ग्राम पंचायत का निर्माण ग्रामीण स्तर पर किया जाता हैं। जिसका उद्देश्य किसी निश्चित क्षेत्र के विकास में अपनी भूमिका निभाना होता हैं। ग्राम पंचायत का चुनाव ग्राम सभा द्वारा किया जाता हैं। ग्राम पंचायत के सभी सदस्यों का चुनाव ग्राम की जनता द्वारा किया जाता हैं। ग्राम पंचायत का एक सरपंच होता हैं जिसे ग्राम पंचायत का मुखिया भी कहा जाता हैं।
अनुसूची 11, भाग -9 व अनुच्छेद 243 में 16 कानून व 29 कार्यो को वर्णित किया गया। 73वें संविधान संशोधन के अंतर्गत त्रिस्तरीय पंचायती राज में प्रारम्भिक स्तर की संस्था ग्राम पंचायत सबसे महत्वपूर्ण संस्था होती है। ग्राम पंचायत ही निर्वाचित प्रतिनिधियों की एक ऐसी संस्था है जिसे जनता के आमने-सामने हो कर जवाब देना होता है तथा अधिकतर कार्यों के लिए निर्णय लेने हेतु पहले उनकी अनुमति लेनी होती है।
ग्राम पंचायत की संरचना में निर्वाचित मुखिया, उप मुखिया एवं प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र के निर्वाचित सदस्य (वार्ड सदस्य) शामिल होते हैं। निर्वाचित होने के बाद मुखिया, उप मुखिया एवं प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र के सदस्य (वार्ड सदस्य) को शपथ ग्रहण करना आवश्यक है।
ग्राम पंचायत का गठन –
- 500 तक की जनसंख्या पर – 05 सदस्य
- 501 से 1000 तक की जनसंख्या पर – 07 सदस्य
- 1001 से 2000 तक की जनसंख्या पर – 09 सदस्य
- 2001 से 3000 तक की जनसंख्या पर – 11 सदस्य
- 3001 से 5000 तक की जनसंख्या पर – 13 सदस्य
- 5000 से अधिक की जनसंख्या पर – 15 सदस्य
प्रधान तथा 2 तिहाई सदस्यों के चुनाव होने पर ही पंचायत का गठन किया जाता है।
ग्राम पंचायत का कार्यकाल
अनुच्छेद 243 (ड़) के अनुसार ग्राम पंचायत की प्रथम बैठक की तारीख से 5 साल तक ग्राम पंचायत का कार्यकाल चलता है। यदि पंचायत को उसके कार्यकाल पूर्ण होने के 6 माह पूर्व भंग किया जाता है तो ग्राम पंचायत में पुन: चुनाव करवाकर पंचायत का पुनः गठन किया जाता है। इस नवनिर्वाचित पंचायत का कार्यकाल 5 वर्ष के बचे हुए समय के लिए होगा अर्थात बचे हुए 6 माह के लिए ही चलेगा।
ग्राम पंचायत की स्थायी समितियां
ग्राम पंचायत का काफी विस्तृत कार्य हैं अत: कार्यों की गुणवत्ता, उत्कृष्टता तथा समय निष्पादन के लिए यह जरूरी है कि प्रत्येक ग्राम पंचायत बिहार पंचायत राज अधिनियम, 2006 की धारा-25 के अधीन गठित की जाने वाली स्थायी समितियों के द्वारा कार्यों का प्रभावी निष्पादन सुनिश्चित कर सके। इससे ग्राम पंचायत के कार्य का बंटवारा होगा और कार्य की गुणवत्ता भी बनी रहेगी। इसके तहत स्थानीय स्तर पर कार्यों का वास्तविक एवं व्यवहारिक विकेन्द्रीकरण अपनायी गई है।
प्रत्येक ग्राम पंचायत द्वारा अपने कार्यों के प्रभावी निष्पादन हेतु निर्वाचित सदस्यों में से चुनाव के द्वारा 6 समितियों का गठन किया जाता है जो निम्नलिखित है –
1. योजना, समन्वय एवं वित्त समिति –
यह समिति अन्य समितियों के कार्यों का समवन्य करके उनको निष्पादित करती है। साथ ही जो कार्य अन्य समितियों के प्रभार में नहीं है वह कार्य यह समिति सम्पादित करती है।
2. उत्पादन समिति –
यह समिति कृषि, पशुपालन, डेयरी, कुक्कुट पालन, मत्स्य पालन, वानिकी, खादी ग्राम या कुटीर उद्योग तथा गरीबी उन्मूलन संबंधी कार्य करती है।
3. सामाजिक न्याय समिति –
यह समिति अनुसूचित जातियों के साथ ही कमजोर वर्गों को शैक्षणिक, आर्थिक तथा सामाजिक अन्याय से बचाने तथा महिलाओं एवं बच्चों के कल्याण संबंधी कार्य करती है।
4. शिक्षा समिति–
इस समिति के जिम्मे मुख्यत: प्राथमिक शिक्षा, माध्यमिक शिक्षा एवं जनशिक्षा, पुस्तकालय एवं सांस्कृतिक कार्यकलाप है।
5. लोक स्वास्थ्य परिवार कल्याण एवं ग्रामीण स्वच्छता समिति –
इस समिति द्वारा लोक कल्याण, परिवार कल्याण एवं ग्रामीण स्वच्छता सम्बंधित कार्य किए जाते हैं।
6. लोक निर्माण समिति –
इस समिति का मुख्य कार्य ग्रामीण आवास, जलापूर्ति स्रोतों, सड़क एवं आवागमन के अन्य माध्यमों, ग्रामीण विद्युतीकरण के साथ-साथ सभी प्रकार के निर्माण एवं अनुरक्षण संबंधी कार्य किये जाते हैं।