भारत की शासन व्यवस्था केन्द्रीय और राज्यीय दोनो सिद्धान्तों का संयोजन रूप है। लोकसभा, राज्यसभा सर्वोच्च न्यायालय की सर्वोच्चता, संघ लोक सेवा आयोग इत्यादि इसे एक संघीय ढांचे का रूप देते हैं तो राज्यों के मंत्रीमंडल, स्थानीय निकायों की स्वायत्ता आदि तत्त्व इसे राज्यों से बनी शासन व्यवस्था की तरफ ले जाते हैं। प्रत्येक राज्य का एक राज्यपाल होता है जिसकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा 5 वर्षों के लिए की जाती है।
राज्यपाल
राज्यपाल, राज्य का संवैधानिक प्रमुख होता है। वह कार्य मंत्रिपरिषद की सलाह से करता है परंतु उसकी संवैधानिक स्थिति मंत्रिपरिषद की अपेक्षा बहुत सुरक्षित है। वह राष्ट्रपति के समान असहाय नहीं होता है। राष्ट्रपति के पास मात्र विवेकाधीन शक्ति ही होती है जिसके अलावा वह सदैव प्रभाव का ही प्रयोग करता है किंतु संविधान राज्यपाल को प्रभाव तथा शक्ति दोनों देता है। उसका पद जितना शोभात्मक है, उतना ही कार्यात्मक भी है।
- अनुच्छेद 166 के अंर्तगत यदि कोई सवाल उठता है कि राज्यपाल की शक्ति विवेकाधीन है या नहीं तो उसी का निर्णय आखिरी निर्णय माना जाता है।
- अनुच्छेद 166 राज्यपाल इन शक्तियों का प्रयोग उन नियमों के निर्माण करने के लिए कर सकता है जिनसे राज्यकार्यों को सुगमता पूर्वक संचालन हो साथ ही वह मंत्रियों में कार्य बांटने का कार्य भी कर सकता है।
- अनुच्छेद 200 के अधीन राज्यपाल अपनी विवेक शक्ति का प्रयोग राज्य विधायिका द्वारा जारी बिल को राष्ट्रपति की अनुमति हेतु सुरक्षित कर सकता है।
- अनुच्छेद 356 के अंतर्गत राज्यपाल राष्ट्रपति को राज के प्रशासन को अधिग्रहित करने के लिए निमंत्रण दे सकता है यदि यह संविधान के प्रावधानों के अनुरूप नहीं चल सकता हो।
राज्यपाल की योग्यता (अनुच्छेद 157) –
- वह भारत का नागरिक हो।
- आयु 35 वर्ष से कम न हो।
- समान समय में वह किसी अन्य कार्यालय में पदासीन नहीं हो।
- वह संघ के विधानमंडल या किसी अन्य राज्य का सदस्य नहीं होना चाहिए। विधानमंडल के सदस्यों में से किसी एक को राज्यपाल बनाने पर कोई रोक नहीं है, बशर्ते नियुक्ति के बाद, वह तुरंत ही विधानमंडल का सदस्य नहीं रह जाता है।
विधान परिषद
विधान परिषद कुछ भारतीय राज्यों में लोकतन्त्र की ऊपरी प्रतिनिधि सभा कहलाती है। इसके सदस्यों को अप्रत्यक्ष चुनाव के द्वारा चुना जाता हैं। कुछ सदस्य राज्यपाल के द्वारा मनोनित किए जाते हैं। विधान परिषद विधानमण्डल का एक महत्वपूर्ण अंग है। परिषद की स्थापना के लिये एक विधेयक को विधानसभा में प्रस्तुत किया जाता है और उसके पश्चात राज्यपाल की मंज़ूरी की आवश्यकता होती है। वर्ष 1969 में पश्चिम बंगाल में विधान परिषद को समाप्त कर दिया गया था।
विधान परिषद वाले राज्य:-
- आंध्र प्रदेश (50)
- तेलंगाना (40)
- उत्तर प्रदेश (100)
- बिहार (75)
- महाराष्ट्र (78)
- कर्नाटक (75)
वर्ष 2020 में आंध्र प्रदेश विधानसभा ने विधान परिषद को समाप्त करने का प्रस्ताव जारी किया। अंततः परिषद को समाप्त करने के लिये भारत की संसद द्वारा इस प्रस्ताव को अनुमति दी जानी बाकी है। वर्ष 2019 में जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन विधेयक, 2019 के माध्यम से जम्मू और कश्मीर विधान परिषद को समाप्त कर दिया गया।
विधान परिषद के लिए योग्यताएँ –
- भारत का नागरिक होना चाहिए।
- न्यूनतम आयु 30 वर्ष होनी चाहिए।
- मानसिक रूप से असमर्थ तथा दिवालिया नहीं होना चाहिए।
- समान समय में वह संसद का सदस्य नहीं होना चाहिए।
- इसके अतिरिक्त उस क्षेत्र (जहाँ से वह चुनाव लड़ रहा हो) की मतदाता सूची में उसका नाम भी होना चाहिए।
विधान सभा
विधान सभा भारत के राज्यों में लोकतन्त्र की निचली प्रतिनिधि सभा कहलाती है। यह विधान मण्डल का एक अंग होता है। इसके सदस्यों का चुनाव प्रत्यक्ष तौर पर मतदान के द्वारा किया जाता है जिसमें 18 वर्ष से ऊपर के सभी भारतीय नागरिक मतदान करके सदस्यों का चुनाव करते हैं। विधान सभा का नेता मुख्यमंत्री होता है जिसे बहुमत दल के सभी सदस्य या कई दल संयुक्त रुप से चुनते हैं।
राज्य का विधान सभा में 500 से अधिक और कम से कम 60 सदस्य राज्य में क्षेत्रीय चुनाव क्षेत्रों से प्रत्यक्ष चुनाव करके चुने जाते हैं। क्षेत्रीय चुनाव का सीमांकन ऐसा होना चाहिए है कि प्रत्येक चुनाव क्षेत्र की जनसंख्या और इसको आबंटित सीटों की संख्या के बीच अनुपात जहां तक व्यावहारिक हो पूरे राज्य में एक समान हो। संविधान सभा का कार्यकाल पांच वर्ष का होता है जब तक कि इसे पहले खंडित न किया जाए।
जहां संसद सदस्य राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त व्यक्ति के सामने शपथ लेते हैं (अनुच्छेद 99), वहीं राज्य विधानसभा सदस्य राज्यपाल या उसके द्वारा नियुक्त व्यक्ति के समक्ष शपथ लेते हैं (अनुच्छेद 188)।
विधानसभा के सदस्यों की योग्यताएं –
अनुच्छेद 173 के अंतर्गत विधानसभा सदस्य के लिए निम्नलिखित योग्यताएं होनी आवश्यक है –
- वह भारत का नागरिक हो।
- 25 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो।
- संसद द्वारा बनाए गए किसी कानून के अंतर्गत विधानसभा के लिए अयोग्य ना हो।
- किसी न्यायालय द्वारा पागल या दिवालिया न घोषित किया गया हो।