हुमायूँ (1530 –1556 ई.)

  • जन्म – मार्च 6, 1508
  • शासनकाल – 1530 –1556 ई.
  • राज्याभिषेक – आगरा।
  • मृत्यु –  जनवरी 1, 1556 

हुमायूँ एक मुगल शासक था। प्रथम मुग़ल सम्राट बाबर का पुत्र नसीरुद्दीन हुमायूँ था। यद्यपि उन के पास साम्राज्य बहुत साल तक नही रहा, पर मुग़ल साम्राज्य की नींव में हुमायूँ का योगदान है।

बाबर की मृत्यु के पश्चात हुमायूँ ने 29 दिसम्बर 1530 में भारत की राजगद्दी संभाली और उसके सौतेले भाई कामरान मिर्ज़ा ने काबुल और लाहौर का शासन ले लिया। बाबर ने मरने से पहले ही इस तरह से राज्य को बाँटा ताकि आगे चल कर दोनों भाइयों में लड़ाई न हो। कामरान आगे जाकर हुमायूँ के कड़े प्रतिद्वंदी बने। हुमायूँ का शासन अफ़गानिस्तान, पाकिस्तान और उत्तर भारत के हिस्सों पर 1530-1540 और फिर 1555-1556 तक रहा।

बाबर के चार पुत्र थे –

  • हुमायूं -दिल्ली एवं आगरा
  • कामरान- काबुल एवं कांधार
  • असकरी- संभल
  • हिन्दाल- अलवर

हुमायूं द्वारा लड़े गये युद्ध-

1. कालिंजर पर आक्रमण (1531 ई.)

  • हुमायूं का पहला सैथ्नक अभियान बुन्देलखण्ड के कालिंजर के खिलाफ था। कालिंजर का शासक प्रताप रूद्र देव था। यह अभियान सफल नहीं रहा।
  • भारत की कमान सँभालने के साथ ही, हुमांयूं ने सन 1531 ईस्वी में अपने सीमा विस्तार करने के लिए कालिंजर के किले पर भी आक्रमण किया। उस समय कालिंजर के किले पर राजा रूद्र देव का शाशन था।
  • कालिंजर के किले को भेद पाना इतना आसान नहीं था। पहाड़ियों पर बने होने के कारण यह किला अभेद था। लेकिन हुमांयूं ने इस नामुमकिन को भी मुमकिन कर दिखाया। उन्होंने किले पर अपना कब्ज़ा तो किया, परंतु ज्यादा समय तक उस किले पर, वे शाशन न कर पाए।
  • कालिंजर के किले में इस अल्प अवधि शशन का कारण यह था कि- उस समय अफगानों (मुगलों के शत्रु) ने विद्रोह करना प्रारम्भ कर दिया था।
  • इस वजह से हुमांयूं ने राजा रुद्रदेव से कुछ शर्तो पर संधि कर ली और राजा रूद्र देव का पुनः शासन स्थापित हो गया।

2. दोहरिया का युद्ध (1532 ई.)

  • यह युद्ध हुमायूं एवं अफगान शासक महमूद लोदी के बीच हुआ। इसमें हुमायूं विजयी रहा ।
  • कालिंजर के युद्घ से वापिस पहुंचने के बाद हुमायूं ने अपनी सेना को मजबूत किया और अफगानो के खिलाफ युद्ध करने का फैसला लिया।
  • सन 1532 ईस्वी में, अफगानो की सेना का नेतृत्व कर रहे महमूद लोदी और हुमांयूं की सेना, दोहरिया या देवरा नामक स्थान पर, एक दूसरे के साथ युद्ध की स्थिति में थे।
  • इस युद्ध के परिणाम में अफगानो की पराजय हुई और हुमांयूं को विजय प्राप्त हुआ।
  • देवरा के युद्ध के परिणाम स्वरूप, हुमांयूं ने चुनार के किले पर कब्ज़ा कर लिया, जो कि किला उस समय, शेरशाह सूरी के कब्जे में था।
  • हुमांयूं ने अपने विरुद्ध युद्ध की संभावनाओं को देखते हुए शेरशाह सूरी (उपनाम – शेर खान) के विरुद्ध हमला बोल दिया था। शेरशाह ने हुमांयूं के सामने आत्मसमर्पण कर दिया और संधि स्वीकार कर लिया। इसी कारण, हुमांयूं ने शेरशाह को किला वापिस भी दे दिया।
  • इसके उपरांत, शेरशाह सूरी ने उपहार स्वरुप अपने बेटे क़ुतुब खान के साथ सेना की एक टुकड़ी हुमांयूं को दे दी।

3. चुनार पर घेरा (1532 ई.)

