मराठा उत्कर्ष के कारण
- भौगोलिक परिस्थिति – हिन्दु जन जागरण
- औरंगजेब की हिन्दु विरोधी नीतियां
- कवियों एवं मराठा संत के धार्मिक आन्दोलन
- मुगल साम्राज्य की पतनोन्मुख स्थिति
शिवाजी
शिवाजी का जन्म 20 अप्रैल, 1627 (कुछ जगह 19 फरवरी, 1630) को शिवनेर दुर्ग (पूना) में हुआ। उनके पिता व माता का नाम – शाह जी भोंसले व जीजा बाई था। इनके गुरू समर्थ रामदास जी (धरकारी संप्रदाय) थे। इनके संरक्षक दादाजी कोणदेव थे।
- राज्याभिषेक: 1674 ई. (रायगढ़ दुर्ग में)
- उपाधि: छत्रपति, हिन्दु धर्मोद्धारक, राजा (औरंगजेब द्वारा)
- प्रथम विजय: सिंहगढ़ किला (1643 ई.)
- सर्वप्रथम 1646 ई. में शिवाजी ने तोरण का किला जीता। कुछ पुस्तकों में शिवाजी द्वारा जीता गया प्रथम दुर्ग सिंहगढ़ का उल्लेखित है।
- प्रथम राज्याभिषेक: जून, 1674 (रायगढ़ दुर्ग में विश्वेश्वर/गंगाभट्ट द्वारा)
- द्वितीय राज्याभिषेक: सितंबर, 1674 निश्चलपुरी गोसाई द्वारा
- शिवाजी की विजय-
- सर्वप्रथम, 1643 ई. में सिंहगढ़ का किला जीता
- 1646 ई. में तोरण पर अधिकार किया।
- 1657 ई. में पहली बार शिवाजी का मुकाबला मुगलों से हुआ तथा बीजापुर की तरफ से मुगलों से लड़े।
- 1659 ई. में बीजापुर शासक ने शिवाजी को दबाने के लिए अफजल खां के नेतृत्व में एक टुकड़ी भेजी परन्तु शिवाजी ने अफजल खां की हत्या कर दी।
- 1660 ई. में औरंगजेब ने शिवाजी को खत्म करने के लिए अपने मामा शाइस्ता खां को दक्षिण के गवर्नर पद पर नियुक्त किया परन्तु 1663 ई. में शिवाजी ने रात में पूना के महल पर हमला कर दिया और शाइस्ता खां भाग गया।
- 1664 ई. में शिवाजी ने सूरत को लुटा
औरंगजेब ने आमेर के राजा, मिर्जाराजा जयसिंह को शिवाजी को मरने के लिए भेजा। जयसिंह के साथ युद्ध में शिवाजी की हार हो गयी तथा शिवाजी ने संधि कर ली।
शिवजी के प्रमुख युद्ध –
प्रतापगढ़ की लड़ाई (1695)
- 10 नवंबर, 1695 को छत्रपति शिवाजी महाराज और आदिलशाही जनरल अफजल खान की सेनाओं के बीच सतारा, महाराष्ट्र के निकट प्रतापगढ़ के किले में के पास हुयी थी।
- प्रतापगढ़ की लड़ाई के किले में 10 नवंबर 1659 को एक भूमि लड़ाई लड़ी गई थी
- प्रतापगढ़ के शहर के पास सतारा, महाराष्ट्र, भारत की ताकतों के बीच मराठा राजा शिवाजी और यह आदिलशाही आम अफजल खान।
कोल्हापुर की लड़ाई (1659)
कोल्हापुर की लड़ाई स्थल-युद्ध कि के शहर के पास दिसंबर 1659 पर 28 जगह ले ली थी कोल्हापुर , महाराष्ट्र के बीच मराठा राजा शिवाजी और आदिलशाही बलों ।
लड़ाई शिवाजी द्वारा राणा सांगा के खिलाफ बाबर की रणनीति के समान शानदार आंदोलन के लिए जानी जाती है ।
शिवाजी ने अफजल खान को मार डाला था और प्रतापगढ़ (10 नवंबर 1659) की लड़ाई में अपनी सेना को हरा दिया था।
पवन खंद की लड़ाई
शिवाजी की वापसी (संधि या भागने) और उनके गंतव्य (रग्ना या विशालगड़) की परिस्थितियों में कुछ विवाद है, लेकिन लोकप्रिय कहानी में विशालगड़ के लिए उनकी रात की गतिविधियों का विवरण दिया गया है और एक बलि चढ़ाव के पीछे की रक्षा के लिए उन्हें भागने की अनुमति दी गई है।
