राजस्थान में पीने के पानी, सिंचाई एवं विद्युत की आपूर्ति हेतु समय समय पर विभिन्न परियोजनाएं शुरू हुई। इन परियोजनाओं का मुख्या लक्ष्य नदियों पर बांध बनाकर वहां से राजस्थान के लोगों को पीने के अपनी, कृषि के लिए नहरें एवं विधुत आपूर्ति के लिए विद्युत सयंत्र लगाए गए। इस प्रकार की विभिन्न परियोजनाओं का अध्यन हम नीचे के बिंदुओं में करेंगे।
चम्बल नदी घाटी परियोजना
चम्बल परियोजना का कार्य 1952 -54 में प्रारम्भ हुआ। यह राजस्थान व मध्यप्रदेश की संयुक्त परियोजना है। इसमें दानों राज्यों की हिस्सेदारी 50-50 प्रतिशत है। इस परियोजना के अंतर्गत तीन बाँध, पाँच बिजलीघर और एक बड़ा बैराज़ बनाया गया है।
चंबल नदी पर बने बांध
चम्बल परियाजना के अंतर्गत चम्बल नदी पर बांध बनाये गए जो राजस्थान एवं मध्यप्रदेश में जल एवं विद्युत आपूर्ति करते है। इन बांधों से होकर कईं नहरे भी निकली गयी है जो दोनों राज्यों में सिचाई के लिए पानी उपलब्ध कराती है।
गांधीसागर बांध
यह बांध 1960 में मध्यप्रदेश की भानुपुरा तहसील में बनाया गया है। यह बांध चैरासीगढ़ से 8 कि.मी. पहले एक घाटी में बना हुआ है। गांधीसागर बांध से 2 नहरें निकाली गई है।
बाईं नहर – बुंदी तक जाकर मेेज नदी में मिलती है।
दांयी नहर – पार्वत नदी को पार करके मध्यप्रदेश में चली जाती है यहां पर गांधी सागर विधुत स्टेशन भी है।
राणा – प्रताप सागर बांध
राणा – प्रताप सागर बांध, गांधीसागर बांध से 48 कि.मी. आगे चित्तौड़गढ़ में चुलिया जल प्रपात के समीप रावतभाटा नामक स्थान पर 1970 में बनाया गया है।
जवाहर सागर बांध
इसे कोटा बांध भी कहते हैं, यह राणा प्रताप सागर बांध से 38 कि.मी. आगे कोटा के बोरावास गांव में बना हुआ है। यहां एक विधुत शक्तिा ग्रह भी बनाया गया है।
कोटा बैराज
यह कोटा शहर के पास बना हुआ है। इसमें से दो नहरें निकलती है।
दायीं नहर – पार्वती व परवन नदी को पार करके मध्यप्रदेश में चली जाती है।
बायी नहर – कोटा, बुंदी, टोंक, सवाई माधोपुर, करौली मं जलापूर्ति करती है।
भाखड़ा नांगल परियोजना
भाखड़ा नांगल परियोजना भारत की सबसे बड़ी नदी घाटी परियाजना है। पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश की संयुक्त परियोजना है। इसमें राजस्थान का हिस्सा 15.2 प्रतिशत है। हिमाचल प्रदेश का हिस्सा केवल जल विधुत के उत्पादन में ही है। सर्वप्रथम पंजाब के गर्वनर लुईस डैन ने सतलज नदी पर बांध बनाने का विचार प्रकट किया। इस बांध का निर्माण 1946 में प्रारम्भ हुआ एवं 1962 को इसे राष्ट्र को समर्पित किया गया। यह भारत का सबसे ऊंचा बांध है। भाखड़ा बांध के जलाशय का नाम गोबिन्द सागर है। यह 518 मीटर लम्बा 9.1 मीटर चौड़ा और 220 मीटर ऊंचा है।
