- परिवर्तन – 1326-27 ई.
- परिणाम – योजना असफल रही
- मोहम्मद तुगलक के कार्यों में सबसे अधिक विवादास्पद राजधानी का परिवर्तन था।
- 1326-27 ईस्वी में उसने राजधानी दिल्ली से देवगिरी (दौलताबाद) बदलने का निर्णय किया और उसका नाम कुतुबुल इस्लाम रखा
- इससे पूर्व कुतुबुद्दीन मुबारक ख़िलजी ने देवगिरी का नाम कुत्बाबाद रखा था और यहां टकसाल स्थापित किया।
- राजधानी परिवर्तन के विषय में जियाउद्दीन बरनी ने लिखा है कि – “नगर इतनी बुरी तरह उजड़ गया है कि नगर की इमारतों महल और आसपास के इलाकों में एक बिल्ली कुत्ता तक नहीं बचा”
- इसी विषय में–इब्नबतूता ने कहा है कि “एक अंधे को घसीटकर दिल्ली से दौलताबाद लाया गया, एक शय्यागत लंगड़े को पत्थर फेंकने के यंत्र द्वारा वहां फेंका गया”
राजधानी परिवर्तन के कारण
- मुहम्मद बिन तुगलक दिल्ली के सुल्तानों में पहला ऐसा सुल्तान था, जिसने उत्तरी और दक्षिणी भारत के मध्य प्रशासनिक और सांस्कृतिक एकता स्थापित करने का प्रयत्न किया
- देवगिरी दौलताबाद को संभवत राजधानी बनाने में उसका मूल कारण यही था।
राजधानी परिवर्तन के परिणाम
- मोहम्मद बिन तुगलक की राजधानी परिवर्तन की यह योजना असफल रही
- 1334-35 ईस्वी में माबर (तमिलनाडु) में भयंकर विद्रोह हुआ, अतः विद्रोह दबाने के लिए वह माबर की ओर प्रस्थान करने लगा
- वीदर पहुंचने पर प्लेग की महामारी फैल गई जिससे सुल्तान के कई सैनिक मर गए, मुहम्मद बिन तुगलक स्वयं भी बीमार पड़ गया और दौलताबाद वापस आ गया
- इस घटना के बाद सुल्तान की मृत्यु के अफवाह फ़ैल गई फल स्वरुप स्थिति का लाभ उठाते हुए दक्षिण के मुख्य राज्य माबर,द्वार समुद्र और वारंगल, दिल्ली सल्तनत से अलग हो गए
- सुल्तान ने जनता को पुनः दिल्ली लौटने का आदेश दिया 1335 ईस्वी में दिल्ली, पुन: राजधानी बनाई गई
- दिल्ली से दौलताबाद राजधानी परिवर्तन का एक दूरगामी प्रभाव यह पढ़ा की बहुत सारे सूफी और उलेमाओं ने दोलताबाद में ही रुकने का निर्णय किया
- फल स्वरुप दौलताबाद इस्लामी शिक्षा और ज्ञान का केंद्र बन गया,जिससे बहमनी सुल्तान लाभांवित हुए
- शेख निजामुद्दीन औलिया के शिष्य शेख बुरहानुद्दीन गरीब थे ,जिन्हें मोहम्मद बिन तुगलक राजधानी परिवर्तन दौलताबाद जाने के लिए विवश किया
- बाद में उन्होंने दोलताबाद को अपनी शिक्षा का केंद्र बनाया
- दक्षिण भारत में चिश्ती सिलसिले की नींव शेख बुरहानुद्दीन ने रखी थी
राजधानी परिवर्तन के लिए विद्वानों के मत और कारण
- मोहम्मद बिन तुगलक की राजधानी परिवर्तन के विषय में विद्वानों ने अलग अलग मत दिया है
- बरनी के अनुसार– सुल्तान दक्षिण पर प्रभावशाली प्रशासनिक नियंत्रण स्थापित करना चाहता था क्योंकि दौलताबाद देवगिरी साम्राज्य के केंद्र में स्थित था और गुजरात लखनौती, सतगांव ,सुनारगांव, तेलंग, माबर, द्वारसमुद्र और कंपिल से उसकी दूरी समान थी
- इसके अतिरिक्त बरनी के अनुसार–नई राजधानी को साम्राज्य के केंद्र में स्थित होने के कारण चुना
- बरनी के अनुसार– नगर (दिल्ली) इतनी पूरी तरह उजड़ गया कि नगर की इमारतों, महल और आसपास के इलाकों में एक बिल्ली और कुत्ता तक नहीं बचा
