बौद्ध धर्म की स्थापना भगवान बुद्ध के द्वारा की गयी। इस धर्म के मुख्यत: दो संप्रदाय है हिनयान और महायान। वैशाख माह की पूर्णिमा का दिन बौद्धों का मुख्य त्योहार होता है। बौद्ध धर्म के चार तीर्थ स्थल हैं- लुंबिनी, बोधगया, सारनाथ और कुशीनगर। बौद्ध धर्म के धर्मग्रंथ को त्रिपिटक कहा जाता है।
गौतम बुद्ध
- जन्म – 563 ईसा पूर्व।
- मृत्यु – 483 ईसा पूर्व।
गौतम बुद्ध एक श्रमण थे जिनकी शिक्षाओं पर बौद्ध धर्म का प्रचलन हुआ। गौतम बुद्ध का जन्म लुम्बिनी में इक्ष्वाकु वंशीय क्षत्रिय शाक्य कुल के राजा शुद्धोधन के घर में हुआ था। उनकी माँ का नाम महामाया था जो कोलीय वंश से थीं, जिनका इनके जन्म के सात दिन बाद निधन हुआ, उनका पालन महारानी की छोटी सगी बहन महाप्रजापति गौतमी ने किया।
29 वर्ष की आयुु में सिद्धार्थ विवाह के बाद एकलौते प्रथम नवजात शिशु राहुल और धर्मपत्नी यशोधरा को त्यागकर संसार को जरा, मरण, दुखों से मुक्ति दिलाने के मार्ग एवं सत्य दिव्य ज्ञान की खोज में रात्रि में राजपाठ का मोह त्यागकर वन की ओर चले गए। वर्षों की कठोर साधना के पश्चातबोध गया (बिहार) में बोधि वृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई और वे सिद्धार्थ गौतम से भगवान बुद्ध बन गए।
बौद्ध धर्म
- स्थापना – बौद्ध धर्म के संस्थापक एवं प्रवर्तक सिद्धार्थ (गौतम बुद्ध) थे।
- गौतम बुद्ध का जीवन परिचय-
- जन्म: 563 ई.पू. लुम्बिनी वन (कपिलवस्तु)
- पिता: शुद्धोधन (शाक्य क्षत्रिय कुल, कपिल वस्तु के शासक)
- माता: महामाया (कोलिय वंश)
- पालन पोषण: सिद्धार्थ के जन्म के 1 सप्ताह के अंदर ही उनकी माता महामाया की मौत हो गयी थी। इस कारण सिद्धार्थ का पालन पोषण सौतेली माता महाप्रजापति गौतमी द्वारा किया गया।
- पत्नि: यशोधरा (अन्य नाम – बिम्बा, गोपा)
- पुत्र: राहुल
- बुद्ध के जन्म के समय भविष्यवाणी – कालदेव एवं कौण्डिल्य नामक ब्राह्मण ने बुद्ध के समय भविष्यवाणी की और कहा कि यह बालक चक्रवर्ती राजा अथवा सन्यासी होगा।
- चार दृश्य जिनसे सिद्धार्थ विचलित हुए एवं सन्यास की ओर बढ़े –
- -बूढ़ा व्यक्ति
- -बीमार व्यक्ति
- -मृत व्यक्ति की अर्थी
- -एक सन्यासी
- महाभिनिष्क्रमण – उपरोक्त चार दृश्यों को देखकर सिद्धार्थ ने 29 वर्ष की अवस्था में घर त्याग दिया यह बौद्ध ग्रंथों में महाभिनिष्क्रमण कहलाया।
नोट – गृह त्याग की घटना का उल्लेख पालिग्रंथ महापरिणढ़वाण सुत्त में मिलता है।
- गृह त्याग के समय सिद्धार्थ कंथक नामक घोड़ा एवं चान/छन्दक नामक सारथी के साथ गए थे।
- सिद्धार्थ ने अनोमा नदी पर घोड़ा एवं सारथी को छोड़ा था।
- सिद्धार्थ से बुद्ध बनने की यात्रा (ज्ञान प्राप्ति यात्रा)
- ज्ञान की खोज में सिद्धार्थ सर्वप्रथम वैशाली पहुंचे यहां वे अलाकरकलाम के आश्रम में गए। अलारकलाम से सिद्धार्थ ने तप की क्रिया, उपनिषदों की ब्रह्म विद्या की शिक्षा प्राप्त की।
