अलप्तगीन (961-963 ई.)

  • जन्म – 901 ई.
  • शासनकाल – 961 ईसवी से 963 ईसवी
  • मृत्यु – 963 ई.  

तुर्क जाति का यह राजा पहले बुख़ारा और ख़ुरासान के सामानी साम्राज्य का एक सिपहसालार हुआ करता था जिसने उनसे अलग होकर ग़ज़नी की स्थानीय लवीक नामक शासक को हटाकर स्वयं सत्ता ले ली।

इस से उसने ग़ज़नवी साम्राज्य की स्थापना करी जो आगे चलकर उसके वंशजों द्वारा आमू दरिया से लेकर सिन्धु नदी क्षेत्र तक और दक्षिण में अरब सागर तक विस्तार हुआ।

अर्थ – तुर्की भाषाओं में ‘अल्प तिगिन‘ का मतलब ‘बहादुर राजकुमार‘ होता है

सिपाही से राजा बनना –

शुरू में अल्प तिगिन उत्तरी अफ़ग़ानिस्तान के बल्ख़ क्षेत्र में एक किराए का सिपाही था जो अपनी क्षमता की वजह से ख़ुरासान के राज्यपाल का सेनापति बन गया। जब 961 ईसवी में सामानी अमीर अब्द अल-मलिक का देहांत हुआ तो उसके भाईयों में गद्दी लेने के लिए झड़पें भड़क गई। उस समय सामानी साम्राज्य में तुर्क नसल के गुलामों को सैनिक-पहरेदारों के रूप में रखा जाता था। दो तुर्क गुलाम परिवार – सिमजूरी और ग़ज़नवी – सामानी सेना में विशिष्ट थे।

अल्प तिगिन ने अमीर की मृत्यु पर एक भाई का साथ दिया जबकि अबू अल-हसम सिमजूरी ने दूसरे का। दोनों अपने मनपसंद व्यक्ति को अमीर बनवाना चाहते थे ताकि वह उसपर नियंत्रण रखकर उसके ज़रिये राज कर सकें। हालांकि अबू अल-हसन का देहांत हो गया लेकिन दरबार के मंत्रियों ने मंसूर प्रथम को नया अमीर चुना, जो अल्प तिगिन की इच्छा के विरुद्ध था।

अल्प तिगिन ख़ुरासान छोड़कर हिन्दू कुश पर्वतों को पार करके ग़ज़नी आ गया, जो उस ज़माने में ग़ज़ना के नाम से जाना जाता था। वहाँ लवीक नामक एक राजा था, जो सम्भव है कुषाण वंश से सम्बन्ध रखता हो। अल्प तिगिन ने अपने नेतृत्व में आये तुर्की सैनिकों के साथ उसे सत्ता-विहीन कर दिया और ग़ज़ना पर अपना राज स्थापित किया। ग़ज़ना से आगे उसने ज़ाबुल क्षेत्र पर भी क़ब्ज़ा कर लिया।

शासनकाल का अंत

963 ईसवी में अल्प तिगिन ने राजगद्दी अपने बेटे, इशाक, को दे दी लेकिन वह 965 में मर गया।

फिर अल्प तेगिन का एक दास बिलगे तिगिन 966-975 में राजसिंहासन पर बैठा। उसके बाद 975-977 काल में बोरी तिगिन और फिर 977 में अल्प तिगिन का दामाद सुबुक तिगिन  गद्दी पर बैठा, जिसने ग़ज़नवी साम्राज्य पर 997 तक राज किया।

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