राजस्थान में पंचायती राज
- लार्ड रिपन ने 1882 ई. में स्थानीय स्वशासन को मजूत करने के लिए कार्य किये अत: लार्ड रिपन भारत में स्थनीय स्वशासन का जनक कहा जाता है।
- सर्वप्रथम 1919 में बंगाल में स्थानीय सरकार अधिनियम 1919 पारित गया। उसके पश्यात सभी प्रांतों में अधिनियम पारित कर पंचायतों की स्थापनाकी गयी।
- राजस्थान की बीकानेर रयासत ने 1928 में सर्वप्रथम ग्राम पंचायतों को संवैधानिक दर्जा दिया।
- जयपुर रियासत में 1938 में ग्राम पंचायत अधिनियम लागू किया गया।
- भारतीय संविधान में अनुच्छेद 40 में पंचायती राज को स्थान दिया गया है।
- गांधीजी की पुस्तक “माय पिक्चर ऑफ़ फ्री इंडिया” में भी पंचायती राज का जिक्र किया गया है। गांधीजी के अनुसार पंचायती राज गांवों के सर्वांगीण विकास का माध्यम है।
- भारत में 1951 में पहली बार ग्रामीण विकास मंत्रालय का गठन किया गया। इसके अध्यक्ष एस. के. डे थे।
- के. एम. मुंशी कमेटी की सिफारिश पर 2 अक्टूबर 1952 से गाँवों में सामुदायिक विकास कार्यक्रम प्रारम्भ किये गए।
- कालांतर में सामुदायिक विकास कार्यक्रम के उचित परिणाम नहीं निकलने की वजह से 1957 में बलवंत राय मेहता का गठन किया गया। जिसने इस कार्यक्रम की समीक्षा की। इस कमेटी की सिफारिश पर त्रिस्तरीय पंचायती राज ढांचे का जन्म हुआ और प्रंचायती राज का सर्वप्रथम प्राम्भ नागौर जिले के बगदरी गाँव ने २ अक्टूबर 1959 को जवाहरलाल नेहरू ने किया।
- त्रिस्तरीय ढाँचे के अनुसार ग्राम स्तर पर ग्राम पंचायतें, ब्लॉक स्तर पर पंचायत समितियां एवं जिला स्तर पर जिला परिषद् के गठन की बात कही गयी।
अशोक मेहता समिति
अशोक मेहता समिति का गठन दिसम्बर, 1977 ई. में अशोक मेहता की अध्यक्षता में किया गया था। ‘बलवंत राय मेहता समिति’ की सिफ़ारिशों के आधार पर स्थापित पंचायती राज व्यवस्था में कई कमियाँ उत्पन्न हो गयी थीं, इन कमियों को ही दूर करने तथा सिफ़ारिश करने हेतु ‘अशोक मेहता समिति’ का गठन किया गया था।
- पंचायती राज को संवैधानिक दर्जा दिया जाये।
- ग्राम पंचायत एवं पंचायत सनीति के मध्य मंडल पंचायत हो।
- पंचायतो के चिनाव राजनितिक चुनाव चिन्हों पर लड़ें जाये।
- जिला कलेक्टर से विकास कार्यों को अलग कर लिया जाये।
अशोक मेहता समिति की सिफ़ारिशों को अपर्याप्त माना गया और इसे अस्वीकार कर दिया गया।