- वैशाली से राजगीर के पास रूद्रकराम पुत्र के आश्रम पहुंचे यहां पर उन्होंने योग का ज्ञान प्राप्त किया।
- राजगीर से उरूवेला गए एवं मोहना तथा निरंजना नदी संगम पर 6 वर्ष तक तपस्या की परन्तु ज्ञान प्राप्ति नहीं हुई बाद में उन्होंने सुजाता नामक स्त्री से खीर खाकर अपना व्रत तोड़ा।
- 35 वर्ष की आयु में निरंजना नदी के किनारे वैशाख पूर्णिमा की रात्री में पीपल वृक्ष के नीचे (वट वृक्ष) सत्य एवं ज्ञान की प्राप्ति हुई। इस घटना को सम्बोधि कहा जाता है। यह ज्ञान उन्हें समाधि के 49 वें दिन प्राप्त हुआ।
- ज्ञान प्राप्ति के बाद उरूवेला का यह क्षेत्र बोधगया एवं सिद्धार्थ बुद्ध कहलाये।
- धर्मचक्रप्रवर्तन: गौतम बुद्ध के ज्ञान प्राप्ति के बाद प्रथम उपदेश एवं दीक्षा दिए जाने की घटना धर्मचक्रप्रवर्तन कहलाती है।
अनोम नदी | वैशाली | राजगीर | उरूवेला |
घर त्यागने के बाद घोड़े एवं सारथी को छोड़ा | अलारकलाम से तप क्रिया एवं उपनिषद के ज्ञान की प्राप्ति | रूद्रकराम पुत्र से योग ज्ञान की प्राप्ति | निरंजना नदी तट पर वैशाख पूर्णिमा की रात सत्य एवं ज्ञान का आलोक प्राप्त |
नोट – गौतम बुद्ध ने अपना पहला उपदेश एवं दीक्षा ऋषि पत्तन (सारनाथ) में दिए। इसका उल्लेख संयुक्त निकाय में मिलता है। प्रथम उपदेश में ही गौतम बुद्ध ने चार आर्य सत्यों को बताया।
चार आर्य सत्य
- दुख: दुख है।
- दुःख समुदाय: दुख का कारण है।
- दुःख निरोध: दुःख का निदान है।
- दुःख निरोध गामिनी प्रतिपदा: दुःख निदान के उपाय हैं।
- अष्टांगिक मार्ग: इसका संबंध चौथे आर्य सत्य से है।
- प्रथम आर्य सत्य – दुःख प्रथम आर्य सत्य के अनुसार संसार में सभी वस्तुएं दुखमय हैं। प्रथम आर्य सत्य में जन्म एवं मरण के चक्र को दुख का मूल कारण बताया गया है।
- दुसरा आर्य सत्य – दुःख समुदाय दुसरे आर्य सत्य में दुःख उत्पन्न करने का मूल कारण तृष्णा को बताया गया है।
- तीसरा आर्य सत्य – दुःख निरोध तीसरे आर्य सत्य में दुःख निवारण या निरोध के लिए तृष्णा का उन्मूलन आवश्यक बताया है।
- चौथा आर्य सत्य – दुःख निरोध गामिनी प्रतिपदा चौथे आर्य सत्य में गौतम बुद्ध ने दुख के उन्मूलन का मार्ग बताया है यही अष्टांगिक मार्ग कहलाते हैं।
अष्टांगिक मार्ग
- सम्यक् दृष्टि – वस्तुओं के वास्तविक स्वरूप का ध्यान रखना
- सम्यक् संकल्प – आसक्ति, द्वेष, हिंसा से मुक्त विचार
- सम्यक् वाक् – अप्रिय वचनों का परित्याग
- सम्यक् कर्मोत – दान, दया, सत्य, अहिंसा, सत्कर्मो का अनुसरण
- सम्यक् आजीव – सदाचार के नियमों के अनुकूल जीवन गुजारना
- सत्यक् व्यायाम – विवेकपूर्ण प्रयत्न करना
- सम्यक् स्मृति – मिथ्या धारणाओं का परित्याग कर सच्ची धारणा रखना
- सम्यक् समाधि – मन अथवा चित्र की एकाग्रता
तथ्य
धर्म चक्र दिवस सारनाथ में गौतम बुद्ध द्वारा अपने पांच तपस्वी शिष्यों (पांच भिक्षुओं) को पहला उपदेश देने की स्मृति में मनाया जाता है।
बोद्ध संघ की स्थापना
