इसे परोक्ष कोशिका विभाजन भी कहते है। माइटोसिस शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम 1882 ई. में वाल्थर फ्लोमिंग महोदय द्वारा किया गया। उन्होंने ही कोशिका विभाजन का नाम माइटोसिस (Mitosis) रखा जिसका अर्थ है- धागे की तरह निर्माण (Thread like formation)। माइटोसिस का वास्तविक अर्थ केन्द्रक का विभाजन है, परन्तु व्यावहारिक रूप में यह शब्द केंद्रक और कोशिकाद्रव्य दोनों के विभाजन के लिए उपयोग होता है। इस प्रकार का कोशिका विभाजन शरीर की कायिक कोशिकाओं में होता है।
समसूत्री विभाजन में मातृ कोशिका (Mother cell) का विभाजन होकर दो समान नई संतति कोशिकाएँ बनाती है जिन्हे पुत्री कोशिकाएं (daughter cells) कहते है। समसूत्री कोशिका विभाजन एक लगातार होने वाली प्रक्रिया है। समसूत्री विभाजन एक जटिल प्रक्रम है जो कई चरणों या अवस्थाओं में सम्पन्न होता है। समसूत्री विभाजन को पाँच चरणों या अवस्थाओं में बांटा जा सकता है-
1. विश्रामावस्था या इंटरफेज (Restingstage or Interphase):
समसूत्री विभाजन आरम्भ होने से पहले प्रत्येक कोशिका विश्रामावस्था में होती है। इस अवस्था में कोशिका के जलयोजित (Hydrated) होने की वजह से गुणसूत्र साफ़ दिखायी नहीं पड़ते हैं। इस अवस्था में केन्द्रक-जाल (Chromatin network) केन्द्रक द्रव्य में विसरित (diffused) रहता है, किन्तु धीरे-धीरे यह केन्द्रक-जाल साफ़ होने लगता है।
2. प्रोफेज (Prophase):
समसूत्री विभाजन के प्रारम्भ होते ही कोशिका में निर्जलीकरण प्रारंभ होने लगता है। इसके परिणामस्वरूप कोशिका और तत्पश्चात क्रोमेटिन जाल भी साफ़ नजर आने लगते हैं। इसके बाद क्रोमेटिन जाल के धागे टूटकर अनेक छोटे-छोटे टुकड़ों में परिवर्तित हो जाते हैं। ये टुकड़े गुणसूत्र (Chromosomes) कहलाते हैं। प्रत्येक गुणसूत्र पर दानेदार रचनाएँ दिखायी पड़ती हैं जिन्हें क्रोमोमीयर (Chromomere) कहा जाता हैं।
प्रारम्भ में गुणसूत्र थोड़े लम्बे होते हैं तथा प्रत्येक जीव की कोशिकाओं में गुणसूत्रों की संख्या निर्धारित होती है। प्रत्येक गुणसूत्र में एक विशिष्ट स्थान होता है, जिसे सेन्ट्रीमीयर (Centromere) कहा जाता हैं। इसके पश्चात् गुणसूत्रों की लम्बाई में दो अर्द्धभागों में विभाजन होता है, परन्तु दोनों अर्द्धभाग एक दूसरे से सेन्ट्रोमीयर पर जुड़े रहते हैं। प्रत्येक अर्द्धभाग को अर्द्धगुणसूत्र या क्रोमेटिङ (Chromatids) कहा जाता हैं। जंतु कोशिका में तारककाय (Centrosome) दो भागों में बँटकर कोशिका के दोनों ध्रुवों (Poles) पर खिसक जाते हैं।
