मानव अंग

जीवविज्ञान (biology) की दृष्टि से एक विशेष कार्य करने वाले उत्तकों के समूह को अंग (organ) कहा जाता हैं। मानव शरीर में विभिन्न प्रकार के अंग पाए जाते है। कुछ निम्न प्रकार है –

  1. आँख (eye)
  2. यकृत (liver)
  3. आंतें (intestines)
  4. वृक्क या गुर्दे (kidneys)
  5. हृदय (heart )
  6. फेफडे/फुफ्फुस (lungs)
  7. मस्तिष्क (brain)

1. नेत्र (eye)-

नेत्र/आँख जीवधारियों का वह अंग है जो प्रकाश के प्रति संवेदनशील होता है। यह प्रकाश को संसूचित करके उसे तंत्रिका कोशिकाओ द्वारा विद्युत-रासायनिक संवेदों में परिवर्तित कर देता है। उच्चस्तरीय जंतुओं की आँखें एक जटिल प्रकाशीय तंत्र (तन्त्र) की तरह होती हैं जो आसपास के वातावरण से प्रकाश एकत्रित करता है।

मध्यपट के द्वारा आँख में प्रवेश करने वाले प्रकाश की तीव्रता का नियंत्रण (नियन्त्रण) करता है तथा इस प्रकाश को लेंसों की सहायता से सही स्थान पर केंद्रित (केन्द्रित) करता है (जिससे प्रतिबिंब (प्रतिबिम्ब) बनता है) , इस प्रतिबिंब (प्रतिबिम्ब) को विद्युत संकेतों में बदलता है। इन संकेतों को तंत्रिका (तन्त्रिका) कोशिकाओ के माध्यम से मस्तिष्क को भेजता है। आँखो का रंग और वर्णन आँखें काली, नीली, भूरी, हरी और लाल रंग की भी हो सकती है।

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2. यकृत (liver)-

यकृत शरीर का एक हिस्सा है, जो केवल कशेरुकी प्राणियों में होता है। इसका कार्य विभिन्न चयापचयों को detoxify करना, प्रोटीन को संश्लेषित करना, और पाचन के लिए महत्वपूर्ण जैव रासायनिक बनाना है। मनुष्यों में, यह पेट के दाहिने-ऊपरी हिस्से में डायाफ्राम के नीचे पाया जाता है, और मानव शरीर की शरीर की सबसे बड़ी ग्रंथि है, जो पित्त (Bile) का निर्माण करती है। पित्त, यकृती वाहिनी उपतंत्र (Hepatic duct system) तथा पित्तवाहिनी (Bile duct) द्वारा ग्रहणी (Duodenum), तथा पित्ताशय (Gall bladder) में चला जाता है।

पाचन क्षेत्र में अवशोषित आंत्ररस के उपापचय (metabolism) का यह प्रमुख स्थान है। इसके निचले भाग में नाशपाती के आकार की थैली होती है जिसे पित्ताशय कहते है। यकृत द्वारा स्त्रावित पित्त रस पित्ताशय में ही संचित होता है। चयापचय में इसकी अन्य भूमिकाओं में ग्लाइकोजन भंडारण का विनियमन, लाल रक्त कोशिकाओं का अपघटन और हार्मोन का उत्पादन सम्मिलित है।

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3. आंते (intestines)-

मानव शरीर रचना विज्ञान में, आंत (अंतड़ी) आहार नली का ही एक हिस्सा होती है जो पेट से गुदा तक फैली होती है, तथा मनुष्य और अन्य स्तनधारियों में, यह दो भागों में, छोटी आंत और बड़ी आंत के रूप में पायी जाती है। मनुष्यों में, छोटी आंत को आगे फिर पाचनांत्र, मध्यांत्र और क्षुद्रांत्र में बांटा गया है, जबकि बड़ी आंत को अंधात्र और बृहदान्त्र में विभाजित किया गया है।

