महमूद गंवा अफाकी (ईरानी) मूल का था। प्रारंभ में यह एक व्यापारी था। बहमन सुल्तानों में हुमायुं के पुत्र निजामुद्दीन अहमद के वयस्क होने पर उसके संरक्षण के लिए एक प्रशासनिक परिषद का निर्माण किया गया। महमूद गंवा इस परिषद का सदस्य था।
प्रशासनिक परिषद के सदस्य एवं सुल्तान हुमायूँ के शासन काल में प्रधानमंत्री के रूप में महमूद गवाँ बहमनी साम्राज्य की राजनीतिक समस्याओं का निराकरण कर उसे बहमनी साम्राज्य को उत्कर्ष की पराकाष्ठा पर पहुंचा दिया।
सबसे पहले उसने मालवा पर अधिकार किया। उसकी सबसे महत्वपूर्ण सैनिक सफलता गोवा पर अधिकार प्राप्त करना थी। गोवा पश्चिमी समुद्री तट का सर्वाधिक प्रसिद्ध बंदरगाह था। यह विजयनगर का संरक्षित राज्य था।
महमूद गवाँ ने नवविजित प्रदेशों सहित भूतपूर्व चार प्रांतों (तरफों) को अब आठ प्रांतों में विभाजित किया– बरार को गाविल और माहुर, गुलबर्गा को बीजापुर एवं गुलबर्गा, दौलताबाद को दौलताबाद एवं जुन्नार तथा तेलंगाना को राजमुद्री और वारंगल के रूप में विभाजित किया।
उसने प्रांतों से थोड़ी थोड़ी जमीन लेकर उसे खालसा भूमि में परिवर्तित किया। इसके अतिरिक्त प्रान्तीय गवर्नरों के सैनिक अधिकारों में भी कटौती की अब पूरे प्रांत में केवल एक किले को ही प्रत्येक गवर्नर के अधीन रहने दिया गया। महमूद गवाँ ने भूमि की पैमाइश, ग्रामों के सीमा निर्धारण और लगान – निर्धारण की जाँच कराई।
महमूद गवाँ बङा साहित्यिक एवं सास्कृतिक सुरुचि सम्पन्न व्यक्ति था। वह विद्वानों का महान संरक्षक था। उसने बीदर में एक महाविद्यालय की स्थापना की। महमूद गवाँ ने अपनी राजनीतिक गतिविधियों को न केवल बहमनी साम्राज्य तक सीमित किया अपितु उसके बाहर ईरान, ईराक, मिस्र, तथा टर्की के सुल्तानों के साथ पत्र व्यवहार किया।
किन्तु इस महान व्यक्ति का अंत दुखद रहा। 1481-82ई. में मुहम्मद तृतीय ने इसे राजद्रोह के आरोप में फाँसी दे दी। इसका मुख्य कारण अफाकियों एवं दक्कनियों के मध्य शत्रुता थी।