पत्ती

  • तने तथा शाखाओं की पर्व सन्धियों (Internodes) से निकलने वाले पार्श्व असमान भाग को पत्ती कहा जाता हैं।
  • हरितलवक के कारण ही पत्ती का रंग हरा होता है।
  • पत्तिया तने की पर्वसंधि (node) से निकलती है।
  • कुछ पादपों की पत्तियों से जल छोटी-छोटी बूंदों के रूप में निकलता है इसे बिन्दु स्त्रवण कहा जाता हैं। जैसे- घास, पीपल।
  • सभी पादप श्वसन में O2 ग्रहण करते हैं एवं CO2 निकालते हैं।
  • प्रकाश संश्लेषण में पादप वायुमण्डलीय CO2 को लेते हैं एवं O2 को बाहर छोड़ते हैं।
  • पत्तियों के चार भाग होते हैं- 1. पत्राधार (leaf base), 2. पर्णवृन्त (petioles), 3. पर्णफलक (Lamina), 4. पर्णशीर्ष।

पत्ती के प्रकार (Types of Leaf):

पत्रफलक के कटाव के आधार पर पत्तियों को 2 भागो में बांटा गया है – सरल पत्ती और संयुक्त पत्ती

1. सरल पत्ती (simple leaf):

वह पत्ती, जिसका फलक अधिक हो और यदि कटा भी हो तो कटाव कभी-भी मध्य शिरा या पत्रवृन्त तक न पहुँचे, उसे सरल पत्ती कहते है। जैसे- आम की पत्ती।

2. संयुक्त पत्ती (Compound leaf):

वह पत्ती जिसका पत्रफलक का कटाव कई स्थानों पर फलक की मध्य शिरा (Midrib) या फलक के आधार तक पहुँच जाता है तथा जिसके कारण फलक अनेक छोटे-छोटे खण्डों में बँट जाता है, उसे संयुक्त पत्ती कहते है।

पत्तियों के कार्य:

  • पत्तियाँ प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया द्वारा पौधों के लिए भोजन बनाती हैं।
  • पत्तियाँ प्रकाश-संश्लेषण एवं श्वसन के लिए विभिन्न गैसों का आदान-प्रदान करती हैं।
  • पत्तियाँ उत्स्वेदन (Transpiration) की क्रिया का नियंत्रण करती है।
  • पत्तियाँ कलिकाओं को सुरक्षा प्रदान करती हैं। यह कन्टकों (thorns) में रूपान्तरित होने पर पशु-पक्षियों से पौधों को बचाने का कार्य करती है।
  • प्रतन्तुओं में रूपान्तरित होने पर यह कमजोर पौधों को मजबूत आधार देती है, तथा आरोहण में सहायता करती है।
  • कीटभक्षी पौधों में पिचर (Pitcher), ब्लेडर (Bladder) आदि में यह रूपान्तरित होकर प्रोटीनयुक्त पोषण में मदद करती है।
  • यह जल तथा घुलनशील भोज्य पदार्थों का पत्तियों से स्तम्भ तक संचरण में मदद करती है।
  • कुछ पत्तियाँ वर्धी प्रजनन (Vegetative reproduction) एवं परागण (Pollination) में मदद करती हैं।
  • कुछ पत्तियाँ भोजन संग्रह (Food storage) का काम भी करती हैं।

पतियों का रूपान्तरण –

पत्तियाँ कुछ विशेष कार्य सम्पादित करने हेतु रूपान्तरित हो जाती हैं-

1. पर्ण कंटक (Leaf spines)-

इसमें पत्तियों का रूपांतर काँटों या शूलों (spines) में हो जाता है। जैसे– आर्जिमीन, नागफनी आदि।

2. पर्ण प्रतान (Leaf tendril)-

इसमें पत्तियाँ रूपान्तरित होकर लम्बी, पतली, तारनुमा कुण्डलित रचना में परिवर्तित हो जाती हैं जिसे प्रतान (Tendril) कहा जाता हैं। ये प्रतान अति संवेदनशील होते हैं और जैसे ही वे किसी आधार के सम्पर्क में आते हैं, उसके चारों ओर चिपक जाते हैं। इस प्रकार वे पौधों को आरोहण में सहायता प्रदान करते हैं। जैसे– मटर।

3. पर्णाभवृन्त (Phyllode)-

इसमें पर्णवृन्त अथवा रेकिस का कुछ भाग चपटा एवं हरा होकर पर्णफलक जैसा रूप ले लेता है। इसे ही पर्णाभवृन्त कहा जाता हैं। यह प्रकाश संश्लेषण का कार्य करता है क्योंकि पौधे की सामान्य पत्तियाँ नवोद्भद (seedling) अवस्था में ही गिर जाते हैं। जैसे– आस्ट्रेलियन बबूल।

4. घटपर्णी (Pitcher)-

इसमें पत्ती का पर्णाधार (Leaf base) चौड़ा, चपटा एवं हरे रंग का होता है। पर्णवृन्त (Petiole) प्रतान का, फलक (Leafblade) घटक (Pitcher) का तथा फलक शीर्ष ढक्कन का रूप ले लेता है। इस प्रकार सम्पूर्ण पत्ती घटनुमा रचना में बदल जाती है। घट (Pitcher) की अंदर की सतह पर पाचक ग्रन्थियाँ (digestive glands) होती हैं, जिनसे पाचक रसक का प्रवाहन होता है। जब कोई कीट आकर्षित होकर फिसलकर घट में गिर जाता है तो घट का ढक्कन स्वतः ही बन्द हो जाता है। कीट पाचक रस द्वारा पचा लिया जाता है। इस क्रिया द्वारा पौधे अपने नाइट्रोजन की आवश्यकता को पूरी करते हैं। जैसे– घाटपर्णी (Pitcher plant)

5. ब्लेडर वर्ट (Bladderwort)-

यूट्रीकुलेरिया (Utricularia) जैसे जलीय कीटभक्षी पौधों में पतियाँ अनेक छोटे-छोटे खण्डों में विभाजित रहती हैं। कुछ खण्ड रूपान्तरित होकर थैलीनुमा संरचना बना लेते हैं। सभी थैलीयों (bladders) में एक खोखला कक्ष (Empty chamber) भी पाया जाता है, जिसमें एक मुख होता है। इस मुख पर एक प्रवेश द्वार होता है जिससे होकर केवल सूक्ष्म जलीय जन्तु ही प्रवेश कर सकते हैं। थैली या ब्लैडर के अंदर पाचक एन्जाइम उन सूक्ष्म जन्तुओं को पचा देते हैं।

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