते थे, पर किसी से भोजन व धन नहीं माँगते थे। चिश्ती सूफी संत निम्न इच्छाओं के दमन के लिये उपवास किया करते थे उनके वस्त्र भी निम्न स्तर के होते थे। अधिकांश सूफी संतों के गृहस्थ जीवन सुखमय होते थे, लेकिन निजामुद्दीन औलिया आजीवन अविवाहित रहे।
चिश्तियों के सिद्धांत कुछ इस प्रकार थे-
- कर्मकाण्डों का विरोध करना।
- जनकल्याण पर पूरा ध्यान देना।
- राजनीति से दूर रहना।
- इस्लाम में पूर्ण आस्था रखते हुये सर्वधर्म समभाव पर समान रूप से बल देना।
- निम्न वर्गों के प्रति ज्यादा सक्रियता।
- संगीत समारोह का आयोजन करना तथा उनमें भाग लेना।