भाखड़ा नांगल परियोजना के अंतर्गत बने बांध
भाखड़ा बांध
भाखड़ा बांधका निर्माण पंजाब के होशियारपुर जिले में सतलज नदी पर भाखड़ा नामक स्थाप पर किया गया है। इसका जलाशय गोविन्द सागर है। इस बांध को देखकर पं. जवाहरलाल नेहरू ने इसे चमत्कारिक विराट वस्तु की संज्ञा दी और बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजनाओं को आधुनिक भारत का मन्दिर कहा है।
नांगल बांध
नांगल बांध बांध भाखड़ा से 12 कि.मी. पहले एक घाटी में बना है इससे 64 कि.मी. लम्बी नहर निकाली गई है जो अन्य नहरों को जलापूर्ति करती है।
भाखड़ा मुख्य नहर
भाखड़ा मुख्य नहर पंजाब के रोपड़ से निकलती है यह हरियाणा के हिसार के लोहाणा कस्बे तक विस्तारित है। इसकी कुल लम्बाई 175 कि.मी. है।
इसके अलावा इस परियोजना में सरहिन्द नहर, सिरसा नहर, नरवाणा नहर, बिस्त दो आब नहर निकाली गई है। इस परियोजना से राजस्थान के श्री गंगानगर व हनुमानगढ़ चुरू जिलों को जल व विधुत एवं श्री गंगानगर, हनुमानगढ़, चुरू, झुझुनू, सीकर बीकानेर को विधुत की आपूर्ति होती है।
व्यास परियोजना
यह पंजाब, राजस्थान, हरियाणा में है। इस परियोजना के प्रथम चरण में 1 बांध, व्यास लिंक का निर्माण और एक विधुत ग्रह का निर्माण किया गया है। द्वितीय चरण में व्यास नदी पर पौंग बांध बनाया गया। इससे इंदिरा गाँधी नहर परियोजना ( IGNP) में नियमित जलापूर्ति रखने में मदद मिलती है।
रावी – व्यास जल विवाद
जल के बंटवारे के लिए 1953 में राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, जम्मु – कश्मीर, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश राज्यों के बीच एक समझौता हुआ इसमें सभी राज्यों के लिए अलग- अलग पानी की मात्रा निर्धारित की गई लेकिन इसके बाद भी यह विवाद थमा नहीं तब सन् 1985 में राजीव गांधी लौंगवाला समझौते के अन्तर्गत न्यायमूर्ति इराडी की अध्यक्षता में इराडी आयोग बनाया गया था। इस आयोग ने राजस्थान के लिए 86 लाख एकड़ घन फीट जल की मात्रा तय की है।
माही – बजाज सागर परियोजना
माही – बजाज सागर परियोजना राजस्थान एवं गुजरात की संयुक्त परियोजना है। 1966 में हुए समझौते के अनुसार इस परियोजना में राजस्थान का हिस्सा 45 प्रतिशत व गुजरात का हिस्सा 55 प्रतिशत है। इस परियोजना में गुजरात के पंच महल जिले में माही नदी पर कड़ाना बांध का निर्माण किया गया है।
इसी परियोजना के अंतर्गत बांसवाड़ा के बोरखेड़ा गांव में माही बजाज सागर बांध बना हुआ है। इसके अलावा यहां 2 नहरें, 2 विधुत ग्रह, 2 लघु विधुत ग्रह व 1 कागदी पिक अप बांध बना हुआ है। 1983 में इन्दिरा गांधी ने जल प्रवाहित किया। इस परियोजना से डुंगरपुर व बांसवाड़ा जिलों की कुछ तहसीलों को जलापूर्ति होती है।