चकन की लड़ाई (1660)
1660 में, मराठा साम्राज्य और मुगल साम्राज्य ने चाकन का युद्ध लड़ा। मुगल-आदिलशाही समझौते के अनुसार, औरंगजेब ने शाइस्ता खान को शिवाजी पर हमला करने का हुक्म दिया। शाइस्ता खान ने पुणे और पास के किले में अपने बेहतर सुसज्जित और सुसज्जित सेना के 150,000 लोगों के साथ अधिकार कर लिया, जो मराठा सेनाओं के आकार से कई गुना अधिक था।
फिरंगजी नरसाला उस समय फोर्ट चाकन के मारे (कमांडर) थे, जिनके पास 300 से 350 मराठा सैनिक थे। डेढ़ महीने तक, वे किले पर मुगल हमले से लड़ने में सक्षम थे। मुगल सेना 21,000 से अधिक सैनिकों की संख्या थी।
अम्बरखिंड का युद्ध (2 फरवरी 1661)
2 फरवरी 1661 को छत्रपति शिवाजी के अधीन मराठा और मुगलों के कार्तलब खान के बीच हुआ। 1660 में शाइस्ता खान मुगलों के दक्कन सुभा के सूबेदार के रूप में दक्षिण में आए और मई 1660 में वे पुणे में रहने आए। जून 1660 में, शाइस्ता खान ने शिवाजी राजा के चाकन किले पर विजय प्राप्त की । 1661 के शुरुआत में, शाइस्ता खान Kartalab Khanas चौल, दिया कल्याण , भिवंडी , पनवेल , Nagothane शिवाजी राजा के नियंत्रण के तहत उत्तरी कोंकण क्षेत्र के इन जगहों पर कब्जा करने भेजा गया। साथ में करतलब खाना, कछवाहा, चतुर्भुज चौहान, अमरसिंह चंद्रावत, मित्रसेन और उनके भाई सरजेराव गाधे, सावित्रीबाई उर्फ रायबाघन, जसवंतराव कोकाटे, जाधवराव मुगलों के मुखिया थे।
सूरत की बर्खास्तगी (5 जनवरी 1664)
5 जनवरी 1664 को छत्रपति शिवाजी महाराज और मुगल कप्तान इनायत खान के बीच सूरत शहर के पास हुआ था।
सूरत की लड़ाई , जिसे सूरत की बोरी के रूप में भी जाना जाता है , एक भूमि युद्ध था जो 5 जनवरी, 1664 को सूरत , गुजरात , भारत के पास मराठा शासक शिवाजी और मुगल कप्तान इनायत खान के बीच हुआ था।
मराठों ने मुगल सेना को हरा दिया और सूरत शहर को छह दिनों के लिए बर्खास्त कर दिया।
ब्रिटिश भारत रेजिमेंट के एक कप्तान जेम्स ग्रांट डफ के अनुसार , सूरत पर शिवाजी ने 5 जनवरी 1664 को हमला किया था। सूरत मुगल साम्राज्य में एक समृद्ध बंदरगाह शहर था और मुगलों के लिए उपयोगी था क्योंकि इसका उपयोग समुद्री व्यापार के लिए किया जाता था।
पुरंदर की लड़ाई (1665)
1665 में मुगल साम्राज्य और मराठा साम्राज्य के बीच में हुआ था।
मुगल साम्राज्य के सेनापति राजपूत शासक जय सिंह प्रथम और मराठा छत्रपति शिवाजी महाराज के बीच, 11 जून, 1665 को पुरन्दर की संधि पर हस्ताक्षर किए गए थे।
जय सिंह द्वारा पुरंदर किले की घेराबंदी करने के बाद शिवाजी महाराज को समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर होना पड़ा।
जब शिवाजी ने महसूस किया कि मुगल साम्राज्य के साथ युद्ध केवल साम्राज्य को नुकसान पहुंचाएगा और उनके लोगों को भारी नुकसान होगा, तो उन्होंने मुगलों के अधीन अपने लोगों को छोड़ने के बजाय एक संधि करने का फैसला किया।