प्रत्येक तारककाय के चारों ओर अनेक तारकरश्मियां (Astral rays) निकलती हैं। दोनों तारककायों के मध्य के कोशिकाद्रव्य में कुछ बदलाव होता है। इसके फलस्वरूप दोनों तारककायों के बीच तकुंधागों (spindle Fibres) का निर्माण होता है। इसके पश्चात् गुणसूत्र सिकुड़कर छोटे एवं मोटे होने लगते हैं। पादप कोशिकाओं में तकुं धागे तो बनते हैं परन्तु तारककाय नहीं पाये जाते हैं। धीरे-धीरे केन्द्रक झिल्ली गायब (Disappear) होने लगती है और गुणसूत्र कोशिका के मध्य में आ जाते हैं। केन्द्रक झिल्ली के गायब होने के साथ-साथ प्रोफेज अवस्था संपन्न हो जाती है।
3. मेटाफेज (Metaphase):
समसूत्री विभाजन की इस अवस्था में तर्कु (Spindle) पूरी तरह विकसित हो जाते हैं। तर्कु के मध्य के भाग को मध्यवर्ती रेखा कहा जाता हैं। गुणसूत्र के अर्द्धगुणसूत्र (Chromatids) पहले की तुलना में अधिक साफ़ हो जाते हैं। प्रत्येक गुणसूत्र खिसककर तर्कु की मध्यवर्ती रेखा पर चला जाता है। गुणसूत्र अपने सेंट्रीमीयर द्वारा तर्कु धागों से जुड़ जाते हैं।
4. एनाफेज (Anaphase):
समसूत्री विभाजन के इस अवस्था के शुरू होते ही प्रत्येक गुणसूत्र का सेंट्रोमीयर दो भागों में विभाजित हो जाता है। जिससे प्रत्येक गुणसूत्र के क्रोमैटिड अलग-अलग हो जाते हैं। प्रत्येक गुणसूत्र के दोनों क्रोमैटिडों के बीच एक तरह का विकर्षण (Repulsion) उत्पन्न हो जाता है। जिससे दोनों क्रोमैटिड एक दूसरे से दूर खिसकने लगते हैं। तर्कु धागों में भी एक प्रकार का खिंचाव होने लगता है, जिससे तर्कु धागे धीरे-धीरे सिकुड़ना शुरू क्र देते हैं। अतः तर्कु धागों का सिकुड़ना क्रोमैटिडों को एक-दूसरे से दूर खिसकने में मदद करता है। इस खिंचाव के फलस्वरूप दोनों क्रोमैटिड कोशिका के दोनों ध्रुवों पर पहुँच जाते हैं। गुणसूत्रों का आकार ‘V’ या ‘U’ की तरह का हो जाता है। अब प्रत्येक क्रोमैटिड संतति गुणसूत्र (Daughter chromosomes) कहलाते हैं।
5. टेलोफेज (Telophase):
इस अवस्था में संतति गुणसूत्र विपरीत दिशा में खिसक कर अपनी ओर के तारककाय के पास पहुँच जाते हैं। अब प्रत्येक कोशिका ध्रुव (Pole) में उपस्थित संतति गुणसूत्रों में प्रोफेज के ठीक विपरीत प्रतिक्रियाएँ होती हैं। जिससे गुणसूत्रों में जलीयकरण (Hydration) आरम्भ हो जाता है जिससे गुणसूत्र धीरे-धीरे पतले व लम्बे हो जाते हैं और वे साफ़ दिखाई नहीं पड़ते हैं। केंद्रिका (Nucleolus) पुनः प्रकट हो जाती है। इसके साथ-साथ गुणसूत्रों के चारों ओर केन्द्रक झिल्ली का निर्माण फिर से हो जाता है। इस प्रकार एक मातृ केन्द्रक से दो संतति केन्द्रक बन जाते हैं।
समसूत्री विभाजन का महत्व (Significance of mitosis):
समसूत्री विभाजन द्वारा एक मातृ कोशिका से दो समान संतति कोशिकाये बनती है। समसूत्री विभाजन के परिणामस्वरूप निर्मित सभी संतति कोशिकाओं में गुणसूत्रों की संख्या एक समान रहती है। इस विभाजन के परिणामस्वरूप संतति कोशिकाओं के गुण मातृ कोशिकाओं की तरह होते हैं। सभी सजीवों में वृद्धि समसूत्री विभाजन के आधार पर होती है। सजीवों में घावों का भरना एवं अंगों का पुनरुद्भवन (Regeneration) इसी विभाजन के कारण संभव होता है।