- पिता – बिन्दुसार।
- मां – सुभद्रांगी (दिव्यावदान ग्रंथ के अनुसार) ,अन्य नाम: धर्मा।
- पत्नी – देवी/महादेवी (विदिशा के व्यापारी की पुत्री) प्रथम पत्नि।
- इसी से महेन्द्र व संघमित्र का जन्म हुआ।
- अन्य पत्नियां-
- असंघमित्रा/असंघिमित्रा – अशोक की पटरानी
- कारूवाकी (तीवर की मां)
- तिस्सरक्खा (इसने बोधिवृक्ष को क्षति पहुंचाई थी)
- पद्मावती (कुणाल की मां)
नोट – बौद्ध ग्रंथों में अशोक के दो पुत्र महेन्द्र व कुणाल तथा दो पुत्रियों संघमित्रा एवं चारूमती का उल्लेख मिलता है।
अशोक का राज्यभिषेक
- बिन्दुसार ने मरते समय अपने पुत्र सुसीम को राजा बनाना चाहा परन्तु मंत्री राधागुप्त की सहायकता से अशोक शासक बना।
- बौद्ध ग्रन्थ दीपवंश एवं महावंश के अनुसार अशोक ने अपने 99 भाइयों की हत्या की।
- राज्यरोहण के पूर्व अशोक उज्जैन (अवन्ति) व तक्षशिला का प्रांतीय शासक था।
अशोक का विजय अभियान
- केवल चोल, पाण्ड्य, सत्तिय पुत्त, केरलपुत्त, ताम्रपर्णी (श्रीलंका) को छोड़कर अशोक का साम्राज्य सम्पूर्ण भारत वर्ष में था।
- अशोक का समकालीन सिंहल नरेश तिस्स था।
- अशोक के 5 यवन राजाओं के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध थे-
- एण्टियोकस (सीरया)
- तुरमय (मिश्र)
- एनीकिया (मेसीडोनिया)
- मकमास/मेगारस (साइरीन)
- अलिक सुन्दर/अलेक्जेण्डर एपाइरस (एर्पारीज)
- राज्याभिषेक के 8वें वर्ष अशोक ने कलिंग पर विजय प्राप्त की
- कलिंग आक्रमण के समय वहां का राजा नन्दराज था।
- अशोक ने कश्मीर में श्रीनगर तथ नेपाल में देवपतन नामक नगर बसाए थे
- अशोक के राज्य में कश्मीर, नेपाल, अफगानिस्तान, बंगाल, कर्नाटक एवं आंध्रप्रदेश भी शामिल था।
- कलिंग युद्ध में हुए भीषण नरसंहार को देखकर अशोक विचलित हो उठा एवं शस्त्र त्याग कर बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया। इससे पहले वह ब्राह्मण मतानुयायी था।
अशोक का धार्मिक दृष्टिकोंण
- अशोक पहले ब्राह्मण मतानुयायी था।
- दिव्यावदान के अनुसार, उपगुप्त ने अशोक को बौद्ध धर्म में दीक्षित किया।
- अशोक महात्मा बुद्ध के चरण चिन्हों से पवित्र हुए स्थानों पर गया तथा उनकी पुजा की। अशोक की इस यात्रा का क्रम – गया, कुशीनगर, लुम्बिनी, कपिलवस्तु, सारनाथ तथ श्रावस्ती।
- अपनी धार्मिक यात्रा के दौरान अशोक ने लुम्बिनी में बलि (धार्मिक कर) को समाप्त कर दिया तथा भूमिकर घटाकर 1/8 भाग कर दिया।
- अशोक धार्मिक रूप से सहिष्णु व्यक्ति था
अशोक का धर्म
- अशोक के धर्म की परिभाषा राहुलोवादसुत्त से ली गयी है
- स्वनियंत्रण अशोक की धर्म नीति का मुख्य सिद्धांत है।
- अशोक के अलावा शालिशुक ने धर्म का अनुसरण किया।