सिंहगढ़ की लड़ाई (4 फरवरी, 1670)
4 फरवरी, 1670 को पुणे शहर, महाराष्ट्र के निकट सिंहगढ़ के किले के पास, मराठा शासक शिवाजी महाराज और उदयभान राठोड़ के बीच में हुआ था।
यह युद्ध छत्रपति शिवाजी के सेनानायक तानाजी मालुसरे और उदयभान सिंह राठौड़ के बीच हुआ था ।
उदयभान सिंह राठौड़ सिंहगढ़ दुर्ग का दुर्गपति था और मुगल सेना के सेनानायक जय सिंह प्रथम के अधीन कार्यरत था। किले की ओर जाने वाली एक खड़ी चट्टान को रात में “यशवंती” नाम की एक टेम्पररी मॉनिटर छिपकली की मदद से स्केल किया गया था, जिस पर मराठों ने एक रस्सी लगाकर दीवार को अपने पंजों से स्केल करने के लिए भेजा।
संगमनेर की लड़ाई (1679)
संगमनेर की लड़ाई के बीच लड़ा गया था मुगल साम्राज्य तथा मराठा साम्राज्य 1679 में।
यह अंतिम युद्ध था जिसमें मराठा राजा शिवाजी लड़े। मुगलों जब वह बोरी से लौट रहा था, तब उसने एक बड़े बल के साथ शिवाजी को घात किया था।
मराठा तीन दिनों तक मुगलों के साथ युद्ध में लगे रहे लेकिन मुगलों से हार गए।
सेना:
- शिवाजी के पास स्थायी एवं नियमित सेना थी।
- घुड़सवार: –
- बरगीर: राज्य की ओर से घोड़े व अस्त्र दिए जाते थे।
- सिलेदार: स्वयं के घोड़े व अस्त्र रखते थे।
- शिवाजी की सेना मेंअलग अलग जातियों के सैनिक थे।
- सैनिकों को नकद वेतन मिलता था।
- मावली सैनिक: शिवाजी के अंगरक्षक।
- पागा: घुड़सवार सेना का एक संगठन था।
राजस्व प्रशासन
- शिवाजी की राजस्व व्यवस्था रैय्यतवाडी प्रथा पर आधारित थी।
- भूमि की पैमाइश के आधार पर उत्पादन का अनुमान लगाया जाता था तथा किसान से लगान निर्धारित किया जाता था।
- राजस्व को नगद या वस्तु के रूप में चुकाया जाता था
- आरंभ में शिवाजी ने उपज का 33 प्रतिशत भाग कर के रूप में वसूल किया बाद में इसे बढ़ा कर 40 प्रतिशत कर दिया।
- भूमि की पैमाइश काठी/जरीब से की जाती थी।
- कृषकों को तकाबी ऋण भी दिया जाता था।
- गांव के प्राचीन पैतृक अधिकारी पाटिल और जिले के देशमुख/देशपाण्डे होते थे।
- चौथ : विजित राज्यों के क्षेत्रों से उपज का 1/4 भाग कर के रूप में वसूल होता था।
- सरदेशमुखी: यह एक अतिरिक्त कर था जो उपज का 1/10 भाग या 10 प्रतिशत होता था।
न्याय व्यवस्था
- शिवाजी की न्याय व्यवस्था प्राचीन स्मृतियों के आधार पर थी।
- ग्राम स्तर पर अपराधिक मामलों की सुनवाई पटेल करता था
- अपील की अंतिम अदालत हाजिर-मजलिस थी
- अंतिम/सर्वोच्च न्यायाधीश/कानून निर्माता छत्रपति था
शिवाजी के उत्तराधिकारी
शिवाजी की मौत के बाद 21 अप्रैल, 1680 ई. को राजा राम का राज्याभिषेक हुआ। इसके कुछ समय बाद ही शिवाजी के दो पुत्रों (दो पत्नियों से उत्पन्न) शम्भा जी एवं राजा राम के बीच उत्तराधिकार का विवाद हुआ। अन्ततः राजा राम की जगह शम्भा जी 20 जुलाई 1680 ई. को सिंहासन पर बिठा दिया गया ।
शंभा जी (1680-89 ई.)
