- आगमन – 1599 ई.
- स्थान – थल मार्ग से
- प्रथम अंग्रेज – जान मिल्डेन हाल
- भारत में शासन – 1858-1947 तक
उन यूरोपीय व्यापारिक कंपनियों में जिन्होंने भारत में आकर अपनी व्यापारिक गतिविधियाँ आरंभ की उनमें अंग्रेज सर्वाधिक सफल रहे। अंग्रेजों की सफलता का कारण था इनका भारत सहित समूचे एशियाई व्यापार के स्वरूप को समझना तथा व्यापार विस्तार में राजनैतिक सैनिक शक्ति का सहारा लेना।
1599 ई. में जॉन मिल्डेनहाल नामक ब्रिटिश यात्री थल मार्ग से भारत आया। 1599ई. में इंग्लैण्ड में एक मर्चेण्ट एडवेंचर्स नामक दल ने अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी अथवा दि गवर्नर एण्ड कंपनी ऑफ मर्चेंट्स ऑफ ट्रेडिंग इन टू द ईस्ट इंडिया की स्थापना की। दिसंबर, 1600 ई. में ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ टेलर प्रथम ने ईस्ट इंडिया कंपनी को पूर्व के साथ व्यापार के लिए पन्द्रह वर्षों के लिए अधिकार पत्र प्रदान किया।कंपनी का प्रारंभिक उद्देश्य था भू-भाग नहीं बल्कि व्यापार।
15 वर्ष बीतने ते बाद सम्राट जेम्स प्रथम ने कंपनी के व्यापारिक अधिकार को अनिश्चितकाल के लिए बढा दिया।अंग्रेज ईस्ट इंडिया कंपनी की प्रथम समुद्री यात्रा 1601 ई. में जावा,सुमात्रा तथा मोलक्को के लिए हुई। 1604ई. में कंपनी भारत की ओर बढी। 1608ई. में इंग्लैण्ड के राजा जेम्स प्रथम के दूत के रूप में कैप्टन हॉकिन्स सूरत पहुँचा, जहाँ से वह मुगल सम्राट जहाँगीर से मिलने आगरा गया। हॉकिन्स फारसी भाषा का बहुत अच्छा ज्ञाता था,जहाँगीर उससे बहुत अधिका प्रभावित था। सम्राट जहाँगीर हॉकिन्स के व्यवहार से प्रसन्न होकर उसे आगरा में बसने तथा 400 की मनसब एवं जागीर प्रदान की। शीघ्र ही पुर्तगालियों द्वारा जहाँगीर का कान भरे जाने के कारण सम्राट ने अंग्रजों को सूरत से निकल जाने का आदेश दिया।
सूरत में हॉकिन्स ने कैप्टन मिडल्टन से मिलकर सूरत के व्यापारियों से प्रतिशोध लेने की प्रतिज्ञा की, लेकिन सूरत के व्यापारियों ने कैप्टन बेस्ट के अधीन दो अंग्रेजी जहाजों को सूरत में रहने की अनुमति प्रदान कर दी। 1612 ई. में कैप्टन बेस्ट ने एक समुद्री ने एक समुद्री युद्ध में पुर्तगालियों को पराजित कर दिया। 6 फरवरी,1613ई. को जारी एक शाही फरमान (जहांगीर की और से) द्वारा अंग्रेजों को सूरत में व्यापारिक कोठी स्थापित करने तथा मुगल राजदरबार में एक एलची रखने की अनुमति प्राप्त की गई।
टॉमस एल्टवर्थ के अधीन सूरत में व्यापारिक कोठी की स्थापना की। सर टॉमस रो ब्रिटेन के राजा जेम्स प्रथम के दूत के रूप में 18 सितंबर 1615 ई. को सूरत पहुंचा, 10 जनवरी 1616 ई. को रो अजमेर में जहांगीर के दरबार में उपस्थित हुआ। टॉमस रो मुगल दरबार में 10जनवरी,1616 से 17 फरवरी 1618ई. तक रहा। इस बीच रो ने मुगल दरबार से साम्राज्य के विभिन्न हिस्सों में व्यापार करने तथा दुर्गीकरण की अनुमति प्राप्त की। 1619ई. तक अहमदाबाद,भङौच,बङौदा तथा आगरा में कंपनी के व्यापारिक कारखाने स्थापित हो गये।सभी व्यापारिक कोठियों का इस समय नियंत्रण सूरत से होता था।
