राजस्थान के राजपूतों के नगरों और प्रासदों का निर्माण पहाडि़यों में हुआ, क्योकि वहां शुत्रओं के विरूद्ध प्राकृतिक सुरक्षा के साधन थे। यहां के राजा शुक्र नीति के अनुसार अपने दुर्गों का निर्माण करवाते थे। शुक्रनीति में दुर्गो की नौ श्रेणियों का वर्णन किया गया।
दुर्गों के प्रकार :
- एरण दूर्ग – खाई, कांटों तथा कठौर पत्थरों से युक्त जहां पहुंचना कठिन हो जैसे – रणथम्भौर दुर्ग।
- पारिख दूर्ग – जिसके चारों ओर खाई हो जैसे -लोहगढ़/भरतपुर दुर्ग।
- पारिध दूर्ग – ईट, पत्थरों से निर्मित मजबूत परकोटा -युक्त जैसे -चित्तौड़गढ दुर्ग
- वन/ओरण दूर्ग – चारों ओर वन से ढ़का हुआ जैसे- सिवाणा दुर्ग।
- जल/ओदक – पानी से घिरा हुआ जैसे – गागरोन दुर्ग
- गिरी दूर्ग – एकांत में पहाड़ी पर हो तथा जल संचय प्रबंध हो जैसे-दुर्ग, कुम्भलगढ़
- सैन्य दूर्ग – जिसकी व्यूह रचना चतूर वीरों के होने से अभेद्य हो यह दुर्ग माना जाता हैं
- सहाय दूर्ग – सदा साथ देने वाले बंधुजन जिसमें हो।
चित्तौड़गढ़ दुर्ग
- यह चित्रकुट पहाड़ी पर बना, राजस्थान का प्राचीनतम गिरी दुर्ग है।
- इस दुर्ग का निर्माण चित्रांगन मौर्य ने 8 वीं सदी में करवाया।
- इस दुर्ग को राजस्थान का गौरव, राजस्थान के दक्षिण पूर्व का प्रवेशद्वार तथा दुर्गों का सिरमौर कहा जाता हैं।
- इस किले के बारे में कहा जाता है कि “गढ तो चित्तौड़गढ बाकी सब गढैया”।
- चित्तौडग़ढ़ दुर्ग क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बड़ा दुर्ग है।
चित्तौड़गढ़ दुर्ग में दर्शनीय स्थल
विजय स्तम्भ
इसे मेवाड़ नरेश राणा कुम्भा ने महमूद खिलजी के नेतृत्व वाली मालवा और गुजरात की सेनाओं पर विजय (1442 ई.) के स्मारक के रूप में भगवान विष्णु के निमित विजय स्तम्भ का निर्माण करवाया। इसे विष्णु स्तम्भ भी कहा जाता है। यह स्तम्भ 9 मंजिला तथा 120 फीट ऊंचा है। इस स्तम्भ के चारों ओर हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्तियां अंकित है। विजय स्तम्भ को भारतीय इतिहास में मूर्तिकला का विश्वकोष अथवा अजायबघर भी कहते हैं। विजय स्तम्भ का शिल्पकार जैता, नापा, पौमा और पूंजा को माना जाता है।
जैन कीर्ति स्तम्भ
चित्तौडगढ़ दुर्ग में स्थित जैन कीर्ति स्तम्भ का निर्माण अनुमानतः भगेरवाल जैन जीजा कथोड द्वारा 11 वीं या 12 वी. शताब्दी में करवाया गया। यह 75 फुट ऊंचा और 7 मंजिला है।
कुम्भ श्याम मंदिर, मीरा मंदिर, पदमनी महल,फतेह प्रकाश संग्रहालय तथा कुम्भा के महल (वर्तमान में जीर्ण -शीर्ण अवस्था आदि प्रमुख दर्शनिय स्थल है।
साके
प्रथम साका -> सन् 1303 ई. में मेवाड़ के महाराणा रावल रतनसिंह चित्तौड़ का प्रथम साका हुआ। चित्तौडगढ़ को आक्रान्त करने वाला आक्रान्ता अल्लाउद्दीन खिलजी था। उसने दुर्ग का नाम बदलकर खिज्राबाद कर दिया। चित्तौडगढ़ के प्रथम साके/ युद्ध का आंखों देखी अलाउद्दीन का दरबारी कवि और लेखक अमीर ने अपनी कृति तारीख -ए-अलाई में प्रस्तुत किया।