- ये शिवाजी के छोटे पुत्र थे।
- शिवाजी ने इन्हें पन्हाला किले में कैद कर दिया था
- 16 जनवरी, 1681 ई. को इनका राज्याभिषेक हुआ। इन्होंने रायगढ़ को अपनी राजधानी बनाया। इन्होंने ब्राह्मण कवि कलश को प्रशासन का सर्वोच्च पद सौंपा।
- इनके समय में अष्ठप्रधान में विघटन हो गया था। इन्होंने औरंगजेब के पुत्र अकबर को संरक्षण दिया था। इसी कारण औरंगजेब ने इनकी हत्या करवा दी। शम्भा जी के साथ कवि कलश की हत्या भी करवा दी गयी।
राजा राम (1689-1700 ई.)
- शम्भा जी की मृत्यु के बाद राजा राम को पुनः राजगद्दी पर बैठा दिया गया ।
- राजा राम स्वयं को शाहू(शम्भा जी का पुत्र) का प्रतिनिधि कहता था।
- राजा राम के समय में ही प्रतिनिधि पद का सृजन हुआ जो पेशवा से ऊपर एवं छत्रपति से नीचे का पद था। इस प्रकार अष्ठप्रधान में अब 9 मंत्री हो गये।
- 1689 ई. में ही औरंगजेब के आक्रमण के भय से राजाराम ने रायगढ़ को छोड़कर जिंजी में शरण ली एवं 8 वर्षों तक जिंजी को राजधानी बना कर वहीं रहा।
- औरंगजेब ने 1689 ई. में रायगढ़ पर आक्रमण कर शाहू को बंदी बना लिया जो की औरंगजेब की मृत्य (1707 ई.) तक कैद में रहा।
- राजा राम के समय 1689 में मुगलों ने रायगढ़ परअधिकार कर लिया।
- 1698 ई. में राजाराम जिंजी से वापस आया और सतारा को राजधानी बनाया। 1700 ई. में राजाराम की भी मृत्यु हो गयी।
- शिवाजी-II (ताराबाई के संरक्षण में) (1700-07 ई.)
- राजा राम की मृत्यु के बाद उनकी विधवा ताराबाई ने अपने चार वर्षीय पुत्र को शिवाजी-2 नाम से गद्दी पर बैठाया एवं स्वयं उसकी संरक्षिका बन गयी।
- 1707 ई. में औरंगजेब की मौत के बाद, औरंगजेब के पुत्र आजमशाह ने जुल्फिकार खां के कहने पर शाहू जी को आज़ाद कर दिया गया
- शाहू जी (1707-49 ई.)
