जहांगीर (सलीम) 1605 -1627 ई.

  • जन्म – 30 अगस्त, 1569 ई
  • राज्याभिषेक – 1605 ई. (आगरा)
  • शासनकाल – 3 नवंबर 1605 – 28 अक्टूबर 1627
  • मृत्यु – 28 अक्टूबर 1627

जहांगीर का जन्म अकबर की पत्नी मरियम उज्जमानी (हरखा बाई/जोधाबाई) से फतेहपुर स्थित शेख सलीम चिश्ती की कुटिया में हुआ। अक्टूबर, 1605 ई. में अकबर की मौत के बाद सलीम (जहांगीर) सिंहासन पर बैठा।

जहांगीर का पहला विवाह आमेर के राजा भारमल की पुत्री एवं मानसिंह की बहिन मानबाई से हुआ था । मानबाई से खुसरो का जन्म हुआ। जहांगीर का दूसरा विवाह मारवाड के शासक उदयसिंह की पुत्री जगत गोसाईं से हुआ। इससे खुर्रम (शाहजहां) का जन्म हुआ। जहांगीर नूरूद्दीन मुहम्मद जहांगीर बादशाह गाजी की उपाधि के साथ सिंहासन पर बैठा।

जहांगीर का साम्राज्य विस्तार:

  • मेवाड़ अभियान
  • कांगड़ा
  • अहमदनगर (दक्कन)

मेवाड़ अभियान

राजस्थान में मेवाड़ एकमात्र राज्य था जो स्वतंत्र बना हुआ था। अकबर भी मेवाड़ को अधीन नहीं कर पाया था। मेवाड़ पर विजय प्राप्त करने के लिए जहांगीर ने कई सैनिक अभियान भेजे। मेवाड़ पर अंतिम मुगल अभियान शाहजादा खुर्रम (शाहजहां) के नेतृत्व में हुआ। इस अभियान में मेवाड़ के शासक अमर सिंह एवं खुर्रम के मध्य संधि हुई। अमरसिंह ने मुगल अधीनता स्वीकार कर ली।

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कांगडा

काँगड़ा का दुर्ग पंजाब में स्थित था और हिन्दुओं के अधिकार में था। यह पंजाब का सबसे सुदृढ़ दुर्ग था और अभेद्य समझा जाता था। जहाँगीर ने ई.1615 में पंजाब के गवर्नर मुर्तजा खाँ को काँगड़ा पर आक्रमण करने भेजा परन्तु मुर्तजा खाँ दुर्ग को नहीं जीत सका और उसकी मृत्यु हो गई। इस पर जहाँगीर ने सुन्दरदास को भेजा जो राजा विक्रमादित्य बघेला के नाम से भी प्रसिद्ध है। 1620 ई. में राजा विक्रमाजीत बघेला ने किले की घेराबन्दी की तथा अपने अधिकार में ले लिया। कांगडा के साथ चंबा ने भी मुगलो की अधीनता स्वीकार कर ली।

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अहमदनगर (दक्कन)

जहांगीर ने 1617 ई. में अहमदनगर अभियान पर शहजादे खुर्रम को भेजा। अहमदनगर के मुगलो के बिच संधि हुई। इसी उपलक्ष्य में जहांगीर ने खुर्रम को शाहजहां की उपाधि दी थी

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भेरावाल का युद्ध (1606 ई.)

जहांगीर के गद्दी पर बैठते ही जहांगीर के पुत्र खुसरो ने विद्रोह कर दिया। जहांगीर ने खुसरो को भेरावल (जालंधर के निकट) पराजित किया एवं अंधा करवा दिया। खुसरो की सहायता करने के कारण सिक्खों के 5वें गुरू अर्जुन देव जी को फांसी पर लटका दिया। खुसरो की सहायता करने में शामिल अन्य व्यक्तियों को भी सजा दी गयी उनमें अब्दुर्रहीम खानेखाना को कठोर यात्नाएं, नूरजहां के पिता इतिमादुद्दौला को कैद, इतिमादुद्दौला के बेटे मुहम्मद शरीफ को मौत, थानेश्वर के शेख निजाम को निर्वासित कर मक्का भेजा।