दक्षिण में ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपना पहला कारखाना 1611 ई. में मसुलीपट्टम और पेटापुली में स्थापित किया। यहां से स्थानीय बुनकरों द्वारा निर्मित वस्रों को कंपनी खरीद कर फारस और बंतम को निर्यात करती थी। 1632ई. में अंग्रेजों ने गोलकुण्डा के सुल्तान से एक सुनहरा फरमान प्राप्त कर 5 सौ पेगोडा वार्षिक कर अदा करने के बदले गोलकुंडा राज्य में स्थित बंदरगाहों से व्यापार करने का एकाधिकार प्राप्त किया।1639 ई. में फ्रांसिस डे नामक अंग्रेज को चंदगिरि के राजा से मद्रास पट्टे पर प्राप्त हो गया। यहीं पर फोर्ट सेंट जार्ज नामक किले की स्थापना की। 1641ई. में कोरोमंडल तट पर फोर्ट सेंट जार्ज कंपनी का मुख्यालय बन गया।
1661ई. में पुर्तगालियों ने अपनी राजकुमारी कैथरीन ब्रेगांजा का विवाह ब्रिटेन के राजकुमार चार्ल्स द्वितीय से करके बंबई को दहेज के रूप में दिया। राजकुमार चार्ल्स ने 1668ई. में बंबई को दस पौंड के वार्षिक किराये पर ईस्ट इंडिया कंपनी को दे दिया। 1669 से 1677 तक बंबई का गवर्नर गेराल्ड औंगियार ही वास्तव में बंबई का महानतम् संस्थापक था। 1687ई. तक बंबई पश्चिमी तट का प्रमुख व्यापारिक केन्द्र बना रहा। गेराल्ड औंगियार ने बंबई में किलेबंदी के साथ ही वहां गोदी का निर्माण कराया तथा बंबई नगर की स्थापना, एक न्यायालय और पुलिस दल की स्थापना की।
औंगियार ने बंबई के गवर्नर के रूप में यहां से ताँबे और चाँदी के सिक्के ढालने के लिए टकसाल की स्थापना की। औंगियार के समय में बंबई की जनसंख्या 60,000 और राजस्व में तीन गुना वृद्धि हुई। इसका उत्तराधिकारी रौल्ट (1677-1682ई.) हुआ। शाहजहां ने पुर्तगालियों से नाराज होकर अंग्रेजों को बंगाल में सीमित क्षेत्र में बाजार की अनुमति प्रदान की लेकिन एक अंग्रेज डॉक्टर गैब्रियल बफ्टन द्वारा शाहजहां की लङकी का सफलता पूर्वक इलाज करने के कारण अंग्रेजों को एक-दे जहांजों के साथ बिना चुंगी दिये व्यापार की अनुमति मिली। 1651ई. में ब्रिजमैन के नेतृत्व में बंगाल के हुगली नामक स्थान पर प्रथम अंग्रेज कारखाने की स्थापना हुई। हुगली के बाद कासिम बाजार,पटना,राजमहल में भी अंग्रेज कारखाने खोले गये।
1658 ई. तक बंगाल,बिहार,उङीसा और कोरोमंडल की समस्त अंग्रेज फैक्ट्रियां फोर्ट जार्ज (मद्रास) के अधीन आ गई। जहां 1633 से 1663ई. के बीच अंग्रेज फैक्ट्रियों का उद्देश्य मुगल संरक्षण में शांतिपूर्वक व्यापार करना था, वहीं 1683-85ई.में अंग्रेज व्यापारी, स्थानीय शक्तियों के साथ विवादों अन्य यूरोपियन कंपनियों के अधिकृत और अनधिकृत व्यापारियों तथ आपसी झगङों में व्यस्त हो गये। 17वी. शता. के उत्तरार्द्ध में अनेक कारणों से ईस्ट इंडिया कंपनी की नीति में परिवर्तन आया, अब वह सिर्फ व्यापारिक सुविधा को बहाल कर दिया। बंगाल के सूबेदार शाहशुजा द्वारा दिये गये एक विशेष फरमान द्वारा 1651 में अंग्रेजों को 3000 रु. वार्षिक कर देने पर बंगाल में व्यापार का विशेषाधिकार प्राप्त हुआ। अगस्त 1682ई. में बंगाल के मुगल सुबेदार के यहां विलियम हैजेज के नेतृत्व में दूत मंडल पहुँचा, जो मुगल अधिकारियों द्वारा जबरदस्ती वसूल की जाने वाली व्यापारिक चुंगी से मुक्ति चाहता था।
विलियम हैजेज बंगाल का प्रथम अंग्रेज गवर्नर था। मुगल सम्राट औरंगजेब और अंग्रेजों के बीच पहली भिङंत 1686 ई. में हुगली में हुई। अंग्रेजों ने हुगली का बदला बालासोर के मुगल किले पर धावा बोल कर अंग्रेजों को एक ज्वारग्रस्त द्वीप पर शरण लेनी पङी। फरवरी,1690ई. में कंपनी के अधिकारियों (चॉरनाक के नेतृत्व में) और मुगल सरकार के बीच समझौता हो जाने पर जॉब चारनाक को बंगाल में कंपनी के एजेन्ट के रूप में नियुक्त किया गया। 10 फरवरी,1691ई. को जॉब चॉरनाक ने सुतनाटी में अंग्रेज फैक्ट्री की स्थापना की। बर्दवान जिले के जमींदार शोभासिंह के विद्रोह से अंग्रेजों को सुतनाटी कारखाने की किलेबंदी करने की आवश्यकता महसूस हुई।