इन्दिरा गांधी नहर परियोजना(IGNP)
इन्दिरा गांधी नहर परियोजना को प्रदेश की जीवन रेखा/मरूगंगा भी कहा जाता है। यह परियोजना पूर्ण होने पर विश्व की सबसे बड़ी परियोजना होगी। पहले इसका नाम राजस्थान नहर था। 2 नवम्बर 1984 को राजस्थान नहर का नाम इन्दिरा गांधी नहर परियोजना कर दिया गया। बीकानेर के इंजीनियर कंवर सैन ने 1948 में भारत सरकार के समक्ष एक प्रतिवेदन पेश किया जिसका विषय ‘ बीकानेर राज्य में पानी की आवश्यकता‘ था। IGNP का मुख्यालय जयपुर में है।
इस नहर का निर्माण का मुख्य उद्द्देश्य रावी व्यास नदियों के जल से राजस्थान को आवंटित 86 लाख एकड़ घन फीट जल को उपयोग में लेना है। नहर निर्माण के लिए सबसे पहले फिरोजपुर में सतलज, व्यास नदियों के संगम पर 1952 में हरिकै बैराज का निर्माण किया गया। हरिकै बैराज से बाड़मेर के गडरा रोड़ तक नहर बनाने का लक्ष्य रखा गया। जिससे श्री गंगानगर, बीकानेर, जैसलमेर व बाड़मेर को जलापूर्ति हो सके।
नहर निर्माण कार्य का श्री गणेश तात्कालिक ग्रहमंत्री श्री गोविन्द वल्लभ पंत ने 31 मार्च 1958 को किया । 11 अक्टुबर 1961 को इससे सिंचाई प्रारम्भ हो गई, जब तात्कालिन उपराष्ट्रपति डा. राधाकृष्णनन ने नहर की नौरंगदेसर वितरिका में जल प्रवाहित किया था।
इन्दिरा गांधी नहर परियोजना के भाग
राजस्थान फीडर : प्रथम भाग राजस्थान फीडर कहलाता है इसकी लम्बाई 204 कि.मी.(169 कि.मी. पंजाब व हरियाणा + 35 कि.मी. राजस्थान) है। जो हरिकै बैराज से हनुमानगढ़ के मसीतावाली हैड तक विस्तारित है। नहर के इस भाग में जल का दोहन नहीं होता है।
मुख्य नहर : IGNP का दुसरा भाग है। इसकी लम्बाई 445 किमी. है। यह मसीतावाली से जैसलमेर के मोहनगढ़ कस्बे तक विस्तारित है। इस प्रकार IGNP की कुल लम्बाई 649 किमी. है। इसकी वितरिकाओं की लम्बाई 9060 किमी. है। IGNP के निर्माण के प्रथम चरण में राजस्थान फीडर सूरतगढ़, अनुपगढ़, पुगल शाखा का निर्माण हुआ है। इसके साथ-साथ 3075 किमी. लम्बी वितरक नहरों का निर्माण हुआ है।
राजस्थान फीडर का निर्माण कार्य सन् 1975 में पूरा हुआ। नहर निर्माण के द्वितीय चरण में 256 किमी. लम्बी मुख्य नहर और 5112 किमी. लम्बी वितरक प्रणाली का लक्ष्य रखा गया है। नहर का द्वितीय चरण बीकानेर के पूगल क्षेत्र के सतासर गांव से प्रारम्भ हुआ था। जैसलमेर के मोहनगढ़ कस्बे में द्वितीय चरण पूरा हुआ है। इसलिए मोहनगढ़ कस्बे को IGNP का ZERO POINT कहते हैं।
मोहनगढ़ कस्बे से इसके सिरे से लीलवा व दीघा दो उपशाखाऐं निकाली गयी है। द्वितीय चरण का कार्य 1972-73 में पुरा हुआ है। 256 किमी. लम्बी मुख्य नहर दिसम्बर 1986 में बनकर तैयार हुई थी। 1 जनवरी 1987 को वी. पी.(विश्व नाथप्रताप) सिंह ने इसमें जल प्रवाहित किया।