- गौतम बुद्ध ने सारनाथ में बौद्ध संघ की स्थापना की
- बोद्ध संघ का संगठन गणतांत्रिक प्रणाली पर आधारित था।
- संघ में प्रवेश पाने के लिए कम से कम 15 वर्ष की आयु का होना आवश्यक था। माता पिता की आज्ञा आवश्यक थी।
- अस्वस्थ, शारीरिक विकलांगता, ऋणी, सैनिक एवं दासों का प्रवेश संघ में वर्जित था।
- किसी प्रस्ताव में मतभेद होने पर मतदान करवाया जाता था। मतदान गुप्त एवं प्रत्यक्ष दोनों रूप में होता था। गणपूर्ति – 20 सदस्य
- संघ के सदस्य/अनुयायी 2 वर्गो में बंटे थे –
- भिक्षु/भिक्षुणी: ये संन्यासी जीवन जीने वाले लोग थे
- उपासक/उपासिकाएं: ये गृहस्थ जीवन में रहकर बौद्ध धर्म अनुसरण करने वाले लोग थे
- बौद्ध संघ की सदस्यता सभी जातियों के लिए सुलभ थी।
- चोर एवं हत्यारों का प्रवेश वर्जित था।
- प्रारंभ में स्त्रियों को संघ में शामिल होने का अधिकार नहीं था परन्तु जब गौतम बुद्ध कपिलवस्तु पहंुचे तो उनकी सौतेली माता गौतमी ने प्रवज्या ग्रहण करने की इच्छा प्रकट की परन्तु गौतम बुद्ध ने मना कर दिया। जब गौतम बुद्ध कपिलवस्तु से वैशाली पहुंचे तो गौतमी भी उनके साथ वैशाली गयी। अन्त में आनन्द के प्रबल आग्रह पर गौतम बुद्ध ने प्रवज्या ग्रहण करने की अनुमति प्रदान की।
- इस प्रकार सर्वप्रथम भिक्षुणी संघ की स्थापना वैशाली (कहीं-कहीं पर कपिलवस्तु मिलता है) में हुई।
- संघ में प्रवेश के समय त्रिरत्न (बुद्ध, संघ और धम्म) में विश्वास करने की शपथ लेनी होती थी। तथा 10 प्रतिज्ञाओं को दोहराना पड़ता था। 20 वर्ष की आयु पूरी करने के बाद पूर्ण सदस्यता दी जाती थी।
- गौतम बुद्ध ने अपना उत्तराधिकारी मनोनीत नहीं किया था उन्होंने घोषणा की थी कि धर्म और संघ के निर्धारित नियम ही उनके उत्तराधिकारी है।
बौद्ध भिक्षुओं के लिए आवश्यक 10 शील (सिद्धांत)
- दुसरे के धन की इच्छा न करना
- झूठ नहीं बोलना
- हिंसा से दूर रहना
- मादक द्रव्यों का सेवन न करना
- व्यभिचार नहीं करना
- संगीत एवं नृत्यों में भाग नहीं लेना
- सुगंधित द्रव्यों का उपयोग नहीं करना
- असमय भोजन नहीं करना
- सुखप्रद बिस्तर पर नहीं सोना
- किसी प्रकार के द्रव्य का संचय न करना
प्रथम पांच सिद्धांतों का पालन करना उपासकों (गृहस्थों) के लिए भी अनिवार्य था। संन्यासियों/भिक्षु/भिक्षुणियों के लिए ये सभी सिद्धांत अनिवार्य थे।
संघ के अधिकारी
- नवकम्मिक – निर्माण से संबंधित अधिकारी
- भण्डागारिक – खान पान से संबंधित अधिकारी
- कप्पिकारक – क्रय करने वाला अधिकारी
- चीवर – वस्त्रागार का अधिकारी
- आरमिक – आराम से संबंधित अधिकारी
चैत्य एवं विहार में अंतर
चैत्य – ये एक प्रकार की समाधि स्थल थे इन समाधि स्थलों में महापुरूषों को शवदाह के बाद उनके धातु अवशेषों को सुरक्षित रखने के लिए इन समाधियों में भूमि के अन्दर गाढ़ दिया जाता था एवं ऊपर एक भवन का निर्माण किया जाता था। ये उपासना के केन्द्र थे।
