एमीटर, वॉल्टमीटर

एमीटर

किसी भी विद्युत परिपथ में धारा की प्रबलता का पता लगाने के लिए इसका प्रयोग किया जाता है। यह धारामापी की कुण्डली के समान्तर क्रम में एक कम प्रतिरोध का मोटा तार ( शन्ट ) जोड़ देने से बनता है , जिससे उसका तुल्य प्रतिरोध निम्न से निम्न हो जाये। अमीटर को परिपथ में सदैव श्रेणीक्रम में स्थित किया जाता है। इसकी रचना धारामापी की भाँति है। शन्ट का मान बदलकर अमीटर की परास ( Range ) बदली जा सकती है ।

जब हम किसी भी डिवाइस का करन्ट का मापन हैं तो डिवाइस में अमीटर सीरीज में ही होना चाहिए क्यूंकि ऑब्जेक्ट जब सीरीज में होता है तब ही वो समान करंट का अहसास करता है और इसका वोल्टेज सोर्स से कनेक्शन भी नहीं होना चाहिए। एमीटर का निर्माण इस प्रकार किया जाता है जिससे उस पर कम से कम भार आये।

एमीटर का कार्य सिद्धांत

मुख्य एमीटर का सिद्धांत यह है कि इसका प्रतिरोध बहुत कम होना चाहिए और आगमनात्मक प्रतिक्रिया भी कम होनी चाहिए। इसके अतिरिक्त बहुत कम प्रतिबाधा के कारण बिजली की हानि कम होगी तथा यदि यह समानांतर में जुड़ा हुआ है तो यह लगभग एक छोटा सर्कुलेटेड मार्ग बन जाता है और सभी करंट एमीटर के माध्यम से प्रवाहित होंगे क्योंकि उच्च धारा के परिणामस्वरूप यह उपकरण जल सकता है। तो इस कारण से इसे श्रृंखला में जोड़ा जाना चाहिए। एक आदर्श एमीटर के लिए, यह शून्य प्रतिबाधा होना चाहिए ताकि इसके पार शून्य वोल्टेज ड्रॉप हो जाए ताकि साधन में बिजली की हानि शून्य हो।

एमीटर के प्रकार

एमीटर का वर्गीकरण उसके डिजाईन तथा उससे प्रवाहित होने वाली विद्युत धारा के आधार पर किया जाता है। एमीटर को निम्न वर्गों में वर्गीकृत किया जाता है :-

  1. PMMC एमीटर
  2. मूविंग आयरन एमीटर
  3. इलेक्ट्रो डाइनोमीटर एमीटर
  4. रेक्टिफायर टाइप एमीटर

PMMC (Permanent Magnet Moving Coil) एमीटर –

इसमें चुंबक का उपयोग करके चुंबकीय क्षेत्र का निर्माण किया जाता है। घुमने वाली Coil को इस चुम्बकीय क्षेत्र के अंदर रखा जाता है। पॉइंटर इस Coil से जुड़ा हुआ होता है। जब Coil में विद्युत धारा प्रवाहित होती है तब इसका अपने साम्य अवस्था (rest Position) से Deflect होने लगता है जिससे इससे जुडा हुआ पॉइंटर भी स्केल पर घूमता है। Coil में पैदा होने वाला डिफ्लेक्शन उसमे बहने वाली विद्युत धारा पर निर्भर करता है। PMMC एमीटर का उपयोग केवल DC करंट का मापन करने के लिए किया जाता है।

मूविंग आयरन एमीटर –

यह एक विशेष प्रकार का विद्युत मापन यन्त्र होता है। मूविंग आयरन अमीटर का उपयोग डीसी तथा AC दोनों प्रकार के विद्युत धारा मापने के लिए किया जाता है। मूविंग आयरन अमीटर में एक सॉफ्ट आयरन का टूकडा जो की पॉइंटर से जुड़ा हुआ होता है, को चुंबकीय क्षेत्र का निर्माण करने वाले Coil बीच में एक घुमने वाले सिस्टम की मदद से लटका रहता है। जिस विद्युत धारा को मापना होता है उसे चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करने वाले Coil से जोड़ते है। जब विद्युत धारा Coil में प्रवाहित की जाती है तब यह एक विद्युत चुंबक की तरह कार्य करने लगता है जिससे सॉफ्ट आयरन का टूकडे में डिफ्लेक्शन होने लगता है और इससे जुड़ा हुआ पॉइंटर स्केल पर रीडिंग देने लगता है।

