प्रकाश का परावर्तन

जब कोई किरण एक तल से दुसरे तल में जाता हो तो वह कर्तिया तल से टकरा कर वापस उसी मध्यम मे लोट जाए तो उसे परावर्तित किरण कहा जाता है। जब कोई तरंग (प्रकाश, ध्वनि आदि) दो माध्यमों के मिलन-तल पर आकर उसी माध्यम में लौट जाता है अर्थात दूसरे माध्यम में नहीं जाता, तो इसे उस तरंग का परावर्तन कहा जाता हैं। सामान्य जीवन में प्रकाश, ध्वनि और जल तरंगों का परावर्तन सर्वत्र देखने को मिल जाता है। दर्पण में हम जो अपनी छवि देखते हैं वह प्रकाश के परावर्तन के कारण उत्पन्न होती है। विद्युतचुम्बकीय तरंगों का भी परावर्तन परावर्तन होता है।

ध्वनि विज्ञान के अनुसार, ध्वनि के परावर्तन के कारण प्रतिध्वनि सुनाई देती है जो सोनार में उपयोग की जाती है। भूविज्ञान में भूकम्प तरंगों के अध्ययन में परावर्तन उपयोगी है। रेडियो प्रसारण तथा राडार के लिये अत्युच्च आवृत्ति (VHF) एवं इससे भी अधिक आवृत्तियों का परावर्तन महत्वपूर्ण है।

प्रकाश का परावर्तन के प्रकार-

  1. नियमित परावर्तन
  2. अनियमित परावर्तन

नियमित परावर्तन – जब प्रकाश किरणें किसी चमकीली सतह पर गिरती हैं और एक निश्चित दिशा में परावर्तित हो जाती हैं, तो इस परावर्तन को नियमित परावर्तन कहते है है।

अनियमित परावर्तन – जब प्रकाश की किरणें किसी न किसी सतह पर आपतित होती हैं, तो ये किरणें अलग-अलग दिशाओं में परावर्तित होती हैं। इस प्रकार के परावर्तन को अनियमित परावर्तन कहा जाता है।

प्रकाश के परावर्तन के नियम –

  • आपतित किरण, परावर्तित किरण तथा आपतन बिंदु पर खींचा गया अभिलम्ब तीनों एक ही तल में होते हैं।
  • परावर्तन कोण तथा अपवर्तन कोण हनेशा बराबर होते हैं।

समतल दर्पण

जिस दर्पण का परावर्तक पृष्ठ समतल होता है उसे समतल दर्पण कहते है। कांच की समतल प्लेट पर एक ओर पाॅलिश करके समतल दर्पण बनाया जा सकता है।

समतल दर्पण से परावर्तन नियम –

  • प्रतिबिम्ब का आकार वस्तु के आकार के समान होना चाहिए
  • प्रतिबिम्ब की दर्पण से दूरी और वस्तु की दर्पण से दूरी के बराबर होनी चाहिए (MO = MI)
  • प्रतिबिम्ब आभासी, सीधा तथा पाश्विक रूप से व्युत्क्रमित बनता है अर्थात् वस्तु का दायाँ भाग प्रतिबिम्ब में बाएँ प्राप्त होता है।

गोलीय दर्पण

गोलीय दर्पण निर्माण काँच के किसी खोखले गोले का भाग द्वारा होता है, जिसके एक पृष्ठ पर कलई (रजत पदार्थ का लेप) तथा दूसरा पृष्ठ परावर्तक होता है। गोलीय दर्पण दो प्रकार के होते हैं –

1. उत्तल दर्पण

उत्तल दर्पण वह होते है जिनमें परावर्तन उभरी हुई सतह के द्वारा होता है उत्तल दर्पण कहे जाते हैं। ये किरणों को अपसारित करने का कार्य करते है। इनका उपयोग सड़क के किनारे लगे लैम्पों में, गाड़ियों के पश्च दृश्य दर्पण के रूप में होता है ।

2. अवतल दर्पण-

अवतल दर्पण ऐसे दर्पण होते है जिनमें परावर्तन दबी हुई सतह से होता है। ये दर्पण किरणों को अभिसारित करने का कार्य करते हैं। इनका उपयोग सर्चलाइट में , दूरदर्शी में , सिनेमा के प्रोजेक्टर आदि में किया जाता है ।

प्रकाश का पुर्ण आंतरिक परावर्तन –

जब प्रकाश की किरण सघन माध्यम से विरल माध्यम में प्रवेश करती है तो एक विशिष्ट आपतन कोण पर किरण समकोण पर अपवर्तित होती है। इस कोण को क्रान्तिक कोण कहते है। यदि आपतन कोण क्रान्तिक कोण से ज्यादा हो जाये तो प्रकाश की किरण वापस उसी माध्यम में लौट जाती है। इसे पुर्ण आन्तरिक परावर्तन कहते है। परावर्तन में प्रकाश की किरण की आवृति परावर्तन के बाद कम हो जाती है। पूर्ण आन्तरिक परावर्तन में प्रकाश किरण की आवृति नहीं बदलती है।

उदाहरण-

  • हिरे का चमकना।
  • मृग मरीचिका।
  • पानी में डुबी हुई परखनली का चमकीला दिखाई देना।
  • कांच के चटके हुए भाग का चमकीला दिखाई देना।

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