द्वितीय साका -> 1534 ई. में मेवाड़ के शासक विक्रमादित्य के समय शासक बहादुर शाह ने किया। युद्ध के उपरान्त महाराणी कर्णावती ने जौहर किया।
तृतीय साका-> सन् 1567 ई. में मेवाड़ के महाराणा उदयसिंह के मुगल सम्राट अकबर ने आक्रमण किया था। चित्तौडगढ़ का तृतीय साका जयमल राठौड़ और पता सिसोदिया के पराक्रम और बलिदान के लिए प्रसिद्ध है।
चित्तौड़गढ के प्रथम साके में रतन सिंह के साथ सेनानायक गोरा व बादल (रिश्ते मे पदमिनी के थे) शहीद हुए।
अजयमेरू दुर्ग(तारागढ़)
- बीठली पहाड़ी पर बना होने के कारण इस दुर्ग को गढ़बीठली के नाम से जाना जाता है।
- यह गिरी श्रेणी का दुर्ग है। यह दुर्ग पानी के झालरों के लिए प्रसिद्ध है
- इस दुर्ग का निर्माण अजमेर नगर के संस्थापक चैहान नरेश अजयराज ने करवाया।
- मेवाड़ के राणा रायमल के युवराज (राणा सांगा के भाई) पृथ्वी राज (उड़ाणा पृथ्वी राज) ने अपनी तीरांगना पत्नी तारा के नाम पर इस दुर्ग का नाम तारागढ़ रखा।
- रूठी रानी (राव मालदेव की पत्नी) आजीवन इसी दुर्ग में रही।
- तारागढ़ दुर्ग की अभेद्यता के कारण विशप हैबर ने इसे “राजस्थान का जिब्राल्टर ” अथवा “पूर्व का दूसरा जिब्राल्टर” कहा है।
- इतिहासकार हरबिलास शारदा ने “अखबार-उल-अखयार” को उद्घृत करते हुए लिखा है, कि तारागढ़ कदाचित भारत का प्रथम गिरी दुर्ग है।
- तारागढ़ के भीतर प्रसिद्ध मुस्लिम संत मीरान साहेंब (मीर सैयद हुसैन) की दरगाह स्थित है।
- रूठी रानी का वास्तविक नाम उम्रादे भटियाणी था।
तारागढ दुर्ग(बूंदी)
- इस दुर्ग का निर्माण देवसिंह हाड़ा/बरसिंह हाड़ा ने करवाया।
- तारे जैसी आकृति के कारण इस दुर्ग का नाम तारागढ़ पड़ा।
- यह दुर्ग “गर्भ गुंजन तोप” के लिए प्रसिद्ध है।
- भीम बुर्ज और रानी जी की बावड़ी (राव अनिरूद्ध सिंह) द्वारा इस दुर्ग मे स्थित हैं
- रंग विलास (चित्रशाला) इस दुर्ग में स्थित हैं।
- रंग विलास चित्रशाला का निर्माण उम्मेद सिंह हाड़ा ने किया।
- इतिहासकार किप्ल्रिन के अनुसार इस किले का निर्माण भूत-प्रेत व आत्माओं द्वारा किया गया। तारागढ दुर्ग (बूंदी) भित्ति चित्रण की दृष्टि से समृद्ध किया जाता है।
रणथम्भौर दुर्ग (सवाई माधोपुर)
- सवाई माधोपुर जिले में स्थित यह दुर्ग अरावली की घिरा हुआ एरण दुर्ग है।
- दूर से देखने पर यह दुर्ग दिखाई नहीं देता है।
- यह दुर्ग जगत/जयंत द्वारा निर्मित दुर्ग है।
- अबुल फजल ने इस दुर्ग के लिए लिखा है कि ” अन्य नंगे है जबकि यह दुर्ग बख्तरबंद है।”
दर्शनिय स्थल
1.रनिहाड़ तालाब 2. जोगी महल 3. सुपारी 4.जोरां-भोरां/जवरां- भवरां के महल 5. त्रिनेत्र गणेश 6. 32 कम्भों की छत्तरी 7. रानी महल 8.हम्मीर
मेहरानगढ़ दुर्ग(जोधपुर)
- राठौड़ों के शौर्य के साक्षी मेहरानगढ़ दुर्ग की नींव मई, 1459 में रखी गई।
