राजस्थान का अधिकांश भाग रेगिस्तानी है अतः वहां नदियों का विशेष महत्व है। पश्चिम भाग में सिचाई के साधनों का अभाव है परिणाम स्वरूप यहां नदीयों का महत्व ओर भी बढ़ जाता है। प्राचीन समय से ही नदियों का विशेष महत्व रहा |राजस्थान में महान जलविभाजक रेखा का कार्य अरावली पर्वत माला द्वारा किया जाता है।
चम्बल नदी
राजस्थान की सबसे लम्बी इस का उद्गम मध्य-प्रदेश में महु जिले में स्थित जनापाव की पहाडि़यों से होता है। यह नदी दक्षिण से उत्तर की ओर बहती हुई राजस्थान के चितौड़गढ़ जिले मे भैसंरोड़गढ़ नामक स्थान पर प्रवेश करती है और कोटा व बुंदी जिलों से होकर बहती हुई सवाईमाधोपुर, करौली, धौलपुर, जिलों में राजस्थान व मध्य-प्रदेश के मध्य सीमा बनाती है। अन्त में यह उत्तर-प्रदेश के इटावा जिले में मुरादगंज नामक स्थान पर यमुना नदी में विलीन हो जाती है।
चम्बल नदी में जब बामनी नदी (भैसरोड़गढ़ में) आकर मिलती है तो चितौड़गढ़ में यह चूलिया जल प्रपात बनाती है, जो कि राजस्थान का सबसे ऊंचा जल प्रपात (18 मीटर ऊंचा) बनाती है। चितौड़गढ़ में भैसरोडगढ़ के पास चम्बल नदी में बामनी नदी आकर मिलती है। समीप ही रावतभाटा परमाणु बिजली घर है कनाडा के सहयोग से स्थापित 1965 में इसका निर्माण कार्य प्रारम्भ हुआ। राजस्थान के सवाईमाधोपुर जिले में चम्बल नदी में बनास व सीप नदियां आकर मिलती है और त्रिवेणी संगम बनाती है।
डांग क्षेत्र
चम्बल नदी के बहाव क्षेत्र में गहरी गढ़े युक्त भूमि जहां वन क्षेत्रों /वृक्षों की अधिकता है। 30-35 वर्ष पूर्व ये डाकूओं की शरणस्थली थे इन क्षेत्रों को डांग क्षेत्र कहा जाता है इन्हे ‘दस्यू’ प्रभावित क्षेत्र भी कहा जाता है। सर्वाधिक अवनालिक अपवरदन इसी नदी का होता है।
- चम्बल की कुल लम्बाई – 966 कि.मी.
- चम्बल की राजस्थान में कुल लम्बाई – 153 कि.मी
- चम्बल द्वारा राजस्थान की मध्यप्रदेश के साथ अन्र्तराज्जीय सीमा – 250 कि.मी.
- बांध –
- गांधी सागर बांध (म.प्र.)
- राणा प्रताप सागर बांध (चितौड़,राज.)
- जवाहर सागर बांध (कोटा,राज.)
- कोटा सिचाई बांध (कोटा, राज.)
- सहायक नदियां- पार्वती, कालीसिंध, बनास, बामनी, मेज
काली सिंध नदी
यह नदी मध्यप्रदेश के देवास गांव से निकलती है। झालावाड के रायपुर के निकट राजस्थान में प्रवेश करती है। झालावाड कोटा में बहती हुई कोटा के नानेरा में यह चम्बल में मिल जाती है।
सहायक नदियां – आहु, परवन, निवाज, धार
बांध – इस नदी पर कोटा में हरिशचन्द्र बांध बना है।
आहु नदी
यह मध्यप्रदेश के सुरनेर गांव से निकलती है और झालावाड के नन्दपुर में राजस्थान में प्रवेश करती है। झालावाड़ कोटा की सीमा पर बहती हुई झालावाड़ के गागरोन में काली सिंध में मिल जाती है।
झालावाड़ के गागरोन में कालीसिंध आहु नदियों का संगम होता है। इस संगम पर गागरोन का प्रसिद्ध जल दुर्ग स्थित है।
पार्वती नदी
यह मध्यप्रदेश के सिहोर से निकलती है बांरा के करियाहट में राजस्थान में प्रवेश करती है।बांरा, कोटा में बहती हुई पाली गाँव (सवाईमाधोपुर) में चम्बल में मिल जाती है।
सहायक नदियां – ल्हासी, अंधेरी, विलास, बरनी, बैँथली
परवन नदी-
यह नदी मध्यप्रदेश के विध्याचल से निकलती है। झालावाड में खरीबोर में राजस्थान में प्रवेश करती है। झालावाड़ व बांरा में बहती हुई बांरा में पलायता गांव में काली सिंध में मिल जाती है।
इस नदी के किनारे शेरगढ़ अभयारण्य स्थित है।
सहायक नदियां – नेवज, छापी नदियाँ
बनास नदी
बनास का उद्गम खमनौर (राजसमंद) की पहाड़ियों से होता है। बनास राजस्थान में पूर्णतः प्रवाह की दृष्टि से सर्वाधिक लम्बी नदी बनास नदी है। यह अन्त में सवाईमाधोपुर जिले में रामेश्वर नामक स्थान पर चम्बल नदी में विलीन हो जाती है। इस नदी की कुल लम्बाई 480 कि.मी. है जो की पूर्णतः राजस्थान में है।
- कुल लम्बाई – 480 कि.मी.
- राजस्थान में पूर्णतः प्रवाह की दृष्टि से सर्वाधिक लम्बी
- त्रिवेणी संगम – मांडलगढ़ (भीलवाड़ा ले निकट) बनास, बेडच, मेनाल नदियों का संगम
- सहायक नदियां – चंद्रभागा, बेडच, कोठरी, खरी, मेनाल, बांदी, मानसी, डाई नदी, मेरेल नदी।