1698-99 ई. में बंगाल के सुबेदार अजीमुश्शान की अनुमति के बाद कंपनी को 1200 रु. देने पर सुतनाटी,गोवंदपुर और कालिकाता की जमींदारी प्राप्त हो गई। कंपनी को कालिकाता,गोविंदपुर और सुतिनाटी गांव की जमींदारी जमींदार इब्राहिम खां से मिली। कालिकाता,गोवंदपुर और सुतिनाटी को मिलाकर ही आधुनिक कलकत्ता की नींव जॉब चॉरनाक ने डाली।कालांतर में कलकत्ता में फोर्ट विलियम की नींव पङी। 1700 ई. में स्थापित फोर्ट विलियम का प्रथम गवर्नर सर चार्ल्सआयर को बनाया गया तथा इसी समय बंगाल को मद्रास से स्वतंत्र प्रेसीडेंसी बना दिया गया। औरंगजेब ने 1701 ई. में भारत में रहने वाले सभी यूरोपियनों को गिरफ्तार करने का आदेश दिया। पटना और कासिम बाजार के अंग्रेज कंपनी कर्मचारी बंदी बना दिये गये।
1707ई. में औरंगजेब की मृत्यु के बाद कंपनी की स्थिति में कुछ सुधार हुआ। बंगाल के अंग्रेजों के बारे में शाइस्ता खां ने कहा कि यह एक कुत्सित या नीच,झगङालू लागों और बेईमान व्यापारियों की कंपनी है। 1634ई. में ब्रिटिश संसद द्वारा पारित एक प्रस्ताव द्वारा ब्रिटेन की सभी प्रजा को भारत में व्यापार करने का अधिकार मिल गया। इस अधिकार पत्र के बाद इंग्लैण्ड में एक अन्य प्रतिद्वन्दी कंपनी इंग्लिश कंपनी ट्रेंडिंग इन द ईस्ट का जन्म हुआ।इस कंपनी ने व्यापारिक विशेषाधिकार प्राप्त करने के लिए विलियम नौरिस को औरंगजेब के दरबार मे भेजा था।
नई और पुरानी ईस्ट इंडिया कंपनी को आपस में विलय करने का निर्णय 22जुलाई,1702ई. को लिया गया। दोनों कंपनियों का विलय अर्ल आफ गोडोलफिन के निर्णय के अनुसार 1708-9ई. में कर दिया गया। संयुक्त कंपनी का नाम द यूनाइटेड कंपनी ऑफ मर्चेन्टस ऑफ इंग्लैण्ड ट्रेडिंग टू दी ईस्ट इंडीज रखा गया। ईस्ट इंडिया कंपनी के इतिहास की महत्तवपूर्ण घटना 1717ई. में घटी।जान सुर्मन के नेतृत्व में एक ब्रिटिश दूत मंडल कुछ और व्यापारिक रियासतें प्राप्त करने के उद्देश्य से मुगल बादशाह फर्रुखसियर के दरबार में पहुंचा। ब्रिटिश दूतमंडल में एडवर्ड स्टिफेन्सन, विलियम हैमिल्टन (सर्जन) तथा ख्वाजा सेहूर्द (आर्मिनियन दुभाषिया) शामिल थे।
सर्जन हेमिल्टन ने बादशाह को एक भयानक बीमारी से मुक्ति दिलायी,परिमामस्वरूप खुश होकर फर्रुखसियर ने बंगाल,हैदराबाद और गुजरात के सूबेदारों के नाम तीन फरमान जारी किये। बंगाल में 3000रु. वार्षिक कर अदा करने पर कंपनी को उसके समस्त व्यापार में सीमा शुल्क से मुक्त कर दिया गया। इस फरमान द्वारा कंपनी को कलकत्ता के आस-पास के 38 गांवों को खरीदने का अधिकार मिल गया। फर्रुखसियर द्वारा दिये गये फरमान द्वारा बंबई में ढले सिक्कों को समूचे मुगल साम्राज्य में चलाने के लिए छूट मिल गई। सूरत में फरमान द्वारा 10,000 रु. वार्षिक देय पर कंपनी के समस्त व्यापार को आयात-निर्यात कर से मुक्त कर दिया गया। फर्रुखसियर द्वारा कंपनी को प्रदत्त फरमान कालांतर में दूरगामी परिणामवाला सिद्ध हुआ। और्म महोदय ने इस फरमान को कंपनी का महाधिकारपत्र (मैग्नाकार्टा) की संज्ञा दी। बंगाल के नवाब मुर्शीद कुली खाँ ने फर्रुखसियर द्वारा दिये गये फरमान के बंगाल में स्वतंत्र प्रयोग को नियंत्रित करने का प्रयास किया। मराठा सेनानायक कान्होंजी आंगरिया ने पश्चिमी चट पर अंग्रेजों की स्थिति को काफी कमजोर बना दिया था।