- मेहरानगढ़ दुर्ग चिडि़या-टूक पहाडी पर बना है।
- मोर जैसी आकृति के कारण यह किला म्यूरघ्वजगढ़ कहलाता है।
दर्शनिय स्थल
1.चामुण्डा माता मंदिर –यह मंदिर राव जोधा ने बनवाया।
1857 की क्रांति के समय इस मंदिर के क्षतिग्रस्त हो जाने के कारण इसका पुनर्निर्माण महाराजा तखतसिंह न करवाया।
2.चैखे लाव महल- राव जोधा द्वारा निर्मित महल है।
3.फूल महल –राव अभयसिंह राठौड़ द्वारा निर्मित महल है।
- फतह महल –इनका निर्माण अजीत सिंह राठौड ने करवाया।
- मोती महल –इनका निर्माता सूरसिंह राठौड़ को माना जाता है।
- भूरे खां की मजार
- महाराजा मानसिंह पुस्तक प्रकाश (पुस्तकालय)
- दौलतखाने के आंगन में महाराजा तखतसिंह द्वारा विनिर्मित एक शिंगगार चैकी (श्रृंगार चैकी) है जहां जोधपुर के राजाओं का राजतिलक होता था।
दुर्ग के लिए प्रसिद्ध उन्ति – ” जबरों गढ़ जोधाणा रो”
ब्रिटिश इतिहासकार किप्लिन ने इस दुर्ग के लिए कहा है कि – इस दुर्ग का निर्माण देवताओ,फरिश्तों, तथा परियों के माध्यम से हुआ है।
दुर्ग में स्थित प्रमुख तोपें- 1.किलकिला 2.शम्भू बाण 3. गजनी खां 4. चामुण्डा 5. भवानी
सोनारगढ़ दुर्ग(जैसलमेर)
- इस दुर्ग को उत्तर भड़ किवाड़ कहते है।
- यह दुर्ग धान्व व गिरी श्रेणी का दुर्ग है।
- यह दुर्ग त्रिकुट पहाड़ी/ गोहरान पहाड़ी पर बना है।
- दुर्ग के अन्य नाम – गोहरानगढ़ , जैसाणागढ़
- स्थापना -राव जैसल भाटी के द्वारा 1155 ई. में हुआ।
- दुर्ग निर्माण में चूने का प्रयोग नहीं हुआ है।
- पीले पत्थरों से निर्मित होने के कारण स्वर्णगिरि कहलाती है।
- इस किले में 99 बुर्ज है।
- यह दुर्ग राजस्थान में चित्तौड़गढ के पश्चात् सबसे बडा फोर्ट है।
- जैसलमेर दुर्ग की सबसे प्रमुख विशेषता इसमें ग्रन्थों का एक दुर्लभ भण्डार है जो जिनभद्र कहलाता है। सन् 2005 में इस दुर्ग को वल्र्ड हैरिटेज सूची में शामिल किया गया।
- आॅस्कर विजेता ” सत्यजीतरे” द्वारा इस दुर्ग फिल्म फिल्माई गई।
जैसलमेर में ढाई साके होना लोकविश्रुत है।
1.पहला साका – दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलज्जी व भाटी शासक मूलराज के मध्य युद्ध हुआ।
2.द्वितीय साका – फिरोज शाह तुगलक के आक्रमण रावल दूदा व त्रिलोक सिंह के नेतृत्व मे वीरगति प्राप्त की।
3.तीसरा साका – जैसलमेर का तीसरा साका जैसलमेर का अर्द्ध साका राव लूणसर में 1550ई. में हुआ।
आक्रमणकत्र्ता कन्द शासक अमीर अली था।
प्रसिद्व उक्ति
गढ़ दिल्ली, गढ़ आगरा, अधगढ़ बीकानेर।
भलो चिणायों भाटियां, गढ ते जैसलमेर।
अबुल फजल ने इस दुर्ग के बारे में कहा है कि केवल पत्थर की टांगे ही यहां पहुंचा सकती है।
7. मैग्जीन दुर्ग(अजमेर)
- यह दुर्ग स्थल श्रेणी का है।
- मुगल सम्राट अकबर द्वारा निर्मित है।
- इस दुर्ग को ” अकबर का दौलतखाना” के रूप में जाना जाता है।
- पूर्णतः मुस्लिम स्थापत्य कला पर आधारित है।
