- शुरू – 12 मार्च, 1930
- नेतृत्व – महात्मा गाँधी।
- कारन – अंग्रेज सरकार द्वारा नमक पर कर लगाने के विरोध में।
- परिणाम – 8,000 भारतीयों को नमक सत्याग्रह के दौरान जेल में डाला गया।
वर्ष 2021 के दांडी मार्च के विषय में:
- यह पदयात्रा अहमदाबाद के साबरमती आश्रम से दांडी के नवसारी तक 81 यात्रियों के साथ आरम्भ हुई , 386 किलोमीटर की यह यात्रा 25 दिनों के बाद 5 अप्रैल, 2021 को पूरी हुई।
- वर्ष 1930 के दांडी मार्च में हिस्सा लेने वाले लोगों के वंशजों को सम्मानित किया जाएगा।
- यात्रा में शामिल लोग महात्मा गांधी के दांडी मार्च में शामिल उन 78 अनुयायियों की याद में दो अतिरिक्त मार्गों के साथ उसी मार्ग (अहमदाबाद से दांडी) से गुज़रेंगे जिस मार्ग पर वर्ष 1930 की दांडी यात्रा निकाली थी।
- गांधी से जुड़े छह स्थानों पर बड़े कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा। इनमें राजकोट, वड़ोदरा, बारडोली/बारदोली (सूरत), मांडवी (कच्छ) और दांडी (नवसारी) के साथ गांधीजी की जन्मभूमि पोरबंदर शामिल हैं।
- यात्रियों द्वारा रुक-रुक कर 21 स्थानों पर सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करने की भी योजना है।
वर्ष 1930 के दांडी मार्च के बारे में:
- दांडी मार्च, जिसे नमक मार्च और दांडी सत्याग्रह के नाम से भी जाना जाता है, मोहनदास करमचंद गांधी के नेतृत्व में एक अहिंसक सविनय अवज्ञा आंदोलन था।
- इसे 12 मार्च, 1930 से 6 अप्रैल, 1930 तक ब्रिटिश नमक एकाधिकार के खिलाफ कर प्रतिरोध और अहिंसक विरोध के प्रत्यक्ष कार्रवाई अभियान के रूप में चलाया गया।
- गांधीजी ने 12 मार्च को साबरमती से अरब सागर तक दांडी के तटीय शहर तक 78 अनुयायियों के साथ 241 मील की यात्रा की गई, इस यात्रा का उद्देश्य गांधी और उनके समर्थकों द्वारा समुद्र के जल से नमक बनाकर ब्रिटिश नीति की अवहेलना करना था।
- दांडी की तर्ज पर भारतीय राष्ट्रवादियों द्वारा बंबई और कराची जैसे तटीय शहरों में नमक बनाने हेतु भीड़ का नेतृत्व किया गया।
- सविनय अवज्ञा आंदोलन संपूर्ण देश में फैल गया, जल्द ही लाखों भारतीय इसमें शामिल हो गए। ब्रिटिश अधिकारियों ने 60,000 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया। 5 मई को गांधीजी के गिरफ्तार होने के बाद भी यह सत्याग्रह जारी रहा।
- कवयित्री सरोजिनी नायडू द्वारा 21 मई को बंबई से लगभग 150 मील उत्तर में धरसना नामक स्थल पर 2,500 लोगों का नेतृत्व किया गया। अमेरिकी पत्रकार वेब मिलर द्वारा दर्ज की गई इस घटना ने भारत में ब्रिटिश नीति के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आक्रोश उत्पन्न कर दिया।
- गांधीजी को जनवरी 1931 में जेल से रिहा कर दिया गया, जिसके बाद उन्होंने भारत के वायसराय लॉर्ड इरविन से मुलाकात की। इस मुलाकात में लंदन में भारत के भविष्य पर होने वाले गोलमेज़ सम्मेलन में शामिल होने तथा सत्याग्रह को समाप्त करने पर सहमति दी गई।
