कांगड़ा का अभियान

कांगड़ा घाटी पंजाब के उत्तर-पूर्व में स्थित है। कांगड़ा का किला एक ऊँची पहाड़ी पर एक मजबूत किला बना था।

इस किले को जीतने का पहला प्रयास अकबर के शासनकाल के समय पंजाब के राज्यपाल हसन कुली खान ने किया था।

1620 ई. में, राजा विक्रमाजीत ने राजकुमार खुर्रम के नेतृत्व में घेरा। इस बार इसे चार महीने की घेराबंदी के बाद मुगुल ने अपने कब्जे में ले लिया।

कांगड़ा किले का निर्माण कांगड़ा राज्य (कटोच वंश) के राजपूत परिवार ने किया था, जिन्होंने खुद को प्राचीन त्रिगत साम्राज्य, जिसका बखान महाभारत, पुराण में किया गया है के वंशज होने का प्रमाण दिया था।

ये हिमाचल में मौजूद किलो में सबसे विशाल और भारत में पाये जाने किलो में सबसे प्राचीन किला है। सन्न 1615 में, मुग़ल सम्राट अकबर ने इस किले पर घेराबंदी की थी परन्तु वो इसमें सफल नहीं रहा।

इसके पश्चात 1620 ई. में, अकबर के पुत्र जहांगीर ने चंबा के राजा (जो इस क्षेत्र के सभी राजाओ में सबसे बड़े थे) को मजबूर करके इस किले पर कब्ज़ा कर लिया। मुग़ल सम्राट जहांगीर ने सूरज मल की सहायता से अपने सैनिकों को इस किले प्रवेश करवाया था।

कटोच के राजाओ ने मुग़ल शासन के कमजोर नियंत्रण और मुग़ल शक्ति की गिरावट के कारण लगातार मुग़ल नियंत्रित क्षेत्रों को लुटा। सन 1789 में राजा संसार चंद II ने अपने पूर्वाजो के प्राचीन किले को बचा लिया।

महाराजा संसार चंद ने गोरखाओं के साथ कई युद्ध किये थे जिनमे एक ओर गोरखा और दूसरी ओर सिख राजा महाराजा रंजीत सिंह होते थे। संसार चंद इस किले का प्रयोग अपने पडोसी राज्य के राजाओ को कैद करने के लिए किया था जो उनके खिलाफ हुए षड्यंत्र का कारण बन गया। सिखों और कटोचो के बीच हुए एक युद्ध के दौरान, किले के द्वार को आपूर्ति के लिए खुल रखा गया था।

1806 ई. में गोरखा सेना ने इस खुले द्वार से किले में प्रवेश कर लिया। ये सेना महाराजा संसार चंद और महाराजा रंजीत सिंह के बीच एक गठबंधन का कारण बनी। इसके बाद सन 1809 में गोरखा सेना पराजित हो गयी और अपनी रक्षा करने के लिए युद्ध से पीछे हट गयी और सतलुज नदी के पार चली गयी।

इसके पश्चात सन 1828 तक ये किला कटोचो के अधीन ही रहा क्योकि संसार चंद की मृत्यु के पश्चात रंजीत सिंह ने इस किले पर कब्ज़ा कर लिया था। अंत में सन 1846 में सिखों के साथ हुए युद्ध में इस किले पर ब्रिटिशो ने अपना शासन जमा लिया। परन्तु 4 अप्रैल 1905 में आये एक भीषण भूकम्प आया जिसमे उन्होंने इस किले को छोड़ दिया।

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