IGNP नहर की कुल सिंचाई 30 प्रतिशत भाग लिफ्ट नहरों से तथा 70 प्रतिशत शाखाओं के माध्यम से होता है।
रावी – व्यास जल विवाद हेतु गठित इराड़ी आयोग(1966) के फैसले के आधार पर राजस्थान को प्राप्त कुल 8.6 एम. ए. एफ. जल में से 7.59 एम. ए. एफ. जल का उपयोग IGNP के माध्यम से किया जायेगा।
IGNP के द्वारा राज्य के आठ जिलों – हनुमानगढ़, श्री गंगानगर, चूरू, बीकानेर, जोधपुर, नागौर, जैसलमेर एवं बाड़मेर में सिंचाई हो रही है। इनमें से सर्वाधिक ग्रहण क्षेत्र क्रमशः जैसलमेर एवं बीकानेर जिलों का है।
इन्दिरा गांधी नहर से निकली लिफ्ट नहरें
- गंधेली(नोहर) साहवा लिफ्ट चैधरी कुम्भाराम लिफ्ट नहर हनुमानगढ़, चुरू, झुंझुनू
- बीकानेर – लुणकरणसर लिफ्ट कंवरसेन लिफ्ट नहर श्री गंगानगर, बीकानेर
- गजनेर लिफ्ट नहर पन्नालाल बारूपाल लिफ्ट नहर बीकानेर, नागौर
- बांगड़सर लिफ्ट नहर भैरूदम चालनी वीर तेजाजी लिफ्ट नहर बीकानेर
- कोलायत लिफ्ट नहर डा. करणी सिंह लिफ्ट नहर बीकानेर, जोधपुर
- फलौदी लिफ्ट नहर गुरू जम्भेश्वर जलो उत्थान योजना जोधपुर, बीकानेर, जैसलमेर
- पोकरण लिफ्ट नहर जयनारायण व्यास लिफ्ट जैसलमेर, जोधपुर
- जोधपुर लिफ्ट नहर(170 किमी. + 30 किमी. तक पाईप लाईन) राजीवगांधी लिफ्ट नहर जोधपुर
बीकानेर – लुणकरणसर लिफ्ट नहर सबसे लम्बी बड़ी नहर है।
इन्दिरा गांधी नहर की मुख्य शाखाएं
- रावतसर(हनुमानगढ़)
यह IGNP की प्रथम शाखा है जो एक मात्र ऐसी शाखा है। जो नहर के बांयी ओर से निकलती है। - सुरतगढ़ – श्री गंगानगर
- अनूपगढ़ – श्री गंगानगर
- पुगल – बीकानेर
- चारणवाला – बीकानेर
- दातौर – बीकानेर
- बिरसलपुर – बीकानेर
- शहीद बीरबल – जैसलमेर
- सागरमल गोपा – जैसलमेर
इन्दिरा गांधी नहर की उपशाखाएं
- लीलवा
- दीघा – मोहनगढ़ से निकाली गयी हैं।
- बरकतुल्ला खां(गडरा रोड उपशाखा़) – सागरमल गोपा शाखा से निकाली गई है।
- बाबा रामदेव उपशाखा
IGNP से हनुमानगढ़, श्री गंगानगर, बीकानेर, जैसलमेर, बाड़मेर, नागौर, चुरू, जोधपुर, झुझुनू को पेयजल उपलब्ध हो सकेगा। तथा 18.36 लाख हैक्टेयर सिंचाई योग्य क्षेत्र उपलब्ध हो सकेगा।
इंदिरा गाँधी नहर में पानी के नियमित बहाव हेतु व्यास – सतलज नदी पर बांध बनाया गया एवं व्यास नदी पर पौंग बांध बनाया गया। रावी – व्यास नदियों के संगम पर पंजाब के माधोपुर नामक स्थान पर एक लिंक नहर का निर्माण।
गंधेली साहवा लिफ्ट नहर से जर्मनी के सहयोग से ‘आपणी योजना‘ बनाई गई है। इस योजना के प्रथम चरण में हनुमानगढ़, चुरू, और इसके द्वितीय चरण में चुरू व झुझुनू के कुछ गांवों में जलापुर्ति होगी।
