UNIT-2 : शैक्षिक मनोविज्ञानः अर्थ एवं परिभाषाएँ

सी ई स्किनर :-  शिक्षा मनोविज्ञान उन अनुसंधानों का शैक्षिक परिस्थितियों में प्रयोग करता है जो  शैक्षिक परिस्थितियों में मानव एवं प्राणियों से संबंधित है।
(Educational psychology utilizes those findings that deal especially with the experiences and behaviour of the human beings in the educational situations)

क्रो एवं क्रो :-      शिक्षा मनोविज्ञान व्यक्ति के जन्म से वृद्धावस्था तक अधिगम का वर्णन व व्यवस्था करता है।
(Educational psychology describes and explains the learning experiences of the individual from the birth through old age.)

कालसनिक :-     शिक्षा मनोविज्ञान, मनोविज्ञान के सिद्धांतों और उपलब्धियों का शिक्षा में प्रयोग है।
( Educational psychology is the application of the findings and the theories of the psychology in the field of education)

स्टीफन :- शिक्षा मनोविज्ञान शैक्षिक विकास का क्रमिक अध्ययन है।
(Educational psychology may be defined as the science which describes and explains the changes that take place in individual is the pass through various stages of the elements from the birth to maturity)

ड्रेवर–  व्यवहारिक मनोविज्ञान की वह शाखा जो शिक्षा समस्याओं के मनोवैज्ञानिक अध्ययन के साथ मनोवैज्ञानिक खोंजो एवं सिद्धान्तों का शिक्षा में प्रयोग करने से  संबंधित है।

ट्रो :-  शिक्षा मनोविज्ञान शैक्षिक परिस्थितियों के मनोवैज्ञानिक तत्वों का अध्ययन करता है।
(Educational psychology is the study of the psychological aspects of the educational situations)

सी एच गुड :-  शिक्षा मनोविज्ञान जन्म से लेकर परिपक्वता तक विभिन्न परिस्थितियों से गुजरते हुए व्यक्तियों में होने वाले परिवर्तनों की व्याख्या है।
(Educational psychology may be defined as the science which describes and explains the changes that take place in individual is the pass through various stages of the elements from the birth to maturity)

शिक्षा मनोविज्ञान की विधियाँ

  1. निरिक्षण विधियाँ 
  2. प्रयोगात्मक विधियाँ
  3. विवरणात्मक विधियाँ

निरिक्षण विधियाँ-

वह विधियाँ जिसके अन्तर्गत व्यक्ति स्वयं के अथवा किसी अन्य व्यक्ति के व्यवहारों का निरिक्षण करके सत्य की खोज करता है निरिक्षण विधियाँ कहलाती है। ये दो प्रकार की है-

1.अन्तर्दर्शन विधि – इस विधि में व्यक्ति अपनी  मानसिक क्रियाओं का स्वयं ही अध्ययन करता  है।

अन्तर्दर्शन की विशेषताएँ-

  1. इस क्रिया में व्यक्ति की अमूर्त भावना ही कार्य करती है।
  2. इसमें मन व चित्त में तर्क वितर्क होता है और बुद्धि इसमें निर्णायक होती है।
  3.  बुद्धि निर्णायक होने के कारण अन्तर्दर्शन केवल उन्ही व्यक्तियों में होता है जिनमें बुद्धि विकसित हो चुकी हो।
  4. अन्तर्दर्शन संवेगों से संबंधित होता है इसलिए व्यक्ति संवेगात्मक रूप से जितना स्थिर होता है अन्तर्दर्शन की प्रवृत्ति उतनी ही अधिक होती है।
  5. अन्तर्दर्शन बालकों में न के बराबर होता है और प्रौढ में सर्वाधिक होता है।

अन्तर्दर्शन के दोष-

  1. सभी व्यक्तियों में इस विधि का प्रयोग संभव नही है।
  2. इस विधि से केवल वे ही व्यक्ति लाभान्वित हो सकते है जो पूर्णतया निष्पक्ष हो।
  3. कभी-कभी व्यक्ति जानते हुए भी वास्तविकता को छुपाने का प्रयास करता है।
  4. यह स्व की अवधारणा पर आधारित है इसलिए इसमें व्यक्ति केवल स्वयं के बारे में ही जान सकता है।
  5. इस विधि द्वारा बालक एवं पशुओं के व्यवहारों का अध्ययन नहीं किया जा सकता है।

                    

2. बहिर्दर्शन विधिः-   इस विधि द्वारा अन्य व्यक्ति की गतिविधि का निरिक्षण किया जाता है।