  • इस समय चुनार पर अफगान शासक शेर खां का राज था। शेर खां ने हुमायूं की अधीनता स्वीकार कर ली।
  • हुमायूँ के चुनार के क़िले पर आक्रमण के समय यह क़िला अफ़ग़ान नायक शेरशाह (शेर ख़ाँ) के क़ब्ज़े में था। 4 महीने लगातार क़िले को घेरे रहने के बाद शेर ख़ाँ एवं हुमायुँ में एक समझौता हो गया।
  • हुमायूँ, बाबर, जहाँगीर और अकबर समझौते के अन्तर्गत शेर ख़ाँ ने हुमायूँ की अधीनता स्वीकार करते हुए, अपने पुत्र कुतुब ख़ाँ को एक अफ़ग़ान सैनिक टुकड़ी के साथ हुमायूँ की सेना में भेजना स्वीकार कर लिया तथा बदले में चुनार का क़िला शेर ख़ाँ के अधिकार में छोड़ दिया गया।
  • हुमायूँ का खेर ख़ाँ को बिना पराजित किये छोड़ देना उसकी एक और बड़ी भूल थी। इस सुनहरे मौके का फ़ायदा उठाकर शेर ख़ाँ ने अपनी शक्ति एवं संसाधनों में वृद्धि कर ली।
  • दूसरी तरफ़ हुमायूँ ने इस बीच अपने धन का अपव्यय किया तथा 1533 ई. हुमायूँ ने दिल्ली में ‘दीनपनाह’ नाम के एक विशाल दुर्ग का निर्माण करवाया, जिसका उद्देश्य था- मित्र एवं शत्रु को प्रभावित करना।
  • 1534 ई. में बिहार में मुहम्मद जमान मिर्ज़ा एवं मुहम्मद सुल्तान मिर्ज़ा के विद्रोह को हुमायूँ ने सफलतापूर्वक दबाया।

4. बहादुर शाह से संघर्ष (1532-36 ई.)

  • हुमायूं ने बहादुर शाह पर आक्रमण किया इसमें गुजरात शासक बहादुर शाह पराजित हुआ।
  • हुमायूं ने माण्डु एवं चम्पानेर किले को जीता।
  • गुजरात के शासक बहादुर शाह ने 1531 ई. में मालवा तथा 1532 ई. में ‘रायसीन’ के क़िले पर अधिकार कर लिया। 1534 ई. में उसने चित्तौड़ पर आक्रमण कर उसे संधि के लिए बाध्य किया।
  • बहादुर शाह ने टर्की के कुशल तोपची रूमी ख़ाँ की सहायता से एक बेहतर तोपखाने का निर्माण करवाया। हुमायूँ दूसरी तरफ़ शेर ख़ाँ ने ‘सूरजगढ़ के राज’ में बंगाल को हराकर काफ़ी सम्मान अर्जित किया।
  • उसकी बढ़ती हुई शक्ति हुमायूँ के लिए चिन्ता का विषय थी, पर हुमायूँ की पहली समस्या बहादुर शाह था। बहादुर शाह एवं हुमायूँ के मध्य 1535 ई. में ‘सारंगपुर’ में संघर्ष हुआ।
  • बहादुर शाह पराजित होकर मांडू भाग गया। इस तरह हुमायूँ द्वारा मांडू एवं चम्पानेर पर विजय के बाद मालवा एवं गुजरात उसके अधिकार में आ गए। इसके पश्चात् बहादुर शाह ने चित्तौड़ का घेरा डाला।
  • चित्तौड़ के शासक विक्रमाजीत की माँ कर्णवती ने इस अवसर पर हुमायूँ को राखी भेजकर उससे बहादुर शाह के विरुद्ध सहायता माँगी। हालाँकि बहादुर शाह के एक काफ़िर राज्य की सहायता न करने के निवेदन को हुमायूँ द्वारा स्वीकार कर लिया गया।
  • एक वर्ष बाद बहादुर शाह ने पुर्तग़ालियों के सहयोग से पुनः 1536 ई. में गुजरात एवं मालवा पर अधिकार कर लिया, परन्तु फ़रवरी, 1537 ई. में बहादुर शाह की मृत्यु हो गई।