विहार – चैत्यों के पास ही बौद्ध धर्म के भिक्षुओं को रहने के लिए आवास स्थानों का निर्माण कर दिया जाता था। ये आवास स्थान ही विहार कहलाते थे। ये आवास के केन्द्र थे।
पवरना समारोह – वर्षा ऋतु के समय बौद्ध धर्म के प्रचार का कार्य नहीं किया जाता था। इस समय बौद्ध भिक्षु विहारों में ही रहते थे। वर्षा ऋतु की समाप्ति के बाद पवरन समारोह का आयोजन किया जाता था जिसमें सभी बौद्ध भिक्षु इन चार माह में किए गए अपराधों को स्वीकार करते थे।
उपोसत्थ समारोह – इस समारोह का आयोजन किसी विशेष अवसर पर सभी भिक्षुओं द्वारा धर्म पर चर्चा करने के लिए किया जाता था।
बौद्ध संघ से जुड़े शब्द
- नति/नेति/वृत्ति – बौद्ध संघ में लाया जाने वाला प्रस्ताव
- प्रज्ञापक – सभा में बैठने की व्यवस्था करने वाला अधिकारी
- उपसम्पदा – संघ की पूर्ण सदस्यता
- समनेर/श्रमणेर – प्रवज्या ग्रहण करने वाला व्यक्ति
- गौतम बुद्ध का धर्मोपदेश स्थानानुसर भ्रमण
- बुद्ध 45 वर्षो तक धर्मोपदेश देते रहे उन्होंने अपने भ्रमण काल के दौरान पूर्व में चम्पा, पश्चिम में कुरूक्षेत्र, उत्तर में कपिलवस्तु दक्षिण में कौशाम्बी तक की यात्रा की।
- बुद्ध उज्जैन नहीं गए थे उन्होंने अपने शिष्य महाकच्चायन को उज्जैन भेजा।
बौद्ध धर्म की मान्यताएं/दर्शन
- बौद्ध दर्शन क्षणिकवादी है। बौद्ध दर्शन अन्तःशुद्धिवादी है।
- बौद्ध दर्शन कर्मवादी है। कर्म का आशय कायिक, वाचिक व मानसिक चेष्टाओं से है।
- बौद्ध दर्शन अनीश्वरवादी है। बौद्ध धर्म पुनर्जन्म में विश्वास रखता है।
- बौद्ध धर्म अनात्मवादी है। (बौद्ध धर्म की शाखा सामित्य ने आत्मा को माना है।)
- बौद्ध धर्म का मूलाधार चार आर्य सत्य हैं।
- बौद्ध धर्म के त्रिरत्न: बुद्ध, संघ एवं धम्म।
बुद्ध के जीवन की चार महत्वपूर्ण घटनाए
- गृह त्याग – महाभिनिष्क्रमण
- सम्बोधि – ज्ञान प्राप्ति/निर्वाण
- प्रथम उपदेश – धर्म चक्र प्रवर्तन
- देहावसन – महापरिनिर्वाण
बुद्ध के जीवन की घटनाओं के प्रतीक
- जन्म – कमल (गर्भ -हाथी )
- यौवन -सांड
- गृह त्याग -घोड़ा
- ज्ञान प्राप्ति – बोधि वृक्ष
- समृद्धि – शेर
- प्रथम उपदेश – चक्र
- निर्वाण – पद्चिन्
- मृत्यु – स्तूप
- कुल 4 पशु महात्मा बुद्ध के जीवन की घटनाओं से जुड़े हैं।
प्रमुख बौद्ध संगीतियां
संगीति | समय | स्थल | अध्यक्ष | संरक्षक | निवरण/कार्य |
प्रथम | 483 ई.पू. | राजगीर | महाकश्यप | अजातशत्रु | सुत पिटक एवं विनय पिटक रचना |
द्वितीय | 383 ई.पू. | वैशाली सब्ब | कमीर/स्थवीरयश | कालाशोक | संघ महासंघिक व स्थवीरयश/वादी में बंट गया |
तृतीय | 250 ई.पू | पाटलिपुत्र | मोगलिपुत्र तिस्स | अशोक | अभिधम्मपिटक का संकलन |
चतुर्थ | 98 ई.पू | कुण्डलवन | वसुमित्र | कनिष्क | हीनयान व महायान में विभाजन |
बुद्ध के शिष्य
- तपस्सु व मल्लिक (बुद्ध के प्रथम दो अनुयायी)
- पंचवर्गीय ब्राह्मण
- सारिपुत्र
- मौदगल्लायन
- राहुल (पुत्र)
- नंद (सौतेला भाई)
- उपालि
- आनन्द (स्त्रियों को संघ में सदस्यता दिलाने में योगदान)