- सर टाॅमस ने सन् 1616 ई. में जहांगीर को अपना परिचय पत्र इसी दुर्ग में प्रस्तुत किया।
8. आमेर दुर्ग-आमेर (जयपुर)
- यह गिरी श्रेणी का दुर्ग है।
- इसका निर्माण 1150 ई. में दुल्हराय कच्छवाह ने करवाया।
- प्रमुख मंदिर :- शीला माता का मंदिर, सुहाग मंदिर, जगत सिरोमणि मंदिर
- प्रमुख महल :- शीश महल, दीवान-ए-खाश, दीवान-ए-आम
- दीवान-ए-आम का निर्माण मिर्जा राजा जय सिंह द्वारा किया गया।
9. जयगढ दुर्ग(जयपुर)
- यह दुर्ग चिल्ह का टिला नामक पहाड़ी पर बना हुआ है।
- इस दुर्ग का निर्माण मिर्जा राजा जययसिंह ने करवाया। लेकिन महलों का निर्माण सवाई जयसिंह ने करवाया।
- इस दुर्ग में तोप ढ़ालने का कारखाना स्थित है।
- सवाई जयसिंह निर्मित जयबाण तोप पहाडि़यों पर खडी सबसे बड़ी तोप मानी जाती है।
- आपातकाल के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री श्री मति इन्द्रागांधी ने खजाने की प्राप्ति के लिए किले की खुदाई करवाई गई।
- विजयगढ़ी भवन (अंत दुर्ग) कच्छवाह शासकों की शान है।
10. नहारगढ दुर्ग(जयपुर)
- इस दुर्ग का निर्माण 1734 में सवाई जयसिंह नें किया।
- किले के भीतर विद्यमान सुदर्शन कृष्ण मंदिर दुर्ग का पूर्व नाम सूदर्शनगढ़ है।
- नाहरसिंह भोमिया के नाम पर इस दुर्ग का नहारगढ़ रखा गया।
- राव माधों सिंह – द्वितीय ने अपनी नौ प्रेयसियों के लिए एक किले का निर्माण नाहरगढ़ दुर्ग में करवाया। इस दुर्ग के पास जैविक उद्यान स्थित है।
11. गागरोण दुर्ग(झालावाड़)
- इस दुर्ग का निर्माण परमार वंश की डोड शाखा के शासक बीजलदेव ने करवाया।
- डोडा राजपूतों के अधिकार के कारण यह दुर्ग डोडगढ/ धूलरगढ़ नामों से जाना गया।
- “चैहान कुल कल्पद्रुम” के अनुसार खींची राजवंश का संस्थापक देवन सिंह उर्फ धारू न अपने बहनोई बीजलदेव डोड को मारकर धूलरगढ़ पर अधिकार कर लिया तथा उसका नाम गागरोण रखा।
- यह दुर्ग बिना किसी नीव के मुकंदरा पहाड़ी की सीधी चट्टानों पर खड़ा अनूठा किला है।
- गागरोण दुर्ग कालीसिंध व आहु नदियों के संगम पर बना जल श्रेणी का दुर्ग है।
- विद्वानों के अनुसार इस पृथ्वीराज ने अपना प्रसिद्व ग्रन्थ “वेलिक्रिसन रूकमणीरी” गागरोण में रहकर लिखा।
- अकबर ने गागरोण दुर्ग बीकानेर के राजा कल्याणमल पुत्र पृथ्वीराज को जागीर में दे दिया जो एक भक्त कवि और वीर योद्धा था।
दर्शनीय स्थल:
1.संत पीपा की छत्तरी 2. मिट्ठे साहब को दरगाह 3.जालिम कोट परकोटा 4. गीध कराई
साके
- प्रथम साका – सन् 1423 ई. में अचलदास खींची (भोज का पुत्र) तथा मांडू के सुलतान अलपंखा गौरी (होंशगशाह) के मध्य भीष्ण युद्ध हुआ। जीत के बाद दुर्ग का भार शहजाते जगनी खां को सौपा गया। गागरोज के प्रथम साके का विवरण शिवदास गाढण द्वारा लिखित पुस्तक ‘ अचलदास खींची री वचनिका’ में मिलता है।