- गांधीजी ने अगस्त 1931 में राष्ट्रवादी भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस के एकमात्र प्रतिनिधि के रूप में इस सम्मेलन में हिस्सा लिया। यह बैठक निराशाजनक रही, लेकिन ब्रिटिश नेताओं ने गांधीजी को एक ऐसी ताकत के रूप में स्वीकार किया जिसे वे न तो दबा सकते थे और न ही अनदेखा कर सकते थे।
दांडी मार्च (पृष्ठभूमि):
- वर्ष 1929 की लाहौर कॉन्ग्रेस ने कॉन्ग्रेस कार्य समिति को करों का भुगतान न करने के साथ ही सविनय अवज्ञा कार्यक्रम शुरू करने के लिये अधिकृत किया था।
- 26 जनवरी, 1930 को “स्वतंत्रता दिवस” मनाया गया, जिसके अंतर्गत विभिन्न स्थानों पर राष्ट्रीय ध्वज फहराकर देशभक्ति के गीत गाए गए।
- साबरमती आश्रम में फरवरी 1930 में कॉन्ग्रेस कार्य समिति की बैठक में गांधीजी को अपने अनुसार समय और स्थान का चयन कर सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू करने के लिये अधिकृत किया गया।
- गांधीजी ने भारत के वायसराय (वर्ष 1926-31) लॉर्ड इरविन को अल्टीमेटम दिया कि अगर उनके न्यूनतम मांगों को नज़रअंदाज कर दिया गया तो उनके पास सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू करने के अलावा और कोई दूसरा रास्ता नहीं बचेगा।
आंदोलन का प्रभाव:
- सविनय अवज्ञा आंदोलन को विभिन्न प्रांतों में अलग-अलग रूपों में शुरू किया गया, जिसमें विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार पर विशेष ज़ोर दिया गया।
- पूर्वी भारत में चौकीदारी कर का भुगतान करने से इनकार कर दिया गया, जिसके अंतर्गत नो-टैक्स अभियान बिहार में अत्यधिक लोकप्रिय हुआ।
- जे.एन. सेनगुप्ता ने बंगाल में सरकार द्वारा प्रतिबंधित पुस्तकों को खुलेआम पढ़कर सरकारी कानूनों की अवहेलना की।
- महाराष्ट्र में वन कानूनों की अवहेलना बड़े पैमाने पर की गई।
- यह आंदोलन अवध, उड़ीसा, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और असम के प्रांतों में आग की तरह फैल गया।
महत्त्व:
- इस आंदोलन के परिणामस्वरूप भारत में ब्रिटेन का आयात काफी गिर गया। उदाहरण के लिये ब्रिटेन से कपड़े का आयात आधा हो गया।
- यह आंदोलन पिछले आंदोलनों की तुलना में अधिक व्यापक था, जिसमें महिलाओं, किसानों, श्रमिकों, छात्रों और व्यापारियों तथा दुकानदारों जैसे शहरी तत्त्वों ने बड़े पैमाने पर भागीदारी की। अतः अब कॉन्ग्रेस को अखिल भारतीय संगठन का स्वरूप प्राप्त हो गया।
- इस आंदोलन को कस्बे और देहात दोनों में गरीबों तथा अनपढ़ों से जो समर्थन हासिल हुआ, वह उल्लेखनीय था।
- इस आंदोलन में भारतीय महिलाओं की बड़ी संख्या में खुलकर भागीदारी उनके लिये वास्तव में मुक्ति का सबसे अलग अनुभव था।
- यद्यपि कॉन्ग्रेस ने वर्ष 1934 में सविनय अवज्ञा आंदोलन वापस ले लिया, लेकिन इस आंदोलन ने वैश्विक स्तर पर ध्यान आकर्षित किया और साम्राज्यवाद विरोधी संघर्ष की प्रगति में महत्त्वपूर्ण चरण को चिह्नित किया।