महमूद गजनवी-
- महमूद गजनवी ने 17 बार भारत पर आक्रमण किये थे, जिनमें से कुछ का विवरण निम्न लिखित है-
- प्रथम आक्रमण – 1001 ई.में हिन्दूशाही राजवंशके शासक जयपाल के खिलाफ गजनवी ने आक्रमण किया था जिसमें जयपाल पराजित होकर आत्महत्या कर लेता है।
- 1008 में आनंदपाल को हराया।
- 1021 में उद्भांडपुर पर विजय पा ली।
- 1013 में त्रिलोचनपाल को हराया।
- 1005 में भटिंडा (पंजाब) के शासक विजयराम को परास्त किया ।
- 1006 में मुल्तान को जीता और इसे अपने साम्राज्य में मिलाया।
- 1009 में नारायणपुर (अलवर) – व्यापारिक नगर पर हमला किया।
- 1014 में थानेश्वर (हरियाणा) पर आक्रमण कर चक्रस्वामी मंदिर को नष्ट किया।
- 1018 -19 में मथुरा एवं कन्नौज पर आक्रमण किया।
- कन्नौज पर प्रतिहार शासक राज्यपाल का शासन था। महमूद के आक्रमण के समय राज्यपाल भाग गया। सामंत विधाधर (चंदेल शासक ) ने राज्यपाल की हत्या कर दी थी।
- महमूद ने कालिंजर पर 1021 में आक्रमण किया था। इस समय कालिंजर का शासक विधाधर था, जो कालिंजर से भाग गया था।
- 1023 में पुनः कालिंजर पर आक्रमण किया तथा विधाधर से संधि कर ली थी।
- 1025 में सोमनाथ पर महमूद गजनवी ने आक्रमण किया तथा यहाँ के लकङी के बने मंदिर को जला दिया । इसी मंदिर को बाद में गुजरात के शासक भीम ने पत्थरों व ईंटों से बनाया था।
- 1027 में जाटों ने गजनवी पर आक्रमण किया यह आक्रमण गजनवी का भारत पर अंतिम आक्रमण था जो जाटों के विरुद्ध था।
अरबों के बाद भारत पर तुर्कों ने आक्रमण किया।
अलप्तगीन
अलप्तगीन समनी वंश के शासक अबुल मलिक का ग़ुलाम था। अबुल मलिक ने उसे उसकी प्रतिभा और सैनिक गुणों से प्रभावित होकर खुरासान का गवर्नर के पद पर नियुक्त कर दिया था। जब अबुल मलिक की मृत्यु हो गई, तब अलप्तगीन ने अफ़ग़ानिस्तान के पास एक नये राज्य की स्थापना की और ग़ज़नी को अपनी राजधानी बनाया। यह गजनी साम्राज्य यामिनी वंश/गजनी वंश का संस्थापक था।
सुबुक्तगीन
अलप्तगीन की मृत्यु के बाद सुबुक्तगीन (977-997) ग़ज़नी की गद्दी पर बैठा था। प्रारंभ में वह एक दास था, जिसे अलप्तगीन ने ख़रीद लिया था। अपने ग़ुलाम की प्रतिभा से प्रभावित होकर अलप्तगीन ने उसे अपना दामाद बना लिया था और ‘अमीर-उल-उमरा’ की उपाधि से उसे सम्मानित किया। सुबुक्तगीन भारत पर आक्रमण करने वाला पहला तुर्क शासक था। इसने 986 ई. में जयपाल (शाही वंश के राजा) पर आक्रमण किया और जयपाल को पराजित किया। जयपाल का राज्य सरहिन्द से लमगान (जलालाबाद) और कश्मीर से मुल्तान तक था। शाही शासकों की राजधानी क्रमशः ओंड, लाहौर और भटिण्डा थी।
महमूद गजनवी
उपाधि – सुल्तान, यामीन-उद्दौला तथा ‘अमीन-ऊल-मिल्लाह’। महमूद गजनवी का जन्म 971 ई. में हुआ। महमूद गजनवी सुबुक्तगीन का पुत्र था। 998 ई. में सुबुक्तगीन की मृत्यु के बाद महमूद गजनवी गजनी का शासक बना। खलीफा अल-कादिर-बिल्लाह ने महमूद को ‘सम्मान का चोगा’ दिया और यमीन उद्दौला (साम्राज्य की दक्षिण भुजा), अमीन-उल-मिल्लत (धर्म संरक्षक) की उपाधियां प्रदान की। सुल्तान की उपाधि तुर्की शासकों ने प्रारंभ की थी। उसे यह उपाधि बगदाद के खलीफा ने प्रदान की। सुल्तान की उपाधि लेने वाला पहला शासक महमूद गजनवी था।
महमूद ग़ज़नवी मध्य अफ़ग़ानिस्तान में केन्द्रित गज़नवी राजवंश के एक महत्वपूर्ण शासक था जो पूर्वी ईरान भूमि में साम्राज्य विस्तार के लिए जाना जाता हैं। गजनवी तुर्क मूल का था और अपने समकालीन (और बाद के) सल्जूक़ तुर्कों की तरह पूर्व में एक सुन्नी इस्लामी साम्राज्य बनाने में सफल हुआ।
तथ्य
महमूद गजनवी का भारत पर आक्रमण करने का उद्देश्य केवल लूटपाट एवं धन प्राप्ति था। वह भारत में स्थायी साम्राज्य स्थापित करने अथवा अपना साम्राज्य बढ़ाने के लिए भारत नहीं आया था।
तर्क – गजनवी विजित प्रदेशों में स्थायी रूप से नहीं रहता था वह बार-बार गजनी लौट जाता था।
गजनवी ने न तो विजित प्रदेशों को अपने राज्य में मिलाया और न ही विजित प्रदेशों में कोई स्थायी बन्दोबस्त किया।
गजनवी भारत से धन लूटकर मध्य एशिया में विशाल साम्राज्य स्थापित करना चाहता था।
