- शुरु – 1330 ई.
- चलन किया – दोकानी नामक एक नया सिक्का और दीनार नामक स्वर्ण मुद्राएं चलायी
- राजधानी परिवर्तन की असफलता के बाद सुल्तान की दूसरी योजना सांकेतिक मुद्रा को जारी करना थी।
- इल्तुतमिश के बाद मोहम्मद बिन तुगलक दिल्ली सल्तनत का दूसरा ऐसा शासक था जिसने मुद्रा व्यवस्था में उल्लेखनीय बदलाव किया
- उसने विभिन्न प्रकार के सिक्के जारी किए, दोकानी नामक एक नया सिक्का और दीनार नामक स्वर्ण मुद्राएं चलायी।
- मुहम्मद बिन तुगलक ने चांदी का 140 ग्रेन का टंका या अदली भी चलवाया था ,सोने के सिक्के में सोने की मात्रा 175 ग्रेन से बढ़ाकर 200 ग्रेन तक कर दी गई,उसने सिक्कों पर कलमा खुदवाना बंद करवाया।
- मुद्रा व्यवस्था में मुहम्मद बिन तुगलक का सबसे महत्वपूर्ण कार्य था सांकेतिक मुद्रा का प्रचलन
- उस समय चांदी का सिक्का टंका और तांबे का सिक्का जीतल कहलाता था।
- मुहम्मद बिन तुगलक ने प्रतीक मुद्रा के रूप में चांदी के सिक्के के स्थान पर कांसे का सिक्का प्रचलित किया, प्रतीक मुद्रा पर अरबी और फारसी दोनों भाषाओं में लेख थे
- बरनी के अनुसार– सुल्तान विदेशी राज्य को जीतना चाहता था इसके लिए धन की आवश्यकता थी,साथ ही सुल्तान की उदारता और अपव्ययता से खजाना खाली था अतः उसे सांकेतिक मुद्रा चलानी पड़ी
- नेल्सन राइट के अनुसार– सांकेतिक मुद्रा प्रचलित करने का एक और कारण यह था कि चौदवी शताब्दी में संपूर्ण विश्व में चांदी की कमी हो गई थी
- मोहम्मद बिन तुगलक ने इस कठिनाई से निपटने के लिए चीन और ईरान में प्रचलित सांकेतिक मुद्रा के आधार पर भारत में भी सांकेतिक मुद्रा चलाई
- उस समय सोने और चांदी का आनुपातिक मूल्य तीन विशेषज्ञ द्वारा दिया गया जो इस प्रकार है–
- 1-एडवर्ड टॉमस 8:1
2-कर्नल भूल 7:1 और
3-नेल्सन राइट और नेविल 10:1 - चीनी के कुबलाई खां (1260 से 94ईस्वी) और इरान के के गैखातू खां ने प्रतीक मुद्रा चलाई थी
- कुबलाई द्वारा प्रचलित सांकेतिक मुद्रा चाऊ चीन में सफल रही लेकिन इरान के शासक गैखातु खां की सांकेतिक मुद्रा योजना असफल रही
- इस कारण इस योजना के अनुसार सुल्तान ने 1329-30ई. में सांकेतिक मुद्रा को वैधानिक आधार देकर लागू किया और सभी को उसे स्वीकार करने के आदेश दिए
- सुल्तान की यह एक क्रांतिकारी योजना थी जिसके द्वारा उसने राजकोष में चांदी को सुरक्षित रखने की व्यवस्था की
- लेकिन उसकी यह योजना असफल रही क्योंकि उस समय सिक्के बनाने की कला साधारण थी सांकेतिक मुद्रा में कोई पेचदी डिजाइन नहीं था और ना ही कोई सरकारी नियंत्रण
- सरकारी टकसाल भी थे और सर्राफ की दुकान पर भी टकसाल का काम होता था, कहीं भी धातु देकर सिक्का बनवाया जा सकता था
- बरनी के अनुसार– प्रत्येक हिंदू का घर टकसाल बन गया था जनता ने चांदी जमा करना आरंभ कर दिया और प्रत्येक खरीदारी प्रति मुद्रा में करने लगे
- इस प्रकार यथेष्ट चांदी प्रचलन से बाहर कर दी गई
- भू-राजस्व का भुगतान जाली प्रतीक मुद्रा में किया जाने लगा, खुत, मुकद्दम और चौधरी शक्तिशाली और अवज्ञाकारी बन गए
- मध्यवती जमीदारों ने चांदी के सिक्के छिपा लिए और नए सिक्के से हथियार भी खरीदने लगे
- विदेशी व्यापारियों ने भारत में अपना माल लाना बंद कर दिया जिससे आयात को भारी क्षति पहुंची अंत में निराश होकर सुल्तान ने सांकेतिक मुद्रा बंद कर दी और सभी तांबे के सिक्के को असली सोने और चांदी के सिक्कों में बदलने का निश्चय किया
- इससे खजाने को बहुत क्षति पहुंची साथ ही अफसरों ने सुल्तान को बदनाम करने के लिए प्रचार शुरु कर दिया
- एडवर्ड टामस– ने मोहम्मद तुगलक को ”धनवानों का राजकुमार” कहा है