परिभाषा
किसी विशेष स्थान पर प्रसिद्ध हो जाने वाले कथन को ‘लोकोक्ति’ कहते हैं।
दूसरे शब्दों में- जब कोई पूरा कथन किसी प्रसंग विशेष में उद्धत किया जाता है तो लोकोक्ति कहलाता है। इसी को कहावत कहते है।
मुहावरा और लोकोक्ति में अंतर
मुहावरे | लोकोक्तियाँ |
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(1) मुहावरे वाक्यांश होते हैं, पूर्ण वाक्य नहीं; जैसे- अपना उल्लू सीधा करना, कलम तोड़ना आदि। जब वाक्य में इनका प्रयोग होता तब ये संरचनागत पूर्णता प्राप्त करती है। | (1) लोकोक्तियाँ पूर्ण वाक्य होती हैं। इनमें कुछ घटाया-बढ़ाया नहीं जा सकता। भाषा में प्रयोग की दृष्टि से विद्यमान रहती है; जैसे- चार दिन की चाँदनी फेर अँधेरी रात। |
(2) मुहावरा वाक्य का अंश होता है, इसलिए उनका स्वतंत्र प्रयोग संभव नहीं है; उनका प्रयोग वाक्यों के अंतर्गत ही संभव है। | (2) लोकोक्ति एक पूरे वाक्य के रूप में होती है, इसलिए उनका स्वतंत्र प्रयोग संभव है। |
(3) मुहावरे शब्दों के लाक्षणिक या व्यंजनात्मक प्रयोग हैं। | (3) लोकोक्तियाँ वाक्यों के लाक्षणिक या व्यंजनात्मक प्रयोग हैं। |
(4) वाक्य में प्रयुक्त होने के बाद मुहावरों के रूप में लिंग, वचन, काल आदि व्याकरणिक कोटियों के कारण परिवर्तन होता है; जैसे- आँखें पथरा जाना। प्रयोग- पति का इंतजार करते-करते माला की आँखें पथरा गयीं। | (4) लोकोक्तियों में प्रयोग के बाद में कोई परिवर्तन नहीं होता; जैसे- अधजल गगरी छलकत जाए। प्रयोग- वह अपनी योग्यता की डींगे मारता रहता है जबकि वह कितना योग्य है सब जानते हैं। उसके लिए तो यही कहावत उपयुक्त है कि ‘अधजल गगरी छलकत जाए। |
(5) मुहावरों का अंत प्रायः इनफीनीटिव ‘ना’ युक्त क्रियाओं के साथ होता है; जैसे- हवा हो जाना, होश उड़ जाना, सिर पर चढ़ना, हाथ फैलाना आदि। | (5) लोकोक्तियों के लिए यह शर्त जरूरी नहीं है। चूँकि लोकोक्तियाँ स्वतः पूर्ण वाक्य हैं अतः उनका अंत क्रिया के किसी भी रूप से हो सकता है; जैसे- अधजल गगरी छलकत जाए, अंधी पीसे कुत्ता खाए, आ बैल मुझे मार, इस हाथ दे, उस हाथ ले, अकेली मछली सारे तालाब को गंदा कर देती है। |
(6) मुहावरे किसी स्थिति या क्रिया की ओर संकेत करते हैं; जैसे हाथ मलना, मुँह फुलाना? | (6) लोकोक्तियाँ जीवन के भोगे हुए यथार्थ को व्यंजित करती हैं; जैसे- न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी, ओस चाटे से प्यास नहीं बुझती, नाच न जाने आँगन टेढ़ा। |
(7) मुहावरे किसी क्रिया को पूरा करने का काम करते हैं। | (7) लोकोक्ति का प्रयोग किसी कथन के खंडन या मंडन में प्रयुक्त किया जाता है। |
(8) मुहावरों से निकलने वाला अर्थ लक्ष्यार्थ होता है जो लक्षणा शक्ति से निकलता है। | (8) लोकोक्तियों के अर्थ व्यंजना शक्ति से निकलने के कारण व्यंग्यार्थ के स्तर के होते हैं। |
