देवबंद आंदोलन (30 मई 1866)

देवबंदी आंदोलन ब्रिटिश उपनिवेशवाद की प्रतिक्रिया के रूप में विकसित हुआ जिसे भारतीय विद्वानों के एक समूह ने देखा – जिसमें रशीद अहमद गंगोही , मुहम्मद याकूब नानाउतावी , शाह रफी अल-दीन, सय्यद मुहम्मद अबीद, जुल्फिकार अली, फधल अल-रहमान उस्मानी और मुहम्मद कासिम नानोत्वी। इस समूह ने एक इस्लामी पाठशाला की स्थापना की जिसे दारुल उलूम देवबंद कहा जाता है,  जहां इस्लामी और देवबंदी की साम्राज्यवाद विरोधी विचारधारा विकसित हुई। समय के साथ, अल-अजहर विश्वविद्यालय, काहिरा के बाद दारुल उलूम देवबंद इस्लामिक शिक्षण और शोध का दूसरा सबसे बड़ा केंद्र बिंदु बन गया। जमीयत उलेमा-ए-हिन्द और तबलीगी जमात जैसे संगठनों के माध्यम से देवबंदी विचारधारा फैलनी शुरू हुई।

सऊदी अरब , दक्षिण अफ्रीका, चीन और मलेशिया जैसे देशों से देवबंद के स्नातक दुनिया भर में हजारों मदरसे खोले। 

भारतीय आजादी के समय, देवबंदिस ने समग्र राष्ट्रवाद की धारणा की वकालत की जिसके द्वारा हिंदुओं और मुसलमानों को एक राष्ट्र के रूप में देखा गया था जिन्हें अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष में एकजुट होने के लिए कहा गया था। 1919 में, देवबंदी विद्वानों के एक बड़े समूह ने राजनीतिक दल जमीयत उलेमा-ए-हिंद का गठन किया और पाकिस्तान आंदोलन का विरोध किया। एक अल्पसंख्यक समूह मुहम्मद अली जिन्ना के मुस्लिम लीग में शामिल हो गया, जिसने 1945 में जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम का निर्माण किया। 

देवबंदी आंदोलन

देवबंदी आंदोलन स्वयं को सुन्नी इस्लाम के भीतर स्थित एक शैक्षिक परंपरा के रूप में देखता है। यह मध्ययुगीन ट्रांसक्सानिया और मुगल भारत की इस्लामी शैक्षिक परंपरा से निकला, और यह अपने दूरदर्शी पूर्वजों को मनाया जाने वाला भारतीय इस्लामी विद्वान शाह वलीउल्लाह देहलवी (1703-1762) माना जाता है।

साँचा: फ़िकह इस्लामी दुनिया में दारुल उलूम देवबन्द का एक विशेष स्थान है जिसने पूरे क्षेत्र को ही नहीं, पूरी दुनिया के मुसलमानों को प्रभावित किया है। दारुल उलूम देवबन्द केवल इस्लामी विश्वविद्यालय ही नहीं एक विचारधारा है,इस्लाम को अपने मूल और शुद्ध रूप में प्रसारित करता है। इसलिए मुसलमानों में इस विचाधारा से प्रभावित मुसलमानों को ”देवबन्दी“ कहा जाता है।

देवबन्द उत्तर प्रदेश के महत्वपूर्ण नगरों में गिना जाता है जो आबादी के लिहाज़ से तो एक लाख से कुछ ज़्यादा आबादी का एक छोटा सा नगर है। लेकिन दारुल उलूम ने इस नगर को बड़े-बड़े नगरों से भारी व खतरनाक बना दिया है, जो न केवल अपने गर्भ में ऐतिहासिक पृष्ठभूमि रखता है

आज देवबन्द इस्लामी शिक्षा व दर्शन के प्रचार के व प्रसार के लिए संपूर्ण संसार में प्रख्यात है।इस्लामी शिक्षा एवं संस्कृति में जो कट्टरवाद हिन्दुस्तान में देखने को मिलता है उसका सीधा-साधा श्रेय देवबन्द दारुल उलूम को जाता है। यह मदरसा मुख्य रूप से उच्च अरबी व इस्लामी शिक्षा का केंद्र बिन्दु है। दारुल उलूम ने न केवल इस्लामिक शोध व सहित्य के संबंध में विशेष भूमिका निभाई है, बल्कि भारतीय समाज व पर्यावरण में इस्लामिक सोच प्रदान की है।

दारुल उलूम देवबन्द की आधारशिला 30 मई 1866 में हाजी आबिद हुसैन व मौलाना क़ासिम नानौतवी द्वारा रखी गयी थी। वह समय भारत के इतिहास में राजनैतिक उथल-पुथल व तनाव का समय था, उस समय अंग्रेज़ों के विरूद्ध लड़े गये प्रथम स्वतंत्रता संग्राम (1857 ई.) की असफलता के बादल छंट भी न पाये थे और अंग्रेजों का भारतीयों के प्रति दमनचक्र तेज़ कर दिया गया था, चारों ओर हा-हा-कार मची थी। अंग्रेजों ने अपनी संपूर्ण शक्ति से स्वतंत्रता आंदोलन (1857) को कुचल कर रख दिया था।

अधिकांश आंदोलनकारी शहीद कर दिये गये थे, (देवबन्द जैसी छोटी बस्ती में 44 लोगों को फांसी पर लटका दिया गया था ) और शेष को गिरफ्तार कर लिया गया था, ऐसे सुलगते माहौल में देशभक्त और स्वतंत्रता सेनानियों पर निराशाओं के प्रहार होने लगे थे। चारो ओर खलबली मची हुई थी। एक प्रश्न चिन्ह सामने था कि किस प्रकार भारत के बिखरे हुए समुदायों को एकजुट किया जाये, किस प्रकार भारतीय संस्कृति और शिक्षा जो टूटती और बिखरती जा रही थी, की सुरक्षा की जाये।

उस समय के नेतृत्व में यह अहसास जागा कि भारतीय जीर्ण व खंडित समाज उस समय तक विशाल एवं ज़ालिम ब्रिटिश साम्राज्य के मुक़ाबले नहीं टिक सकता, जब तक सभी वर्गों, धर्मों व समुदायों के लोगों को देश प्रेम और देश भक्त के जल में स्नान कराकर एक सूत्र में न पिरो दिया जाये। इस कार्य के लिए न केवल कुशल व देशभक्त नेतृत्व की आवश्यकता थी, बल्कि उन लोगों व संस्थाओं की आवश्यकता थी जो धर्म व जाति से ऊपर उठकर देश के लिए बलिदान कर सकें।

देवबंद विद्यालय

  • अंग्रेजी शिक्षा एवं पाश्चात्य संस्कृति पूर्ण वर्जीत थी।
  • विद्यालय में शिक्षा इस्लाम धर्म की दी जाती थी। जिसका उद्देश्य मुस्लिम धर्म का नैतिक एवं धार्मिक पुनरूद्धार करना था।
  • विद्यार्थियों को सरकारी सेवा अथवा सांसारिक सुख के लिए नहीं बल्कि इस्लाम धर्म को फैलाने के लिए धार्मिक नेता के रूप में प्रशिक्षित करना।
  • देवबंद आंदोलन ने कांग्रेस स्थापना का स्वागत किया था।
  • देवबंद उल्मा ने सर सैय्यद अहमद द्वारा स्थापित संयुक्त भारतीय राजभक्त सभा एवं मुस्लिम एग्लो ओरिएण्टल सभा के विरूद्ध फतवा जारी किया था।

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