पादप वृद्धि एवं परिवर्धन

पादप (plant) जीवजगत का एक ऐसी बड़ी श्रेणी है जिसके अधिकतर सदस्य प्रकाश संश्लेषण द्वारा शर्कराजातीय खाद्य बनाने में सक्षम होते हैं। ये गमनागम (locomotion) नहीं कर सकते। वृक्ष, फर्न (Fern), मॉस (mosses) आदि पादप हैं। हरा शैवाल (green algae) भी पादप है जबकि लाल/भूरे सीवीड (seaweeds), कवक (fungi) और जीवाणु (bacteria) पादप की श्रेणी में नहीं आते। पादपों के सभी प्रजातियों की कुल संख्या की गणना करना कठिन है किन्तु सन् 2010 में 3 लाख से अधिक प्रजाति के पादप ज्ञात हैं जिनमें से 2.7 लाख से अधिक बीज वाले पादप हैं।

पादपों में वृद्धि –

सजीवो के परिमाण में स्थायी व अनुत्क्रमणीय बदलाव को ही वृद्धि कहा जाता है। वृद्धि सभी सजीवो का एक लाक्षणिक गुण है, वृद्धि के समय आयतन तथा शुष्क भार दोनों में बढ़ोतरी (वृद्धि) होती है। वृद्धि उपापचयी प्रक्रियाओं से सम्बंधित है जो ऊर्जा के व्यय पर आधारित है। जैसे – पत्ती का विस्तार, पौधे की लम्बाई व आकार में बढ़ोतरी होना।

वृद्धि के लाक्षणिक गुण-

पादप वृद्धि प्राय: अपरिमित है : पौधो की वृध्दि जीवन भर असीमित होती है क्योंकि पौधे के विशिष्ट भागों में विभज्योत्तक उत्तक मौजूद होती है, जिनकी कोशिकाएं निरन्तर विभक्त होकर नयी कोशिकाओ का निर्माण करती है।

वृद्धि माप योग्य है : पादप में होने वाली वृद्धि दर का मापन उसके अंगो का आकार , क्षेत्रफल अथवा भार में वृद्धि के रूप में किया जा सकता है। वृद्धि को मापने की कई विधियाँ है-

  1. कोशिकाओं की बढ़ती हुई संख्या द्वारा मापन।
  2. कोशिका उत्तकों अथवा अंगो के आकार में वृद्धि द्वारा मापन।
  3. शुष्क भार में वृद्धि द्वारा मापन।
  4. रेखीय माप द्वारा मापन।

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पादप परिवर्धन

बीज अंकुरण से जरावस्था के मध्य होने वाले बदलाव को सामूहिक रूप से परिवर्धन कहा जाता है। एक पादप कोशिका के विकासात्मक प्रक्रम का अनुक्रम पौधे पर्यावरण के प्रभाव के कारण जीवन के अनेक चरणों में चित्र आरेख के अनुसार अलग अलग पथो का अनुसरण करते है, ताकि विभिन्न प्रकार की संरचनाओ का गठन कर सके। पौधों की इस घटना को सुघट्यता (प्लास्टीसिटी) कहा जाता है।

उदाहरण – कपास , धनिया आदि पादपों में पत्तियों का आकार किशोरावस्था व परिपक्व अवस्था में अलग-अलग होता है अर्थात प्रवस्था के अनुसार संरचना बदल रहती है। विषमपर्णता सुघट्यता का उत्तम उदाहरण है।

परिवर्धन को प्रभावित करने वाले कारक

पौधों में परिवर्धन आन्तरिक व बाहरी कारको से नियंत्रित किया जाता है।

आन्तरिक कारक जैसे-आनुवांशिकता, कोशिकीय कारक, पादप वृद्धि नियामक रसायन आदि परिवर्धन को प्रभावित करने वाले कारक होते है।

बाह्य कारक जैसे- प्रकाश, ताप, जल, ऑक्सीजन, पोषक तत्वों की उपलब्धता आदि पौधों के परिवर्धन को प्रभावित करने वाले कारक होते है।

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