यह चिकित्साविज्ञान का मूलभूत संकल्पना है। प्रायः शरीर के पूर्णरूपेण कार्य करने में में किसी प्रकार का अभाव होना ‘रोग‘ कहलाता है। जिस व्यक्ति को रोग होता है उसे ‘रोगी‘ कहते हैं। हिन्दी में ‘रोग‘ को ‘बीमारी‘ , ‘रुग्णता‘, ‘व्याधि‘ भी कहते हैं।
अनुवांशिक विकार, हार्मोन का असंतुलन, शरीर की रोग प्रतिरक्षा प्रणाली का सही तरीके से काम नहीं करना, कुछ ऐसे कारक हैं जो मनुष्य के स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं। आंतरिक स्रोतों द्वारा होने वाले रोग को जैविक या उपापचयी रोग कहा जाता हैं, जैसे– हृदयाघात, गुर्दे का खराब होना, मधुमेह, एलर्जी, कैंसर आदि और बाहरी कारकों द्वारा होने वाले रोगों में क्वाशियोरकोर, मोटापा, रतौंधी, सकर्वी आदि प्रमुख हैं। कुछ रोग असंतुलित आहार के कारण से सूक्ष्म–जीवों जैसे – विषाणु, जीवाणु, कवक, प्रोटोजोआ, कृमि, कीड़ों आदि द्वारा होते हैं। पर्यावरण प्रदूषक, तंबाकू, शराब और नशीली दवाएं कुछ ऐसे अन्य महत्वपूर्ण बाहरी कारक हैं जो मानव स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं।
प्रमुख मानव रोग निम्नलिखित है –
- आनुवंशिक रोग
- जीवाणु जनित रोग
- विषाणु जनित रोग
आनुवंशिक रोग –
आनुवंशिकी और रोग में कोई न कोई संबंध रहता है। अनेक रोग दूषित वातावरण तथा परिस्थतियों से उत्पन्न होते हैं, किन्तु अनेक रोग ऐसे भी होते हैं जिनका कारण माता-पिता से जन्मना प्राप्त कोई दोष होता है। ये रोग आनुवंशिक रोग (जेनेटिक डिसऑर्डर) कहलाते हैं। कुछ ऐसे रोग भी हैं जो आनुवंशिकी तथा वातावरण दोनों के प्रभावों के फलस्वरूप उत्पन्न होते हैं।
जीवों में नर के शुक्राणु तथा स्त्री की अंडकोशिका के संयोग से संतान की उत्पत्ति होती है। शुक्राणु तथा अंडकोशिका दोनों में केंद्रकसूत्र रहते हैं। इन केंद्रकसूत्रों में स्थित जीन के स्वभावानुसार संतान के मानसिक तथा शारीरिक गुण और दोष निश्चित होते हैं। जीन में से एक या कुछ के दोषोत्पादक होने के कारण संतान में वे ही दोष उत्पन्न हो जाते हैं। कुछ दोषों में से कोई रोग उत्पन्न नहीं होता, केवल संतान का शारीरिक संगठन ऐसा होता है कि उसमें विशेष प्रकार के रोग जल्दी पैदा होते हैं। इसलिए यह निश्चित जानना कि रोग का कारण आनुवंशिकता है या प्रतिकूल वातावरण, सर्वदा साध्य नहीं है। आनुवंशिक रोगों की सही गणना में अन्य कठिनाइयाँ भी हैं। उदाहरण के लिए बहुत से जन्मजात रोग अधिक आयु हो जाने पर ही प्रकट होते हैं। दूसरी ओर, कुछ आनुवंशिक दोषयुक्त बच्चे जन्म लेते ही मर जाते हैं।
जीवाणु जनित रोग –
वे रोग जो जीवाणुओं के कारण उत्पन्न होते हैं जीवाणु जनित रोग कहलाते हैं। जीवाणु जनित रोग निम्नलिखित हैं :-
- आंत्र ज्वर (Typhoid)
- तपेदिक या राजयक्ष्मा (Tuberculosis)
- प्लेग (Plague)
- हैजा (Cholera)
- डिप्थीरिया (Diptheria)
- टिटनेस (Tetanus)
- कोढ़/कुष्ठ (Leprosy)
- निमोनिया (Pneumonia)
- काली खाँसी (Whooping Cough)
- सिफलिस (Syphilis)
- गोनोरिया (Gonorrhoea)
विषाणु जनित रोग
मानव शरीर में विषाणु या वायरस के कारण होने वाले रोगों को विषाणु जनित रोग (Viral Diseases or Viral Infection) कहते हैं। विषाणु जनित रोग इस प्रकार है –
- जुकाम (Common Cold)
- एड्स (AIDS)
- चेचक (Small Pox)
- पोलियो (Poliomyelitis)
- डेंगू ज्वर ( Dengue Fever or Break Bone Fever)
- पीलिया या हेपेटाइटीस (Jaundice)
- रेबीज (Hydrophobia)
- मेनिनजाइटिस (Meningitis)
- ट्रेकोमा (Trachoma)
- छोटी माता (Chiken Pox)
- खसरा (Measles)
- गलसुआ (Mumps)