 बहिर्दर्शन विधि के प्रकार – 

औपचारिक – इसमें नियंत्रित परिस्थितियों में निरिक्षण  किया जाता है।

अनोपचारिक – इसमें नियंत्रित परिस्थितियों की आवश्यकता नहीं है।

योजनाबद्ध – इसमें योजनानुसार की किसी के व्यवहार का निरिक्षण किया जाता है।  

आकस्मिक – आकस्मिक रूर से किसी के व्यवहार का अध्ययन किया जाता है।

बहिर्दर्शन की विशेषताएँ-

  1. अवलोकनकर्ता ज्ञानेन्द्रियों का प्रयोग करके विभिन्न प्रकार के व्यवहारों का अध्ययन करके तथ्य एकत्रित करता है। 
  2. उन तथ्यों की व्याख्या करने में पूर्वानुमानों का सहारा लिया जाता है।
  3. यह एक प्रत्यक्ष विधि है।
  4. इस विधि में सूक्ष्म निरिक्षण पर बल दिया जाता है।
  5. सामान्यीकरण भी विश्लेषित निष्कर्षों के आधार पर किया जाता है। 

बहिर्दर्शन के दोष-

  1. बहिर्दर्शन निरिक्षणकर्ता के दृष्टिकोण पर निर्भर करता है।
  2. वातावरण एवं समाज का पूर्ण सहयोग न मिल पाने के कारण गुणवत्ता में कमी आ जाती है।
  3. अवलोकन कितनी ही गहनता से किया जाए फिर भी कुछ त्रुटियां रह ही जाती है। 
  4. बहिर्दर्शन मेें क्रमबद्धता का अभाव होता है क्योंकि व्यक्ति का व्यवहार तीव्र गति से बदलता है।

प्रयोगात्मक विधि-

नियंत्रित परिस्थिति के अंतर्गत कौन सी घटना घटित होगी का विश्लेषण ही प्रयोगात्मक अनुसंधान कहलाता है।
(अर्नेस्ट ग्रीन वुड एवं विलियम वुन्ट)

प्रयोगात्मक विधि के चरण-

  1. समस्या का चुनाव 
  2. उपकल्पना का चुनाव करना
  3. स्वतंत्र व आश्रित चरों को अलग करना
  4. उपकरण एवं सामाग्री 
  5. नियंत्रण 
  6. विश्लेषण
  7. व्याख्या या सामान्यीकरण

प्रयोगात्मक विधि की  विशेषताएँ-

  1. यह विधि केवल उस दशा में प्रयोग में ली जा सकती है जिसमें परिस्थितियों को नियंत्रित किया जा सकता है।
  2. इस विधि में प्रयोगों के आधार पर नियम एवं सिद्धान्त निर्मित किये जाते है।
  3. प्राप्त परिणाम विश्वसनीय और वैध होते है। 
  4. यह वस्तुनिष्ट विधि है अतः परिणामों की पुनः जाँच सम्भव है।

प्रयोगात्मक विधि के दोष-

  1. प्रत्यक्ष अवलोकन कठिन कार्य है।
  2. घटनाओं पर नियंत्रण रखना संभव नहीं है।
  3. मानव की प्रकृिति क्षण भर में परिवर्तित होती रहती है अतः इन परिवर्तनों को समझने में सफलता नहीं मिलती है।

विवरणात्मक विधियाँ

  1. विकासात्मक विधि-
  2. व्यक्ति अध्ययन  विधि-
  3. निदानात्मक विधि-
  4. मनोविश्लेषणात्मक विधि-
  5. सांख्यिकी विधि-
  6. प्रश्नावली विधि-
  7. तुलनात्मक विधि-

मनोविज्ञान के क्षेत्र- क्रो एवं क्रो ने मनोविज्ञान के 16 क्षेत्र बताए है।

  1. समाज मनोविज्ञान
  2. गतिशील मनोविज्ञान
  3. शिक्षा मनोविज्ञान
  4. असामान्य मनोविज्ञान
  5. प्रायोगिक मनोविज्ञान
  6. नैदानिक मनोविज्ञान
  7. तुलनात्मक मनोविज्ञान
  8. निदानात्मक मनोविज्ञान
  9. विभेदक मनोविज्ञान
  10. औद्योगिक मनोविज्ञान
  11. आनुवांशिक मनोविज्ञान
  12. शरीर क्रिया मनोविज्ञान
  13. पशु मनोविज्ञान
  14. बाल मनोविज्ञान
  15. किशोर मनोविज्ञान
  16. वयस्क मनोविज्ञान

गिलफोर्ड ने अपनी पुस्तक फील्डस ऑफ साइकॉलोजी में मनोविज्ञान के कुल 13 क्षेत्र बताए है-

  1. शरीर शास्त्रीय
  2. प्रायोगात्मक मनोविज्ञान
  3. पशु मनोविज्ञान
  4. बाल मनोविज्ञान
  5. किशोर मनोविज्ञान
  6. विभेदक मनोविज्ञान
  7. समाज मनोविज्ञान
  8. असामान्य मनोविज्ञान
  9. निदानात्मक मनोविज्ञान
  10. शिक्षा मनोविज्ञान 
  11. व्यवसायिक मनोविज्ञान 
  12. प्रबंधात्मक मनोविज्ञान 
  13. इंजीनियरिंग मनोविज्ञान

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