मेहरून्निसा (नूरजहां)

मेहरून्निसा का जन्म 1577 ई. को कांधार में हुआ। मिर्जा गियास बेग (एतमादुद्दौला/इतिमादुद्दौला) मेहरू के पिता का नाम था। मेहरू का विवाह अलीकुली इस्ताजलू (शेर अफगान) से हुआ। शेर अफगान जहांगीर का नौकर था। कुतुबुद्दीन खां (बंगाल का गवर्नर) एवं शेर अफगान की आपस में लडायी हुई जिसमें दोनों मारे गये एवं मेहरू विधवा हो गयी। 1611 ई. में मीना बाजार में जहांगीर की नजर मेहरू पर पडी एवं मेहरू के साथ प्रेम में पड गया तथा शादी कर ली। जहांगीर ने मेहरू को नूर महल नूरजहां एवं बादशाह बेगम नाम दिए।

  • नूरजहानी चौकड़ी : इसमें नूरजहां, इतिमाद्दौला (पिता), आसफ खां (भाई) एवं खुर्रम सम्मिलित थे। इन्होंने जहांगीर शासन में अहम् भूमिका निभायी।
  • निसार: निसार जहांगीर द्वारा जारी किया गया चांदी का सिक्का था। इस सिक्के पर जहांगीर ने प्याला और शराब की बोतलों की आकृति बनवायी थी।
  • न्याय की जंजीर: जहांगीर ने राज्य की जनता को न्याय दिलाने के लिए न्याय का प्रतीक 60 घण्टियों वाली सोने की जंजीर को अपने महल के बाहर लगाया था। इसे बजाकर कोई भी व्यक्ति न्याय मांग सकता था।
  • जहांगीर ने वीरसिंह बुन्देला द्वारा अबुल फजल की हत्या करवायी थी।
  • जहांगीर, मानसिंह को बूढ़ा भेडिया कहता था

खुर्रम (शाहजहां) का विद्रोह

शाहजहाँ को जब इस बात का अहसास हुआ कि नूरजहाँ उसके प्रभाव को कम करना चाह रही है, तो उसने जहाँगीर द्वारा कंधार दुर्ग पर आक्रमण कर उसे जीतने के आदेश की अवहेलना करते हुए 1623 ई. में ख़ुसरो ख़ाँ का वध कर दक्कन में विद्रोह कर दिया। उसके विद्रोह को दबाने के लिए नूरजहाँ ने आसफ़ ख़ाँ को न भेज कर महावत ख़ाँ को शहज़ादा परवेज़ के मार्गदर्शन में भेजा। उन दोनों ने सफलतापूर्वक शाहजहाँ के विद्रोह को कुचल दिया। शाहजहाँ ने पिता जहाँगीर के समक्ष आत्समर्पण कर दिया और उसे क्षमा मिल गई। जमानत के रूप में शाहजहाँ के दो पुत्रों दारा शिकोह और औरंगज़ेब को बंधक के रूप में राजदरबार में रखा गया। 1625 ई. तक शाहजहाँ का विद्रोह पूर्णतः शान्त हो गया। विद्रोह के परिणाम स्वरूप फारस के शाह ने कांधार पर कब्जा कर लिया

महावत खां का विद्रोह

शाहजहाँ के विद्रोह को दबाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करने वाले महावत ख़ाँ से नूरजहाँ को ईर्ष्या होने लगी। नूरजहाँ को इसका अहसास था, कि महावत ख़ाँ उन लोगों में से है, जिन्हें शासन के कार्यों में मेरा प्रभुत्व स्वीकार नहीं है। महावत ख़ाँ एवं शाहज़ादा परवेज की निकटता से भी नूरजहाँ को ख़तरा था। अतः उसके प्रभाव को कम करने के लिए नूरजहाँ ने उसे बंगाल जाने एवं युद्ध के समय लूटे गये धन का हिसाब देने को कहा। इन कारणों के अतिरिक्त कुछ और कारण भी थे, जिससे अपमानित महसूस कर महावत ख़ाँ ने विद्रोह कर काबुल जा रहे सम्राट जहाँगीर को झेलम नदी के तट पर 1626 ई. में क़ैद कर लिया। परन्तु नूरजहां ने कूटनीति से सेना को अपने कब्जे में ले लिया और महावत ख़ाँ दक्षिण भाग गया।

