- शासन काल -1347-1518 ई.
- संस्थापक – अलाउद्दीन बहमन शाह
मुहम्मद बिन तुगलक ने दक्षिण में साम्राज्यवादी नीति का पालन करते हुए दक्षिण के अधिकतर भाग पर अधिकार कर लिया था। मुहम्मद बिन तुगलक ने इनके प्रशासन के लिए ‘अमीरान ए सदह’ नामक अधिकारी नियुक्त किए इन्हें ‘सादी’ भी कहा जाता था। ये अधिकारी राजस्व वसूल किया करते थे साथ ही सैनिक टुकड़ियों के भी प्रधान होते थे। ये बहुत शक्तिशाली थे।
जब तुगलक शासन के विरूद्ध सर्वत्र विद्रोह प्रारंभ हुआ इसका लाभ उठाकर ‘सादी अमीरों’ ने भी विद्रोह किये। दौलताबाद में नियुक्त तुगलक वायसराय को पराजित कर दौलताबाद पर अधिकार कर लिया। इस्माइल को इन अमीरों ने अपना नेता चुना। इस्माइल ने अमीरों के इस संघ के मुख्य व्यक्त हसन को अमीर-उल-उमरा एवं जफ़र खां की उपाधियों से विभूषित किया। जफ़र खां ने सागर और गुलबर्गा पर अधिकार कर लिया। अपनी ताकत एवं सफलताओं के कारण जफर खां बहुत लोकप्रिय हो गया तथा इस्माइल शाह ने उसके पक्ष में सत्ता समर्पित कर दी।1346 ई. में जफ़र खान ने अलाउद्दीन हसन बहमन शाह की उपाधि धारण की और नए बहमनी वंश का संस्थापक बन गया।
बहमनी साम्राज्य के प्रमुख शासक
- अलाउद्दीन हसन बहमन शाह (हसन गंगू)
- मुहम्मद शाह प्रथम (मुहम्मद प्रथम)
- ताजुद्दीन फिरोज
- शिहाबुद्दीन अहमद प्रथम
- महमूद गंवा
- महमूद-तृतीय
अलाउद्दीन हसन बहमन शाह (हसन गंगू)
अलाउद्दीन हसन बहमन शाह ने बहमनी साम्राज्य की स्थापना की। इस समय दिल्ली सल्तनत पर मुहम्मद बिन तुगलक का शासन था। अलाउद्दीन हसन बहमन शाह ने कंधार, कोट्टगिरी, कल्याणी, बीदर, गुलबर्गा एवं दाबुल पर अधिकार किया।
मुहम्मद शाह प्रथम (मुहम्मद प्रथम)
मुहम्मद शाह प्रथम ने संपूर्ण बहमनी साम्राज्य को 4 प्रांतों में विभक्त था – 1. दौलताबाद 2. बरार 3. बीदर 4. गलबर्गा
मुहम्मद प्रथम के काल में बारूद का उपयोग पहली बार प्रारंभ हुआ, जिसने रक्षा संगठन में एक नई क्रांति पैदा की। सेना नायक को अमीर-उल-उमरा कहते थे
उसने शासन का कुशल संगठन किया। उसके काल की मुख्य घटना विजयनगर तथा वारंगल से युद्ध तथा विजय थी। इसी काल में बारूद का प्रयोग पहली बार हुआ जिससे रक्षा संगठन में एक नई क्रांति पैदा हुई।
ताजुद्दीन फिरोज
ताजुद्दीन फिरोज बहमनी वंश का सर्वाधिक विद्वान सुल्तानों में से एक है। विदेशों से अनेक प्रसिद्ध विद्वानों को दक्षिण में आकर बसने के लिए प्रेरित किया। इसने मुहम्मदाबाद भीमा नदी के किनारे नगर की नींव डाली।
ताजुद्दीन फिरोज एशियाई विदेशियों या अफाकियों को बहमनी साम्राज्य में आकर स्थायी रूप से बसने के लिए प्रोत्साहित किया।
जिसके परिणामस्वरूप बहमनी अमीर वर्ग अफीकी और दक्कनी दो गुटों में विभाजित हो गया। यह दलबंदी बहमनी साम्राज्य के पतन और विघटन का मुख्य कारण सिद्ध हुआ।
शिहाबुद्दीन अहमद प्रथम
इसने राजधानी को गुलबर्गा के स्थान पर बीदर स्थानांतरित किया। नवीन राजधानी का नाम मुहम्मदाबाद रखा। इसे इतिहास में अहमद शाह वली या संत भी कहते है।
इसके शासन काल में इस दलगत राजनीति (दक्कनी एवं अफाकी) ने साम्प्रदायिक रूप ले लिया, क्योंकि सुल्तान ने ईरान से शिया संतों को भी आमंत्रित किया।
महमूद गंवा
महमूद गंवा अफाकी (ईरानी) मूल का था। प्रारंभ में यह एक व्यापारी था। बहमन सुल्तानों में हुमायुं के पुत्र निजामुद्दीन अहमद के वयस्क होने पर उसके संरक्षण के लिए एक प्रशासनिक परिषद का निर्माण किया गया। महमूद गंवा इस परिषद का सदस्य था।
प्रशासनिक परिषद के सदस्य एवं सुल्तान हुमायूँ के शासन काल में प्रधानमंत्री के रूप में महमूद गवाँ बहमनी साम्राज्य की राजनीतिक समस्याओं का निराकरण कर उसे बहमनी साम्राज्य को उत्कर्ष की पराकाष्ठा पर पहुंचा दिया।
सबसे पहले उसने मालवा पर अधिकार किया। उसकी सबसे महत्वपूर्ण सैनिक सफलता गोवा पर अधिकार प्राप्त करना थी। गोवा पश्चिमी समुद्री तट का सर्वाधिक प्रसिद्ध बंदरगाह था। यह विजयनगर का संरक्षित राज्य था।
