स्टडी मटेरियल

पादप कोशिका

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पेड़- पौधों मे पायी जाने वाली कोशिका को पादप कोशिका कहा जाता है जो कि जन्तु कोशिका से अलग होती है अगर भिन्नता की बात की जाये तो जन्तु कोशिका के बाहरी आवरण अर्थात भाग को प्लाज्मा झिल्ली कहते है जबकि पादप कोशिका के बाहरी आवरण को कोशिका भित्ति कहा जाता है जो सेलुलोस की बनी होती है।

पादप कोशिका के कार्य (Function of Plant cell)

पादप कोशिका और जंतु कोशिका में अंतर –

दोनों प्रकार की कोशिकाओं में सबसे मुख्य अंतर यह है कि सभी पादप कोशिकाएँ (Plant Cell) एक कठोर सेल्युलोजी (सेल्युलोज से बनी) कोशिका भित्ति  से घिरे रहते हैं। यह भित्ति प्लाज्मा  झिल्ली के चारों ओर रहती हैं। जबकि प्राणी कोशिकाओं में ऐसी कोई कोशिका भित्ति नहीं होती। 

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दूसरी भिन्नता यह है कि पादप कोशिकाओं (Plant Cell) में एक विशेष कोशिकांग-हरितलवक होता है (उनकी संख्या प्रति कोशिका हर पादप में अलग होती है) जिसकी मदद से वे प्रकाश संश्लेषण कर पाते हैं। 

प्राणी अपना आहार संश्लेषित करने में सक्षम नहीं होते, उनमें हरितलवक नहीं होता है। लेकिन, उच्च वर्ग के पादपों में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया पत्तियों और नए प्ररोहों में सीमित होती है क्योंकि वहीं पर हरितलवक होते हैं। 

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पादप कोशिकाओं (Plant Cell) में तारक केन्द्र (centrioles) नहीं  पाए जाते जबकि यह सभी प्राणी कोशिकाओं में दिखते हैं। लेकिन कुछ निम्न वर्ग के पादपों में आधारी काय (बेसल बॉडी) होती है जो संरचनात्मक तौर पर तारक काय के समान होती है। 

पादप कोशिका की संरचना –

1. कोशिका भित्ति

यह एक कठोर परत है जो सेल्युलोज, ग्लाइकोप्रोटीन, लिग्निन, पेक्टिन और हेमिसेलुलोज से बनी होती है। यह कोशिका झिल्ली के बाहर स्थित होती है। इसका स्थान पौधों की कोशिकाओं, साथ ही कवक, बैक्टीरिया, आर्किया और शैवाल में प्लाज्मा झिल्ली के बाहर है। दीवार का कार्य है कोशिका सामग्री की रक्षा करें, कठोरता दें और पौधों की संरचना को परिभाषित करें। इसके अलावा, यह कोशिका और पर्यावरण के बीच मध्यस्थ के रूप में कार्य करता है।

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2. कोशिका झिल्ली

कोशिका झिल्ली एक प्रकार की चयनात्मक अर्ध पारगम्य सजीव झिल्ली है जो प्रत्येक जीवीत कोशिका के जीव द्रव्य (प्रोटोप्लाज्म) को घेर कर रखती है। कोशिका झिल्ली का निर्माण तीन परतों से होता है, इसमें से बाहरी एवं भीतरी परतें प्रोटीन द्वारा तथा मध्य वाली परत का निर्माण फोस्फॉलिपिड द्वारा होता है। कोशिका झिल्ली कोशिका के आकार को बनाए रखती है एवं जीव द्रव्य की सुरक्षा करती है। अन्तर कोशिकीय विसरण एवं परासरण की क्रिया का नियंत्रण करने के साथ-साथ यह अनेक रचनाओं के निर्माण में भी मदद करती है।

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3. केन्द्रक

कोशिकीय अंगक केन्द्रक की खोज सर्वप्रथम रॉबर्ट ब्राउन द्वारा 1831 के पूर्व की थी। यह एक झिल्ली से घिरी हुई संरचना होती है जो केवल यूकेरियोटिक कोशिकाओं में ही पायी जाती है। इसमें डीएनए पाया जाता है। केन्द्रक कोशिका का सबसे मुख्य अंग होता है। केन्द्रक कोशिका की सभी जैव क्रियाओं को नियंत्रित करता है, इसी कारण इसको कोशिका का नियन्त्रण कक्ष कहा जाता हैं।

