पागल पंथी विद्रोह (1813-31 ई.)

  1. समय – 1813
  2. संस्थापक – टीपू
  3. उद्देश्य – ज़मींदारों के अत्याचार के ख़िलाफ़ विद्रोह
  • यह विद्रोह बंगाल में हुआ। पागलपंथ एक अर्द्धधार्मिक सम्प्रदाय था जिसे करमशाह ने चलाया था।टीपू मीर , करमशाह का पुत्र था। टीपू ने जमींदारों के मुजारों के विरूद्ध यह आन्दोलन शुरू किया था।
  • पागलपंथी विद्रोह की शुरुआत ‘टीपू’ ने की थी।
  • पागलपंथी एक प्रकार का अर्द्ध-धार्मिक सम्प्रदाय था। यह सम्प्रदाय उत्तरी बंगाल में ‘करमशाह’ द्वारा चलाया गया था।
  • 1825 ई. मे करमशाह के उत्तराधिकारी पुत्र ‘टीपू’ ने ज़मींदारों के अत्याचार के ख़िलाफ़ विद्रोह किया।
  • यह विद्रोह इस क्षेत्र में 1840 ई. से 1850 ई. तक जारी रहा।

पागलपंथी विद्रोह 1813 ई. में हुआ था। उत्तरी बंगाल में करमशाह ने एक अर्द्धधार्मिक संप्रदाय पागलपंथी की स्थापना की थी।

जमींदारों एवं साहूकारों के अत्याचारों के खिलाफ करमशाह के पुत्र टीपू ने स्थानीय गारो जनजाति के लोगों के साथ 1813 ई. में विद्रोह किया।

1833 ई. तक आते-आते विद्रोह सशक्त संगठन के अभाव में तथा दमनात्मक कार्यवाही के परिणामस्वरूप समाप्त हो गया।

उल्ले​खनीय है कि औपनिवेशिक काल में अंग्रेजों ने भारत में अपने साम्राज्य विस्तार के क्रम में जमींदारों, कृषकों एवं आदिवासियों को उनकी जमीनों तथा क्षेत्रों से बेदखल किया, जिससे इन समुदायों में ब्रिटिश राज के प्रति तीव्र असंतोष फैला, जिसके परिणामस्वरूप अंग्रेजी राज्य की स्थापना के साथ ही विद्रोहों की तीव्रता भी बढ़ी।

समय समय पर देश के विभिन्न जनजातीय एवं किसान विद्रोह हुए। इसी क्रम में यह पागलपंथी विद्रोह हुआ था। 

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