पौरूष का युद्ध (326 ई. पू.)

  • युद्ध –  326 ई. पू.
  • अन्य नाम – विस्तता का युद्ध, झेलम का युद्ध।
  • स्थान – झेलम नदी के पास।
  • शासक – सिकंदर एवं राजा पोरस के बीच।
  • परिणाम – सिकंदर की विजय।

पोरस तथा सिकन्दर की सेनायें झेलम नदी के पूर्वी तथा पश्चिमी तटों पर आकर रुक गयी। बरसात के कारण झेलम नदी में बाढ़ आ गयी थी। अत: सिकन्दर के लिए नदी पार करना कठिन था। दोनों पक्ष कुछ दिनों तक अवसर की प्रतीक्षा करते रहे।

अंत में एक रात जब भीषण वर्षा हुई, सिकन्दर ने धोखे से अपनी सेना को झेलम नदी के पार उतार दिया। उसके इस कार्य से भारतीय पक्ष स्तम्भित रह गया। पोरस की सेना बड़ी विशाल थी। एरियन के अनुसार इस सेना में चार हजार वरिष्ठ अश्वारोही, तीन सौ रथ, दो सौ हाथी तथा तीस हजार पैदल सिपाही थे।

सर्वप्रथम पोरस ने अपने पुत्र के नेतृत्व में 2,000 सैनिकों को सिकन्दर का सामना करने तथा उसका मार्ग अवरुद्ध करने के लिये भेजा। परन्तु यूनानी सैनिकों के सामने वे नहीं टिक सके तथा उसका पुत्र मारा गया। अब पोरस सिकन्दर के साथ अन्तिम मुठभेड़ के लिये अपनी पूरी सेना के साथ मैदान में आ डटा।

भारतीयों का दुर्भाग्य था कि प्रारम्भ से ही युद्ध उनके विरुद्ध रहा। पोरस के सैनिक विशाल धनुषों से युक्त थे। बरसात के कारण भूमि दल-दल हो जाने से उसके लिये धनुष को जमीन में टेक सकना असंभव-सा हो गया। पोरस की सेना के विशालकाय हाथी यूनानी सेना के तीव्रगामी घोड़ों के सामने नहीं टिक सके ।

युद्ध का परिणाम सिकन्दर के पक्ष में रहा । बहुत शीघ्र पोरस की विशाल सेना तितर-बितर हो गई । उनके सैनिक भाग निकले तथा अनेक मौत के घाट उतार दिये गये । परन्तु साढ़े छ: फुट का लम्बा जवान पोरस विशालकाय हाथी पर सवार हो अन्त तक लड़ता रहा ।

जब विजय की समस्त आशायें क्षीण हो गयीं तो उसने युद्ध-भूमि से अपने हाथी मोड़ दिये। इसे प्रत्यावर्तित होते हुए देखकर सिकन्दर ने तक्षशिला के राजा आम्भी को आत्म-समर्पण के संदेश के साथ पोरस के पास भेजा । देश-द्रोही आम्भी को देखते ही घायल पोरस की भुजायें एक वार पुन: फड़क उठी तथा उसका वध करने के निमित्त उसने अपनी शेष शक्ति से उसके ऊपर भाले का अन्तिम प्रहार किया । सौभाग्यवश आम्भी बच गया ।

इस प्रकार का दृश्य एक प्रसिद्ध सिक्के पर अंकित है जिसके मुख भाग पर भागते हुये हाथी के पीछे घुड़सवार का चित्र तथा बर्छा फेंककर वार करते हुए हाथी पर सवार (पोरस) का चित्र अंकित मिलता है तथा पृष्ठ भाग पर जियस देवता की वेष-भूषा में वज्र धारण किये हुए सिकन्दर का चित्र अंकित है ।

आम्भी के वापस लौटने के बाद सिकन्दर ने दूसरा दूत-मंडल पोरस को मनाने के लिये भेजा । इसमें पोरस का मित्र मेरुस भी था । उसके प्रयास से पोरस आत्म-समर्पण के लिये राजी हो गया तथा उसने अपने को यूनानी सेना के हवाले कर दिया ।

वह यूनानी सेना द्वारा बंदी बना लिया गया तथा घायलावस्था में सिकन्दर के सामने लाया गया । उसके शरीर पर नौ धाव थे । सिकन्दर ने पोरस की वीरता की प्रशंसा की तथा पूछा, ”तुम्हारे साथ कैसा बर्ताव किया जाये ?” पोरस ने बड़ी निर्भीकता एवं गर्व के साथ उत्तर दिया- “जैसा एक राजा दूसरे राजा के साथ करता है ।”

इस उत्तर को सुनकर सिकन्दर बड़ा प्रसन्न हुआ । उसने पोरस को न केवल उसका राज्य ही लौटाया, अपितु उसके राज्य का उससे भी अधिक विस्तार कर दिया। प्लूटार्क के अनुसार इसमें 15 संघ राज्य, उनके पाँच हजार बड़े नगर तथा अनेक ग्राम थे ।

इस प्रकार पोरस की पराजय भी जय में परिणत हो गई । इसके पश्चात सिकन्दर ने युद्ध में वीरगति पाने वाले सैनिकों का अन्त्येष्टि संस्कार किया तथा यूनानी देवताओं की पूजा की । उसने दो नगरों की स्थापना की – पहला नगर रणक्षेत्र में ही विजय के उपलक्ष्य में बसाया गया और उसका नाम “निकैया” (विजयनगर) रखा गया । दूसरा नगर झेलम नदी के दूसरे तट पर उस स्थान पर बसाया गया जहाँ सिकन्दर का प्रिय घोड़ा ‘बउकेफला’ मरा था । घोड़े के नाम पर इस नगर का नाम भी ‘बउकेफला’ रखा गया ।

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