IGNP की सूरतगढ़ व अनूपगढ़ शाखाओं पर 3 लघु विधुत ग्रह बनाये गये है। भविष्य में इस नहर को कांडला बन्दरगाह से जोड़ने की योजना है। जिससे यह भारत की राइन नदी बन जाएगी।
डा. सिचेन्द द्वारा आविष्कारित लिफ्ट ट्रांसलेटर यंत्र नहर के विभिन्न स्थानों पर लगा देने से इससे इतनी विधुत उत्पन्न की जा सकती है जिससे पूरे उत्तरी – पश्चिमी राजस्थान में नियमित विधुत की आपूर्ति हो सकती है।
गंग नहर
गंगनहर भारत की प्रथम नहर सिंचाई परियोजना है। बीकानेर के महाराजा गंगासिंह के प्रयासों से गंगनहर के निर्माण द्वारा सतलज नदी का पानी राजस्थान में लाने हेतु 4 दिसम्बर 1920 को बीकानेर, भावलपुर और पंजाब राज्यों के बीच सतलज नदी घाटी समझौता हुआ था।
गंगनहर की आधारशिला फिरोजपुर हैडबाक्स पर 5 सितम्बर 1921 को महाराजा गंगासिंह द्वारा रखी गई।
26 अक्टूबर 1927 को तत्कालीन वायसराय लार्ड इरविन ने श्री गंगानगर के शिवपुर हैड बाॅक्स पर उद्घाटन करते हैं। यह नहर सतलज नदी से पंजाब के फिरोजपुर के हुसैनीवाला से निकाली गई है। श्री गंगानगर के संखा गांव में यह राजस्थान में प्रवेश करती है। शिवपुर, श्रीगंगानगर, जोरावरपुर, पदमपुर, रायसिंह नगर, स्वरूपशहर, होती हुई यह अनूपगढ़ तक जाती है।
मुख्य नहर की लम्बाई 129 कि.मी. है।(112 कि.मी. पंजाब + 17 कि.मी. राजस्थान) फिरोजपुर से शिवपुर हैड तक है। नहर की वितरिकाओं की लम्बाई 1280 कि.मी. है। लक्ष्मीनारायण जी, लालगढ़, करणीजी, समीक्षा इसकी मुख्य शाखा है। नहर में पानी के नियमित बहाव और नहर के मरम्मत के समय इसे गंगनहर लिंक से जोड़ा गया है।यह लिंक नहर व हरियाणा में लोहागढ़ से निकाली गई है। और श्रीगंगानगर के साधुवाली गांव में गंगनहर से जोड़ा गया है।
भरतपुर नहर
यह नहर पश्चिमी यमुना की आगरा नहर से निकाली गई है। भरतपुर नरेश ने सन् 1906 में इस नहर का निर्माण कार्य शुरू करवाया था जो 1963 – 64 में यह बनकर तैयार हुई थी। इसकी कुल लम्बाई 28 कि.मी.(16 उत्तर प्रदेश + 12 राजस्थान) है। इससे भी भरतपुर में जलापूर्ति होती है।
गुड़गांव नहर
यह नहर हरियाणा व राजस्थान की संयुक्त नहर है। इस नहर के निर्माण का मुख्य उद्देश्य मानसूनकाल में यमुना नदी के अतिरिक्त जल को उपयोग लाना है। 1966 मं इसका निर्माण कार्य शुरू हुआ एवं 1985 में पुरा हो गया। यह नहर यमुना नदी में उत्तरप्रदेश के औंखला से निकाली गई है। यह भरतपुर जिले की कामा तहसील के जुरेरा(जुटेरा) गांव में राजस्थान में प्रवेश करती है। इससे भरतपुर की कामा व डींग तहसील की जलापूर्ति होती है। इसकी कुल लम्बाई 58 कि.मी. है। आजकल इसे यमुना लिंक परियोजना कहते हैं।
भीखाभाई सागवाड़ा माही नहर
यह डुंगरपुर जिले में हैं इस परियोजना को 2002 में केन्द्रीय जल आयोग ने स्वीकृति प्रदान की। इसमें माही नदी पर साइफन का निर्माण कर यह नहर निकाली गई है। इससे डुंगरपुर जिले में लगभग 21000 हेक्टेयर में सिंचाई सुविधा उपलब्ध होगी।
