- जन्म – 20 जुलाई, 356 ई.पू
- स्थान – पेला (मैसेडोन, यूनान)
- शासनकाल – 336–323 ई पू
- मृत्यु – 10 जून 323 ईसा पूर्व
हखामनी आक्रमण के पश्चात् पश्चिमोत्तर भारत पर एक दूसरे यूरोपीय आक्रमण हुआ । यह महान यूरोपीय विजेता सिकन्दर के नेतृत्व में होने वाला मैसीडोन आक्रमण था जो पहले की अपेक्षा कहीं अधिक भयावह साबित हुआ । सिकन्दर मैसीडीन के क्षत्रप फिलिप द्वितीय (359-336 ईसा पूर्व) का पुत्र था।
पिता की मृत्यु के पश्चात् 20 वर्ष की अल्पायु में वह सिंहासन पर बैठ गया। वह एक महत्वाकांक्षी शासक था । बचपन से ही उसकी इच्छा विश्व सम्राट बनने की थी । कहा जाता है कि विश्व-विजय करने की प्रेरणा उसे अपने पिता से ही मिली थी । उसमें अदम्य उत्साह, साहस तथा वीरता विद्यमान थी।
मैसीडीन तथा यूनान में अपनी स्थिति सुदृढ़ कर लेने के बाद उसने दिग्विजय की एक व्यापक योजना तैयार बनायी । इस प्रक्रिया में उसने एशिया माइनर, सीरिया, मिस्र, बेबीलोन, बैक्ट्रिया, सोग्डियाना आदि को जीता ।
331 ईसा पूर्व में आरबेला के प्रसिद्ध युद्ध में दारा तृतीय के नेतृत्व में उसने विशाल पारसीक वाहिनी को परास्त किया। इस आश्चर्यजनक सफलता से सम्पूर्ण हखामनी साम्राज्य उसके चरणों में लोटने लगा ।
पश्चिमोत्तर भारत की राजनीतिक परिस्थितियाँ इस समय अराजकता के दौर से गुजर रही थीं । यह प्रदेश सिकन्दर की विजयी के लिये सर्वथा उपयुक्त था । अत: हखामनी साम्राज्य को ध्वस्त करने के पश्चात् 326 ईसा पूर्व के बसन्त के अन्त में एक विशाल सेना के साथ वह भारतीय विजय के लिये चल पड़ा ।
भारत के पश्चिमोत्तर भाग में इस समय अनेक छोटे-बड़े जनपद, राजतन्त्र एवं गणतन्त्र विद्यमान थे । पारस्परिक द्वेष एवं घृणा के कारण वे किसी भी आक्रमणकारी का संगठित रूप में सामना नहीं कर सकते थे ।
राजतन्त्र, गणतन्त्रों को समाप्त करना चाहते थे जबकि गणतन्त्रों के लिये राजतन्त्रों की सत्ता असह्य हो रही थी । डॉ. हेमचन्द्र रायचौधरी ने 28 स्वतन्त्र शक्तियों का उल्लेख किया है जो इस समय पंजाब तथा सिन्ध के प्रदेशों में विद्यमान थी ।