औरंगजेब की मृत्यु के बाद जिन 11 बादशाहों ने भारत पर शासन किया उन्हें उत्तरकालीन मुगल बादशाह कहा जाता है। औरंगजेब ने अपनी मृत्यु से पूर्व अपने पूरे साम्राज्य को अपने जीवित तीन पुत्रों में वसीयत के अनुसार विभाजित कर दिया।
वसीयत के अनुसार
औरंगजेंब के 3 पुत्र –
- शाहजादा मुअज्जम (बहादुर शाह प्रथम) (दिल्ली व आगरा सहीत कुल 11 सुबे प्राप्त हुए)
- शाहजादा आजम (गुजरात सहित कुल 8 सूबे प्राप्त हुए)
- शाहजादा कामबक्श (हैदराबाद)
उत्तरकालीन मुगल शासकों का क्रम
- बहादुर शाह प्रथम (शाह ए बेखबर) 1707-12 ई.
- जहांदार शाह (लम्पट मुर्ख) 1712-13 ई.
- फर्रूखसियर (घृणित कायर) 1713-19 ई.
- रफी उद-दरजात 1719 ई. (फरवरी-जून)
- रफी उद-दौला 1719 ई. (जून-सितम्बर)
- मुहम्मदशाह (रंगीला बादशाह) 1719-48 ई.
- अहमदशाह 1748-54 ई.
- आलममीर-II 1754-59 ई.
- शाह आलम-II 1759-1806 ई
- अकबर-II 1806-1837 ई.
- बहादुर शाह-II (जफर) 1837-1858 ई.
मुगल सल्तनत का अन्तिम बादशाह बहादुर शाह-II या बहादुर शाह जफर था।
बहादुर शाह प्रथम (1707-12 ई.)
- मूल नाम – मुअज्जम
- अन्य नाम – शाह-ए-बेखबर (खफी खां द्वारा दिया गया)
बहादुर शाह प्रथम का जन्म 14 अक्तूबर, सन् 1643 ई. में बुरहानपुर, भारत में हुआ था। बहादुर शाह प्रथम दिल्ली का सातवाँ मुग़ल बादशाह (1707-1712 ई.) था। ‘शहज़ादा मुअज्ज़म‘ कहलाने वाले बहादुरशाह, बादशाह औरंगज़ेब का दूसरा पुत्र था। अपने पिता के भाई और प्रतिद्वंद्वी शाहशुजा के साथ बड़े भाई के मिल जाने के बाद शहज़ादा मुअज्ज़म ही औरंगज़ेब के संभावी उत्तराधिकारी बना। बहादुर शाह प्रथम को ‘शाहआलम प्रथम‘ या ‘आलमशाह प्रथम‘ के नाम से भी जाना जाता है।
जाजऊ का युद्ध (जून 1707)
बहादुर शाह प्रथम ने आगरा के समीप जाजऊ नामक स्थान पर अपने भाई आलम को 18-20 जून 1707 को पराजित कर मार डाला। जाजऊ के युद्ध के पश्चात बहादुर शाह प्रथम जनवरी 1709 ई. में हैदराबाद पहुंच अपने छोटे भाई कामबक्श व उनके पुत्रों को मार डाला। बहादुर शाह प्रथम ने अपने पिता औरंगजेब की संकीर्णतावादी नीतियों को छोड़कर समन्वयवादी नीतियों का पालन करते हुए राजपूतों व जाटो से अच्छे सम्बन्ध बनाये परन्तु सिखों से मधुर सम्बन्ध नहीं हुए किन्तु किसी प्रकार का विद्रोह भी नहीं हुआ। 1712 ई. में बहादुर शाह प्रथम की मृत्यु हो गयी जिसके बाद उसका पुत्र जहांदार शाह शासक बना।
जहांदार शाह (1712-13 ई.)
जहांदार शाह के समय सारी शक्तियां उसके वजीर जुल्फिकार खां (ईरान का रहने वाला) के हाथों में थी। जहांदार शाह लाल कुमारी नामक वेश्या पर आसक्त रहता था तथा उसे हस्तक्षेप करने का आदेश दे रखा था। इसलिए जहांदार शाह को लम्पट मूर्ख भी कहा जाता है। सैयद बंधु अब्दुल खां तथा हुसैन अली ने अजीम-उस-शान के पुत्र फर्रूखसियर के द्वारा 1713 ई. में जहांदार शाह की हत्या करवा दी।
फर्रूखसियर (1713-19 ई.)
