कम्प्यूटर के विकास का इतिहास अलग-अलग पीढ़ी दर पीढ़ी कम्प्यूटिंग उपकरणों के संदर्भ में है। यह यात्रा 1940 में वैक्यूम ट्यूबों के साथ आरम्भ हुई और तब से निरंतर चली आ रही है। वर्तमान में यह कृत्रिम बुद्धि का इस्तेमाल कर तरक्की कर रही है। कंप्यूटर की पाँच पीढ़ियाँ में प्रत्येक पीढ़ि की यह विशेषता है कि उनमें हुए प्रमुख तकनीकी विकास के द्वारा उन्होंने कंप्यूटर के काम करने का तरीके में परिवर्तन कर दिया। ज्यादातर विकास के परिणामस्वरूप तेजी से छोटे, सस्ता और अधिक शक्तिशाली और कुशल कंप्यूटिंग उपकरणों का आविष्कार हो पाया है।
कंप्यूटर की पीढ़ियाँ पाँच भागो में बाँटी गई है जो निम्न प्रकार हैं –
प्रथम पीढ़ी (1942 -1955) :-
इस पीढ़ी के कम्प्यूटरों में वैक्यूम ट्यूब का प्रयोग किया जाता था। वैक्यूम ट्यूब का निर्माण शीशे के द्वारा किया होता था जिनके द्वारा विद्युतीय संकेतों का नियंत्रण किया जाता है। इस पीढ़ी के कम्प्यूटरों में मशीनी भाषा 0 से 1 के समूहों का प्रयोग किया जाता था। इसकी स्मृति सीमित थी। इस पीढ़ी के कंप्यूटर के उदहारण – ENIAC, EDSAC, EDVAC है।
प्रथम पीढ़ी के कम्प्यूटर के गुण –
- इस पीढ़ी में सिर्फ वैक्यूम ट्यूब ही इलेक्ट्रॉनिक यंत्र थे।
- वैक्यूम ट्यूब के तकनिकी ने इलेक्ट्रॉनिक डिजिटल कम्प्यूटर में मदद की।
- यह अपने समय के सबसे तीव्र कंप्यूटर थे तथा इनकी गणनाएँ करने की गति मिली सेकंड में थी।
प्रथम पीढ़ी के कम्प्यूटर के दोष –
- यह आकार में बहुत बड़े थे।
- इन्हे एक स्थान से दुसरे स्थान पर नहीं ले जाया जा सकता था।
- इनमे वातानुकूलन की आवश्यकता होती थी।
द्वितीय पीढ़ी (1955 -1964) :-
सन् 1947 में बैल लैब्स में ट्रांजिस्टर का आविष्कार हुआ जिसके फलस्वरूप प्रथम पीढ़ी में प्रयुक्त वैक्यूम ट्यूब के स्थान पर छोटे-छोटे ट्रांजिस्टर व डायोड का उपयोग किया जाता था। जिससे इस पीढ़ी के कम्प्यूटर का आकार छोटा हुआ व इसकी स्मृति में कई गुना वृद्धि हुई। इस पीढ़ी में COBAL, ASSEMBLY, FORTRAN, ALGOL आदि भाषाओं का उपयोग किया जाता था।
द्वितीय पीढ़ी के कम्प्यूटर के गुण –
- ये आकार में प्रथम पीढ़ी के कम्प्यूटर से छोटे होते थे।
- इन्हे एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाया जा सकता था।
- इनका व्यवसायिक कार्यों में ज्यादा उपयोग किया जाता था।
द्वितीय पीढ़ी के कम्प्यूटर के दोष –
- वातानुकूलन की आवश्यकता पड़ती थी।
- इनका रखरखाव मँहगा पड़ता था।
- इसका व्यावसायिक उत्पादन कठिन व मँहगा होता था।
तृतीय पीढ़ी (1964-1975) :-
इस पीढ़ी की सबसे बड़ी उपलब्धि सिलिकॉन चिप थी। इस पीढ़ी के कम्प्यूटर में IC का प्रयोग करके बनाया गया। मिनी कम्प्यूटर इस पीढ़ी की उपलब्धि है। इसी पीढ़ी में बेसिक भाषा का विकास किया गया।
तृतीय पीढ़ी के कम्प्यूटर के गुण –
- पिछली पीढ़ियों की तुलना में इनका आकार अत्यधिक छोटा हो गया।
- एक स्थान से दुसरे स्थान पर ले जाना आसान हो गया।
- व्यावसायिक उत्पादन सरल व सस्ता हो गया।
तृतीय पीढ़ी के कम्प्यूटर के दोष –
- वातानुकूलन की आवश्यकता पड़ती थी।
- IC बनाने के लिए अत्यधिक संवेदनशील तकनीकी की आवश्यकता।
चतुर्थ पीढ़ी (1975-1995) :-
इस पीढ़ी के कम्प्यूटर के लिए LSI (Large Scale Intigrated) सर्किट बनाया गया। सन् 1971 ई. में अमेरिका के एक इंजीनियर ने इसे छोटी-सी सिलिकॉन चिप में कम्प्यूटर के दिमाग अर्थात CPU के सभी इलेक्ट्रॉनिक कॉम्पोनेन्ट व सर्किट को स्थापित करने में कामयाबी प्राप्त की। इस नए आविष्कार का नाम माइक्रो प्रोसेसर चिप रखा गया। सिलिकॉन के एक चिप पर एक लाख से भी अधिक ट्रांज़िस्टर डाले जा सकते है। अब ट्रांसिस्टर आकार में इतने छोटे हो गए की एक आलपिन के सिर के आकार की जगह के एक दर्जन से अधिक ट्रांजिस्टर लगा सकते है। इस पीढ़ी में PC का निर्माण हुआ तथा इसी पीढ़ी में Semiconductor Memory भी विकसित हुई।
चतुर्थ पीढ़ी के कम्प्यूटर के गुण –
- बहुत छोटे आकार के कम्प्यूटर बनने लगे।
- सरलता से एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जा सकता है।
- वातानुकूलन की आवश्यकता नहीं।
चतुर्थ पीढ़ी के कम्प्यूटर के दोष –
LSI चिप बनाने में अत्यधिक संवेदनशील तकनिकी की आवश्यकता।
पंचम पीढ़ी (1995 से अब तक ) :-
इस पीढ़ी में VLSIC (Very Large Scale Integrated Circuit) का निर्माण किया गया। इससे कंप्यूटर की गति में बहुत विकास हुआ व आकार छोटा होता चला गया। इस पीढ़ी में डेस्कटॉप, लैपटॉप व पॉमटॉप कम्प्यूटर आदि उपलब्ध है। इस पीढ़ी के कम्प्यूटर में ध्वनि, चित्र व अक्षरों का शामिल रूप का मल्टीमीडिया के नाम से विकास हुआ। पंचम पीढ़ी के मध्य में ULSIC (Ultra Large Scale Integrated Circuit) का निर्माण हुआ जिससे कम्प्यूटर घड़ी के आकार जितना छोटा हो गया।
पंचम पीढ़ी के कम्प्यूटर के गुण –
- आकार में अतिसूक्ष्म।
- अतितीव्र गति।
- सभी क्षेत्रों में कम्प्यूटर का उपयोग।
- वातानुकूलन की आवश्यकता नहीं।