- धर्म की व्याख्या – अशोक के दूसरे तथा सातवें स्तम्भ लेखों में अशेाक के धर्म की व्याख्या है। इनके अनुसार, धर्म साधुता है, बहुत से कल्याणकारी अच्छे कार्य करना, पापरहित होना, मृदुता, दुसरों के प्रति व्यवहार में दया, दान तथा शुचिता। जीव हिंसा न करना, माता-पिता व बड़ों की आज्ञा मानना, गुरूजनों के प्रति आदर तथा सभी के प्रति उचित व्यवहार करना आदि धर्म के अंतर्गत आते हैं।
- धम्म प्रचार के लिए भेजे गए व्यक्ति-
- महेन्द्र व संघमित्रा (पुत्र एवं पुत्री) – श्रीलंका
- मज्झान्तिक – कश्मीर व गांधार
- महारक्षित – यूनान
- महाधर्म रक्षित – महाराष्ट्र
- महादेव – मैसूर
नोट – अशोक व्यक्तिगत रूप से बौद्ध था परन्तु उसका धम्म बौद्ध धर्म से भिन्न था क्योंकि अशोक चार आर्य – सत्य, अष्टांगिक मार्ग एवं निर्वाण में विश्वास नही करता था। अशोक के धम्म में उपरोक्त बातों के शामिल नहीं किया गया था। अतः अशोक का धम्म एक मानव धर्म था न कि बौद्ध धर्म।
अशोक के अभिलेख
शिलालेख | स्तंभलेख | गुहा/गुफा लेख |
पत्थर की शिलाओं पर उत्कीर्ण शासनादेश | स्तंभों पर उत्कीर्ण शासनादेश | गुफाओं में उत्कीर्ण शासनादेश |
लिपि – केवल ब्राह्मी | लिपि – केवल ब्राह्मी |
नोट – शिलालेख एवं स्तंभलेख में कोई विशेष अंतर नहीं है। ये केवल आकार एवं आकृति में भिन्न हैं। शिलालेख बड़े होते थे जबकि स्तंभलेख छोटे। लिपि का भी एक अन्तर है।
अभिलेखों की भाषा – अधिकतर अभिलेख प्राकृत भाषा एवं ब्राह्मी लिपि में हैं। उत्तर पश्चिम के अभिलेखों में खरोष्ठी एवं अरमाइक लिपि का प्रयोग किया गया है।
नोट – सर्वप्रथम टी पैन्थर नामक विद्वान ने अशोक की लिपि का पता लगाया था एवं सर्वप्रथम जेम्स प्रिंसेप ने अशोक के लेखों को पढ़ा था।
खरोष्ठी एवं अरमाइक लिपि के शिलालेख
- सहबाज घड़ी शिलालेख – खरोष्ठी लिपि
- मनसेहरा अभिलेख – खरोष्ठी लिपि
- तक्षशिला एवं लघमान अभिलेख – अरमाइक लिपि
- शर ए कुना (कन्धार अभिलेख) – अरमाइक लिपि एवं यूनानी भाषा
वृहत शिलालेख
- ये प्राकृत भाषा में लिखित हैं।
- फिरोजशाह तुगलक ने मेरठ तथा टोपरा के अभिलेख को दिल्ली मंगवाया।
- इलाहाबाद स्तंभलेख पहले कौशाम्बी में था। जहांगीर इसे इलाहबाद में लाया।
- कौशाम्बी (अलाहबाद) स्तंभलेख रानी का अभिलेख भी कहा जाता है। इसमें अशोक की रानी कारूवाकी तथा पुत्र तीवर का उल्लेख है।
- रूम्मिनदेई अभिलेख अशोक का सबसे छोटा अभिलेख है।
- अशोक के सभी अभिलेखों का विषय प्रशासनिक था, जबकि रूम्म्निदेई अभिलेख का विषय आर्थिक था।
अशोक के चौदह वृहत् शिलालेख
- पहला शिलालेख – पशुबलि की निन्दा
- दूसरा शिलालेख – मनुष्यों एवं पशुओं की चिकित्सा पर चर्चा। समाज कल्याण कार्य