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4. गुर्दे (kidney) –

वृक्क या गुर्दे का जोड़ा एक मानव अंग हैं, जिनका मुख्य कार्य मूत्र उत्पादन (रक्त शोधन कर) करना है। गुर्दे बहुत से वर्टिब्रेट पशुओं में मिलते हैं। ये मूत्र-प्रणाली के अंग हैं। इनके द्वारा इलेक्त्रोलाइट, क्षार-अम्ल संतुलन और रक्तचाप का नियामन होता है। इनका मल स्वरुप मूत्र कहलाता है। इसमें मुख्यतः यूरिया और अमोनिया होते हैं।

ये शरीर में रक्त के प्राकृतिक शोधक के रूप में कार्य करते हैं और अपशिष्ट को हटा देते हैं, जिसे मूत्राशय की ओर भेज दिया जाता है। मूत्र का उत्पादन करते समय, गुर्दे यूरिया और अमोनियम जैसे अपशिष्ट पदार्थ उत्सर्जित करते हैं गुर्दे जल, ग्लूकोज़ और अमिनो अम्लों के पुनरवशोषण के लिये भी उत्तरदायी होते हैं। गुर्दे हार्मोन भी पैदा करते हैं, जिनमें कैल्सिट्रिओल (calcitriol), रेनिन (renin) और एरिथ्रोपिटिन (erythropoietin) शामिल हैं।

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5. हृदय (heart)-

मानव शरीर में हृदय एक ऐसा हिस्सा है, जो परिसंचरण तन्त्र के माध्यम से सम्पूर्ण मानव शरीर में रक्त को पंप करने, ऊतकों को ऑक्सीजन और पोषक तत्वों की आपूर्ति करने और कार्बन डाइऑक्साइड तथा अन्य अपशिष्ट को शरीर से बाहर निकालने का काम करता है। हृदय की धड़कनों के आधार पर व्यक्ति के स्वास्थ्य का अंदाज़ा लगाया जाता है। 

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6. मस्तिष्क (brain)-

मस्तिष्क अधिकांश जीव जंतुओं के शरीर का आवश्यक हिस्सा होता हैं। प्राणी जगत् में मनुष्य का मस्तिष्क सबसे अधिक विकसित होता है। वयस्क मनुष्य में इसका भार लगभग 1350 से 1400 ग्राम होता है। यह खोपड़ी की कपालगुहा में सुरक्षित रहता है। कपाल गुहा का आयतन 1200 से 1500 घन सेंटीमीटर होता है। मस्तिष्क के चारों ओर दो झिल्लियाँ पाई जाती हैं। बाहरी झिल्ली को दृढ़तानिका और भीतरी झिल्ली को मृदुतानिका कहा जाता हैं। दोनों झिल्लियों के मध्य प्रमस्तिष्क मेरुद्रव्य भरा रहता है। यह मस्तिष्क की चोट, झटकों आदि से रक्षा करता है। मस्तिष्क का निर्माण तन्त्रिका कोशिकाओं तथा न्यूरोग्लियल कोशिकाओं के द्वारा होता है।

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7. फेंफड़े (lungs)-

प्रत्येक प्राणी, जो वायु में श्वांस लेते हैं, उनके शरीर का सबसे महत्त्वपूर्ण हिस्सा है, ‘फेफड़ा’ या ‘फुप्फुस‘। फेफड़े को वैज्ञानिक या चिकित्सीय भाषा में फुफ्फुस कहा जाता है। यह प्राणियों में एक जोडे़ के रूप मे मौजूद होता है। फेफड़े की दीवार असंख्य गुहिकाओं की मौजूदगी के कारण स्पंजी होती है। फेफड़े में ही रक्त का शुद्धीकरण होता है। रक्त में प्राय: जीवनदायिनी ऑक्सीजन का मिश्रण होता है।

फेफड़ों का मुख्य कार्य वातावरण से ऑक्सीजन लेकर उसे रक्त परिसंचरण मे प्रवाहित करना और रक्त से कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित कर उसे वातावरण में छोड़ना है। गैसों का यह विनिमय असंख्य छोटी-छोटी पतली-दीवारों वाली वायु पुटिकाओं, जिन्हें ‘अल्वियोली‘ कहा जाता है, में होता है। यह शुद्ध रक्त पल्मोनरी धमनी द्वारा हृदय में पहुँचता है, जहाँ से यह फिर से शरीर के विभिन्न अवयवों मे पहुँचाया किया जाता है।

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