- समय – 8 मार्च 1917 – 16 जून 1923
- स्थान – रुसी
- परिणाम –
- निकोलस द्वितीय का त्याग
- शाही सरकार का पतन हुआ
- रूसी SFSR का निर्माण किया गया
- रूसी गृह युद्ध की शुरुआत हुई
- बोल्शेविकों की विजय हुई
रुसी गृहयुद्ध (नवम्बर 1917—अक्टूबर 1922) भूतपूर्व रुसी साम्राज्य का एक बहुदलीय युद्ध था, जो 1917 की रुसी क्रान्ति के पश्चात हुआ, जिसमें कई गुटों के मध्य रूस के राजनीतिक भविष्य को निर्धारित करने के लिए टकराहट हुई।
रूसी क्रांति के कारण
निरंकुश राजतंत्र एवं स्वेच्छाचारी शासक –
- नौकरशाही वंशानुगत एवं भ्रष्ट थी तथा जनता का शोषण किया करती थी।
- जार निकोलस-I के शासनकाल में यह निरंकुशता चरम सीमा पर पहुँच गई जिसके फलस्वरूप असंतोष ज्यादा बढ़ गया।
- रूस में निरंकुश व दैवीय सिद्धांत पर आधारित शासन था जिसका संचालन कुलीन, वंशानुगत सामंत वर्ग के द्वारा किया जाता था।
सामाजिक-आर्थिक विषमता –
- इस सामाजिक-आर्थिक विषमता के खिलाफ असंतोष फेल गया।
- फ्रांस की तरह यहाँ भी सामंत व पादरियों का विशेषाधिकार युक्त वर्ग तथा किसान व मजदूरों के रूप में अधिकारहीन वर्ग था। इनके मध्य अत्यधिक तनाव था।
किसानों की दयनीय स्थिति –
- रूस में सबसे ज्यादा संख्या में किसान मौजूद थे किंतु उनकी स्थिति अत्यंत दयनीय थी।
- भूमि का 67% भाग सामंतों के पास था तो वहीं 13% हिस्सा चर्च के पास था। किसान खेतों में मज़दूरों की तरह कार्य किया करते थे।
- हालाँकि वर्ष 1861 में रूस में दास प्रथा का अंत हो गया था किंतु व्यावहारिक रूप में अभी भी वह मौजूद थी।
- इन सबके चलते किसान व मज़दूर वर्ग में भी विद्रोही भावना पैदा हो गयी।
श्रमिकों की दशा: –
- रूस में औद्योगीकरण का विकास देरी से हुआ और विकास सीमित रहा।
- अर्थव्यवस्था में विदेशी पूंजी निवेश के कारण विदेशी पूंजीपतियों ने केवल फायदे पर जोर दिया। जिसके कारण श्रमिकों का अत्यधिक शोषण हुआ।
- मज़दूरों के लिये न ही कार्य के घंटे निश्चित थे और ही न्यूनतम वेतन और सुविधाएँ मौजूद थी।
- प्रजातांत्रिक दल ने उन्हें संगठित कर क्रांति के लिये तैयार किया।
समाजवादी विचारधारा का प्रसार:-
- समावादी विचारधारा के प्रसार के चलते रूस में कई समाजवादी संगठन अस्तित्व में आए।
- समाजवादी क्रांतिकारी दल:- इसने कृषक हित के मुद्दों पर आवाज़ उठाकर लोकप्रियता हासिल की।
- समाजवादी प्रजातांत्रिक दल:- इसने मज़दूरों के हितों की बात की।
- चूँकि समाजवादी विचारधारा जाति, धर्म आदि को महत्त्व नहीं देती, अत: जब जार निकोलस ने रूसी जाति पर जोर देते हुए रूसीकरण की नीति अपनाई तो गैर रूसी जाति की जनता भी समाजवादी लहर में सम्मिलित हुई।
लेनिन-
व्लदिमिर इल्यिच उल्यानोव, जिन्हें लेनिन भी कहा जाता है, एक रूसी साम्यवादी क्रान्तिकारी, राजनीतिज्ञ तथा राजनीतिक सिद्धांतकार थे। लेनिन को रूस में बोल्शेविक की लड़ाई के नेता के रूप में भी जाना जाता था। वह 1917 से 1924 तक सोवियत रूस के, और 1922 से 1924 तक सोवियत संघ के भी “हेड ऑफ़ गवर्नमेंट” पर भी थे। उनके शासन काल में रूस, और उसके बाद व्यापक सोवियत संघ भी, रूसी कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा नियंत्रित एक-पक्ष साम्यवादी राज्य बना। लेनिन विचारधारा से मार्क्सवादी थे, और उन्होंने लेनिनवाद सिद्धांत का विकास किया।
रूसी क्रांति के नेतृत्त्व :
- लेनिन के नेतृत्त्व में बोल्शेविकों ने करेंसकी सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया और सत्ता किसान एवं मज़दूरों के हाथ में देने का प्रस्ताव दिया।
- लेनिन अनुसार राज्य के उत्पादन एवं वितरण के साधनों को मज़दूरों एवं किसानों द्वारा नियंत्रित किये जाने चाहिए।
- रूस को प्रथम विश्वयुद्ध में भागीदारी नहीं करनी चाहिये।
- इसी क्रम में बोल्शेविकों ने सरकारी भवनों, रेलवे, बिजलीघरों में नियंत्रण कर लिया और करेंसकी को त्यागपत्र देना पड़ा तथा लेनिन के नेतृत्त्व में सर्वहारा का शासन स्थापित हुआ।
रुसी क्रांति के परिणाम
रुसी क्रांति के राजनीतिक परिणाम:
- राजतंत्र समाप्त हुआ तथा सर्वहारा का शासन की स्थापना हो गया।
- रूस द्वारा पूंजीवाद व उपनिवेशवाद के स्वाभाविक विरोध के कारण उसे औपनिवेशक शोषण से मुक्ति का अग्रदूत माना गया।
- जर्मनी के साथ बेस्टलिटोवस्क की संधि द्वारा प्रथम विश्व युद्ध से रूस विभाजित हो गया।
रुसी क्रांति के आर्थिक परिणाम:
- रूस में उत्पादन एवं वितरण के साधनों पर राज्य का नियंत्रण स्थापित हुआ।
- चूँकि पूंजीवादी देशों से रूस को किसी प्रकार के सहयोग की अपेक्षा नहीं थी, अत: वह वैज्ञानिक-तकनीकी विकास के लिए आत्मनिर्भरता के पथ पर अग्रसर हुआ।
- रूस के द्वारा नियोजित अर्थव्यवस्था से आर्थिक विकास करने की वजह से वह वैश्विक आर्थिक मंदी से दुष्प्रभावित नहीं हुआ।
रुसी क्रांति के सामाजिक परिणाम:
- सामंत व कुलीन वर्ग समाप्त हुआ।
- चर्च का शासन समाप्त हुआ।
- वर्ग भेद की समाप्ति।
- रूस में शिक्षा का प्रसार, राज्य द्वारा 16 वर्ष की उम्र तक नि:शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान।
- लैंगिक भेदभाव की समाप्ति।