- युद्ध – 11 जून, 1665
- शासक – मुगल साम्राज्य के सेनापति राजपूत शासक जय सिंह प्रथम और मराठा छत्रपति शिवाजी महाराज के बीच,
- परिणाम – 11 जून, 1665 को पुरन्दर की संधि पर हस्ताक्षर किए गए थे।
जय सिंह द्वारा पुरंदर किले की घेराबंदी करने के बाद शिवाजी महाराज को समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर होना पड़ा।
जब शिवाजी ने महसूस किया कि मुगल साम्राज्य के साथ युद्ध केवल साम्राज्य को नुकसान पहुंचाएगा और उनके लोगों को भारी नुकसान होगा, तो उन्होंने मुगलों के अधीन अपने लोगों को छोड़ने के बजाय एक संधि करने का फैसला किया।
संधि के मुख्य बिंदु निम्नलिखित हैं:
- छत्रपती शिवाजी महाराज ने तेईस (23 तेवीस) किलों को रखा, साथ में 100,000 (1 लाख) हूणों की आय का क्षेत्र था।
- छत्रपती शिवाजी महाराज को जब भी और जहाँ भी आवश्यकता हुई मुगलों की मदद करने की आवश्यकता थी।
- छत्रपती शिवाजी महाराज के पुत्र छत्रपती संभाजी महाराज को मुगलों के अधीन 5,000-मजबूत बल की कमान सौंपी गई थी।
- यदि शिवाजी विजापुर के नियंत्रण में कोंकण क्षेत्र पर दावा करना चाहते थे, तो उन्हें मुगलों को 4 मिलियन (40 लाख) का भुगतान करना होगा।
- उन्हें पुरंदर, रुद्रमल, कोंडाना, कर्नाला, लोहागढ़, इसागाद, तुंग, तिकोना, रोहिड़ा किला, नरदुर्गा, महुली, भंडारदुर्ग, पलसखोल, रूपगढ़, बख्तगड, मोरबखान, मानिकगढ़, सरूपगढ, सकदगढ़ अपने किलों को छोड़ना पड़ा।
इन आवश्यकताओं के साथ, शिवाजी आगे की राजनीतिक वार्ता के लिए औरंगजेब से मिलने के लिए आगरा जाने के लिए सहमत हुए।
पुरंदर की संधि (जून, 1665 ई.)
- इस संधि से शिवाजी को 23 किले मुगलों के हवाले करने पड़े।
- 1666 ई. में जयसिंह के आश्वासन देने पर शिवाजी औरंगजेब से मिलने आगरा आये परन्तु उचित सम्मान न मिलने पर उठ कर चल दिए। इससे नाराज होकर औरंगजेब ने शिवाजी को कैद कर जयपुर भवन (आगरा) में रखा।
- शिवाजी ने औरंगजेब से समझौता कर लिया एवं अपने पुत्र शंभा जी को मुगल युवराज मुअज्जम की सेवा में भेज दिया।
- औरंगजेब ने शिवाजी को राजा की उपाधि प्रदान की
- 1670 ई. में शिवाजी ने पुनः मुगलों पर युद्ध शुरू किया और पुरन्दर की संधि द्वारा खोये अनेक किलों को फिर से जीत लिया।
- कर्नाटक अभियान (1677 ई.):-
- इस अभियान में शिवाजी ने जिंजी, मदुरै, बेल्लूर आदि के साथ कर्नाटक एवं तमिलनाडु के लगभग 100 किलों को जीता।
- शिवाजी ने जिंजी को अपने दक्षिण भाग की राजधानी बनाया
- 12 अप्रैल, 1680 ई. में शिवाजी की मृत्यु हो गयी।
- विचार-
- ‘मैं शिवाजी को हिन्दु प्रजाति का अंतिम रचनात्मक प्रतिभा-सम्पन्न व्यक्ति और राष्ट्र निर्माता मानता हूं।’ -जदुनाथ सरकार
- ‘विगत एक सहस्त्राब्दि में शिवाजी जैसा कोई हिन्दु सम्राट नहीं हुआ था।’ – स्वामी विवेकानन्द
- शिवाजी का प्रशासन –
- प्रशासन में शिर्ष पर छत्रपति होता था।
- छत्रपति प्रभुत्व सम्पन्न निरंकुश शासक, अंतिम कानून निर्माता, प्रशासकीय प्रधान, न्यायाधीश और सेनापति था।
- अष्ठप्रधान : शासन का संचालन 8 मंत्रियों की संस्था की सहायता से होता था। इन मंत्रियों का कार्य छत्रपति को सलाह देना मात्र था। प्रत्येक मंत्री राजा के लिए उत्तरदायी था।
- पेशवा: राजा का प्रधानमंत्री। कार्य – सम्पूर्ण राज्य शासन की देखभाल।
- अमात्य/मजमुआदार: वित्त एवं राजस्व मंत्री (मजूमदार)
- वाकिया नवीस: राजा एवं दरबार के दैनिक कार्यों का विवरण रखना। (गृहमंत्री)
- शुरू नवीस/सचिव: राजकीय पत्र व्यवहार कार्य।
- दबीर/सुमन्त: विदेश मंत्री
- सर-ए-नौबत/सेनापति: सेना का भर्ती, संगठन, रसद आपूर्तिकर्त्ता
- पण्डितराव: धार्मिक अनुदानों संबंधित कार्य।
- न्यायाधीश: राजा के बाद मुख्य न्यायाधीश (दीवान एवं फौजदारी दोनों)
- चिटनिस: मुंशी(पत्राचार लिपिक) होता था।
नोट:- पण्डितराव व न्यायाधीश को छोड़कर सभी युद्ध में भाग लेते थे।