तना

पौधों का वह भाग जिसका विकास प्रांकुर से होता है वह तना कहलाता है। इसके बढ़ने का क्रम गुरुत्वाकर्षण के विपरीत होता है।

प्रमुख कार्य :

  • पौधों को मजबूती प्रदान करना।
  • शाखाओं, पत्तियों एवं पुष्पों का निर्माण करना।
  • जड़ों द्वारा अवशोषित जल एवं खनिज लवण को संवहनी उत्तक जाइलम के द्वारा पौधों के अन्य भागों तक भेजना।
  • संवहनी ऊत्तक फ्लोयम के द्वारा पत्तियों में बने भोजन (कार्बनिक पदार्थ़ों) को जड़ एवं अन्य भागों तक पहुंचाने का कार्य करता है।

तने की विशेषताएँ :

  • इसका विकास प्रांकुर से होता है।
  • यह भाग पौधों का वायुवीय भाग होता है।
  • तने पर निश्चित रूप से पर्व (internodes) एवं पर्वसंधिया (nodes) पायी जाती है, यह तने का अभिलाक्षणिक गुण होता है।
  • पर्वसंधि से पत्तियां निकलती है।

तने के तीन भाग होते हैं –

1. बाह्य क्षेत्र-छाल व वल्कुट 2. संवहनी क्षेत्र 3. मज्जा।

संवहनी क्षेत्र के मध्य में जाईलम या दारूउत्तक होता है। जो जल का संवहन रसा रोहण की प्रक्रिया के द्वारा जड़ों से पत्तियों तक करता है। यह वाहिकाओं का बना हुआ होता है। संवहनी क्षेत्र के बाहर की तरफ फ्लोयम या पोषवाह उत्तक पाया जाता है। जो भोजन का संवहन पत्तियों से जड़ों तक करता है। यह चालनी नलिकाओं से बना जीवित उत्तक होता है। चालनी नलिका एक मात्र ऐसी पादप कोशिका है जिसमें केन्द्रक नहीं पाया जाता। मज्जा क्षेत्र में मृदुत्तक या पेरेनकायमा पाया जाता है। जो पादपों का मुख्य उत्तक होता है।

यह आधारीय पैकिंग के द्वारा पौधों की सहायता करता है व भोजन का संचय करता है। हरित लवक युक्त पेरेनकायमा क्लोरेन्कायमा कहलाते हैं। जलीय पौधों में पेरेनकायमा (ऐरेनकायमा) की कोशिकाओं के मध्य हवा की गुहिकाएं (Cavities) पाई जाती है। जो उन्हें तैरने के लिए उत्प्लावन बल देती है। पादपों में वृद्धि के लिए विभिज्योत्तक या मेरिसटेमैटिकप पाये जाते हैं।

तने व मूल की वृद्धि के लिए पार्श्व (केबियम) विभिज्योत्तक होते हैं। पादपों में मजबूती के लिए दृढ़ उत्तक या स्क्रलेरेनकायमा पाये जाते हैं। जिसमें सीमेंट का कार्य करने वाले रासायनिक पदार्थ लिग्निन पाया जाता है एवं मरूस्थलीय पौधों में क्यूटिन (जल अवरोधक)। पादपों में लचीलेपन के लिए स्थूलकोण उत्तक या कोलेनकायमा पाया जाता है।

तने का रूपान्तरण :

1. भूमिगत रूपान्तरण –

यहां तना भूमि के अंदर रहता है तथा भूमि के भीतर से ही भोजन के भण्डारण का कार्य करता है। जैसे- आलू, प्याज, अदरक, हल्दी, लहसून, अरबी, जिमिकन्द इत्यादि।

  • प्रकन्द (Rhizome) – अदरक (Ginger), हल्दी (Turmaric), कैला, फर्न आदि।
  • कन्द (Tuber) – आलू (potato)।
  • शल्ककन्द (Bulb) – प्याज (Onion), लहसून (garlic)।
  • घनकन्द (Corn) – अरबी (colocasia), जिमिकन्द आदि।

2. अर्द्धवायवीय रूपान्तरण –

यहां तने का कुछ भाग भूमि में तथा शेष भाग वायुवीय (भूमि के बाहर) होता है। इन पौधों में कायिक प्रजनन (vegetative) द्वारा नये पौधों का निर्माण होता है। जैसे- जल कुम्मी, दूब, घास, स्ट्राबेरी, गुलाब, गुलदाउदी।

3. विशेष कार्य के लिय वायवीय रूपान्तरण –

  • आरोह के लिये तनों का कुछ भाग का प्रतान में रूपान्तरण हो जाता है जैसे- लोकी, अंगुर।
  • नागफनी में तना मांसल, चपटा एवं हरे रंग का पत्ती के सामान हो जाता है। पत्तियां कांटों में बदल जाती है जिसके परिणामस्वरूप वाष्पोत्सर्जन की दर कम हो जायें। नागफनी में प्रकाश संश्लेषण तने के द्वारा होता है।

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