6. जाखम परियोजना-
यह परियोजना 1962 में प्रारम्भ की गई। यह परियोजना चित्तौड़गढ़ – प्रतापगढ़ मार्ग पर अनुपपुरा गांव में बनी हुई है। यह राजस्थान की सबसे ऊंचाई पर स्थित बांध है। इस परियोजना से प्रतापगढ़, चित्तौड़गढ़, बांसवाड़ा के आदिवासी कृषक लाभान्वित होते हैं। यह परियोजना आदिवासी क्षेत्रों के लिए लाभदायक सिद्ध हुई है। जल विधुत उत्पादन की दो इकाईयां है। 1968 में यह शुरू हुई 1986 में जल प्रवाहित किया गया पूर्णरूप से यह परियोजना 1997-98 में पूर्ण हुई है।
सिद्धमुख नहर परियोजना
इसका नाम अब राजीव गांधी नहर परियोजना है इसका शिलान्यास 5 अक्टुबर 1989 को राजीव गांधी ने भादरा के समीप भिरानी गांव से किया। रावी-व्यास नदियों के अतिरिक्त जल का उपयोग में लेना है, इसके लिए भाखड़ा मुख्य नहर से 275 कि.मी. लम्बी एक नहर निकाली गयी है।
इस परियोजना को आर्थिक सहायता यूरोपीय आर्थिक समुदाय से प्राप्त हुई है। इससे नोहर, भादरा(हनुमानगढ़), तारानगर, सहवा(चुरू) तहसिलों को लाभ मिल रहा है। इस परियोजना का 12 जुलाई 2002 को श्री मति सोनिया गांधी द्वारा लोकार्पण किया गया। इस परियोजना के लिए पानी भाखड़ा नांगल हैड वर्क से लाया गया है।
बीसलपुर परियोजना
यह परियोजना बनास नदी पर टोंक जिले के टोडारायसिंह कस्बे में है। यह पेयजल की परियोजना है। इसका प्रारम्भ 1988-89 में हुआ। यह राजस्थान की सबसे बड़ी परियोजना है। इससे दो नहरें भी निकाली गयी है। इससे अजमेर, जयपुर, टोंक में जलापूर्ति होती है। इसे NABRD के RIDF से आर्थिक सहायता प्राप्त होती है।
नर्मदा नहर परियोजना
यह गुजरात, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान की संयुक्त परियोजना है। इस परियोजना में राजस्थान के लिए 0.5 एम. ए. फ.(मिलियन एकड़ फीट) निर्धारित की गई है। इस जल को लेने के लिए गुजरात के सरदार सरोवर बांध से नर्मदा नहर(458 कि.मी. गुजरात + 75 कि.मी. राजस्थान) निकाली गई है। यह नहर जालौर जिले की सांचैर तहसील के सीलू गांव में राजस्थान मं प्रवेश करती है। फरवरी 2008 को वसुंधरा राजे ने जल प्रवाहित किया। इस परियोजना में सिंचाई केवल फुव्वरा पद्धति से करने का प्रावधान है। जालौर व बाड़मेर की गुढ़ा मलानी तहसील लाभान्वित होती है।
ईसरदा परियोजना
बनास नदी के अतिरिक्त जल को लेने के लिए यह परियोजना सवाई माधोपुर के ईसरदा गांव में बनी हुई है। इससे सवाईमाधोपुर, टोंक, जयपुर की जलापूर्ति होती है।
राजस्थान में अन्य बहुद्देश्यीय परियोजनाएं-
1. जवाई बांध-