- औरंगजेब की कैद से रिहा होने के बाद सतारा पहुंचा तो सतारा पर ताराबाई का अधिकार था।
- खेड़ा का युद्ध (12 अक्टूबर, 1707): यह तारा बाई की सेना और शाहू जी की सेना के बिच हुआ। इस युद्ध में बालाजी विश्वनाथ की सहायता से शाहू जी विजयी हुआ। ताराबाई भागकर दक्षिणी महाराष्ट्र पहुंच गयी।
- 1708 में शाहू जी का राज्याभिषेक हुआ उसकी राजधानी सतारा थी
- वार्ना की संधि, 1731द्वारा मराठा राज्य दो हिस्सों में बंट गया।
- उत्तर राज्य: शाहू जी के अधीन, राजधानी: सतारा
- दक्षिण राज्य: शिवाजी-2 के अधीन, राजधानी: कोल्हापुर
- 1708 ई. में शाहू जी ने बालाजी विश्वनाथ को सेनाकर्ते (सेना के व्यवस्थापक) का पद प्रदान किया।
- 1713 ई. में बालाजी विश्वनाथ को पेशवा के पद पर बिठाया। इसके बाद यह पेशवा पद वंशानुगत हो गया।
- 1714 ई. में राजा राम की दूसरी पत्नि राजस बाई ने ताराबाई एवं उसके पुत्र शिवाजी-2 को बंदी बना लिया और अपने पुत्र शम्भा जी-II के साथ कोल्हापुर में बस गयी।
राजा राम-II (1749-50 ई.)
ताराबाई के कहने पर राजाराम-II को छत्रपति बनाया गया।
संगोली की संधि, 1750 ई.
बालाजी बाजीराव एवं राजाराम-2 के बीच
इस संधि के अनुसार, मराठा संघ का वास्तविक नेता पेशवा बन गया।
पेशवाओं के काल में मराठा
बालाजी विश्वनाथ (1713-20 ई.)
- यह एक ब्राह्मण था जो पेशवाओं के क्रम में सातवें पद पर था।
- बालाजी विश्वनाथ को मराठा सम्राज्य का द्वितीय संस्थापक माना जाता है।
- 1708 ई. में इन्हें सेनाकर्ते का पद प्रदान किया गया। 1713 ई. में पेशवा बने
- दिल्ली संधि/मुगल मराठा संधि/बालाजी-सैयद हुसैन संधि
- कारण: फर्रूख्सियार को राजगद्दी से हटाना
- यह संधि पेशवा बालाजी विश्वनाथ एवं सैय्यद हुसैन अली (मुगलों की ओर से) के बीच हुई।
- रिचर्ड टेम्पल ने इस संधि को मराठों का मैग्नाकार्टा कहा था।
- मुगल शासक रफी उद दरजात ने इस संधि पर हस्ताक्षर किया था
बाजीराव प्रथम (1720-40 ई.)
- बाजीराव प्रथम ने मराठा शक्ति को चर्मोत्कर्ष पर पहुंचाया।
- मुगल साम्राज्य की तात्कालिक स्थिति पर बाजीराव ने कहा ‘हमें इस जर्जर वृक्ष के तने पर प्रहार करना चाहिए, शाखाएं तो स्वयं ही गिर जाएंगी’।
- शूकरखेड़ा के युद्ध में मराठों ने दक्कन के निजामुलमुल्क की मदद किया एवं निजाम ने मुगल सूबेदार मुबारिज खां को पराजित किया।
- पालखेड़ा का युद्ध (7 मार्च, 1728 ई.) में बाजीराव ने निजाम को हराया । इस युद्ध में हारने के बाद निजाम ने मुंशी शिवगांव की संधि की। इस संधि के बाद दक्कन में मराठा सर्वोच्चता स्थापित हो गयी।
- डभोई का युद्ध (1731 ई.) में बाजीराव ने त्रयम्बक राव को हराया ।
- 1738 ई. में गुजरात को मराठा राज्य में मिलाया गया।
- अमझेरा का युद्ध (1728 ई.)