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4. कोशिका द्रव्य

कोशिका मे कोशिका झिल्ली के अंदर केन्द्रक के आलावा सम्पूर्ण पदार्थों को कोशिकाद्रव्य (Cytoplasm) कहते हैं। यह सभी कोशिकाओं में पाया जाता है तथा कोशिका झिल्ली के अंदर तथा केन्द्रक झिल्ली के बाहर रहता है। यह रवेदार, जेलीनुमा, अर्धतरल पदार्थ है। यह पारदर्शी एवं चिपचिपा होता है। यह कोशिका के 70% भाग की रचना करता है। इसकी रचना जल एवं कार्बनिक तथा अकार्बनिक ठोस पदार्थों से मिलकर हुई है। प्रकाश सूक्ष्मदर्शी में सभी कोशिकांगों को स्पष्टता से नहीं देखा जा सकता है। इन रचनाओं को स्पष्ट देखने के लिए इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी या किसी अन्य अधिक विभेदन क्षमता वाले सूक्ष्मदर्शी की जरूरत पड़ती है।

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5. लवक

लवक किसी पादप कोशिकाओं के कोशिका द्रव में पाए जाने वाले गोल या अंडाकार रचना हैं, इनमें पादपों के लिए महत्त्वपूर्ण रसायनों का निर्माण होता है। क्लोरोप्लास्ट नामक हरे रंग के लवक में जीव जगत की सबसे महत्त्वपूर्ण जैव रासायनिक क्रिया प्रकाश-संश्लेषण होती है। हरे रंग को छोड़कर अन्य रंगों वाले लवकों को क्रोमोप्लास्ट कहते हैं, इनसे ही फूलों एवं फलों को रंग प्राप्त होता है। रंगहीन लवकों को लिउकोप्लास्ट कहते हैं जिनका मुख्य कार्य भोजन संग्रह में मदद करना है। आकृति यह अंडाकार गोलाकार तन्तु जैसी होता है जो पूरे कोशिका द्रव्य मे फैले रहता है जो दो पर्टो से घिरा रहता है। इसके भीतर पाए जाने वाले खाली स्थान को stroma कहते है जो एक तरल पदार्थ से भरा रहता है जिसे matrix कहाँ जाता है।

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6. रिक्तिकाये

कोशिका के कोशिकाद्रव्य में मौजूद गोलाकार या अनियमित आकर की इकाई झिल्ली से घिरी हुई रिक्तिकाऐं मौजूद होती हैं। ये प्राणी कोशिका में उपस्थित नहीं मानी जाती हैं। लेकिन प्रोटोजोअन्स में अल्पविकसित अवस्था में उपस्थित होकर अनेक प्रकार के कार्य करती हैं। इसकी खोज फेलिक्स डुजार्डिन (Dujardin) ने 1941 में की थी

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पादप कोशिकाओं में रिक्तिकाऐं सुविकसित मिलती हैं। नई बनी हुई पादप कोशिका में ये रिक्तिकाऐं छोटी तथा बिखरी हुई अवस्थाओं में प्राप्त होती हैं, लेकिन वयस्क पादप कोशिका में छोटी-छोटी रिक्तिकाऐं आपस में मिलकर बड़ी एवं सुविकसित रिक्तिका में परिवर्तित हो जाती हैं। रिक्तिका को कोशिकाद्रव्य से पृथक करने वाली झिल्ली को टोनोप्लास्ट (Tonoplast) कहते हैं। टोनोप्लास्ट की खोज डिव्रीज (de vries) द्वारा 1885 में की गई। इसकी पारगम्यता कोशिका झिल्ली की तुलना में कम होती हैं।

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7. गॉल्जिकाय

इसकी खोज सन् 1898 में केमिलो गॉल्जी नामक वैज्ञानिक ने की थी। यह नली के तरह सूक्ष्म संरचनाएँ हैं। ये केन्द्रक के पास उपस्थित रहती हैं। पादप कोशिकाओं में गॉल्जीकाय छोटे-छोटे समूहों में होते हैं जिन्हें डिक्टोसोम कहा जाता हैं। इसका कार्य गॉल्जीकाय में एण्डोप्लाज्मिक रेटिकुलम (ER) में बने प्रोटीन व एन्जाइम का सान्द्रण, रूपान्तरण व संग्रहण करना होता है। कोशिका भित्ति के लिए हेमी सेल्युलोस का निर्माण तथा स्राव गॉल्जीकाय से होता है।