महमूद-तृतीय
महमूद तृतीय के राज्यारोहण के समय महमूद गंवा को प्रधानमंत्री बनाया गया। महमूद गवां को ख्वाजा जहां की उपाधि दी गयी। महमूद गवां ने पूर्व के 4 प्रांतों को 8 प्रांतों में विभाजित किया।
मुहम्मद बहमनी शाह तृतीय ने 1463 से 1482 ई. तक राज्य किया था। निज़ाम शाह बहमनी का अनुज ‘मुहम्मद बहमनी शाह तृतीय‘ 9 वर्ष की अवस्था में सिंहासन पर बैठा था।
उसके शासन काल में महमूद गवाँ का व्यक्तित्व प्रभावशाली ढंग से उभरा। ‘ख्वाजा जहाँ’ की उपाधि से महमूद गवाँ को प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया। बहमनी वंश का आगे का 20 वर्ष का इतिहास महमूद गवाँ के इर्द-गिर्द ही सिमट कर रह गया।
बहमनी साम्राज्य का पतन
कारण
- दक्खिनियों एवं अफाकियों (ईरानी, अरब और तुर्कों) के मध्य विद्वेष एवं अंतर्विरोध।
- सुलतान फिरोज का हिन्दुओं की ओर विशेष झुकाव।
- सुल्तान शिहाबुद्दीन अहमद द्वारा ईरान के शिया संतों को आमंत्रित करना इससे दक्खिनी सुन्नी मुसलमानों में असंतोष बढ़ा।
- बहमन सुल्तानों द्वारा लड़े गए अनेक अनिर्णित युद्ध।
- बहमनी साम्राज्य एवं विजयनगर साम्राज्य के लगातार युद्ध।
- बहमन साम्राज्य की आंतरिक षड़यंत्र एवं एकता का अभाव।
अंत
1490 ई. में बीदर में बारीद शाही का प्रभाव स्थापित हो गया। प्रांतीय तराफदारों ने अपनी स्वतंत्रता घोषित करना प्रारंभ कर दिया और पंद्रहवीं शताब्दी के अंत में बहमन साम्राज्य खंडित हो गया।
बहमनी साम्राज्य से अलग हुए प्रांत
बहमनी साम्राज्य का शासक कलीमुल्लाह बहमन वंश का अंतिम शासक था। बहमनी साम्राज्य के पतन के बाद 5 दक्कन सल्तनत राज्यों का उदय हुआ-
- बरार – सर्वप्रथम बहमनी साम्राज्य से अलग होने की घोषणा
- बीजापुर – आदिल शाही वंश
- अहमदनगर – निजामशाही वंश
- गोलकुण्डा – कुतुबशाही वंश
- बीदर – बारीद शाही वंश
- बरार सल्तनत-
- वंश – इमादशाही वंश
- राजधानी – एलिचपुर, गाविलगढ़
- सर्वप्रथम बहमनी राज्य से अलग होने की घोषणा करने वाला क्षेत्र बरार था।
- इमादशाही वंश का संस्थापक फतेहउल्लाह खां इमादुल्मुल्क था
- शासक – फतेहउल्लह → अलाउद्दीन इमादशाह → दरया इमादशाह → बुरहान इमादशाह
- बुरहान इमादशाह के मंत्री तूफाल ने इसे कैद कर लिया एवं स्वयं गद्दी पर अधिकार कर लिया। अंत में अहमदनगर के शासक मुर्तजा निजाम शाह ने बुरहान को कैद से आजाद किया एवं बरार को 1574 ई. में अहमदनगर में मिला लिया।
- बीजापुर सल्तनत
- वंश – आदिलशाही वंश
- राजधानी – नौरसपुर
- जापुर के आदिलशाही राजवंश का संस्थापक युसुफ आदिलशाह खां था। आदिलशाही सुल्तान स्वयं को तुर्की ऑटोमन राजवंश के वंशज मानते थे।
- अहमदनगर
- वंश – निजामशाही वंश
- राजधानी – जुन्नार, अहमदनगर एवं खिरकी
- अहमदनगर के निजामशाही वंश का संस्थापक अहमदशाह था। इसको निजामुल्मुल्क की उपाधि प्रदान की गयी थी।
- गोलकुण्डा
- वंश – कुतुबशाही वंश
- राजधानी -गोलकुण्डा
- गोलकुण्डा के कुतुबशाही वंश का संस्थापक कुली कुतुब शाह था
- गोलकुण्डा साहित्यकारों की बौद्धिक क्रीडा स्थली थी
- बीदर
- वंश – बारीदशाही वंश
- राजधानी – बीदर
- बीदर में बारीदशाही वंश का संस्थापक अमीर अली बारीद था
- अमीर अली बारीद को दक्कन का लोमड़ी कहते है
- इब्राहिम आदिलशाह-2 ने बीदर पर आक्रमण कर 1619 ई. में इसे बीजापुर में शामिल कर लिया था।
तथ्य
भारत सरकार ने वर्ष 2020 के लिए विश्व धरोहर सूची में शामिल करने के लिए दो नामांकन प्रस्तुत किए। वे हैं –
धोलावीरा: धोलावीरा गुजरात का एक पुरातात्विक स्थल (हड़प्पाकालीन शहर) है। इसमें प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता के खंडहर हैं।
दक्कन सल्तनत के स्मारक और किले : दक्कन सल्तनत में 5 प्रमुख राज्य थे। उन्होंने दक्कन के पठार में विंध्य श्रेणी और कृष्णा नदी के बीच के क्षेत्र पर शासन किया।