- समय – 1 सितंबर 1939 – 2 सितम्बर 1945
- स्थान – यूरोप, प्रशांत, अटलांटिक, दक्षिण-पूर्व एशिया, चीन, मध्य पूर्व, भूमध्यसागर, उत्तरी अफ्रीका और हॉर्न ऑफ़ अफ्रीका, संक्षेप में उत्तर और दक्षिण अमेरिका।
- परिणाम –
- मित्रराष्ट्र की विजय हुई
- नाजी जर्मनी का पतन हुआ
- जापानी और इतालवी साम्राज्यों का पतन हुआ
- राष्ट्र संघ का विघटन हुआ
- संयुक्त राष्ट्र का निर्माण किया गया
- महाशक्तियों के रूप में संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ का उत्थान हुआ
- शीत युद्ध की शुरुआत की गयी
द्वितीय विश्व युद्ध को वर्ष 1939-45 में होने वाला एक सशस्त्र विश्वव्यापी युद्ध के रूप में जाना जाता है। इस युद्ध में दो प्रमुख प्रतिद्वंद्वी गुट धुरी शक्तियाँ (जर्मनी, इटली और जापान) तथा मित्र राष्ट्र (फ्राँस, ग्रेट ब्रिटेन, संयुक्त राज्य अमेरिका, सोवियत संघ और चीन) सम्मिलित थे। यह इतिहास का सबसे बड़ा युद्ध था जो लगभग छह साल तक चलता रहा। इसमें लगभग 100 मिलियन लोगो ने भाग लिया था और 50 मिलियन लोग (दुनिया की आबादी का लगभग 3%) मारे गए थे।
द्वितीय विश्व युद्ध के कारण
वर्साय की संधि –
- प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात विजयी मित्र राष्ट्रों ने जर्मनी के भविष्य का निर्णय किया। जर्मनी को वर्साय की संधि पर हस्ताक्षर करने के लिये मज़बूर किया गया।
- इस संधि के अंतर्गत जर्मनी को युद्ध का उत्तरदायी मानकर उस पर आर्थिक दंड लगा दिया गया, उसके प्रमुख खनिज और औपनिवेशिक क्षेत्र को अधीन कर लिया गया तथा उसे सीमित सेना रखने के लिये प्रतिबद्ध किया गया।
- इस अपमानजनक संधि ने जर्मनी में अति-राष्ट्रवाद के प्रसार का मार्ग प्रशस्त किया।
राष्ट्र संघ की विफलता –
- वर्ष 1919 में एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन के रूप में विश्व में शांति को बनाए रखने के लिये राष्ट्र संघ का निर्माण किया गया।
- यह संगठन का उद्देश्य सभी देशों को अपना सदस्य बनाना था ताकि उनके बीच विवाद होने पर उसे बल के बजाय बातचीत से समाधान किया जा सके।
- राष्ट्र संघ का प्रयास अच्छा था, किन्तु यह असफल हुआ क्योंकि इसमें सभी देशों की उपस्थिति नहीं थी।
- इसके अलावा संघ के पास इटली के इथियोपिया पर या जापान के मंचूरिया क्षेत्र पर हमला जैसे सैन्य आक्रमणों को रोकने के लिये अपनी कोई सेना नहीं थी।
वर्ष 1929 की महामंदी –
- वर्ष 1930 के दशक की विश्वव्यापी आर्थिक मंदी ने यूरोप और एशिया में विभिन्न तरीकों से प्रभावित किया।
- यूरोप की अधिकतर राजनीतिक शक्तियाँ जैसे- जर्मनी, इटली, स्पेन आदि अधिनायकवादी और साम्राज्यवादी सरकारों में स्थानांतरित हो गईं।
- एशिया का संसाधन संपन्न देश जापान, एशिया और प्रशांत क्षेत्रों पर अपना नियंत्रण करने के लिये इन क्षेत्रों पर हमला करने लगा।
फासीवाद का उदय –
- प्रथम विश्व युद्ध के विजेताओं का उद्देश्य दुनिया को लोकतंत्र के लिये सुरक्षित करना था। युद्ध के पश्चात जर्मनी द्वारा अन्य ज्यादातर देशों की तरह लोकतांत्रिक संविधान को अपना लिया गया।
- इटली में सन् 1920 के दशक में राष्ट्रवादी, सैन्यवादी अधिनायकवाद की लहर को फांसीवाद कहा जाता है।
- इस विचारधारा ने स्वयं को लोकतंत्र से अधिक बेहतर ढंग से काम करने वाली और साम्यवाद को रोकने वाली के रूप में दिखाया।
- बेनिटो मुसोलिनी द्वारा वर्ष 1922 में इटली में इंटरवार (Interwar) अवधि के समय पहली फासीवादी तानाशाही सरकार निर्माण हुआ।
