जीणमाता चौहानों की कुल देवी है । जीणमाता का जन्म धांधू (चूरू) में चौहान राजपूत कुल में हुआ था । जीण और हर्ष भाईं-बहिन थे।
जीण माता का मंदिर सीकर से 25 किलोमीटर दक्षिण में रेवासा गाँव के पास की पहाडियों में स्थित है।
हर्ष पर्वत पर शिलालेख के अनुसार जीणमाता के मंदिर का निर्माण पृथ्वीराज चौहान (प्रथम) के शासन काल में हरड़ ने 1064 ई. में करवाया।
जीणमाता की अष्टभुजा प्रतिमा एक बार में ढाई प्याला मदिरा पान करती है।
जीणमाता का मेला प्रतिवर्ष चैत्र और अश्विन माह के नवरात्रों में लगता है।
जीण माता को मीणों की कुल देवी, चौहानों की कुल देवी, शेखावाटी क्षेत्र की लोक देवी एवं मधुमक्खियों की देवी के नाम से जाना जाता है।
इस गीत को कनफटे जोगी केसरिया वस्त्र पहनकर, माथे पर सिन्दूर लगाकर, डमरू और सारंगी पर गाते है। यह गीत करूण रस से ओत-प्रोत है जो ‘चिरंजा’ कहलाता है।
महाराजा महेशदान सिंह ने नागौर जिले के प्राचीन कस्बे मारोठ के पश्चिम में स्थित पर्वत की गुफा के भीतर जीण माता का एक छोटा किन्तु भव्य मंदिर बनवाया।