- बाजीराव ने मालवा के सूबेदार गिरधर बहादुर को पराजित किया।
- मुगल सूबेदार सवाई जयसिंह, मुहम्मद खां बंगश, गिरधर बहादुर आदि मराठा पेशवा बाजीराव एवं मराठा सरदार ऊदा जी पवार एवं मल्हार राव होल्कर को रोकन में असमर्थ रहे।
- 1735 ई. तक मालवा में मुगलों की सत्ता लगभग समाप्त हो गयी।
- बुन्देलखण्ड विजय: 1728 ई. में मराठों ने मुगलों से बुन्देलखण्ड के सभी विजित प्रदेश वापस छीन लिए।
- छत्रसाल ने पेशवा की शान में आयोजित दरबार में एक मुस्लिम नर्तकी ‘ मस्तानी ’ को पेश किया एवं काल्पी, झांसी, सागर एवं ह्रदयनगर पेशवा को जागीर में भेंट किया।
- दिल्ली पर आक्रमण (29 मार्च, 1737): 3 दिन दिल्ली में रहने केपश्चात पेशवा को मालवा की सूबेदारी मिल गयी एवं 13 लाख वार्षिक धनराशि की अदायगी के आश्वासन पर पेशवा वापस लौटा।
- भोपाल का युद्ध (7 जुलाई, 1738 ई.): में बाजीराव ने निजाम को घेर लिया एवं संधि करने पर विवश किया। 1738 ई. में दुरई सराय की संधि द्वारा सम्पूर्ण मालवा एवं नर्मदा से चम्बल तक का क्षेत्र मराठों को हाशिल हुआ ।
- बसीन विजय (1739 ई.): मराठों ने पुर्तगालियों से बसीन हथिया लिया।
तथ्य
- 1732 ई. में बाजीराव ने एक इकरारनामा तैयार किया जिससे सम्पूर्ण मराठा राज से 4 नए मराठा राज्यों की आधारशिला तैयार हुई।
- – ग्वालियर: सिंधिया राजवंश (रानोजी सिंधिया द्वारा)
- – नागपुर: भोंसले राजवंश (शाहू के साथ संबंध)
- – इन्दौर: होल्कर राजवंश (मल्हार राव होल्कर द्वारा)
- – बड़ौदा: गायकवाड़ राजवंश (पिला जी गायकवाड़)
बालाजी बाजीराव (1740-61 ई.)
- अन्य नाम: नाना साहब
- इसने मराठा शासक राजाराम-2 से संगोला समझौता करके राज्य के सम्पूर्ण अधिकार स्वंय ले लिए।
- 1742 ई. में झाँसी मराठों का उपनिवेश बना।
- 1751 ई. में उड़ीसा पर मराठों का अधिकार हो गया। बंगाल एवं बिहार से चौथ प्राप्त।
- 1752 ई. में निजाम एवं मराठों के बिच भलक की संधि हुई एवं बराड का आधा क्षेत्र मराठों मिला ।
- सिन्दखेड़ा युद्ध (1757 ई.) में मराठों ने निजाम से कई प्रदेश हथियाये ।
- उदगीर का युद्ध (1760 ई.) में मराठों ने निजाम को हराकर अहमदनगर, दौलताबाद, बुरहानपुर एवं बीजापुर हाशिल किए।
- बालाजी बाजीराव के समय ही पानीपत का तीसरा युद्ध हुआ।
पानीपत का तीसरा युद्ध (14 जनवरी, 1761 ई.)
पानीपत का तीसर युद्ध अहमदशाह अब्दाली एवं मराठों के बिच लडा गया जिसमें मराठों की हार हुई तथा इसमे मराठा शक्ति का बहुत नुक्सान हुआ।
माधवराव प्रथम (1761-72 ई.)
- पानीपत के तीसरे युद्ध में हार के बाद मराठों की प्रतिष्ठा को पुनः बहाल करने की कोशिश की।
- हैदराबाद के निजाम एवं मैसूर के हैदरअली को चौथ देने के लिए बाध्य किया।
- इसी के काल में मुगल बादशाह शाह आलम-II ने 1772 ई. में मराठों की संरक्षिता स्वीकार की।
- मराठा साम्राज्य का पतन इसकी मृत्यु के बाद प्रारंभ हो गया।
नारायण राव (1772-73 ई.)
नारायण राव माधव राव का छोटा भाई था। इसकी हत्या रघुनाथ राव ने की।
माधव नारायण राव (1774-95 ई.)
यह नारायण राव का पुत्र था।
नाना फडनवीश के नेतृत्व में मराठा राज्य की देखभाल के लिए ‘बारा भाई कौंसिल’ को नियुक्त किया गया ।
बाजीराव द्वितीय (1795 ई.-1818 ई.)