नाज़ीवाद का उदय –
- जर्मन नेशनल सोशलिस्ट (नाज़ी) पार्टी के नेता एडोल्फ हिटलर ने फासीवाद की नस्लवादी विचारधारा को फैलाया।
- हिटलर ने वर्साय की संधि को बदलने, जर्मनी की संवृद्धि धन और वैभव को पुनः बहाल करने और जर्मन लोगों के लिये अन्य लेबेन्सराम (रहने की जगह) को सुरक्षित करने का आश्वासन दिया।
- हिटलर वर्ष 1933 में जर्मन चांसलर बना और उसने आगे चलकर खुद को एक तानाशाह के रूप में स्थापित किया।
- नाज़ी शासन ने वर्ष 1941 में स्लाव, यहूदियों और हिटलर की विचारधारा के दृष्टिकोण से हीन समझे जाने वाले अन्य तत्त्वों के खिलाफ युद्ध शुरू कर दिया।
तुष्टिकरण की नीति –
- हिटलर ने खुले आम वर्साय की संधि को तोडा और जर्मनी की सेना तथा हथियारों को गुप्त रूप से बनाना आरम्भ कर दिया।
- हिटलर की गतिविधियों के बारे में ब्रिटेन और फ्राँस को जानकारी थी, लेकिन उन्हें लगा कि एक मज़बूत जर्मनी ही रूस के साम्यवाद के प्रसार को रोकने में सक्षम है।
- म्यूनिख समझौता (सितंबर 1938) इस तुष्टिकरण का एक प्रमुख उदाहरण था। इस समझौते में ब्रिटेन और फ्राँस ने जर्मनी को चेकोस्लोवाकिया के उन क्षेत्रों में प्रवेश करने की अनुमति प्रदान की, जहाँ जर्मन-भाषी लोग रहते थे।
- जर्मनी ने वादा किया था कि वह शेष चेकोस्लोवाकिया या किसी अन्य देश पर हमला नहीं करेगा, लेकिन जर्मनी द्वारा मार्च 1939 में इस वादे को तोड़ दिया तथा शेष चेकोस्लोवाकिया पर हमला कर दिया।
- इसके बाद भी ब्रिटेन और फ्राँस ने कोई सैन्य कार्रवाई नहीं की।
द्वितीय विश्व युद्ध के परिणाम
धन-जन का भीषण संहार –
द्वितीय विश्व युद्ध में जन-धन की बहुत हानि हुई। इस युद्ध में दोनों पक्षों के 5 करोड़ से अधिक लोग मारे गए जिनमें सोवियत की संख्या सर्वाधिक थी। लाखों लोग घरों से बेघर हो गए जिससे पुनर्वास की समस्या उत्पन्न हो गयी। लाखों यहूदियों को मार दिया गया तथा घायलों की गिनती नहीं की जा सकती थी। इंग्लैंड में लगभग 2000 करोड़ रुपए मूल्य की संपत्ति नष्ट हो गई। सोवियत संघ की संपूर्ण राष्ट्रीय संपत्ति का 1/4 भाग युद्ध में खर्च हो गया।
औपनिवेशिक युग का अंत –
द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात सभी साम्राज्यवादी राज्यों को बारी-बारी से अपनी उपनिवेशों को खोना पड़ा। उपनिवेशों में राष्ट्रीयता की लहर तीव्र हो गई। स्वतंत्रता आंदोलन तेज़ हो गए। एशिया के अनेक देश यूरोपीय अधीनता से आजाद हो गए। भारत भी अंग्रेजों की अधीनता से स्वतंत्र हो गया।
फासीवादी शक्तियों का अंत –
युद्ध में हारने के बाद धुरी राष्ट्रों के बुरे दिन आ गए। जर्मन साम्राज्य का बड़ा भाग उससे छीन लिया गया। इटली को भी अपने सभी अफ्रीकी उपनिवेश छोड़ने पड़े। जापान को भी उन क्षेत्रों को वापस करना पड़ा जिन पर वह अपना अधिकार किया हुआ था। इन राष्ट्रों की आर्थिक सैन्य स्थिति में गिरावट आई।
साम्यवाद का तेजी से प्रसार-
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सोवियत संघ के नेतृत्व में साम्यवाद का तेजी से प्रसार हुआ। पूर्वी यूरोप के अनेक एशियाई देशों – चीन, उत्तर कोरिया इत्यादि देशों में साम्यवाद का प्रसार हुआ।
संयुक्त राष्ट्र की स्थापना –
द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन की पुनः आवश्यकता हुई, जो की विश्व शांति बनाए रख सके एवं विश्व युद्ध की पुनरावृति को रोका जा सके। अमेरिका के पहल पर 24 अक्टूबर 1945 को संयुक्त राष्ट्र नामक संस्था का निर्माण हुआ।