(9) मुहावरे ‘तर्क’ पर आधारित नहीं होते अतः उनके वाच्यार्थ या मुख्यार्थ को स्वीकार नहीं किया जा सकता; जैसे- ओखली में सिर देना, घाव पर नमक छिड़कना, छाती पर मूँग दलना। | (9) लोकोक्तियाँ प्रायः तर्कपूर्ण उक्तियाँ होती हैं। कुछ लोकोक्तियाँ तर्कशून्य भी हो सकती हैं; जैसे- तर्कपूर्ण : (i) काठ की हाँडी बार-बार नहीं चढ़ती। (ii) एक हाथ से ताली नहीं बजती। (iii) आम के आम गुठलियों के दाम। तर्कशून्य : (i) छछूंदर के सिर में चमेली का तेल। |
(10) मुहावरे अतिशय पूर्ण नहीं होते। | (10) लोकोक्तियाँ अतिशयोक्तियाँ बन जाती हैं। |
महत्वपूर्ण लोकोक्तियां
अन्धों में काना राजा -> मूर्खो में कुछ पढ़ा-लिखा व्यक्ति
अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता -> अकेला आदमी बिना दूसरों के सहयोग के कोई बड़ा काम नहीं कर सकता।
अधजल गगरी छलकत जाय -> जिसके पास थोड़ा ज्ञान होता हैं, वह उसका प्रदर्शन या आडम्बर करता है।
अब पछताए होत क्या जब चिड़ियाँ चुग गई खेत -> समय निकल जाने के पश्चात् पछताना व्यर्थ होता है
अन्धा बाँटे रेवड़ी फिर-फिर अपनों को दे -> अधिकार पाने पर स्वार्थी मनुष्य केवल अपनों को ही लाभ पहुँचाते हैं।
अन्धा क्या चाहे दो आँखें -> मनचाही बात हो जाना
अंधों के आगे रोना, अपना दीदा खोना -> मूर्खों को सदुपदेश देना या अच्छी बात बताना व्यर्थ है।
अंधी पीसे, कुत्ते खायें -> मूर्खों की कमाई व्यर्थ में नष्ट हो जाती है।
अंधेर नगरी चौपट राजा, टका सेर भाजी टका सेर खाजा -> जहाँ मालिक मूर्ख हो वहाँ सद्गुणों का आदर नहीं होता।
अक्ल के अंधे, गाँठ के पूरे -> बुद्धिहीन, किन्तु धनवान
अक्ल बड़ी या भैंस -> बुद्धि शारीरिक शक्ति से अधिक श्रेष्ठ होती है।
अति सर्वत्र वर्जयेत् -> किसी भी काम में हमें मर्यादा का उल्लंघन नहीं करना चाहिए।
अपनी-अपनी डफली, अपना-अपना राग -> कोई काम नियम-कायदे से न करना
अपनी गली में कुत्ता भी शेर होता है -> अपने घर या गली-मोहल्ले में बहादुरी दिखाना
अपनी पगड़ी अपने हाथ -> अपनी इज्जत अपने हाथ होती है।
अपने मुँह मियाँ मिट्ठू -> अपनी बड़ाई या प्रशंसा स्वयं करने वाला
अमानत में खयानत -> किसी के पास अमानत के रूप में रखी कोई वस्तु खर्च कर देना
अस्सी की आमद, चौरासी खर्च -> आमदनी से अधिक खर्च
अपनी करनी पार उतरनी -> मनुष्य को अपने कर्म के अनुसार ही फल मिलता हैकरनी पार उतरनी वाली बात ही जीवन में सत्य होती है।
अशर्फियाँ लुटें, कोयलों पर मुहर -> एक तरफ फिजूलखर्ची, दूसरी ओर एक-एक पैसे पर रोक लगानातो अशर्फियाँ लुटें, दूसरी ओर कोयलों पर मुहर।
अपना ढेंढर न देखे और दूसरे की फूली निहारे -> अपना दोष न देखकर दूसरों का दोष देखना