फड़नवीस की मृत्यु के बाद मराठा शक्ति पेशवा बाजीराव-2, दौलत राव सिंधिया एवं यशवन्त राव होल्कर के हाथ में रही।
पूना में पेशवा एवं होल्कर के बीच संघर्ष
पेशवा बाजीराव-2 एवं दौलतराव सिंधिया ने होल्कर के खिलाफ षड़यंत्र रचा एवं 1801 ई. में पेशवा ने जसवंत राव होल्कर के भाई विट्टू जी की निर्मम हत्या कर दी।
जसवंत राव होल्कर ने 1802 ई. में पूना पर आक्रमण किया एवं पेशवा और सिंधिया की संयुक्त सेना को हृदयसर नामक स्थल पर पराजित कर पूना पर कब्ज़ा कर लिया। बाजीराव-2 बसीन भाग गया वहां उसने 31 दिसम्बर, 1802 ई. में अंग्रेजो क साथ बेसिन की संधि कर ली
मराठी रियासते
- मराठा क्षेत्र मुख्य रूप से 6 रियासतों में बंटा था –
- सतारा – छत्रपति
- पुणे – पेशवा
- ग्वालियर – सिंधिया इन्दौर -होल्कर
सिंधिया राजवंश
- मालवा में सिंधिया वंश की स्थापना रानो जी सिंधिया के द्वारा की गयी ।
- प्रारंभ में इनकी राजधानी उज्जैन थी बाद में ग्वालियर को राजधानी बनाया गया।
- महादजी सिंधिया इस वंश का एक प्रतापी शासक हुआ।
- 1803 ई. में दौलत राव सिंधिया अपने क्षेत्र को अंग्रेजों के समर्पण के लिए बाधित हो गया।
भौंसले राजवंश
नागपुर में भौंसले वंश की स्थापना रघु जी भोंसले
रघुजी भोंसले को बंगाल एवं बिहार में साम्राज्य विस्तार का जिम्मेदार माना जाता है।
गायकवाड़ राजवंश
- गुजरात में गायकवाड़ वंश की स्थापना पिला जी राव गायकवाड़ ने की
- गायकवाड़ गुजरात में मराठा सेनापति दबाधे परिवार के अधीनस्थ थे।
- दामाजी राव गायकवाड़ मराठा सेना के साथ पानीपत के तृतीय युद्ध में अंग्रेजों के खिलाफ लड़ा था।
होल्कर राजवंश
मल्हार राव होल्कर ने होल्कर राजवंश की स्थापना इन्दौर में की थी।
अहिल्या बाई होल्कर
- ये होल्कर वंश का गौरव एवं कुशल शासिका मानी जाती हैं।
- ये मल्हार राव होल्कर के पुत्र खांडेराव होल्कर की पत्नी थी।
- मालवा के इन्दौर क्षेत्र में शांति, लुटेरों से मुक्ति एवं अनेक सामाजिक एवं धार्मिक तथा मन्दिर, धर्मशाला, सड़क, घाट, कुएं, बावड़ियों के निर्माण के लिए याद किया जाता हैं।
- अहिल्या बाई होल्कर महिला सशक्तिकरण की पक्षधर थी
- अहिल्या बाई होल्कर ने कलकत्ता से बनारस तक सड़क, बनारस का अन्नपूर्णा मन्दिर गया में विष्णु मन्दिर बनवए
- बनारस के काशी विश्वनाथ मंदिर की वर्तमान आकृति का निर्माण अहिल्या बाई होल्कर ने करवाया। रणजीत सिंह ने मंदिर के लिए सोना दान किया एवं दो स्वर्ण गुंबद बने।
आंग्ल-मराठा युद्ध
सूरत की संधि (1775 ई.): बम्बई की अंग्रेजी सरकार एवं रघुनाथ राव के बीच।
इस संधि में तय हुआ की अंग्रेज रघुनाथ राव (राघोवा) को पेशवा बनाने में मदद करेंगे।
मराठे बंगाल एवं कर्नाटक पर आक्रमण नहीं करेंगे।
प्रथम आंग्ल-मराठा युद्ध (1775-82 ई.)