- दूसरा साका – सन् 1444 ई. में वाल्हणसी खीची व महमूद खिलजी के मध्य युद्ध हुआ। पाल्हणसी खींची को भीलो ने मार दिया (जब वह दुग् में पलायन कर रहा था) कुम्भा द्वारा भेजे गए धीरा (घीरजदेव) ने नेतृत्व में केसरिया हुआ और ललनाओं ने जौहर किया। महमूद खिलजी ने विजय के उपरांत दुर्ग का नाम बदल कर मुस्तफाबाद रखा।
12 कुम्भलगढ़ दुर्ग(राजसमंद)
- अरावली की तेरह चोटियों से घिरा, जरगा पहाडी पर (1148 मी.) ऊंचाई पर निर्मित गिरी श्रेणी का दुर्ग है।
- इस दुर्ग का निर्माण महाराणा कुम्भा ने वि. संवत्1505 ई. में अपनी पत्नी कुम्भलदेवी की स्मृति में बनवाया।
- इस दुर्ग का निर्माण कुम्भा के प्रमुख शिल्पी मण्डन की व देखरेख में हुआ।
- इस दुर्ग को मेवाड़ की आंख कहते है।
- इस किले की ऊंचाई के बारे में अतृल फजल ने लिखा है कि ” यह इतनी बुलन्दी पर बना हुआ है कि नीचे से देखने पर सिर से पगड़ी गिर जाती है।”
- कर्नल टाॅड ने इस दुर्ग की तुलना “एस्टुकन”से की है।
- इस दुर्ग के चारों और 36 कि.मी. लम्बी दीवार बनी हुई है। दीवार की चैड़ाई इतनी है कि चार घुडसवार एक साथ अन्दर जा सकते है। इस लिए इसे ‘भारत की महान दीवार’ भी कहा जाता है।
- कुम्भलगढ दुर्ग के भीतर एक लघु दुर्ग भी स्थित है, जिसे कटारगढ़ कहते है, जो महाराणा कुम्भा का निवास स्थान रहा है।
- दुर्ग के अन्य नाम – कुम्भलमेर कुम्भलमेरू,कुंभपुर मच्छेद और माहोर।
- इस दुर्ग में ‘झाली रानी का मालिका’ स्थित है।
13 बयाना दुर्ग (भरतपुर)
- यह दुर्ग गिरी श्रेणी का दुर्ग है।
- इस दुर्ग का निर्माण विजयपाल सिंह यादव न करवाया।
- अन्य नाम-शोणितपुर, बाणपुर, श्रीपुर एवं श्रीपथ है।
- अपनी दुर्भेद्यता के कारण बादशाह दुग व विजय मंदिर गढ भी कहलाता है।
दर्शनिय स्थल
- भीमलाट- विष्णुवर्घन द्वारा लाल पत्थर से बनवाया गया स्तम्भ
- विजयस्तम्भ- समुद्र गुप्त द्वारा निर्मित स्तम्भ है।
- ऊषा मंदिर
- लोदी मीनार
14 सिवाणा दुर्ग(बाड़मेर)
- यह दुर्ग गिरी तथा वन दोनों श्रेणी का दुर्ग है।
- कुमट झाड़ी की अधिकता के कारण इसे कुमट दुर्ग भी कहते है।
- इस दुर्ग का निर्माण श्री वीरनारायण पवांर ने छप्पन की पहाडि़यों में करवाया।
इस दुर्ग में दो साके हुए है।
- पहला साका – सन् 1308 ई. में शीतलदेव चैहान के समय आक्रांता अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के कारण सांका हुआ।
- दूसरा साका – वीर कल्ला राठौड़ के समय अकबर से सहायता प्राप्त मोटा राजा उदयसिंह के आक्रमण के कारण साका हुआ। यह साका सन 1565 ई. में हुआ।
15 जालौर दुर्ग(जालौर)
- परमार शासकों द्वारा सुकडी नदी के किनारे निर्मित हैं।
- यह दुर्ग गिरी श्रेणी का दुर्ग है।
- यह दुर्ग सोन पहाडी पर स्थित दुर्ग है।
साका