- इब्नबतूता के अनुसार– सुल्तान को दिल्ली के नागरिक असम्मानपूर्ण पत्र लिखते थे इसीलिए उन्हें दंड देने के लिए राजधानी देवगिरी परिवर्तित करने का निर्णय लिया
- इब्नबतूता ने लिखा है कि– राजधानी परिवर्तन की आज्ञा देने के बाद उसने समस्त दिल्ली की तलाशी लेने की आज्ञा दी तो उसे मात्र एक अंधा और एक लंगड़ा व्यक्ति मिला
- इसामी के अनुसार–सुल्तान और दिल्ली की जनता के बीच बैर भाव था इसीलिए उसने उनकी शक्ति क्षीण करने के लिए राजधानी परिवर्तित की थी
- प्रोफेसर हबीबुल्लाह ने लिखा है कि–वह दक्षिण भारत में मुस्लिम संस्कृति के विकास और दक्षिण की संपनता और शासन की सुविधा की दृष्टि से देवगिरी को राजधानी बनाना चाहता था
- डॉक्टर मेहदी हुसैन के अनुसार– वह दौलताबाद को मुस्लिम संस्कृति का केंद्र बनाने के लिए उसे राजधानी बनाना चाहता था
- गार्डन ब्राउन ने यह मत दिया है कि–मंगोलों के निरंतर आक्रमण से साम्राज्य की राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र उत्तरी भारत से खिसक कर धीरे-धीरे दक्षिण भारत बन गया
- इन मतों के विपरीत आधुनिक इतिहासकारों ने लिखा है कि–दिल्ली से बड़ी संख्या में लोग दौलताबाद अवश्य गए थे लेकिन दिल्ली पूरी तरह नष्ट नहीं हुई थी
- डॉक्टर मेहदी हुसैन ने लिखा है कि– दिल्ली राजधानी ना रही हो ऐसा कभी नहीं हुआ और इस कारण वह ना कभी आबादी रहित नहीं हुई और ना निर्जन
- डॉक्टर के.ए.निजामी ने लिखा है की– समस्त जनता को जाने का आदेश नहीं दिया गया था बल्कि केवल सरदार ,शेख उलेमा और उच्च वर्ग के व्यक्तियों को ही दौलताबाद जाने के आदेश दिए गए थे
- विभिन्न मतों से स्पष्ट होता है कि अपने शासन के आरंभिक काल में बहाउद्दीन गुरशास्प के विद्रोह के बाद मोहम्मद बिन तुगलक दक्षिण में एक शक्तिशाली प्रशासनिक केंद्र स्थापित करना चाहता था
- जिससे दक्षिण में किसी भी विद्रोह को सरलता से दबाया जा सके ,इसके अतिरिक्त वह दक्षिण में मुस्लिम संस्कृति को विकसित भी करना चाहता था
- राजधानी दौलताबाद परिवर्तित होने के बाद मुल्तान में बहराम किश्लु खॉ ने विद्रोह किया जिसे दबाने के लिए दिल्ली से सेना भेजी गई,सेना ने विद्रोह को सफलतापूर्वक दबा दिया
- इससे यह प्रमाणित होता है कि दिल्ली और दौलताबाद के बीच संपर्क बना रहा।
- मुद्रा शास्त्रीय अध्ययनों से प्राप्त साक्ष्य से भी सिद्ध होता है कि इस अवधि में दिल्ली में भी सिक्के ढाले जा रहे थे
- 1327-30ईस्वी में दिल्ली में ढाले गये सिक्कों पर तख्तगाहे दिल्ली और दौलताबाद में ढाले गए सिक्के पर तख्तगाहे दौलताबाद लिखा था
- इन विवरण से स्पष्ट होता है कि दिल्ली और दौलताबाद (देवगिरी )साम्राज्य की दो राजधानी थी
- सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक के राजधानी परिवर्तन का कोई निर्णय कोई तत्कालिक निर्णय नहीं था
- दिल्ली से दौलताबाद के 40 दिन की यात्रा को सुविधाजनक बनाने के लिए उसने व्यापक तैयारियां की थी
- 700 मील की लंबी सड़क के दोनों और वृक्ष लगाएं यात्रियों के ठहरने के लिए सराय का निर्माण किया गया था जिससे भोजन पानी की व्यवस्था थी