जहांगीर की धार्मिक नीति

  • जहांगीर न तो स्वभाव से और न ही लालन-पालन की दृष्टि से रूढ़िवादी था।
  • जहांगीर जबरन धर्मांतरण का विरोधी था।
  • जहांगीर ने न केवल अकबर की सुलह-ए-कुल की नीति का अनुसरण किया बल्कि मुरीद बनाने और उन्हें बादशाह की तसवीरें देने का सिलसिला भी जारी रखा।
  • जहांगीर ने अपने दरबार में दीवाली, होली, दशहरा, राखी, शिवरात्री आदि हिन्दु त्यौहार मनाने का रिवाज भी जारी रखा।
  • जहांगीर ने पंजाब में गोहत्या बंद करवा दी थी।
  • जहांगीर के दरबार में नौरोज त्यौहार धूम धाम से मनाया जाता था।
  • जहांगीर ने मंदिरों और ब्राहम्णों को दान और उपहार देने का अकबर का रिवाज जारी रखा।
  • कभी-कभी जहांगीर संकीर्ण मानसिकता के कार्य भी करता था। इसका कारण शायद उलेमाओं को खुश करना था।
  • कांगडा अभियान में जिहाद की संज्ञा दी।
  • गुजरात के जैन मंदिरों को बंद करने का आदेश दिया।
  • जहांगीर की धार्मिक रूचि का मुख्य विषय एकेश्वरवाद, मूर्तिपूजा का खण्डन एवं अवतारवाद को अस्वीकार करना था।
  • जहांगीर का शेख अहमद सरहिन्दी से विरोध था।
  • जहांगीर ने श्रीकान्त नामक एक हिन्दु को हिन्दुओं का जज नियुक्त किया।
  • जहांगीर ने सूरदास को आश्रय दिया था। जिन्होंने सूरसागर की रचना की थी।
  • जहांगीर ने आगरा के नजदीक सिकंदरा में अकबर का मकबरा लाहौर की मस्जिद का निर्माण भी करवाया था। साथ ही जहांगीर ने कश्मीर में शालीमार बाग़ का निर्माण करवाया था। साथ ही लाहौर और बहुत सी अन्य जगहों पर सुन्दर बाग भी लगवाए थे।

तथ्य

जहांगीर काल में आए पुर्तगाली दूतों का क्रम – विलियम हाॅकिंस (1608 ई.) – पाॅलकेनिंग (1612 ई.) – विलियम एडवर्ड (1615 ई.) – टाॅमस राॅ (1615 ई.)

जहांगीर का काल मुगल चित्रकला का स्वर्णकाल माना जाता है।

इत्र बनाने की विधि का आविष्कार अस्मत बेगम (नूरजहां की मां) ने किया।

आइन-ए-जहांगीरी : यह जहांगीर द्वारा फारसी भाषा में जारी किए गए 12 अध्यादेशों का समूह था।

जहांगीर के शासन काल में ही उसकी पत्नी नूरजहां ने अपने पिता की याद में एत्मादुद्दौला का मक़बर बनवाया था। जो जहांगीर के समय में बनी प्रसिद्ध इमारतों में से एक है।

अनारकली

जहांगीर अनारकली से प्रेम करता था। 1615 ई. में अनारकली की याद में उसने लाहौर में एक सुन्दर कब्र बनाया और उस पर लिखवाय ‘यदि में अपनी प्रेयसी का चेहरा एक बार पुनः देख पाता तो कयामत के दिन तक अल्लाह का धन्यवाद देता’। अनारकली का विवरण देने वाला एकमात्र विदेशी यात्री विलियम फिच था।

7 नवम्बर 1627 ई. को भीमवारा (पंजाब) नामक स्थान पर जहांगीर की मृत्यु हो गयी। जहांगीर को शहादरा (लाहौर) में रावी नदी के तट पर दफनाया गया

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