मुस्लिम धर्म सुधार आन्दोलन

मुख्य मुस्लिम धर्म सुधार आंदोलन –

  • वहाबी आंदोलन (1826 ई.)
  • अहमदिया आंदोलन (23 मार्च 1889)
  • देवबंद आंदोलन (30 मई 1866)
  • अलीगढ आंदोलन ( 1875 )

वहाबी आन्दोलन (1826 ई.)

वहाबी आन्दोलन को ‘वलीउल्लाह आन्दोलन’ भी कहा जाता है, जिसका प्रारम्भ पश्चिमी प्रभावों की प्रतिक्रियास्वरुप हुआ। यह आन्दोलन शाह वलीउल्लाह, जिन्हें प्रथम भारतीय मुस्लिम नेता भी माना जाता है, की शिक्षाओं से प्रेरित था। यह पूरा का पूरा आन्दोलन कुरान और हदीस की शिक्षाओं पर आधारित था।

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अहमदिया आन्दोलन (23 मार्च 1889)

अहमदिया आन्दोलन की शुरुआत मिर्ज़ा गुलाम अहमद द्वारा 1889 ई. में भारतीय मुसलमानों के बीच पश्चिमी शिक्षा के प्रसार के उद्देश्य से की गयी। यह आन्दोलन,ब्रहम समाज के समान,उदारवादी मूल्यों पर आधारित था।

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देवबंद आंदोलन (30 मई 1866)

देवबंद आंदोलन उदारवादी आन्दोलन के विरोध में कुछ रूढ़िवादी मुस्लिम उलेमाओं द्वारा शुरू किया गया आन्दोलन था जो कि कुरान और हदीस के आधार पर इस्लाम के वास्तविक सार की शिक्षा देना चाहता था और इन्होने ब्रिटिश शासन के खिलाफ जिहाद की संकल्पना का भी प्रतिपादन किया।

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अलीगढ़ आन्दोलन

  • अलीगढ़ आन्दोलन के प्रवर्तक सर सैयद अहमद खां थे। यह आन्दोलन अंग्रेजी शिक्षा एवं ब्रिटिश सरकार के साथ सहयोग के पक्ष में था।
  • इस आन्दोलन का उद्देश्य मुसलमानों को अंग्रेजी शिक्षा देकर उन्हें अंग्रेजी राज का भक्त बनाकर नौकरियों में अधिकाधिक आरक्षण प्राप्त करना था।
  • इस आन्दोलन में सैयद हमद के मुख्य सहयोगी चिराग अली, नजीर हमद, अल्ताफ हुसैन एवं मौ. शिबली नोमानी थे।

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सर सैय्यद अहमद खां

  • सैय्यद अहमद खां का जन्म 1817 ई. में दिल्ली में हुआ था। 1839 ई. में आगरा के कमिश्नर दफ्तर में क्लर्क बने।
  • 1857 के विद्रोह के समय ये कम्पनी के न्यायिक सेवा में थे।
  • सर सैय्यद अहमद खां कम्पनी के प्रति पूर्ण राजभक्त थे।

अहमद खां द्वारा किए गए प्रयास

  • तहजी-उल-अखलाख (फारसी में) एक पत्रिका निकाली।
  • 1864 ई. में कलकत्ता में साइंटिफिक सोसायटी की स्थापना की
  • 1864 ई. में ही गाजीपुर में अंग्रेजी शिक्षा के स्कूल की स्थापना कराई ।
  • 1875 ई. में अलीगढ़ में मुहम्डन एंग्लोे-ओरिएन्ट स्कूल की स्थापना की। यह 1878 ई. में काॅलेज बना और 1920 ई. में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में परिवर्तित हो गया ।
  • कांग्रेस के विरोध में 1888 ई. में यूनाइटेड इंडियन पैट्रियाटिक एसोसिएशन की भी स्थापना की।
  • पीरी मुरीदी प्रथा को समाप्त करने की कोशिस की ।
  • दास प्रथा को इस्लाम के विरूद्ध बताया।
  • इन्होंने कुरान पर टीका लिखी

पारसी सुधार आन्दोलन

रहनुमाए मजदयासन सभा

  • रहनुमाए मजदयासन सभा की स्थापना 1851 ई. में दादा भाई नौरोजी , नौरोजी फरदोन जी , एस. एस. बंगाली एवं आर. के कामा आदि के योगदान से बम्बई में हुई।
  • इसका उद्देश्य पारसियों की सामाजिक अवस्था का पुनरूद्धार करना और पारसी धर्म की प्राचीन शुद्धता को प्राप्त करना था।
  • इस सभा ने स्त्रियों की दशा में सुधार, पर्दा प्रथा की समाप्ति और विवाह की आयु बढ़ाने पर बल दिया।
  • सभा के सन्देशवाहन हेतु दादा भाई नौरोजी ने पत्रिका रास्त गोफ्तार (सत्यवादी) गुजराती भाषा में निकाली।