यह बांध लूनी नदी की सहायक जवाई नदी पर पाली के सुमेरपुर में बना हुआ है। इसका निर्माण जोधपुर के महाराजा उम्मेदसिंह ने 13 मई 1946 को शुरू करवाया, 1956 में इसका निर्माण कार्य पुरा हुआ।
पहले इस बांध को अंग्रेज इंजीनियर एडगर और फर्गुसन के निर्देशन में शुरू करवाया बाद में मोतीसिंह की देखरेख में बांध का कार्य पूर्ण हुआ। इसे मारवाड़ का ‘अमृत सरोवर‘ भी कहते हैं। इससे एक नहर और उसकी शाखाएं निकाली गयी हैं।
जवाई बांध में पानी की आवक कम होने पर इसे उदयपुर के कोटड़ा तहसील में निर्मित सेई परियोजना से जोड़ा गया है। 9 अगस्त 1977 को सेई का पानी पहली बार जवाई बांध में डाला गया इस बांध के जीर्णोद्धार का कार्य 4 अप्रैल 2003 को सोनिया गांधी ने शुरू किया।
2. मेजा बांध-
यह बांध भीलवाड़ा के माण्डलगढ़ कस्बे में कोठारी नदी पर है। इससे भीलवाड़ा शहर को पेयजल की आपूर्ति होती है। मेजा बांध की पाल पर मेजा पार्क को ग्रीन माउण्ट कहते हैं। यह माउण्ट फुलों और सब्जियों के लिए प्रसिद्ध है।
3. पांचणा बांध-
करौली जिले के गुड़ला गांव में बालू मिट्टी से निर्मित बांध है। इस बांध में भद्रावती, बरखेड़ा, अटा, माची, भैसावर पांच नदियां आकर गिरती है। इसलिए इसे पांचणा बांध कहते है। यह मिट्टी से निर्मित राजस्थान का सबसे बड़ा बांध है यह अमेरिका के आर्थिक संयोग से बनाया गया है। इससे करौली, सवाईमाधोपुर, बयाना(भरतपुर) में जलापूर्ति होती है।
4. मानसी वाॅकल परियोजना-
यह राजस्थान सरकार व हिन्दुस्तान जिंक लिमिटेड की संयुक्त परियोजना है। इसमें 70 प्रतिशत जल का उपयोग उदयपुर व 30 प्रतिशत जल का उपयोग हिन्दुस्तान जिंक लिमिटेड करता है। इस परियोजना में 4.6 कि.मी. लम्बी सुरंग बनी हुई है। यह भारत व राजस्थान की सबसे बड़ी जल सुरंग है।
5. पार्वती परियोजना(आंगई बांध)-
इस योजना में धौलपुर जिल में पार्वती नदी पर 1959 में एक बांध का निर्माण किया गया। इससे धौलपुर जिले में सिंचाई सुविधा उपलब्ध हो रही है।
6. ओराई सिंचाई परियोजना-
इसमें चित्तौड़गढ़ जिले में भोपालपुरा गांव के पास ओराई नदी पर एक बांध का निर्माण किया गया। इस बांध से एक नहर निकाली गई है जिसकी लम्बाई 34 कि.मी. है। इस परियोजना से चित्तौड़गढ़ एवं भीलवाड़ा जिले में सिंचाई सुविधा प्राप्त हो रही है।
7. गम्भीरी योजना-
इस बांध का निर्माण निम्बाहेड़ा(चित्तौड़गढ़) के पास गम्भीरी नदी पर 1956 में किया गया। यह मिट्टी से निर्मित बांध है। इस बांध से चित्तौड़गढ़ जिले को सिंचाई सुविधा उपलब्ध हो रही है।
8. इन्दिरा लिफ्ट सिंचाई परियोजना-
यह करौली जिले की सबसे बड़ी सिंचाई परियोजना है। इसमें चम्बल नदी के पानी को कसेडु गांव(करौली) के पास 125 मीटर ऊंचा उठाकर करौली, बामनवास(सवाईमाधोपुर) एवम् बयाना(भरतपुर) में सिंचाई सुविधा प्रदान की गई।