गजनवी ने मथुरा के कई मंदिरों को तोड़ा यह भारत का “बेथलेहम” कहा जाता है।
गजनवी को भारतीय इतिहास में “बुतशिकन( मूर्तिभंजक)” के नाम से जाना जाता है
प्रमुख इतिहासकार
- अलबरूनी – अलबरूनी फारसी भाषा के लेखक थे जो महमूद गजनवी के साथ भारत आए प्रसिद्ध पुस्तक किताब उल हिन्द (तहकीक-ए-हिन्द) की रचना की
- फिरदौसी – ये फारसी कवि थे इन्होंने शाहनामा की रचना की।
- उत्बी – किताब-उल-यामिनी
- वैहाकी – तारीख-ए-सुबुक्तगीन
मुहम्मद गोरी
भारत में मुसलमानों के साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक मुइजुद्दीन मुहम्मद-बिन साम था, जिसे अधिकतर शहाबुद्दीन मुहम्मद गौरी अथवा गुर वंश का मुहम्मद कहते है। अफगानिस्तान में गजनी वंश के पतन के बाद ‘गोरी कबीले’ की स्थिति मजबूत हुई।
इस कबीले का शासक मुहम्मद गोरी था। मुहम्मद गोरी शंसवानी वंश का शासक था। मुस्लिम राज्य की स्थापना करना ही मुहम्मद गोरी का भारत पर आक्रमण करने का मुख्य उद्देश्य था। मुहम्मद गोरी का भारत पर प्रथम आक्रमण 1175 ई. में मुल्तान पर था। उस समय राजा दाऊद मुल्तान का शासक था। गोरी ने उसे पराजित कर दिया। 1178 ई. के गुजरात आक्रमण में गुजरात के शासक भीम-2 ने मुहम्मद गोरी को बुरी तरह पराजित किया था। भीम-2 बघेला वंश के शासक थे जिनकी राजधानी अन्हिलवाड़ा था।
- तराइन का प्रथम युद्ध (1191 ई.) – मुहम्मद गोरी एवं पृथ्वीराज-3 (पृथ्वीराज चौहान) के मुध्य (पृथ्वीराज चौहान विजय)।
- तराइन का द्वितीय युद्ध (1192 ई.) – मुहम्मद गौरी एवं पृथ्वीराज-3 (पृथ्वीराज चौहान) के मध्य (मुहम्मद गोरी विजय)।
मुहम्मद गोरी को भारत में मुस्लिम साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक माना जाता है। चंदावर का युद्ध (1194 ई.) – मुहम्मद गोर एवं जयचन्द के मध्य (मुहम्मद गोरी की विजय)। मुहम्मद गोरी भारत में गोमल दर्रे को पार करके आया था। कन्नौज विजय के पश्चात् मुहम्मद गोरी के सिक्कों पर देवी लक्ष्मी की आकृति बनी है। तथा मुहम्मद गोरी का नाम मुहम्मद बिन साम अंकित था। मुहम्मद गोरी के सेनापति बख्तियार खिलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय को हानि पहुंचायी थी। मोहम्मद गौरी ने इन्द्रप्रस्थ नगर में सैन्य टुकड़ी की एक सिविर डाकर भारत में जीते हुए क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व कुतुबुद्दीन ऐबक को सौंप कर गजनी चला गया। 1206 ई. में खोखरों ने मुहम्मद गोरी की हत्या कर दी।
तुर्की आक्रमण के विरूद्ध राजपूत राजाओं के हार के कारण
- तुर्की आक्रमण के पूर्व भारत अनेक राज्यों में विभाजित था अतः राजनीतिक एकता की कमी एवं केन्द्रशक्ति का अभाव था ।
- वर्ण एवं जाति व्यवस्था के कारण भारतीय समाज कई वर्गो में विभाजित था इसके कारण सामाजिक दुर्बलता थी।
- राजपूतों में वंशागत श्रेष्ठता की भावना के कारण झगडालू प्रवृति एवं अनेक सामाजिक बुराइयों का जन्म हुआ तथा आपसी झगड़ों में वृद्धि हुई।
- भारतीय समाज में नियतिवादी तथा भाग्यवादी विश्वास के कारण समाज विदेशी आक्रमण तथा यातनाओं को पूर्व जन्म के कर्मो का फल मानने लगा और इस कारण जनसाधारण ने एकजुट होकर उनका विरोध नहीं किया।
- तुर्की सेना की रणनीति, अच्छी नस्ल के घोड़े एवं हथियार।
- राजपूतों की जुटाई हुई सामन्ती सेना राजा के प्रति पूर्ण रूप से निष्ठावान नहीं होती थी।
तुर्की आक्रमण के प्रभाव
- भारत में मुस्लिम राज्य की स्थापना।
- भारत में सामन्तवाद का ह्रास होने लगा एवं शक्ति का केन्द्र राजा बन गया।
- भारत का संसार के काफी देशों के साथ व्यापार बढ़ा।
- मुस्लिम समाज में भेदभाव नहीं था अतः राजपूतों के बाद समाज में भेद भाव में कमी आयी।
- 12वीं शताब्दी में चरखा ईरान से भारत आया एवं कपड़े के उत्पादन को बढ़ावा मिला।
- स्थापत्य कला में परिवर्तन आने लगे।
- दिल्ली में सल्तनत की स्थापना से शहरी अर्थव्यवस्था का विस्तार हुआ। व्यापार एवं वाणिज्य में वृद्धि हुई।
- बड़ी संख्या में हिन्दुओं को मुसलमान बनाया गया।