सैयद बन्धुओं ने फर्रूखसियर को बादशाह बनाया था। फर्रूखसियर ने अब्दुल खां को अपना वजीर तथा हुसैन अली को मीरबख्श का पद प्रदान किया था। बादशाह बनने के पश्चात फर्रूखसियर ने जजिया कर पर प्रतिबंध लगा दिया लेकिन 1717 ई. में पुनः जजिया कर को लागू भी कर दिया। फर्रूखसियर असाध्य रोग (फोड़ा) से पीड़ित था जिसका उपचार सर्जन डा. विलियम हैमिल्टन ने किया था।
1717 ई. में उसने ईस्ट इंण्डिया कम्पनी को पश्चिम बंगाल में व्यापार करने का फरमान जारी कर दिया इस व्यापार के बदले में कम्पनी फर्रूखसियर को 3000 रू/वर्ष कर देने का वादा किया। फर्रूखसियर को घृणित कायर भी कहा जाता है। 1719 ई. में सैयद बन्धुओं ने गला दबाकर बादशाह की हत्या कर दी। फर्रूखसियर की मृत्यु के बाद क्रमश फर्रूखसियर की मृत्यु के बाद क्रमश व रफी उद दौला बादशाह बने परन्तु दोनों भाइयों की बीमारी के कारण मृत्यु हो गयी।
मुहम्मद शाह (1719-48 ई.)
- मूल नाम – रोशन अख्तर
- 1720 ई. में – सैयद बन्धुओं का अन्त व जजिया कर को पूर्णत समाप्त कर दिया।
- 1739 ई. में – नादिरशाह का आक्रमण
- इसे सुन्दर युवतियों के प्रति रूझान के कारण रंगीला बादशाह भी कहा जाता है।
- सन् 1736 ई. में नादिरशाह फारस/ईरान/पर्शिया का शासक बना।
- 1738 ई. में अफगानिस्तान व पश्चिमी पंजाब को अपने अधिकार में कर पेशावर के मार्ग से भारत में प्रवेश किया।
करनाल का युद्ध (15 मार्च 1739 ई.)
यह युद्ध पूर्वी पंजाब में (अब हरियाणा) करनाल नामक स्थान पर नादिर शाह व मुहम्मद शाह के बीच लड़ा गया। इस युद्ध में मुहम्मद शाह की पराजय हुई तथा नादिरशाह ने इसे कैद कर लिया और दिल्ली पहुंच विश्व प्रसिद्ध सिंहासन तख्त-ए-ताउस (मयूर सिंहासन ) पर अधिकार करके 15 दिनों तक शासन करने के पश्चात दिल्ली को बरबाद कर तख्त-ए-ताऊ सिंहासन, कोहिनूर हीरा तथा लगभग 70 करोड़ रू लेकर फारस चला गया तथा मुहमदशाह को आजाद कर दिया। मुहम्मद शाह ने पुनः जीवन पर्यंत 1748 तक शासन किया।
तथ्य
तख्त-ए-ताऊस (मयूर सिंहासन) पर बैठने वाला अन्तिम मुगल शासक मुहम्मदशाह था।
अहमदशाह (1748-54 ई.)
मुहम्मद शाह के बाद अहमदशाह शासक बना।अहमदशाह के शासन काल में 1748 ई. में ईरान के शाहअहमदशाह अब्दाली का भातर पर प्रथम आक्रमण हुआ था। इसके शासन काल में प्रशासन का काम काज हिजड़ों और औरतों के एक गिरोह के हाथों में आ गया, जिसकी मुखिया राजमाता उधमबाई (उपाधि-किबला-ए-आलम) थी।
उसने हिजड़ों के सरदार जाबेद खाँ को ‘नवाब बहादुर’ की उपाधि प्रदान की।
उसे बुरहान-उल-मुल्क के दामाद एवं अवध के सूबेदार ‘सफदरजंग’ को अपना बजीर तथा कमरुद्दीन के लड़के मुइन-उल-मुल्क को पंजाब का सूबेदार बनाया।
आलममीर द्वितीय (1754-59 ई.)