सन् 1311 ई. में कान्हड देव चैहान के समय अलाउद्दीन खिलजी ने आक्रमण किया। इस आक्रमण में कान्हडदेव चैहान व उसका पुत्र वीरदेव वीरगति को प्राप्त हुुए तथा वीरांगनाओं ने जौहर कर लिया। इस साके की जानकारी पद्मनाभ द्वारा रचित कान्हडदेव में मिलती है। संत मल्किशाह की दरगाह इस दुर्ग के प्रमुख और उल्लेखनीय थी।
16 मंडरायल दुर्ग(सवाई माधोपुर)
इस दुर्ग को ” ग्वालियर दुर्ग की कुंजी” कहा जाता है। मंडरायल दुर्ग मर्दान शाह की दरगाह के लिए प्रसिद्ध है।
17 भैंसरोड़गढ दुर्ग(चित्तौड़गढ)
- बामणी व चम्बल नदियों के संगम पर स्थित होने के कारण यह दुर्ग जल श्रेणी का दुर्ग है।
- भैंसरोडगढ़ दुर्ग को “राजस्थान का वेल्लोर” कहते है।
- इस दुर्ग का निर्माता भैसाशाह व रोडावारण को माना जाता है।
18 मांडलगढ़ दुर्ग(भीलवाडा)
- इस दुर्ग का निर्माण महाराणा कुम्भा ने करवाया।
- यह दुर्ग जल श्रेणी का दुर्ग है।
- मांडलगढ़ दुर्ग बनास, बेडच व मेनाल नदियों के संगम पर स्थित है।
- यह दुर्ग सिद्ध योगियों का प्रसिद्ध केन्द्र रहा है।
19 भटनेर दुर्ग(हनुमानगढ़)
- इस दुर्ग का निर्माण सन् 285 ई. में भाटी राजा भूपत ने करवाया।
- घग्धर नदी के मुहाने पर बसे इस, प्राचीन दुर्ग को ” उत्तरी सीमा का प्रहरी” कहा जाता है।
- भटनेर दुर्ग धान्वन श्रेणी का दुर्ग है।
- इस दुर्ग पर सर्वाधिक आक्रमण हुए। विदेशी आक्रमणकारियों में-
1. महमूद गजनवी न विक्रम संवत् 1058 (1001 ई.) में भटनेर पर अधिकार कर लिया था।
2. 13 वीं शताब्दी के मध्य में गुलाम वंश के सुल्तान बलवन के शासनकाल में उसका चचेरा भाई शेर खां यहां का हाकिम था।
3. 1398 ई. में भटनेर को प्रसिद्ध लुटेरे तैमूरलंग के अधिन विभीविका झेलनी पड़ी।
बीकानेर के चौथे शासक राव जैतसिंह ने 1527ई. में आक्रमण कर भटनेर पर पहली बार राठौडों का आधिपत्य स्थापित हुआ। उसने राव कांधल के पोत्र खेतसी को दुर्गाध्यक्ष नियुक्त किया। - ह्रमायू के भाई कामरान ने भटनेर पर आक्रमण किया।
- सन् 1805 ई. में महाराजा सूरतसिंह द्वारा मंगलवार को जाब्ता खां भट्टी से भटनेर दुर्ग हस्तगत कर लिया। भटनेर का नाम हनुमानगढ़ रखा गया।
- तैमूर लंग ने इस दुर्ग के लिए कहा कि ” उसने इतना व सुरक्षित किला पूरे हिन्तुस्तान में कहीं नही देखा।” तैमूरलग की आत्मकथा ” तुजुक-ए-तैमूरी “के नाम से है।
- इस दुर्ग में शेर खां की मनार स्थित है।
20 भरतपुर दुर्ग(भरतपुर)
- इस दुर्ग का निर्माण सन् 1733 ई. में राजा सूरजमल ने करवाया था।
- मिट्टी से निर्मित यह दुर्ग अपनी अजेयता के लिए प्रसिद्ध है।
- किले के चारों ओर सुजान गंगा नहर बनाई गई जिसमे पानी लाकर भर दिया जाता था।
- यह दुर्ग पारिख श्रेणी का दुर्ग है।
- मोती महल, जवाहर बुर्ज व फतेह बुर्ज (अंग्रेजों पर विजय की प्रतीक है।)
- सन् 1805 ई. में अंग्रेज सेनापति लार्ड लेक ने इस दुर्ग को बारूद से उडाना चाहा लेकिन असफल रहा।
- इस दुर्ग में लगा अष्टधातू का दरवाजा महाराजा जवाहर सिंह 1765 ई. में ऐतिहासिक लाल किले से उतार लाए थे।
21 चुरू का किला (चुरू)