19वीं एवं 20वीं शताब्दी में समाज सुधार

सती प्रथा

  • 1829 ई. में लार्ड बिलियम बैंटिक के समय बन्द किया गया।
  • राजा राम मोहन राय का महत्वपूर्ण योगदान था।
  • अकबर एवं पेशवाओं ने भी कुछ रोक लगायी थी
  • कार्नवालिस, लार्ड मिन्टो एवं लार्ड हेस्टिंग्ज ने भी सती प्रथा को सीमित करने के प्रयत्न किए थे।
  • 1829 ई. में यह बंगाल में बंद किया गया एवं सती प्रथा को मानव हत्या के रूप में मानते हुए न्यायालयों को दण्ड देने का आदेश दिया।
  • 1870 ई. में यह बम्बई एवं मद्रास में भी लागू कर दिया।

विधवा पुनर्विवाह

चार व्यक्तियों का महत्वपूर्ण योगदान रहा –

  1. ईश्वर चन्द विद्यासागर: विधवा विवाह को मान्यता दिलवाने में। विधवा पुनर्विवाह अधिनियम पारित करने के लिए एक सहस्त्र हस्ताक्षरों से अनुमोदित प्रार्थना पत्र भारत सरकार (लार्ड डलहौजी के समय ) को भेजा।
  2. डी. के. कर्वे: 1899 ई. में पूना में विधवा आश्रम की स्थापना 1906 ई. में बम्बई में प्रथम भारतीय महिला विश्वविद्यालय की स्थापना की।
  3. वीरेशलिंगम पुन्तुलू: दक्षिण भारत में विधवा पुनर्विवाह से संबंधित
  4. विष्णु शास्त्री पंडित: 1850 ई. में विधवा पुनर्विवाह सभा की स्थापना।
  • 1856 का विधवा पुनर्विवाह अधिनियम: ईश्वर चन्द्र विद्यासागर के प्रयास से लार्ड कैनिंग के समय पारित हुआ।
  • 1872 का ब्रह्म मैरिज एक्ट: नार्थब्रुक के समय पारित (अंतर्जातीय विवाह भी शामिल)
  • ठगी प्रथा: लार्ड बिलियम बैंटिक के समय 1830 तक ठगों का दमन
  • शिशु वध: गवर्नर जनरल जाॅन शोर एवं वेलेजली का योगदान
  • नरबलि प्रथा: लार्ड हार्डिग प्रथम के समय 1844-45 ई. तक समाप्त
  • दास प्रथा: गवर्नर जनरल एलनबरो ने 1843 ई. में समाप्त किया।

बाल विवाह

बाल विवाह से संबंधित अधिनियम –

  1. सिविल मैरिज एक्ट, 1872: लडकियों की विवाह की उम्र 14 वर्ष एवं लड़कों के विवाह की उम्र 18 वर्ष निर्धारित। बहु पत्नी प्रथा को भी समाप्त किया।
  2. सम्मति आयु अधिनियम, 1892: बहराम जी मालाबारी के प्रयत्नों से पारित (19 मार्च, 1891 में पारित) लड़कियों के विवाह की न्यूनतम आयु 12 वर्ष कर दी गयी। बाल गंगाधर तिलक ने इस अधिनियम का विरोध किया।
  3. शारदा अधिनियम, 1929 : डा. हरविलास के प्रयत्नों से पारित। लड़कियों के लिए विवाह की न्यूनतम आयु 14 वर्ष लड़कों के विवाह की न्यूनतम आयु 18 वर्ष

तथ्य

सर सैय्यद अहमद खां को जवाद उद्दौला और आरिफ जंग की उपाधि दी गयी थी।

सर सैय्यद अहमद खां मैनपुरी(उ.प्र.) के न्यायाधीश के पद पर रहे थे।

सर सैय्यद अहमद खां द्वारा लिखित पुस्तकें – अतहर असनादीद, आसारूस्सनादीद, लाॅयल मुहम्डन्स आॅफ इंडिया, असबाब-ए-बगावत-ए-हिन्द, हिस्ट्री ऑफ़ रिवोल्ट इन बिजनौर।

गोपाल हरि देशमुख को लोकहितवादी के नाम से भी जाना जाता है।

अब्दुल लतीफ को बंगाल के मुस्लिम पुनर्जागरण का पिता माना जाता है।

अंग्रेजी के प्रथम भारतीय दैनिक इंडियन मिरर का संपादन केशव चन्द्र सेन ने किया।

स्वामी दयानन्द सरस्वती ‘स्वराज’ शब्द का प्रयोग करने वाले प्रथम भारतीय थे।

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