5. चौसा का युद्ध (26 जून, 1539 ई.)

  • यह युद्ध हुमायूं का अफगान शासक शेरखां (शेरशाह सूरी) के साथ हुआ। इस युद्ध में हुमायूं पराजित हुआ।
  • शेरखां ने शेर शाह उपाधि धारण की। हुमायूं घोड़े सहित गंगा में कूद गयाा एवं निजाम नामक भिस्ती की सहायता से जान बचायी। हुमायूं ने इस उपकार के बदले भिस्ती को एक दिन का बादशाह बनाया था।
  • 26 जून, 1539 ई. को हुमायूँ एवं शेर ख़ाँ की सेनाओं के मध्य गंगा नदी के उत्तरी तट पर स्थित ‘चौसा’ नामक स्थान पर संघर्ष हुआ।
  • यह युद्ध हुमायूँ अपनी कुछ ग़लतियों के कारण हार गया। संघर्ष में मुग़ल सेना की काफ़ी तबाही हुई।
  • हुमायूँ ने युद्ध क्षेत्र से भागकर एक भिश्ती का सहारा लेकर किसी तरह गंगा नदी पार कर अपने जान बचाई।
  • जिस भिश्ती ने चौसा के युद्ध में उसकी जान बचाई थी, उसे हुमायूँ ने एक दिन के लिए दिल्ली का बादशाह बना दिया था।
  • चौसा के युद्ध में सफल होने के बाद शेर ख़ाँ ने अपने को ‘शेरशाह‘ (राज्याभिषेक के समय) की उपाधि से सुसज्जित किया, साथ ही अपने नाम के खुतबे खुदवाये तथा सिक्के ढलवाने का आदेश दिया।

6. बिलग्राम का युद्ध (17 मई, 1540 ई.)

  • यह युद्ध शेरशाह सूरी एवं हुमायु के बीच लड़ा गया। इसमें हुमायूं बुरी तरह से पराजित हुआ। इस युद्ध के बाद हुमायूं भारत छोड़कर सिंध भाग गया। शेरशाह सूरी ने दिल्ली एवं आगरा पर अधिकार कर लिया एवं सुर वंश की स्थापना की
  • बिलग्राम व कन्नौज में लड़ी गई इस लड़ाई में हुमायूँ के साथ उसके भाई हिन्दाल एवं अस्करी भी थे, फिर भी पराजय ने हुमायूँ का साथ नहीं छोड़ा।
  • इस युद्ध की असफलता के बाद शेर ख़ाँ ने सरलता से आगरा और दिल्ली पर फिर से अधिकार लिया।
  • इस तरह से हिन्दुस्तान की राजसत्ता एक बार फिर से अफ़ग़ानों के हाथ में आ गई।
  • शेरशाह से परास्त होने के उपरान्त हुमायूँ सिंध चला गया, जहाँ उसने लगभग 15 वर्ष तक घुमक्कड़ों जैसे निर्वासित जीवन व्यतीत किया।
  • इस निर्वासन के समय ही हुमायूँ ने हिन्दाल के आध्यात्मिक गुरु फ़ारसवासी शिया मीर बाबा दोस्त उर्फ ‘मीर अली अकबरजामी’ की पुत्री हमीदा बेगम से 29 अगस्त, 1541 ई. को निकाह कर लिया, कालान्तर में हमीदा से ही अकबर जैसे महान् सम्राट का जन्म हुआ।

