यह उच्च परिषद के तौर पर कार्य करती हैं। इसका कार्य ग्राम पंचायत और पंचायत समिति के कार्यों की निगरानी रखना एवं आवश्यकता पड़ने पर उनका मार्गदर्शन करना हैं। इस परिषद का कार्यक्षेत्र सम्पूर्ण जिला होता हैं। यह निचली समितियों को जरूरत पड़ने पर अनुदान प्रदान करवाती हैं।
इस परिषद में जिलाधिकारी (DM) की बेहद अहम भूमिका होती हैं। इस समिति में समस्त पंचायत समिति के प्रधान मुख्यतः शामिल होते हैं। अर्थात सम्पूर्ण जिले के प्रत्येक क्षेत्र से इन समितियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे सदस्य इस परिषद के सदस्य होते हैं।
जिला परिषद पंचायती राज की उच्च इकाई के रूप में कार्य करती हैं। इस परिषद का मुख्य कार्य निम्न समितियो के कार्यो एवं योजनाओं में समन्वय स्थापित करना होता हैं और राज्य सरकार व समितियों के मध्य कड़ी के रूप में कार्य करना होता हैं।
विधान परिषद की संरचना की अनुच्छेद 171 के अंतर्गत की गयी है तथा इसके सदस्यों को बिहार पंचायत निर्वाचन नियमावली, 2006 का नियम-122 (4) के अनुसार शपथ ग्रहण कराई जाती है।
जिला परिषद की संरचना
जिला परिषद का भी ग्राम पंचायत एवं पंचायत समिति की समान ही अपना प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र होता है, जिसको लगभग पचास हजार की आबादी पर गठित किया जाता है। प्रत्येक प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र से जिला परिषद सदस्य पद पर एक-एक प्रतिनिधि का निर्वाचन किया जाता है। जिला परिषद के प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र से सीधे चुनकर आये सदस्यों के अतिरिक्त अन्य सदस्य निम्न हैं-
- जिले के सभी पंचायत समितियों के निर्वाचित प्रमुख।
- लोकसभा और विधानसभा के वे सदस्य जिनका पूर्ण या आंशिक निर्वाचन क्षेत्र जिले के अन्तर्गत होता हो।
- राज्य सभा तथा विधान परिषद के वे सभी सदस्य जिनका नाम जिला की मतदाता सूची में दर्ज हो।
- ग्राम पंचायत एवं पंचायत समिति की तरह ही जिला परिषद का कार्यकाल भी इसकी पहली बैठक से पांच वर्ष का होता है।
जिला परिषद के लिए योग्यताये –
- वह भारत का नागरिक हो।
- 21 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो
- सरकार के किसी लाभ पद पर ना हो
- पागल या दिवालिया न हो
- किसी न्यायलय द्वारा अयोग्य घोषित न किया गया हो।
जिला परिषद की चुनावी प्रक्रिया –
जिला परिषद का चुनाव भी पंचायत व पंचायत समिति के चुनाव के साथ ही किया जाता है। जिला परिषद का कार्यकाल भी 5 वर्ष का होता है। कुछ पंचायतों को मिलाकर जिला परिषद का एक वार्ड बनाया जाता है प्रत्येक वार्ड से एक सदस्य को चुना जाता है। यहां भी महिलाओं, अनुसूचित जाति अथवा जनजाति के सदस्यों के लिए सीटें आरक्षित की जाती हैं।
जिला परिषद के लिए चुने हुए सदस्यों के अलावा उस क्षेत्र के लोकसभा सदस्य, विधान सभा सदस्य व पंचायत समिति के अध्यक्ष व उपाध्यक्ष जिला परिषद के पदेन सदस्य होते हैं। प्रत्येक ज़िला में एक जिला परिषद का गठन किया जाता है। जिलाधीश भी जिला परिषद का पदेन सदस्य होता है। जिला परिषद पंचायत समितियों से तालमेल पैदा करती है व उस के कार्यों की देखभाल करती है।
जिला परिषद की स्थायी समितियां –
सामान्य स्थायी समिति-
इसका कार्य स्थापना मामले सहित अन्य समितियों के कार्यों के मध्य समन्वय बनाना तथा ऐसे अवशिष्ट कार्य को जो अन्य समितियों को नहीं दिये गये हों, पूरा करना है। जिला परिषद से संबंधित अन्य कार्य करना।
वित्त, अंकेक्षण तथा योजना समिति :- यह समिति वित्त, अंकेक्षण, बजट एवं योजना से सम्बन्धित कार्य करती है।
उत्पादन समिति-
यह समिति कृषि, भूमि विकास, लघु सिंचाई एवं जल प्रबंधन, पशुपालन, दुग्धशाला, कुक्कुट एवं मछली पालन, वानिकी, खादी, ग्रामीण, एवं कुटीर उद्योगों तथा गरीबी उन्मूलन से सम्बंधित कार्य करने के लिए बनायीं जाती है।
सामाजिक न्याय समिति-
यह समिति अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, महिलाओं एवं अन्य कमजोर वर्ग के बच्चों के सामजिक न्याय, कल्याण और सशक्तिकरण से सम्बन्धित कार्य करने के लिए बनायीं जाती है। सामाजिक अन्याय तथा अन्य सभी प्रकार के शोषण से सुरक्षा प्रदान करना।
शिक्षा समिति-
यह समिति प्राथमिक, माध्यमिक, जन शिक्षा सहित पुस्तकालयों एवं सांस्कृतिक कार्यकलापों सम्बंधित कार्य करने के लिए बनायीं जाती है।
लोक स्वास्थ्य, परिवार कल्याण एवं ग्रामीण स्वच्छता समिति :- इस समिति के द्वारा लोक स्वास्थ्य, परिवार कल्याण एवं ग्रामीण स्वच्छता सम्बंधी कार्य किया जाता है।
लोक कार्य समिति-
यह समिति के द्वारा ग्रामीण विकास आवास, जलापूर्ति स्त्रोत, सड़क एवं आवागमन के अन्य साधन तथा ग्रामीण विद्युतीकरण सम्बंधी कार्य करना एवं उनकी देखभाल की जाती है। सभी प्रकार के निर्माण एवं अनुरक्षण से संबंधित कार्य किये जाते है।