- 18 मई, 1775 ई. में आरस के मैदान में अंग्रेज एवं मराठों के बीच पहला संघर्ष हुआ इस संघर्ष में मराठा हार गए ।
- पुरन्दर की संधि (1 मार्च, 1776 ई.): वारेन हेस्टिंग ने पूना दरबार में कर्नल अप्टन को भेज कर यह संधि की परन्तु यह संधि कार्यान्वित नहीं हुई।
- बडगांव की संधि (1779 ई.): पुणे दरबार एवं अंग्रेजों के बीच यह संधि हुई। वारेन हेस्टिंग ने इस संधि को मानने से इन्कार कर दिया।
- सालबाई की संधि (1782 ई.): महादजी सिंधिया की मध्यस्था से पुना दरबार एवं अंग्रेजों के बीच 17 मई, 1782 ई. में यह संधि हुई। इससे आंग्ल-मराठा संघर्ष रूका। इस संधि से अंग्रेजों ने रघुनाथ राव का साथ छोड़ माधव नारायण राव को पेशवा माना।
द्वितीय आंग्ल-मराठा युद्ध (1803-05 ई.)
- यह युद्ध दो मुख्य केन्द्रों में शुरू हुआ-
- दक्कन – वेलेजली के अधीन अंग्रेज सेना एवं सिंधिया व भोसले की संयुक्त सेना के बीच। इसमें वेलेजली विजयी रहा।
- जनरल लेक के अधीन अंग्रेज सेना एवं सिंधिया की सेना के बीच उत्तर भारत में। इसमें भी अंग्रेज सेना ने विजय प्राप्त की।
- देव गांव की संधि (17 दिसम्बर, 1803 ई.): यह भोसले एवं अंग्रेजों के बीच हुई।
- सुर्जी-अर्जनगांव की संधि (30 दिसम्बर, 1803 ई.): यह सिंधिया एवं अंग्रेजों के बीच थी।
तृतीय आंग्ल-मराठा युद्ध (1817-18 ई.)
- यह युद्ध पेशवा एवं अंग्रेजों के मध्य हुआ जिसमें पेशवा हार गया ।
- पूना की संधि (13 जून, 1817): यह पेशवा बाजीराव-2 एवं अंग्रेजों के बीच हुई।
- इस संधि से पेशवा को मराठा संघ की प्रधानता छोड़नी पड़ी।
- दौलतराव संधिया एवं अंग्रेजों के बीच 5 नवंबर, 1817 ई. को ग्वालियर की संधि हुई।
- नागपुर के भोसले एवं अंग्रेजों के बीच 27 मई, 1816 ई. में सहायक संधि हुई।
- होल्कर एवं अंग्रेजों के बीच 6 जनवरी, 1818 ई. में मंदसौर की संधि हुई।
- पेशवा एवं अंग्रेजों के बीच और दो बार संघर्ष हुआ –
- कोरेगांव (1 जनवरी, 1818 ई.): पेशवा की हार हुई।
- अण्टी में (20 फरवरी, 1818 ई.): यहां भी पेशवा पराजित हुआ।
- पेशवा बाजीराव द्वितीय ने 3 जून, 1818 में सर जाॅन मेल्कम के समक्ष आत्म समर्पण कर दिया। बाजीराव-2 को 8 लाख रू वार्षिक पेंशन पर कानपुर के समीप बिठूर में रहने की आज्ञा दी गयी
- मराठा साम्राज्य का अंतिम छत्रपति शाहजी अप्पा साहेब थे।
मराठों के पतन के कारण
- उत्तरकालीन मराठों का अकुशल नेतृत्व
- मराठा सैन्य प्रणाली में आधुनिकता का अभाव
- मराठों की नौसेना पर्याप्त नहीं थी
- गुप्तचर प्रणाली का अभाव
- मराठा सरदारों का आपसी झगड़ा ।