- आलमगीर द्वितीय आठवें मुग़ल बादशाह जहाँदारशाह का पुत्र था।
- अहमदशाह को गद्दी से उतार दिये जाने के बाद आलमगीर द्वितीय को मुग़ल वंश का उत्तराधिकारी घोषित किया गया था।
- इसे प्रशासन का कोई अनुभव नहीं था। वह बड़ा कमज़ोर व्यक्ति था, और वह अपने वज़ीर ग़ाज़ीउद्दीन इमादुलमुल्क के हाथों की कठपुतली था। आलमगीर द्वितीय को ‘अजीजुद्दीन‘ के नाम से भी जाना जाता है।
- वज़ीर ग़ाज़ीउद्दीन ने 1759 ई. में आलमगीर द्वितीय की हत्या करवा दी थी।
इसके समय की प्रमुख दो घटनाएं –
- ब्लैक होल की घटना (20 जून, 1756 ई.)
- प्लासी का युद्ध (23 जून, 1757 ई.)
शाह आलम द्वितीय (1759-1806 ई.)
यह मुग़ल बादशाह था इसका वास्तविक नाम शाहज़ादा अली गौहर था। यह आलमगीर द्वितीय के उत्तराधिकारी के रूप में 1759 ई. में गद्दी पर बैठा। बादशाह शाहआलम द्वितीय ने ईस्ट इंडिया कम्पनी से इलाहाबाद की सन्धि कर ली थी और वह ईस्ट इंडिया कम्पनी की पेंशन पर जीवन-यापन कर रहा था।
पानीपत का तीसरा युद्ध
यह युद्ध 14 जनवरी, 1761 ई. में अहमद शाह अब्दाली व मराठों के बीच लड़ा गया। जिसमें अहमदशाह अब्दाली की विजय हुई। पानीपत के तृतीय युद्ध में मराठों की सेना को वजीर इमाद उल मुल्क का समर्थन मिला तथा इब्राहीम खां गार्दी ने मराठों की ओर से तोपखाने का नेतृत्व करते हुए भाग लिया। अहमदशाह अब्दाली का वास्तविक नाम अहमद खां था। इसने आठ बार भारत पर आक्रमण किया।
बक्सर का युद्ध
यह युद्ध अक्टूबर 1764 ई. को शाह आलम द्वितीय, बंगाल के नवाब मीर कासिम तयह अवध के नवाब सुजाउदौला की संयुद्ध सैना (त्रिगुट) और ईस्ट इंडिया कंपनी के सेनापति हेक्टर मुनरो के बीच हुआ। इसमें त्रिगुट की हार हुई और मुगल शासक शाह आलम को पेंशन भोगी बनाकर इलाहाबाद में रखा गया। 1765 ई. में अंग्रेजों ने शाह आलम से बिहार, बंगाल व उड़ीसा की दीवानी 26 लाख रू/वर्ष के कर पर प्राप्त कर ली। मराठों के सहयोग से शाह आलम-II 1772 ई. में इलाहाबाद से दिल्ली गया। गुलाम कादिर खां ने 1806 ई. में शाह आलम-II की हत्या करवा दी।
अकबर द्वितीय (1806-37 ई.)
- अकबर-II अंग्रेजों के संरक्षण में बनने वाला प्रथम बादशाह था।
- अकबर-II ने राजा राम मोहन राय को ‘ राजा ’ की उपाधि दी ।
- अकबर द्वितीय को भी अकबर शाह द्वितीय के रूप में जाना जाता है, भारत के अंतिम द्वितीय मुगल सम्राट थे। वह शाह आलम द्वितीय के दूसरे पुत्र और बहादुर शाह ज़फ़र के पिता थे।
- अकबर द्वितीय को ही अकबर शाह द्वितीय के नाम से जाना जाता हैं। अकबर द्वितीय का जन्म 22 अप्रैल 1760 को मुकुंदपुर में हुआ था जब उनके पिता शाह आलम द्वितीय दिल्ली से भाग गए थे और वापस सम्राट बनने का सपना देख रहे थे।
बहादुर शाह-II या बहादुर शाह जफर (1837-58 ई.)
यह अन्तिम मुगल बादशाह था 1857 ई. के विद्रोह का नेतृत्व इसने दिल्ली से किया था जिसके कारण 1858 ई. में अंग्रेजों द्वारा इसे कैद करके रंगून भेज दिया गया। 1862 ई. में रंगून में ही बहादुर शाह जफर की मृत्यु हो गयी उसका मकबरा रंगून में ही है। बहादुर शाह-II ‘ जफ़र ’ के नाम से शेरो शायरी करता था।
दिल्ली में अंग्रेजों द्वारा जब इसे कैद किया गया तो उस समय उसने लिखा कि –
‘न तो मै किसी की आंख का नूर हूं
न तो किसी के दिल का करार हूं
मैं किसी के काम आ न सका
वो बुझता हुआ चिराग हूं।’