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8. अंतः प्रर्द्रव्यी जालिका

यूकैरियोटिक कोशिकाओं के कोशिका द्रव्य में थैली युक्त छोटी नलिकावत जालिका तन्त्र में बिखरा हुआ, आपस मे जुड़ा एवं चपटा रहता हैं जिसे अन्तः प्रद्रव्यी जालिका कहा जाता हैं | अन्तः प्रद्रव्यी जालिका (Endoplasmic reticulum) की खोज k. R. Porter ने की थी |

अन्तः प्रद्रव्यी जालिका (Endoplasmic reticulum) केन्द्रक कला से कोशिका कला तक विस्तृत रहती हैं तथा केन्द्रक कला से अन्तः प्रद्रव्यी जालिका का निर्माण होता हैं। अन्तः प्रद्रव्यी जालिका कोशिका द्रव्य तथा केन्द्रक द्रव्य के बीच सम्बन्ध स्थापित करता हैं। अन्तः प्रद्रव्यी जालिका विभाजित करने वाली कोशिकाओं में ज्यादा अल्पविकसित होती हैं जबकि लिवर सेल, पेन्क्रिआज में अधिक विकसित होती है।

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9. राइबोसोम

कोशिका में मेम्ब्रेन रहित गोलाकार या डमरू के आकार की सबसे छोटी व कोशिका द्रव्य में सबसे अधिक संख्या में पायी जाने वाली जीवित रचना को राइबोसोम कहा जाता हैं। राइबोसोम की खोज (1955) में पैलाडे (Palade) ने जंतु कोशिकाओं में की। पैलाडे ने राइबोसोम नाम दिया। पादप कोशिकाओं में रोबिन्सन तथा ब्रॉउन ने 1953 में राइबोसोम की खोज की।

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राइबोसोम राइबोन्यूक्लिक अम्ल तथा प्रोटीन के सूक्ष्म कण हैं, इसलिए इसे राइबोन्यूक्लियो प्रोटीन कण (RNP -particle) भी कहते हैं। राइबोसोम के सूक्ष्म कणों का व्यास 140 – 160 एंगस्ट्रोम होता हैं। राइबोसोम अन्तः प्रद्रव्यी जालिका ( Endoplasmic reticulum ) से जुड़े होते हैं , तथा माइटोकॉन्ड्रिया , हरित लवक एवं केन्द्रक में भी उपस्थित होते हैं।

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10. लाइसोसोम

लाइसोसोम वे माइटोकॉन्ड्रिया और माइक्रोसोम के मध्य स्थित झिल्लीदार कण होते हैं, जिनमें पाचन एंजाइमों की एक विस्तृत श्रृंखला होती है (लगभग 50) जो मुख्यतः पाचन या अत्यधिक या खराब होने वाले जीवों, खाद्य कणों और वायरस या बैक्टीरिया के उन्मूलन के लिए प्रयोग किया जाता है।

लाइसोसोम्स फॉस्फोलिपिड्स से बनी झिल्ली से घिरे हुए होते हैं जो झिल्ली के बाहरी वातावरण से लाइसोसोम के इंटीरियर को पृथक करते हैं। फॉस्फोलिपिड वही कोशिका अणु होते हैं जो कोशिका झिल्ली का निर्माण करते हैं जो पूरे कोशिका को घेर लेती है। लाइसोसोम आकार में 0.1 से 1.2 माइक्रोमीटर तक भिन्न होते हैं।

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11. माइटोकॉन्ड्रिया

जीवाणु एवं नील हरित शैवाल को छोड़कर अन्य सभी सजीव जंतु एवं पादप कोशिकाओं के कोशिकाद्रव्य में अनियमित रूप से बिखरे हुए दोहरी झिल्ली आबंध कोशिकांगों (organelle) को सूत्रकणिका या माइटोकॉण्ड्रिया (Mitochondria) कहते हैं। कोशिका के अंदर सूक्ष्मदर्शी की सहायता से देखने में ये गोल, लम्बे या अण्डाकार दिखते हैं। माइटोकॉण्ड्रिया सभी प्राणियों में और उनकी प्रत्येक कोशिकाओं में पाई जाती हैं। माइटोकाण्ड्रिआन या सूत्रकणिका कोशिका के कोशिकाद्रव्य में उपस्थित दोहरी झिल्ली से घिरा रहता है।

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