- जीवक (बिम्बिसार के जीवक को अवन्ति (उज्जैन) नरेश प्रधोत की चिकित्सा हेतु भेजा था)
- बिम्बिसार (मगध का शासक)
- अजातशत्रु (यह प्रारंभ में आजीवक फिर महावीर स्वामी के संपर्क में रहा एवं अंत में गौतम बुद्ध से दीक्षा)
- प्रसेनजित
- महाकश्शप (प्रथम बौद्ध संगीति का अध्यक्ष)
बुद्ध की प्रमुख शिष्यांए
- महाप्रजापति गौतमी (सौतेली माता एवं प्रथम शिष्या)
- यशोधरा (पत्नि)
- नंदा (सौतेली बहिन)
- आग्रपाली
- विशाखा
- क्षेमा (बिम्बिसार की पत्नि)
प्रमुख बोधिसत्व
- अवलोकितेश्वर
- मन्जू श्री
- वज्रपाणि
- क्षितिगर्भ
- मैत्रेय (भावी बोधिसत्व, अभी जन्म लेना बाकी है।)
बौद्ध धर्म के संरक्षक राजा
- बिम्बिसार/अजात शत्रु (मगध नरेश)
- प्रसेन जित (कोशल नरेश)
- उदयन (वत्स नरेश)
- प्रधोत्त (अवन्ति नरेश)
- अशोक व दशरथ (मौर्य वंश)
- कनिष्क (कुजाण वंश)
- हर्षवर्धन (पुज्यभूति वंश)
- सहसी वंश
- पाल वंश
बौद्ध धर्म के अष्ठ महास्थान
- लुम्बिनी
- बोधगया
- सारनाथ
- कुशीनारा
- श्रावस्ती
- संकीसा
- राजगृह
- वैशाली
बौद्ध धर्म की लोकप्रियता के कारण
- धार्मिक वाद-विवाद से अलग रहा इस कारण जनसामान्य आकर्षित हुआ
- वर्ण व्यवस्था की निन्दा करने से निम्न वर्गो का समर्थन प्राप्त हुआ
- बौद्ध संघ सभी जातियों के लिए खुला था।
- ब्राह्मणवाद के विरोधी लोगों का बौद्ध धर्म की ओर रूचि।
- बुद्ध का व्यक्तित्व व उपदेश प्रणाली थी।
- उपदेश की भाषा पालि (जनसाधारण की भाषा थी) थी।
- संघ की स्थापना, महत्वपूर्ण शासकों का सहयोग इत्यादि।
बौद्ध धर्म व जैन धर्म में तुलना
समानताएं
- दोनों धर्म अनीश्वरवादी थे।
- दोनों धर्म वैदिक सिद्धांत नहीं मानते थे।
- दोनों धर्मो द्वारा यज्ञ विधान एवं कर्मकाण्डों का विरोध किया
- दोनों धर्मो द्वारा जाति प्रथा एवं लिंग भेद की निन्दा थी
- दोनों धर्मो द्वारा पुनर्जन्म में विश्वास था
असमानताएं
- जैन धर्म में अहिंसा पर अत्यधिक बल किन्तु बौद्ध धर्म जैन धर्म से कम अहिंसा पर बल देता है।
- जैन धर्म आत्मा को शाश्वत मानता है अर्थात जीव में आत्मा होती है किन्तु बौद्ध धर्म ईश्वर एवं आत्मा दोनों को ही नहीं मानता (जैन धर्म आत्मा वादी है तथा बौद्ध धर्म अनात्मवादी है।)
- जैन धर्म में कठोर तपस्या आत्महत्या (संलेखना) को मान्यता है बौद्ध धर्म में ऐसा नहीं है।
- जैन धर्म का विकास भारत के बाहर नहीं जबकि बौद्ध धर्म वैश्विक है।
- जैन धर्म वर्ण व्यवस्था की निन्दा नहीं करता जबकि बौद्ध धर्म वर्ण व्यवस्था की निन्दा करता है।
हीनयान
- गौतम बुद्ध को महापुरूष मानते थे।
- यह व्यक्तिवादी धर्म था।
- इनका मूर्तिपूजा में विश्वास नहीं था।
- इसकी साधना पद्धति कठोर थी एवं भिक्षु जीवन का हिमायती था
- इनका साहित्य पाली भाषा में था।
महायान
- गौतम बुद्ध को देवता मानते थे।
- परसेवा तथा परोपकार पर बल। ये सभी का कल्याण चाहते थे।
- इनका मानना था कि बोधिसल गुणों का हस्तानन्तरण हो सकता है।