निर्वासन काल में हुमायूं

बिलग्राम के युद्ध में पराजित होने के बाद प्रारंभ में हुमायु ने अमरकोट के राणा वीरसाल के यहां शरण ली। हुमायूं ने 1541 ई. में हमीदा बानों बेगम से निकाह किया एवं अमरकोट में ही हमीदा बानो ने अकबर को जन्म दिया। अमरकोट से हुमायूं ने ईरान के शाह के यहां शरण ली। 1545 ई. में हुमायूं के कंधार व काबुल पर अधिकार कर लिया। हुमायूं ने 1555 ई. में ईरान के शाह तथा बैरम खां की मदद से पुनः सिंहासन प्राप्त किया।

सुरवंश (द्वितीय अफगान राज्य)

बिलग्राम के युद्ध में हुमायूं को हराकर शेर खां (शेरशाह सूरी) ने सूर वंश की स्थापना की।

शेरशाह सूरी

  • शेरशाह के बचपन का नाम फरीद था। बिहार के सूबेदार बहार खां लोहानी ने फरीद को शेर खां की उपाधि दी थी।
  • बहार खां (मुहम्मद शाह) की मृत्यु के बाद शेर खां ने उसकी पत्नि से विवाह कर लिया एवं बिहार का शासक बन बैठा।
  • शेर खां ने चौसा के युद्ध में हुमायूं को पराजित किया एवं शेरशाह की उपाधि धारण की।
  • बिलग्राम के युद्ध में हुमायूं को पराजित किया एवं दिल्ली सल्तनत पर अधिकार कर लिया। दिल्ली में द्वितीय अफगान राज्य की स्थापना की।

शेर शाह सूरी के विजय अभियान

  1. 1543 ई. में रायसीन पर आक्रमण किया एवं वहां के शासक पूरणमल की धोखे से हत्या कर दी। यह शेरशाह के चरित्र कर दाग था। इस घटना के बाद शेरशाह के बेटे कुतुब खां ने आत्महत्या कर ली थी।
  2. 1544 ई. में शेरशाह ने मारवाड़ के शासक मालदेव पर आक्रमण किया। मालदेव मारा गया परन्तु मालदेव के राजपूत सरदार जैता एवं कुप्पा ने अपनी वीरता से अफगानी सेना के छक्के छुड़ा दिए। इस आक्रमण के लिए शेरशाह सूरी ने कहा ‘ मुठ्ठी भर बाजरे के लिए लगभग हिन्दुस्तान का साम्राज्य खो चुका था।’
  3. 1545 ई. में शेरशाह सूरी ने अपना अंतिम अभियान कलिंजर के विरूद्ध किया था। इस समय कलिंजर का शासक कीरत सिंह था। इसी अभियान में शेरशाह उक्का नामक आग्नेयास्त्र से गोला फेंक रहा था परन्तु गोला उसके पास रखे बारूद के ढ़ेर पर गर गया जिससे शेरशाह सूरी की मृत्यु हो गयी।

शेरशाह सूरी द्वारा किए गए सुधार

शेरशाह का प्रशासन अत्यंत केन्द्रीकृत था। मंत्री स्वयं निर्णय नहीं ले सकते थे।

शेरशाह ने अपने सम्पूर्ण साम्राज्य को 47 सरकारों में बांटा हुआ था।

शेरशाह ने बंगाल सूबे को 19 सरकारों में विभाजित किया था।

  • शिकदार का पद – सैनिक अधिकारी था।
  • मुंसिफ-ए-मुंसिफान – यह एक न्यायिक अधिकारी था।

शेरशाह की लगान व्यवस्था मुख्य रूप से रैय्यतवादी थी जिसमें किसानों से प्रत्यक्ष सम्पर्क स्थापित किया गया था। शेरशाह ने उत्पादन के आधार पर भूमि को तीन श्रेणियों में विभाजित किया था – अच्छी, मध्यम एवं खराब।

  1. जरीबाना – यह भूमि सर्वेक्षण शुल्क था।
  2. महासिलाना – यह कर संग्रह शुल्क था।

गांवों में कानून-व्यवस्था स्थापित करने का काम चौधरी एवं मुकद्दम नामक स्थानीय मुखिया करते थे। शेरशाह सूरी ने सड़क निर्माण पर बहुत बल दिया। शेरशाह सूरी मार्ग जिसे वर्तमान में ग्राण्ड ट्रक रोड़ (G. T. Road) कहते हैं। इसका निर्माण शेरशाह सूरी ने करवाया था।