इलेक्ट्रो डाइनोमीटर एमीटर –

यह भी एक विशेष प्रकार का विद्युत का मापन करने वाला यन्त्र होता है। इस एमीटर का उपयोग भी डीसी तथा एसी दोनों प्रकार के विद्युत धारा का मापन करने के लिए किया जाता है। इसमें दो प्रकार के Coil इस्तेमाल किये जाते है। इन दोनों Coil में से एक Coil फिक्स्ड होता है तथा दूसरा घुमने के लिए मुक्त रहता है। फिक्स्ड Coil एमीटर में चुंबकीय क्षेत्र बनाता है तथा दूसरा घूर्णन करने वाला Coil इस बनाये गये चुंबकीय क्षेत्र में घूमता है। इस मुक्त Coil को पॉइंटर से जोड़ा जाता है। जिस विद्युत धारा का मापन करना होता है उसे फिक्स्ड Coil में प्रवाहित कर दिया जाता है जिससे इसमें एक चुंबकीय क्षेत्र का निर्माण होता है। इस प्रकार उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र जब घुमने वाले Coil से जोड़ता करता है तब उसमे एक वोल्टेज उत्पन्न हो जाता है। इस प्रकार उत्पन्न वोल्टेज के कारण इस Coil में भी विद्युत धारा का प्रवाह होने लगता है और इस विद्युत धारा के कारण उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र प्रमुख चुंबकीय क्षेत्र से दूर जाने लगता है जिससे पॉइंटर में डिफ्लेक्शन होने लगता है और स्केल पर रीडिंग देने लगता है।

रेक्टिफायर टाइप एमीटर –

इसके द्वारा केवल AC विद्युत धारा का मापन किया जाता है। इसमें सबसे पहले AC विद्युत धारा को Rectifier द्वारा DC में परिवर्तित किया जाता है और फिर से उसे PMMC या दुसरे किसी एमीटर के द्वारा मापा जाता है। Rectifier एमीटर में दो प्रकार के विद्युत सर्किट का उपयोग होता है। पहला सर्किट AC विद्युत धारा को DC विद्युत धारा में परिवर्तित करता है तथा दुसरा सर्किट उस DC विद्युत धारा को PMMC से मापता है।

वॉल्टमीटर

यह यन्त्र विद्युत् परिपथ में कोई भी दो बिन्दुओं के मध्य विभवान्तर को मापता है। वोल्टमीटर का आविष्कार हैंस ऑरेस्टड ने वर्ष 1819 में किया था। इसका उपयोग तब होता है जब धारामापी की कुण्डली के श्रेणीक्रम में एक उच्च प्रतिरोध का तार जोड़ा जाता है। जिससे इसका तुल्य प्रतिरोध उच्च हो जाये। इसकी रचना भी धारामापी की तरह ही होती है। उच्च प्रतिरोध का मान बदल कर वोल्टमीटर की परास (Range) परिवर्तित की जा सकती है। वोल्टमीटर में धारा ( + ) चिन्ह वाले सिरे से प्रवेश करके ( – ) चिन्ह वाले सिरे से मुक्त हो जाती है ।

विद्युत परिपथ के जिन दो बिन्दुओं के मध्य विभवान्तर मापा जाता है उनके मध्य वोल्टमीटर को समान्तर क्रम में इस तरह से जोड़ा जाता हैं कि वोल्टमीटर का धन सम्बन्धक पेंच उच्च विभव वाले बिन्दु से तथा ऋण सम्बन्धक पेंच निम्न विभव वाले बिन्दु से जुड़ जाए। वोल्टमीटर को परिपथ में सदैव समान्तर क्रम में जोड़ा जाता हैं। एक वोल्टमीटर का प्रतिरोध अनन्त होता है ।

वॉल्टमीटर के प्रकार –

  1. एनालॉग वोल्टमीटर
  2. डिजिटल वोल्टमीटर

1. एनालॉग वोल्टमीटर

एनालॉग वोल्टमीटर सबसे शुद्ध मापक होता है। एनालॉग वोल्टमीटर दोनों प्रकार के वोल्टेज (AC तथा DC) मापने के लिए उपयुक्त है। इसमें मापे गए वोल्टेज का मान (Value) एक सुई, जिसे पॉइंटर कहा जाता है, के द्वारा एक स्केल पर निरोपित किया जाता है। पॉइंटर का स्केल पर निरोपण तथा मापे गए वोल्टेज दोनों आपस में समानुपाती होते है। यदि वोल्टेज का परिमाण ज्यादा होता है तब पॉइंटर का निरूपण भी ज्यादा ही होगा।

2. डिजिटल वोल्टमीटर

डिजिटल वोल्टमीटर एक उपकरण है जो आउटपुट वोल्टेज को विक्षेपण से नहीं, बल्कि सीधे ही मान का संकेत देते हैं। यह वोल्टेज को मापने के लिए एक बहुत अच्छा साधन है क्योंकि यह लंबन के कारण पूरी तरह से त्रुटि को समाप्त करता है, माप में सन्निकटन, उच्च गति रीडिंग किया जा सकता है और इसे आगे के विश्लेषण के लिए मेमोरी में भी संग्रहीत किया जा सकता है।

इसका मुख्य सिद्धांत यह है कि मूल्य का मापन एक ही सर्किट व्यवस्था के द्वारा किया जाता है लेकिन उस मूल्य का उपयोग पॉइंटर को विक्षेपित करने के लिए नहीं किया जाता है, लेकिन इसे एनालॉग से डिजिटल में परिवर्तित किया जाता है और डिजिटल मूल्य के रूप में दर्शाया जाता है।

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