- ये मूर्ति पूजा के पक्ष में थे। बुद्ध की भक्ति।
- सिद्धांत सरल व सुलभ थे, भिक्षुओं के साथ उपासकों का भी महत्व था।
- इनका साहित्य संस्कृत भाषा में था।
बौद्ध धर्म के अन्य सम्प्रदाय
वज्रयान सम्प्रदाय
- पूर्व मध्यकाल में बौद्ध धर्म के अन्दर तंत्र मंत्र का प्रभाव बढ़ रहा था। इसी के प्रभाव से वज्रयान सम्प्रदाय का उद्भव हुआ।
- वज्रयानी सम्प्रदाय के लोग “वज्र” का सम्बन्ध धर्म के साथ स्थापित करते थे एवं इसकी प्राप्ति के लिए पंचमकार (मध,मांस,मैथुन,मथ्स्य,मुद्रा) की साधना करते थे।
- यह जादुई शक्ति को प्राप्त करके मुक्त होने की संकल्पना थी।
- इसके केन्द्र: नालंदा, विक्रमशिला, सोमपुरी और जगदल्ला थे।
- तंत्रवाद को बौद्ध सम्प्रदाय में अपनाने वाला सर्वज्ञमित्र था।
- चक्रयान एवं सहजयान का संबंध वज्रयान सम्प्रदाय से था।
प्रमुख बौद्ध विद्धान
- अश्वघोष – कनिष्क के समकालीन थे, इन्होंने बुद्धचरितम ग्रंथ की रचना की थी।
- नागार्जुन – इन्होंने बौद्ध दर्शन के माध्यमिक विचार धारा का प्रतिपादन किया है जो शुन्यवाद के नाम से जानी जाती है।
- वसुबन्ध – बौद्ध धर्म का विश्वकोष कहे जाने वाले अभिधम्म कोश की रचना की।
- बुद्धघोष – इनके द्वारा लिखी गयी पुस्तक विशुद्धि मार्ग हीनयान सम्प्रदाय का प्रमुख ग्रंथ है।
बौद्ध साहित्य
त्रिपिटक – ये बौद्ध धर्म के प्राचीनतम ग्रंथ हैं-
- सुत्त पिटक
- विनय पिटक
- अभिधम्म पिटक
- सुत्त पिटक – इसमें बुद्ध के धार्मिक विचारों एवं उपदेशों का संग्रह है। यह गद्य एवं पद्य का मिश्रण है। यह पिटक 5 निकायों में विभाजित है।
- -दीघनिकाय: महात्मा बुद्ध के जीवन के आखिरी समय का वर्णन।
- -मज्झिम निकाय
- -संयुक्त निकाय
- -अंगुत्तर निकाय: 16 महाजनपदों का वर्णन मिलता है।
- -खुद्दक निकाय
- विनय पिटक – इसमें बौद्ध भिक्षुओं के अनुशासन सम्बन्धी नियम एवं संघ की कार्यप्रणाली की व्याख्या है।
- अभिधम्मा पिटक – इसमें महात्मा बुद्ध के उपदेशों एवं सिद्धान्तों की दार्शनिक व्याख्या की गयी है। इस पिटक का संकलन अशोक के समय तृतीय बौद्ध संगीति में किया गया था।
अन्य बौद्ध ग्रंथ
प्रज्ञापारमिता – महायान सम्प्रदाय की सबसे महत्वपूर्ण दार्शनिक पुस्तक है इसके लेखक नागार्जुन हैं।
जातक – इसमें भगवान बुद्ध के 8400 पूर्व जन्मों की 500 से अधिक गाथाएं हैं। यह खुद्दक निकाय (सुत्तपिटक) का 10वां ग्रंथ है।
थेरगाथा एवं थेरीगाथा में अंतर
थेरगााथा – यह बौद्ध भिक्षुओं द्वारा संकलित ग्रंथ है।
थेरीगाथा – यह बौद्ध भिक्षुणियों द्वारा संकलित ग्रंथ है।
बौद्ध धर्म के पतन के कारण
- बौद्ध धर्म में कर्मकाण्डों का प्रभाव बढ़ गया था।
- पालि भाषा त्यागकर संस्कृत अपनाना
- मुर्ति पूजा का प्रारंभ
- भक्तों से भारी मात्रा में दान प्राप्ति
- ब्राह्मण धर्म का पुनरूत्थान
- बौद्ध विहारों में कुरीतियां एवं भोग विलासिता
- कुछ शासकों द्वारा बौद्ध विरोधी दृष्टिकोण।