शेरशाह सूरी ने चांदी का रूपया (180 ग्रेन) एवं तांबे का दाम (380 ग्रेन) नामक सिक्के चलाए थे। शेरशाह ने रोहताश गढ़ नामक किला बनवाया था। कानूनगो ने शेरशाह सूरी के लिए कहा है कि ‘ वह बाहर से मुस्लिम अन्दर से हिन्दु था।

दिल्ली का अन्तिम हिन्दु शासक: हेमू

शेरशाह सूरी के उत्तराधिकारीयों में मुहम्मद आदिल शाह एक अयोग्य एवं दुराचारी शासक था। इसने हेमू को अपना प्रशासन का संपूर्ण भार सौंप दिया। आदिल शाह ने चुनार को अपनी राजधानी बनाया तथा हेमू मुगलों को हिन्दुस्तान से बाहर निकालने के लिए नियुक्त किया। आदिल शाह के शासक बनते ही हेमू को प्रधानमंत्री बनाया गया। हेमू ने अपने स्वामी के लिए 24 लड़ाइयां लड़ी जिसमें उसे 22 लड़ाइयों में सफलता मिली। हेमू ने विक्रमादित्य की उपाधि धारण की। वह दिल्ली की गद्दी पर बैठने वाला अंतिम हिन्दु सम्राट था। इसका शासन बहुत अल्पकालिक था।

हुमायूं द्वारा पुनः राज्य की प्राप्ति

  • 1445 ई. में हुमायूं ने काबुल तथा कांधार पर हमला कर अधिकार कर लिया।
  • फरवरी 1555 ई. में लाहौर पर अधिकार कर लिया था

मच्छीवारा का युद्ध (15 मई, 1555)

यह सतलज नदी के किनारे पर हुमायूं एवं अफगान सरदार (नसीब खां एवं तातार खां) के बीच हुआ। इसमें हुमायूं की जीत हुई। अब मुगलों का अधिकार पंजाब पर हो गया।

सरहिन्द का युद्ध (22 जून, 1555)

यह युद्ध अफगान का मुगल सेना के साथ हुआ। अफगानों का नेतृत्व सिकन्दर सूर एवं मुगल सेना का नेतृत्व बैरम खां ने किया। अफगान सेना की हार हुई। सरहिन्द के युद्ध में विजय के बाद भारत के सिंहासन पर एक बार पुनः मुगलों का शासन स्थापित हो गया। 23 जुलाई, 1555 को हुमायूं पुन: दिल्ली के तख्त पर बैठा। 27 जनवरी, 1556 को दिल्ली के किले दीनपनाह के शेरमंडल नामक पुस्तकालय की सीढ़ी से गिरकर हुमायूँ की मृत्यु हो गयी। हुमायूँ को दिल्ली में ही दफनाया गया। हुमायूं सप्ताह के सात दिन सात रंग के कपड़े पहनता था। हुमायूं एकमात्र मुगल शासक था। जिसने अपना साम्राज्य भाइयों में बांटा था।

हुमायूँ ने दिल्ली में इंद्रप्रस्थ के खंडहरों पर दीन पनाह नगर बसाया। हुमायूँ की मृत्यु पर ब्रिटिश लेखक स्टैनले लेन पूल ने कहा था, “वह जीवन भर ठोकर खाता रहा और अंत में ठोकर खा कर ही मर गया”। हुमायूँ के मकबरे का निर्माण 1565ई. में हुमायूँ की विधवा बेगा बेगम (हाजी बेगम) ने शुरू करवाया। कहते हैं हुमायूं ने अपने निर्वासन के दौरान फारसी स्थापत्य कला के सिद्धांतो का ज्ञान प्राप्त किया था और शायद स्वयं ही इस मकबरे की योजना बनाई थी। गुलबदन बेगम बाबर की बेटी थी। उसे अपने सौतेले भाई हुमायूं के जीवन चित्रण हुमायूं नामा की लेखक के रूप में जाना जाता है।

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