- आठवां शिलालेख – सम्राट की धर्म यात्राओं का उल्लेख
- नौवां शिलालेख – इसमें जन्म, बीमारी, विवाह के उपरान्त समारोहों की निंदा
- ग्यारहवां शिलालेख – धम्म नीति की व्याख्या
- बारहवां शिलालेख – सर्वधर्म समभाव एवं स्त्री महामात्र की चर्चा
- तेरहवां शिलालेख – कलिंग की लड़ाई एवं विनाश का वर्णन, अशोक के समीपवर्ती राज्यों का वर्ण
- चौदहवां शिलालेख – अशोक ने जनता को धार्मिक जीवन बिताने के लिए प्रेरित किया।
अशोक के स्तम्भ लेख
- मेरठ स्तंभ लेख – मेरठ से प्राप्त हुआ। फिरोजशाह तुगलक दिल्ली लेकर आया था फर्रूखसियार के शासन काल में खण्डित।
- टोपरा स्तंभ लेख – टोपरा गांव (यमुनानगर, हरियाणा) से प्राप्त। फिरोजशाह तुगलक दिल्ली लेकर आया था।
- लौरिया नंदनगढ़ स्तंभ लेख – चंपारण जिला (बिहार) से प्राप्त।
- रामपुरवा स्तंभ लेख – दो स्तंभ लेख प्राप्त हुए तथा एक स्तंभ लेखा विहीन था। लेखायुक्त स्तंभ पर सिंह की आकृति उत्कीर्ण है। वर्तमान में यह राष्ट्रपति भवन में स्थापित है। लेखा विहीन स्तंभ पर वृषभ/बैल की आकृति उत्कीर्ण है।
- रूम्मिनदेई स्तंभ लेख – सबसे छोटा स्तंभ लेख, रूम्मिनदेई, नेपाल से प्राप्त हुआ। शासनादेश का विषय आर्थिक, बद्ध का जन्म किस स्थान पर हुआ पता चलता है।
- सांची स्तंभ लेख – रायसेन (म.प्र.) से प्राप्त।
- सारनाथ स्तंभ लेख – वाराणसी (उ.प्र.) से प्राप्त।
- रानी का अभिलेख/कौशांबी स्तंभ लेख – इलाहबाद (उ.प्र.) से प्राप्त। अशोक की रानी कारूवाकी व पुत्र तीवर का उल्लेख।
अशोक के लघु शिलालेख
- रूपनाथ – जबलपुर (म.प्र.)
- गुर्जरा – दतिया (म.प्र.)
- भबू (वैराठ) – जयपुर (राजस्थान)
- मास्की – रायचूर (कर्नाटक)
- ब्रह्मगिरी – चित्तलदुर्ग (कर्नाटक)
- एर्रगुडि – कर्नूल (आंध्र.)
- अहरौरा – मिर्जापुर (उ.प्र.)
अशोक के उत्तराधिकारी
कुणाल
- अन्य नाम – धर्मविवर्धन, सुयशस, इन्द्रपालित
- वायुपुराण के अनुसार कुणाल का पुत्र बंधुपालित राजा बना था। मत्स्य पुराण के अनुसार दशरथ राजा बना था। संभवत: बंधुपालित नाम दशरथ का ही अन्य नाम था।
संप्रति/संपदि
- अशोक के उत्तराधिकारियों में यह सबसे अधिक योग्य शासक था।
- यह जैन मतावलंबी था।
- इसकी 2 राजधानियां – 1. पाटलिपुत्र 2. उज्जयनी थी।
- चन्द्रगुप्त मौर्य की तरह इसने संलेखना पद्धति से तेहत्याग किया था।
शालिशक/शालिशूक
संप्रति के बाद शालिशक राजा बना।
इसके समय यवनों ने एण्टियोकस के नेतृत्व में हमला किया।
देववर्मा/बृहद्रथ
यह मौर्य वंश का अंतिम शासक था।
बृहद्रथ के सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने इसकी हत्या कर मौर्य वंश का समापन क शुंग वंश की नींव रखी।