1857 का भारतीय विद्रोह, जिसे प्रथम भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम और भारतीय विद्रोह के नाम से भी जाना जाता है 1857 का भारतीय विद्रोह भारत में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन के खिलाफ एक व्यापक लेकिन असफल विद्रोह था जिसने ब्रिटिश राज की ओर से एक संप्रभु शक्ति के रूप में कार्य किया।
1857 की क्रांति के तात्कालिक कारण
- भारतीय सैनिकों के साथ आर्थिक एवं पदों के स्तर पर भेदभाव
- नई ‘एनफिल्ड’ राइफलों के कारतूसों में गाय और सूअर की चर्बी का प्रयोग की अफवाह
- 8 अप्रैल, 1857 ई. को मंगल पांडे को फाँसी की सज़ा
- 9 मई, 1857 को मेरठ में 85 भारतीय सैनिकों ने नए राइफल का प्रयोग करने से इनकार कर दिया तथा विरोध करने वाले सैनिकों को दस-दस वर्ष की सज़ा दी गई।
लॉर्ड कैनिंग
- चार्ल्स जॉन कैनिंग 1857 के भारतीय विद्रोह के दौरान भारत का गवर्नर जनरल था।
- लार्ड कैनिंग 1858 में भारत का पहला वायसराय बना।
- उसके कार्यकाल में हुई महत्त्वपूर्ण घटनाओं में निम्नलिखित शामिल हैं:
- वह 1857 के विद्रोह को सफलतापूर्वक दबाने में सक्षम रहा।
- भारतीय परिषद अधिनियम, 1861 पारित करना जिसने भारत में पोर्टफोलियो प्रणाली की शुरुआत की।
- गोद प्रथा को पुनः कानूनी घोषित करना जो 1858 के विद्रोह के मुख्य कारणों में से एक था।
- आपराधिक प्रक्रिया संहिता का परिचय।
- भारतीय उच्च न्यायालय अधिनियम का अधिनियमन
- भारतीय दंड संहिता (1858)
1857 के भारतीय विद्रोह के केंद्र
10 मई 1857 को मेरठ छावनी की पैदल सैन्य टुकड़ी ने भी इस कारतूसों विरोध कर दिया और अंग्रेजों के खिलाफ बगावत का बिगुल बजा दिया। 12 मई 1857 को विद्रोहियों ने दिल्ली पर अधिकार कर दिया एवं बहादुरशाह जाफ़र द्वितीय को अपना सम्राट घोषित कर दिया। भारतीयों एवं अंग्रेजों के बीच हुए कड़े संघर्ष के बाद 20 सितम्बर 1857 को अंग्रेजों ने पुनः दिल्ली पर अधिकार कर लिया।
दिल्ली विजय का समाचार सुनकर देश के विभिन्न भागों में इस विद्रोह की आग फैल गई जिसमें – कानपुर, लखनऊ, बरेली, जगदीशपुर ( बिहार ) झांसी, अलीगढ, इलाहाबाद, फैजाबाद आदि प्रमुख केन्द्र थे।
केंद्र | क्रन्तिकारी | विद्रोह तिथि | उन्मूलन तिथि व अधिकारी |
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दिल्ली | बहादुरशाह जफर, बख्त खां | 11,12 मई 1857 | 21 सितंबर 1857- निकलसन, हडसन |
कानपुर | नाना साहब, तात्या टोपे | 5 जून 1857 | 6 सितंबर 1857 – कैंपबेल |
लखनऊ | बेगम हजरत महल | 4 जून 1857 | मार्च 1858 – कैंपबेल |
झांसी | रानी लक्ष्मीबाई | जून 1857 | 3 अप्रैल 1858 – ह्यूरोज |
इलाहाबाद | लियाकत अली | 1857 | 1858 – कर्नल नील |
जगदीशपुर (बिहार ) | कुँवर सिंह | अगस्त 1857 | 1858 – विलियम टेलर , विंसेट आयर |
बरेली | खान बहादुर खां | 1857 | 1858 |
फैजाबाद | मौलवी अहमद उल्ला | 1857 | 1858 |
फतेहपुर | अजीमुल्ला | 1857 | 1858 – जनरल रेनर्ड |
1857 के विद्रोह की असफलता के कारण
- सीमित प्रभाव: देश का एक बड़ा हिस्सा इससे अप्रभावित रहा।
- विद्रोह मुख्य रूप से दोआब क्षेत्र तक ही सीमित था जैसे- सिंध, राजपूताना, कश्मीर और पंजाब के अधिकांश भाग।
- बड़ी रियासतें, हैदराबाद, मैसूर, त्रावणकोर और कश्मीर तथा राजपूताना के लोग भी विद्रोह में शामिल नहीं हुए।
- दक्षिणी प्रांतों ने भी इसमें भाग नहीं लिया।
- प्रभावी नेतृत्व नहीं: विद्रोहियों में एक प्रभावी नेता का अभाव था। हालाँकि नाना साहेब, तात्या टोपे और रानी लक्ष्मीबाई आदि बहादुर नेता थे, लेकिन वे समग्र रूप से आंदोलन को प्रभावी नेतृत्व प्रदान नहीं कर सके।
- सीमित संसाधन: सत्ताधारी होने के कारण सभी तरह के परिवहन तथा संचार के साधन अंग्रेज़ों के अधीन थे। इसलिये विद्रोहियों के पास हथियारों और धन की कमी थी।
- मध्य वर्ग की भागीदारी नहीं: अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त मध्यम वर्ग, बंगाल के अमीर व्यापारियों और ज़मींदारों ने विद्रोह को दबाने में अंग्रेज़ों की मदद की।