- धान्व श्रेणी के इस दुर्ग का निर्माण ठाकुर कुशाल सिंह ने करवाया।
- महाराजा शिवसिंह के समय बारूद खत्म होने पर यहां से चांदी के गोले दागे गए।
22 जूनागढ़ दुर्ग (बीकानेर)
- यह दुर्ग धान्व श्रेणी का दुर्ग हैं।
- लाल पत्थरों से बने इस भव्य किले का निर्माण बीकानेर के प्रतापी शासक रायसिंह ने करवाया।
- इस दुर्ग को अधगढ़ किला कहते हैं।
- इस दुर्ग में जैइता मुनि द्वारा रचित रायसिंह ,प्रशस्ति स्थित है।
- सूरजपोल की एक विशेष बात यह है कि इसके दोनों तरफ 1567 ई. के चित्तौड़ के साके में वीरगति पाने वाले दो इतिहास प्रसिद्ध वीरों जयमल मेडतियां और उनके बहनोई आमेर के रावत पता सिसोदिया की गजारूढ मूर्तियां स्थापित है।
दर्शनिय स्थल
- हेरम्भ गणपति मंदिर
- अनूपसिंह महल
- सरदार निवास महल
23 नागौर दुर्ग(नागौर)
- नागौर दुर्ग के उपनाम नागदुर्ग, नागाणा व अहिच्छत्रपुर है।
- इस दुर्ग का निर्माण चैहान वंश के शासक सोमेश्वर ने किया।
- अमर सिंह राठौड़ की वीर गाथाएं इस दुर्ग से जुडी है।
- नागौर दुर्ग को एक्सीलेंस अवार्ड मिला है।
24 अचलगढ़ दुर्ग(सिरोही)
- परमार वंश के शासकों द्वारा 900 ई. के आसपास निर्मित किया गया।
- इस दुर्ग को आबु का किला भी कहते हैं।
दर्शनीय स्थल
- अचलेश्वर महादेव मंदिर- शिवजी के पैर का अंगूठा प्रतीक के रूप में विद्यमान है।
- भंवराथल – गुजरात का महमूद बेगडा जब अचलेश्वर के नदी व अन्य देव प्रतिमाओं को खण्डित कर लौट रहा था तब मक्खियों न आक्रमणकारियों पर हमला कर दिया। इस घटना की स्मृति में वह स्थान आज भी भंवराथल नाम से प्रसिद्ध है।
- मंदाकिनी कुण्ड – आबू पर्वतांचल में स्थित अनेक देव मंदिरों के कारण आबू पर्वत को हिन्दू ओलम्पस (देव पर्वत) कहा जाता है।
25 शेरगढ़ दुर्ग(धौलपुर)
- इस दुर्ग का निर्माण कुशाण वंश के शासन काल में करवाया था।
- शेरशाह सूरी ने इस दुर्ग का पुनर्निर्माण करवाकर इसका नाम शेरगढ़ रखा।
- यह किला “दक्खिन का द्वार गढ” नाम से प्रसिद्ध है।
- महाराजा कीरतसिंह द्वारा निर्मित “हुनहुंकार तोप” इसी दुर्ग में स्थित है।
26 शेरगढ़ दुर्ग(बांरा)
- हाडौती क्षेत्र का यह दुर्ग कोशवर्धन दुर्ग के नाम से भी प्रसिद्ध है।
- यह दुर्ग परवन नदी के किनारे स्थित है।
27 चैमू का किला (जयपुर)
इस किले का निर्माण ठाकुर कर्णसिंह ने करवाया। उपनाम- चैमूहांगढ़, धाराधारगढ़ तथा रधुनाथगढ।
28 कांकणबाडी का किला (अलवर)
इस किले में औरंगजेब ने अपने भाई दाराशिकोह को कैद करके रखा था।
अन्य दुर्ग
- कोटडा का किला – बाडमेर
- खण्डार दुर्ग-सवाई माधोपुर-शारदा तोप इस दुर्ग में स्थित है।
- माधोराजपुरा का किला – जयपुर
- कंकोड/कनकपुरा का किला – टोंक
- शाहबाद दुर्ग – बांरा -नवलवान तोप इस दुर्ग में स्थित है।
- बनेडा दुर्ग – भीलवाडा
- बाला दुर्ग – अलवर
- बसंतगढ़ किला – सिरोही
- तिमनगढ़ किला – करौली